145.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब नापाकी का गुस्ल फरमाते तो पहले दोनों हाथ धोते, फिर नमाज के वुजू की तरह वुजू करते,उसके बाद अपनी उंगलियाँ पानी में डालकर बालों की जड़ों का खिलाल करते, फिर दोनों हाथों से तीन चुल्लू पानी लेकर अपने सर पर डालते, उसके बाद अपने तमाम जिस्म पर पानी बहाते। गुस्ल में बदन पर पानी बहाने से फर्ज अदा हो जाता है, लेकिन सुन्नत तरीका यह है कि पहले वुजू किया जाये।
146.मैमूना रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने गुस्ल के वक्त पहले नमाज के वुजू की तरह वुजू किया, लेकिन पांव नहीं धोये, अलबत्ता अपनी शर्मगाह और जिस्म पर लगने वाली गन्दगी को धोया, फिर अपने ऊपर पानी बहाया, उसके बाद गुस्ल की जगह से अलग होकर अपने दोनों पांव धोये आपका नापाकी का गुस्ल यही था। गुस्ल के लिए जरूरी है कि पहले पर्दे का इन्तिजाम करे, फिर दोनों हाथ धोये जायें, उसके बाद दायें हाथ से पानी डालकर शर्मगाह को धोया जाये और उस पर लगी हुई गन्दगी को दूर किया जाये। फिर वुजू का अहतमाम हो, लेकिन पांव ना धोये जायें। फिर बालों की जड़ों तक पानी पहुंचाकर उन्हें अच्छी तरह तर किया जाये, फिर तमाम बदन पर पानी बहाया जाये। आखिर में गुस्ल की जगह से अलग होकर पांव धोये जायें।
147.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है। उन्होनें फरमाया कि मैं और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दोनों मिलकर एक बर्तन से गुस्ल करते थे,एक बड़ा प्याला, जिसे फरक कहा जाता था।
148.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है कि उनसे जब नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम की नापाकी के गुस्ल की हालत पूछी गयी तो उन्होंने एक सा के बराबर पानी का बर्तन मंगवाया, उससे गुस्ल किया और अपने सर पर पानी बहाया, गुस्ल के बीच हजरता आइशा और सवाल करने वाले के बीच पर्दा लगा था। अगर आदमी ज्यादा खर्च न करे तो एक साअ पानी से बखूबी गुस्ल हो सकता है। इस हदीस पर हदीस का इनकार करने वाले बहुत ऐतराज करते हैं कि इसमें लोगों के सामने गुस्ल करने का बयान है। लिहाजा हदीसों की सच्चाई बेकार है। हालांकि गुस्ल में पर्दा किया गया है और जिनके सामने आपने गुस्ल किया, वो आपके मोहरिम थे क्योंकि एक तो रजाई भांजा और दूसरा रजाई भाई था।
149.जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उनसे किसी आदमी ने गुस्ल के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि तुझे एक साअ पानी काफी है। एक दूसरा आदमी बोला, मुझे तो काफी नहीं है। हजरत जाबिर ने फरमाया कि यह मिकदार उस आदमी को काफी हो जाती थी, जिसके बाल भी तुझ से ज्यादा थे। और वो खुद भी तुझसे बेहतर था, यानी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम। फिर जाबिर ने एक कपड़े में हमारी इमामत कराई। मालूम हुआ कि हदीस के खिलाफ झगड़ने वाले को सख्ती से समझाने में कोई हर्ज नहीं, जैसा कि हजरत जाबिर ने हसन बिन मुहम्मद बिन हनफिया को समझाया।
150.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्हों ने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब नापाकी का गुस्ल करने का इरादा फरमाते तो कोई चीज हिलाब जैसी मंगवाते और उसे अपने हाथ में लेकर पहले सर के दायें हिस्से से शुरू करते, फिर बायें तरफ लगाते थे उसके बाद अपने दोनों हाथों से तालू पर मालिश करते।
151.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को खुश्बू लगाया करती थी, बाद में आप अपनी सब बीवियों के पास दौरा फरमाते फिर दूसरे दिन एहराम बांधते, इसके बा-वुजूद आपके जिस्म मुबारक से खुशबू की महक निकल रही होती थी। मुस्लिम में है कि जब आदमी हम बिस्तर होने के बाद दोबारा बीवी के पास जाये तो वुजू कर ले, लेकिन वुजू करने का हुक्म वाजिब और फर्ज नहीं है।
152.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम अपनी बीवियों का रात दिन की एक घड़ी में दौरा कर लेते बावजूद यह कि आपकी ग्यारह बीवियाँ थी। एक दूसरी रिवायत में नौ औरतों का जिक्र है। हजरत अनस से पूछा गया, क्या आप में इस कद्र त्ताकत थी? उन्होंने जवाब दिया, हम तो कहा करते थे आपको तीस मर्दों की ताकत मिली है। ग्यारह से मुराद नौ बीवियाँ और दो आपकी कनीज हैं। एक का नाम मारिया और दूसरी का रेहाना था।
153.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि एक बार नमाज के लिए तकबीर कही गई, जब सफें बराबर हो गयीं तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ लाये, मुसल्ले पर खड़े होते ही आपको याद आया कि मैं नापाकी से हूँ। चूनांचे ही आपने हम से फरमाया, अपनी जगह पर रहो, फिर आप लौट गये और जल्दी से गुस्ल कर के वापिस तशरीफ लाये और आपके सर मुबारक से पानी टपक रहा था। आपने नमाज के लिए अल्लाहु अकबर कहा, और हम सब ने आपके साथ नमाज अदा की। इस हदीस से यह भी मालूम हुआ कि अगर नापाकी के गुस्ल में देर हो जाये तो कोई हर्ज नहीं है। नीज यह भी मालूम हुआ कि अजान या तकबीर के बाद किसी सही बहाने की बिना पर मस्जिद से निकलने में कोई हर्ज नहीं।
154.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: बनी इस्राइल एक दूसरे के सामने नंगे नहाया करते थे जबकि मूसा अलैहि सलाम अकेले नहाते। बनी इस्राइल ने कहा, अल्लाह की कसम! मूसा अलैहि सलाम हमारे साथ इसलिए गुस्ल नहीं करते कि आप किसी बीमारी में मुब्तला हैं, इत्तिफाक से एक दिन मूसा अलैहि सलाम ने नहाते वक्त अपना लिबास एक पत्थर पर रख दिया। हुआ यूँ कि वह पत्थर उनका कपड़ा ले भागा, मूसा अलैहि सलाम उसके पीछे यह कहते हुये दौड़े, ऐ पत्थर! मेरे कपड़े दे दे, यहां तक कि बनी इस्राईल ने हजरत मूसा अलैहि सलाम को देख लिया और कहने लगे, अल्लाह की कसम मूसा अलैहि सलाम को कोई बीमारी नहीं, मूसा अलैहि सलाम ने अपने कपड़े लिये और पत्थर को मारने लगे। हजरत अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो ने फरमाया, अल्लाह की कसम! मूसा अलैहि सलाम की मार के छः या सात निशान उस पत्थर पर अब भी मौजूद हैं। बनी इस्राईल का खयाल था कि हजरत मूसा अलैहि सलाम के खुसिये (गुप्तांग) बढ़े हुए हैं इसलिए शर्म के मारे हमारे साथ नहीं नहाते, कहीं ऐब जाहिर न हो जाये। इस हदीस से मालूम हुआ कि किसी जरूरत के पेश नजर दूसरों के सामने सतर खोलना जाइज है।
155.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही यह दूसरी रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, एक बार अय्यूब अलैहि सलाम नंगे नहा रहे थे कि उन पर सोने की मकड़ियाँ बरसने लगीं। अय्यूब अलैहि सलाम उन्हें अपने कपड़े में समेटने लगे। इस मौके पर अल्लाह तआला ने आवाज दी, ऐ अय्युब! जो तुम देख रहे हो कया मैंने तुम्हें उनसे बे-नियाज नहीं किया। अय्युव अलैहि सलाम ने कहा! मुझे तेरी इज्जत की कसम! क्यों नहीं, मगर मैं तेरे करम से बे नियाज नहीं हो सकता हूँ। इस हदीस से अल्लाह तआला के बात करने की खूबी भी साबित होती हैनीज यह भी मालूम हुआ कि इस खूबी में आवाज भी है।
156.उममे हानी बिन्ते अबू तालिब रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मैं फतहे मक्का के साल रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम के पास गयी तो मैंने आपको गुस्ल करते हुये पाया और हजरता फातिमा आप पर पर्दा किये हुये थीं, आपने फरमाया यह कौन है? मैंने अर्ज किया जनाब मैं हूँ उम्मे हानी |
157.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि सलामवसल्लम उन्हें मदीना के किसी रास्ते में मिले और खुद अबू हुरैरा नापाकी से थे, वो कहते हैं कि मैं आपसे अलग हो गया, जब गुस्ल करके वापस आया तो आपने पूछा, अबू हुरैरा ! तुम कहाँ चले गये थे, अबू हुरैरा ने अर्ज किया कि मुझे नहाने की जरूरत थी तो मैंने पाकी के बगैर आपके पास बैठना बुरा खयाल किया, आपने फरमाया, सुब्हान अल्लाह! मोमिन किसी हाल में नापाक नहीं होता। इस हदीस से पसीने के पाक होने का सुबूत मिलता है कि जब बदन पाक है तो जो बदन से निकले, उसे भी पाक होना चाहिए। याद रहे कि नापाक की गन्दगी हुक्मी है और काफिर की एतकादी। जब तक बदन पर कोई हकीकी गन्दगी न हो, नापाक नहीं होता।
158.उमर बिन खत्ताब रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछा कि क्या हम में से कोई नापाकी की हालत में सो सकता हैं? आपने फरमाया, “’हाँ” जब तुममें कोई नापाकी की हालत में हो तो वुजू कर ले और सो जाये। दूसरी हदीस में है कि वह पहले शर्मगाह से गन्दगी को धो ले फिर नमाज के वुजू की तरह वुजू करे, लेकिन इस वुज़ू से नमाज नहीं पढ़ सकता, क्योंकि नाशाकी की हालत में नहाये बगैर नमाज अदा करने की इजाजत नहीं।
159.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, जब मर्द अपनी औरत के चारों हिस्सों के बीच बैठ गया, फिर उसके साथ कोशिश की यानी दुखूल किया तो यकीनन गुस्ल जरूरी हो गया। बाज हजरात ने यह बात इख्तियार की है कि सिर्फ दुखूल से गुस्ल वाजिब नहीं होता, जब तक मनी ना निकले। शायद उयह हदीस न पहुंची हो।
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