519.अबू जर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, मेरे रब की तरफ से मेरे पास एक आने वाला आया,उसने मुझे खुशखबरी दी कि मेरी उम्मत में से जो आदमी इस हालत में मरे कि वह अल्लाह के साथ किसी को शरीक न करता हो तो वह जन्नत में दाखिल होगा, मैंने कहा अगरचे उसने जिना और चोरी की हो। आपने फरमाया, हां अगरचे उसने जिना किया हो और चोरी भी की हो । मतलब यह है कि जो आदमी तौहीद पर मरे तो वह हमेशा के लिए जहन्नम में नहीं रहेगा, आखिरकार जन्नत में दाखिल होगा, चाहे अल्लाह के हक जैसे जिना और लोगों के हक जैसे चोरी ही क्यों न हो। ऐसी हालत में लोगों के हक की अदायगी के बारे में अल्लाह जरूर कोई सूरत पैदा करेगा। अब्दुल्लाह रजि अल्लाह तआला अन्हो ने फरमाया कि जो आदमी शिर्क की हालत में मर जाये वो दोजख में जायेगा और यह कहता हूं जो आदमी इस हाल में मर जाये कि अल्लाह के साथ किसी को शरीक न करता हो, वो जन्नत में जायेगा। इस हदीस से इमाम बुखारी एक फरमाने नबवी की वहाजत करना चाहते हैं, यानी जरूरी नहीं के मरते वक्त कलमा-ए-इख्लास पढ़ने से ही जन्नत में दाखिल होगा, बल्कि इससे मुराद तौहीद का अकीदा रखना और इसी अकीदे पर मरना है ।
520.बरा बिन आजिब रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्हों ने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हमें सात बातों का हुक्म दिया है और सात चीजों से मना फरमाया है, जिन बातों का हुक्म दिया है, वह जनाजे के साथ जाना, मरीज की खबरगीरी करना, दावत कुबूल करना, कमजोर की मदद करना, कसम का पूरा करना, सलाम का जवाब देना है और छींकने वाले को दुआ देना और आपने चांदी के बर्तन, सोने की अंगूठी, रेशम, दीवाज, कसी और इस्तबरक से मना फरमाया था। इस हदीस में जिन सात चीजों से मना किया गया है, उनमें सातवीं यह है कि रेशमी गद्दियों के इस्तेमाल से भी मना फरमाया है। जो सवारी की पीठ पर रखी जाती है। इमाम बुखारी ने इसे (किताबुल लिबास, 5863) में बयान फरमाया है।
521.उम्मे अलाअ रजि अल्लाह तआला अन्हो एक अन्सारी औरत से रिवायत है, जो उन औरतों में शामिल हैं, जिन्होंने आपसे बैअत की थी, उन्होंने फरमाया कि जब मुहाजरीन कुरआ अन्दाजी के जरीये बांटे गये तो हमारे हिस्से में उसमान बिन मजऊन रजि अल्लाह तआला अन्हो आये, जिनको हम अपने घर लाये और वह अचानक बीमार हो गये। जब उन्होंने इन्तेकाल किया तो हमने उन्हें नहलाया और उनके कपड़ों में दफनाया इसी बीच रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ लाये। मैंने कहा, ऐ अबू साइब ! तुम पर अल्लाह की रहमत हो, मेरी शहादत तुम्हारे लिए यह है कि अल्लाह तआला ने तुम्हें कामयाब कर दिया है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें इज्जत दी है? मैंने कहा ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरे मां-बाप आप पर फिदां हो तो फिर अल्लाह किसे कामयाब करेगा? आपने फरमाया बेशक इन्हें अच्छी हालत में मौत आई है। अल्लाह की कसम! मैं भी इनके लिए भलाई की उम्मीद रखता हूँ लेकिन अल्लाह की कसम मैं उसका रसूल होकर अपने बारे में भी नहीं जानता हूँ कि मेरे बारे में क्या मामला किया जायेगा? उम्मे अलाअ रजि अल्लाह तआला अन्हो कहती हैं कि उसके बाद मैंने किसी के पाकबाज होने की गवाही नहीं दी। इससे मालूम हुआ कि यकीनी तौर पर किसी को जन्नती नहीं कहना चाहिए, क्यों कि जन्नत के लिए साफ नियत शर्त है, जिस पर अल्लाह के अलावा और कोई खबरदार नहीं हो सकता। अलबत्ता जिन हजरात के बारे में यकीनी दलील है जैसे" अशरा मुबश्शरा" वगैरह उन्हें जन्नती कहने में कोई हर्ज नहीं।
522.जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मेरे बाप उहद की लड़ाई में शहीद हो गये तो मैं बार बार उनके चेहरे से पर्दा हटाता और रोता था। लोग मुझे इससे मना करते थे, लेकिन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुझे मना नहीं फरमाते थे, फिर मेरी फुफी फातिमा भी रोने लगी तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, तू रो या न रो, फरिश्ते तो उन पर अपने परों का साया किये रहे, यहां तक कि तुमने उन्हें उठा लिया। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनके बारे में जन्नती होने का फैसला फरमाया, इसकी बुनियाद वहय थी, वैसे अपने गुमान से किसी के बारे में जन्नती होने का फैसला नहीं करना चाहिए।
523.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नजाशी के मरने की खबर सुनाई, जिस दिन वह मरे थे, फिर आप ईदगाह तशरीफ ले गये, सफे ठीक करने के बाद चार तकबीरें कहकर जनाज़े की नमाज़ अदा की। इससे मालूम हुआ कि गायबाना जनाजे की नमाज पढ़ी जा सकती है,लेकिन मरने वाला समाज में असर और पहुंच वाला हो।
524.अनस बिन मालिक रजि से रिवायत है, उन्होंने कहा, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि मौता की लड़ाई में पहले जैद ने झण्डा उठाया और वह शहीद हो गये, फिर जाफर ने झण्डा उठाया, वह भी शहीद हो गये, फिर अब्दुल्लाह बिन रवाहा ने झण्डा उठाया तो वह भी शहीद हो गये, उस वक्त रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आंखों से आंसू जारी थे, फिर खालिद बिन वलीद ने सालारी के बगैर ही झण्डा उठाया तो उनके हाथ पर जीत हुई। हजरत खालिद बिन वलीद को रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फौज की कमान संभालने का हुक्म नहीं दिया, उसके बावजूद उन्होंने कमान संभाली और काफिरों को हार से दो-चार किया। मालूम हुआ कि संगीन हालत में ऐसा करना
जाइज है।
525.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है, उन्होंने कहा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, जिस मुसलमान के तीन नाबालिग बच्चे मर जायें तो अल्लाह तआला बच्चों पर अपनी मेहरबानी ज्यादा होने के सबब उसे जन्नत में दाखिल फरमाता है। एक रिवायत में दो बच्चों बल्कि एक बच्चे के मरने का भी यही हुक्म है, इस शर्त के साथ कि सब्र किया जाये और कोई बे अदबी की बात्त मुंह से न कही जाये।
526.उम्मे अतिय्या रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी बेटी की वफात के वक्त हमारे पास तशरीफ लाये और फरमाया कि इसे तीन बार या पांच बार या इससे ज्यादा अगर जरूरत हो तो पानी और बेरी के पत्तों से नहलाओ और आखरी बार काफूर डाल दो या थोड़ा सा काफूर शामिल कर दो और फारिग होकर मुझे खबर देना। चूनांचे हमने फारिग होकर आपको खबर दी तो आपने हमें अपना तहबन्द दिया और फरमाया, इसे उनके बदन पर लपेट दो, यानी इसकी इजार बना दी जाये। अपना तहबन्द बरकत के लिए दिया था, मय्यत को एक बार नहलाना फर्ज है और इससे ज्यादा जरूरत के मुताबिक मुस्तहब है।
527.उम्मे अतिय्या रजि अल्लाह तआला अन्हो ही से एक दूसरी रिवायत में है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि दायीं तरफ और वुजू की जगहों से गुस्ल को शुरू करना। उम्मे अतिया रजि अल्लाह तआला अन्हो कहती हैं कि हमने कंघी करके उनके बालों के तीन हिस्से कर दिये थे। मालूम हुआ कि मय्यत को कुल्ली कराना और उसके नाक में पानी डालना मुरतहब है। नीज यह वुजू गुस्ल का हिस्सा है।
528.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तीन सफेद कपडों में कफन दिया गया जो यमनी सहूली रूई से बने हुए थे और उनमें न तो कुर्ता था न पगड़ी। एक हदीस में है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तीन सफेद कपड़ों में कफ़न दिया गया, इमाम तिरमजी के कहने के मुताबिक रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कफ़न के बारे में यही एक रिवायत सही है, पगड़ी बांधना बिदअत है, इससे बचा जाये।
529.इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि एक आदमी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ अरफा मे ठहर हुआ था कि अचानक अपनी सवारी से गिरा। जिससे उसकी गर्दन टूट गयी तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, इसे पानी और बेरी के पत्तों से गुस्ल देकर दो कपड़ों में कफ़न दो। मगर हनूत (एक खुश्बू) न लगाना और न इसके सर को ढ़ांकना क्योंकि यह कयामत के दिन लब्बेक कहता हुआ उठाया जायेगा। इमाम बुखारी ने इस हदीस पर यूँ उनवान कायम किया है, "मोहरिम को क्योंकर कफन दिया जाये" इस हदीस से यह भी मालूम हुआ कि मोहरिम जब मर जाये तो उस पर अहराम के हुक्म बाकी रहेंगे।
530.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि जब अब्दुल्लाह बिन उबई मुनाफिक मर गया तो उसके बेटे ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर होकर कहा, ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! उसके कफ़न के लिए अपना कुर्ता दे दीजिए, उसकी जनाजे की नमीज पढ़ायें और उसके लिए बख्शिश की दुआयें कीजिए। तो आपने अपना कुर्ता दिया और कहा कि जब जनाजा तैयार हो जाये तो मुझे खबर कर देना, मैं उसकी जनाज़े की नमाज पढूंगा। चूनांचे उसने आपको खबर की, मगर जब आपने उसका जनाज़ा पढ़ने का इरादा फरमाया तो उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो ने आपको रोक लिया और कहा, क्या अल्लाह तआला ने मुनाफिकों की जनाजे की नमाज पढ़ने से आपको मना नहीं फरमाया है? आपने फरमाया कि मुझे दोनों बातों का इख्तियार दिया गया है। अल्लाह तआला का इरशाद है, तुम उनके लिए मगफिरत करो या न करो (दोनों बराबर हैं) अगर सत्तर बार भी उनके गुनाहों की माफी चाहोगे तो तब भी अल्लाह उन्हें हरगिज माफ़ नही फरमाएगा।" फिर आपने उसकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ी, इस पर यह आयत नाजिल हुई। अगर कोई मुनाफिक मर जाये तो उसकी कभी जनाजे की नमाज न पढ़ो। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपना कुर्ता इसलिए दिया था कि उसके बेटे अब्दुल्लाह रजि अल्लाह तआला अन्हो की इज्जत अफजाई होगी, उसका बाप मुनाफिक था, नीज बदर में जब अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो कैद होकर आये तो उनके बदन पर कुर्ता न था तो अब्दुल्लाह बिन उबई मुनाफिक ने अपना कुर्ता उन्हें पहनाया था । रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसका बदला दिया का कोई अहसान बाकी न रहे।
531.जाबिर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,उन्हों ने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अब्दुल्लाह बिन उबई मुनाफिक की मय्यत पर तशरीफ लाये, जब उसे कब्र में रख दिया गया तो आपने उसे निकलवाकर किसी कदर थूक उस पर डाला और उसे अपनी कमीज पहनाई। पहली रिवायत में कमीज देने से मुराद है कि आपने देने का वादा फरमाया हो, हुआ यूँ कि अब्दुल्लाह बिन उबई मुनाफिक के रिश्तेदारों ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तकलीफ देना ठीक न समझा। जब उसे कब्र में रख दिया गया तो आपने उसे अपना कुर्ता पहनाया।
532.खब्बाब रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि हम लोगों ने सिर्फ अल्लाह की खुशी हासिल करने के लिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ हिज़रत की तो हमारा सवाब अल्लाह के जिम्मे हो गया। हममें से कुछ लोगो ने तो मरने तक कुछ न खाया। उन्हीं लोगों में मुसअब बिन उमैर रजि अल्लाह तआला अन्हो थे और हममें से कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनके लिए उनका फल पक गया और वह उसे उठा उठाकर खाते हैं मुसअब बिन उमैर रजि अल्लाह तआला अन्हो उहद की जंग में शहीद हुये उनके कफ़न के लिए कुछ न मिला। बस एक चादर थी, अगर उनका सर उससे छिपाते तो पांव खुल जाते, पांव छिपाते तो सर बाहर निकल आता। आखिर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हमें हुक्म दिया कि उनका सर छिपा दो और पांव पर कुछ इजखिर घास डाल दो। मालूम हुआ कि कफ़न में सतरपोशी जरूरी है। नीज इस हदीस से हज़रत मुसअब बिन उमैर रजि अल्लाह तआला अन्हो की फरज़ीलत भी मालूम होती है कि आखिरत में उनके सवाब में कोई कमी नहीं होगी।
533.सहल रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि एक औरत नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए तैयार की हुई हाशियेदार चादर लायी। रावी ने कहा, क्या तुम जानते हो कि वुरदा क्या चीज है? लोगों ने कहा, बुरदा चादर को कहते हैं तो उसने कहा, हां। खैर औरत ने कहा, मैंने इसे अपने हाथ से तैयार किया है और आपको पहनाने के लिए लाई हूं। चूनांचे उस वक्त आपको उसकी जरूरत भी थी, इसलिए उसे कबूल फरमा लिया। फिर आप बाहर तशरीफ लाये तो वह चादर आपकी इजार थी। एक आदमी ने उसकी तारीफ की और कहने लगा क्या ही उम्दा चादर है। यह मुझे दे दीजिए। लोगों ने उससे कहा, तूने अच्छा नहीं किया। क्योंकि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बहुत सख्त जरूरत के सबब इसे पहना था। मगर तूने मांग ली है हालांकि तू जानता है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम किसी का सवाल रद्द नहीं करते। उस आदमी ने कहा, अल्लाह की कसम! मैंने पहनने के लिए नहीं मांगी बल्कि इसलिए कि वह मेरा कफ़न हो। सहल रज़ि फरमाते हैं कि फिर उसी चादर से उस आदमी का कफ़न तैयार हुआ। इससे मालूम हुआ कि अपनी जिन्दगी में कफन तैयार करके रख लेना काबिले ऐतराज नहीं है।
534.उम्म अतिय्या रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि हमें जनाजों के साथ जाने से मना कर दिया गया, फिर भी कोई सख्ती न थी। इससे मालूम हुआ कि मनाही के हुक्म की कई किस्में हैं, कुछ तो ऐसी हैं, जिनका करना हराम है और कुछ ऐसी भी हैं, जिन पर अमल करना पसन्दीदा और बेहतर नहीं है। जैसा कि इस हदीस से जाहिर है।
535.उम्मे हबीबा रजि अल्लाह तआला अन्हो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बीवी से रिवायत है, उन्होंने कहा कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह फरमाते हुये सुना जो औरत अल्लाह पर ईमान और आखिरत के दिन पर यकीन रखती हो, उसके लिए यह जाइज नहीं कि वह किसी मय्यत पर तीन दिन से ज्यादा सोग करे, लेकिन उसे अपने शौहर पर चार महीने दस दिन तक सोग करना चाहिए। जिस औरत के पेट में बच्चा हो, उस औरत के सोग की मुद्दत बच्चा पैदा होने तक है, चाहे चार महीने दस दिन से पहले पैदा हो या उसके बाद।
536.अनस बिन मालिक रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि एक बार नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का गुजर एक औरत के पास से हुआ जो कब्र के पास बैठी रो रही थी। आपने उसे फ़रमाया, अल्लाह से डर और सब्र कर। उस औरत ने आपको न पहचाना और कहने लगी, मुझसे अलग रहो, क्योंकि तुम्हें मुझ जैसी मुसीबत नहीं पड़ी। जब उसे बताया गया कि यह तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम थे, वह माफी के लिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दरवाजे पर हाजिर हुई। उसने आपके दरवाजे पर कोई चौकीदार न देखकर कहा कि मैंने आपको पहचाना न था माफ फरमायें आपने फरमाया, सब्र तो शुरू सदमे के वक्त ही सही माना जाता है । औरतों के लिए कब्रों की जियारत करना जाइज है शर्त यह है कि बार बार न जायें और एक साथ जमा होकर इसका एहतिमाम न करें। नीज वहां जाकर शरीअत के खिलाफ काम न करे। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस औरत को सदमें पर सब्र करने की हिदायत जरूर की है, लेकिन उसे कब्रों की जियारत से मना नहीं फरमाया।
537.उसामा बिन जैद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की एक बेटी ने आपके पास पैगाम भेजा कि मेरा लड़का मरने की हालत में है। जल्दी तशरीफ लायें। आपने सलाम के बाद कहला भेजा कि जो कुछ अल्लाह ने लिया या दिया, सब उसी का है और हर चीज की जिन्दगी के लिए उसके यहां एक वक्त मुकर्रर है। इसलिए तुम्हें सवाब की उम्मीद करना चाहिए। बेटी ने दोबारा पैगाम भेजा और कसम दिलाई कि आप जरूर तशरीफ लाये। चूनांचे आप खड़े हो गये। आपके साथ सअद बिन उबावा, मआज बिन जबल, उबई बिन काय, जैद बिन साबित और दूसरे कुछ लोग थे, वहां पहुंचने पर बच्चे को उठाकर आपकी खिदमत में लाया गया, उस वक्त उसकी सांस उखड़ी हुई थी, रावी के खयाल के मुताबिक सांस का आना और जाना पुराने मशकीजे की तरह था। यह देखकर आपकी दोनों आंखों से आंसू बहने लगे। सअद रजि अल्लाह तआला अन्हो ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! यह रोना कैसा है? आपने फरमाया यह रहमत है जो अल्लाह ने अपने बन्दों के दिलों में रखी है और अल्लाह सिर्फ उन्हीं बन्दों पर रहम करता है जो रहमदिल होते हैं। मकसद यह है कि किसी के मरने या मुसीबत आने पर रोना एक कुदरती बात है। इस पर पकड़ नहीं अलबत्ता गाल पीटना, चिल्लाना या जुबान से नाशुक्री की बातें करना मना है।
538.अनस बिन मालिक रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है. उन्होंने फरमाया कि हम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बेटी के जनाजे में हाजिर थे। मैंने देखा कि आपकी आंखों से आंसू निकल रहे थे। फिर आपने फरमाया कि क्या तुममे कोई ऐसा आदमी है, जो आज रात अपनी बीवी से न मिला हो? अबू तल्हा ने कहा, मैं हूँ। तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, तुम ही इसे कब्र में उतारो, चूनांचे वह उनकी कब्र में उतरे।
539.उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है. उन्होंने कहा, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि मय्यत को उस पर उसके रिश्तेदारों के कुछ रोने की वजह से अजाब दिया जाता है। उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो के मरने के बाद यह खबर आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो को मिली तो उन्होंने फरमाया, अल्लाह उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो पर रहम करें। अल्लाह की कसम! रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने यह नहीं फरमाया कि मोमिन को उसके रिश्तेदारों के रोने की वजह से अल्लाह तआला अजाब में मुब्तला करता है, बल्कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह फरमाया कि अल्लाह तआला काफिर पर उसके रिश्तेदारों के उस पर रोने के सबब अजाब ज्यादा करता है तुम्हारे लिए कुरआन की यह आयत काफी है. "कोई आदमी किसी दूसरे का बोझ नहीं उठायेगा।"उस आदमी को जरूर अजाब होता है जो अपने रिश्तेदारों को मरने के बाद रोने धोने, चिल्लाने की वसीयत करके गया हो, अगर मरने वाले ने वसीयत न की हो तो रिश्तेदारों के रोने से मय्यत को अजाब नहीं होगा।
540.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक यहूदी औरत (की कब्र) पर से गुजरे जिस पर उसके घर वाले रो रहे थे। आपने फ़रमाया कि यह तो इस पर रोना-धोना कर रहे हैं और इसे अपनी कब्र में अजाब हो रहा है। इस हदीस से इमाम बुखारी यह बताना चाहते हैं कि रिश्तेदारों के रोने से उस मय्यत को अजाब होता है जो कुफ्र की हालत में मरी हो, अलबत्ता हज़रत उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो उसे आम खयाल करते थे। नीज अबू दाऊद में है कि आप उस औरत की कब्र पर से गुजरे तो ऐसा फरमाया, लिहाजा जो फितनागर इस हदीस से बरजखी कब्र का वजूद कशीद करते हैं उनका मसला सही नहीं है।
541.मुगीरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह फरमाते हुये सुना कि मुझ पर झूट बांधना और लोगों पर झूट बांधने की तरह नहीं, बल्कि जो आदमी मुझ पर जानबूझ कर झूट बांधता है, उसे दोजख में अपना ठिकाना तलाश करना चाहिए और मैने रसुलुल्लाह सल्लाहु अलैहि वसल्लम से यह भी सुना कि आप फरमाते थे, जिस आदमी पर रोना-पीटना किया जाता है, उसे उस रोने पीटने से अजाब दिया जाता है इसका मतलब यह नहीं है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अलावा किसी दूसरे पर झूट बांधना जाइज है, बल्कि इस किस्म के झूट का हराम होना दूसरी दलीलों से साबित है।
542.अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने कहा, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो आदमी अपने गालों को पीट कर गीरेबान फाडकर और जाहिलियत के जमाने की तरह चीख-चिल्लाकर मातम करे, वह हममें से नहीं। मालूम हुआ कि मुसीबत के वक्त गिरेबान फाडना और अपने गालों को पीटना हराम है। क्योंकि इससे अल्लाह की तकदीर से नाराजगी साबित होती है। अगर किसी को उसकी हुरमत का इल्म है, उसके बादजूद उसे हलाल समझकर ऐसा करता है तो वह इस्लाम के दायरे से बाहर है।
543.साद बिन अबी वक्कास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आखरी हज के साल जबकि मैं एक बड़ी बीमारी में पड़ा था, मेरी हालत देखने के लिए तशरीफ लाये। मैंने कहा कि मेरी बीमारी की हालत को तो आप देख ही रहे हैं। मालदार आदमी हूँ, मगर बेटी के सिवा मेरा और कोई वारिस नहीं है,क्या मैं अपने माल से दो तिहाई खैरात कर सकता हूँ। आपने फरमाया नहीं, मैंने कहा, क्या अपना आधा माल? आपने फरमायाः नहीं! फिर मैंने कहा, तिहाई खैरात करूं? आपने फरमायाः एक तिहाई में कोई हरजi नहीं, अगरचे एक तिहाई भी बहुत है।अपने वारिसों को मालदार छोड़ना, तुम्हारे लिए इससे बेहतर है कि तुम उन्हें फकीर छोड़ जाओ और वह लोगों के सामने हाथ फैलाते फिरें। तुम अल्लाह की खुशनूदी के लिए जो कुछ खर्च करोगे उसका सवाब तुम्हें जरूर मिलेगा। यहां तक कि जो लुकमा अपनी बीवी के मुँह में दोगे, उसका भी सवाब मिलेगा। मैंने कहा, ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! क्या मैं बीमारी की वजह से अपने साथियों से पीछे रह जाउंगा? आपने फरमाया, तुम हरगिज पीछे नही रहोगे, जो नेक काम करोगे, उनसे तुम्हारे दर्जे बढ़ते जाएगे और तुम्हारा मर्तबा बुलन्द होता रहेगा। और शायद तुम बाद तक जिन्दा रहोगे। यहां तक कि कुछ लोगों को तुमसे नफा पहुंचेगा। और कुछ लोगों को तुम्हारी वजह से नुकसान होगा ऐ अल्लाह! मेरे असहाब की हिजरत कामिल कर दे और एड़ियों के बल मत लौटा यानी उनको मक्का में मौत न आये । लेकिन बेचारे सअद बिन खौला रजि अल्लाह तआला अन्हो जिनके लिए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दुख का इजहार और तरस करते थे वह मक्का में ही मर गये। हज़रत सअद रजि अल्लाह तआला अन्हो के बारे में आपकी सच्ची पेशनगोई के मुताबिक हजरत सअद रजि अल्लाह तआला अन्हो मुद्दत तक जिन्दा रहे। अल्लाह की तौफिक से इराक और ईरान इनके हाथ से फतह हुये। बेशुमार लोग इनके हाथों मुसलमान हो गये और कई इनके हाथों जहन्नम में दाखिल हुये।
544.अबू मूसा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि एक बार वह सख्त बीमार हुए और उन पर गशी तारी हुई। उनका सर उनके घर की एक औरत की गोद में था, वह रोने लगी। मूसा रजि अल्लाह तआला अन्हो में इतनी ताकत न थी कि उसे मना करते, होश आया तो कहने लगे, मैं उस आदमी से अलग हूँ जिससे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अलग हुए। और बेशक रसूलुल्लाह ने (मुसीबत के वक्त) चिल्लाकर रोने वाली सर मुण्डवाने वाली और गिरेबान फाडने वाली औरत से अलग होने का इजहार फरमाया है। इससे मुराद इस्लाम के दायरे से निकलना नहीं, बल्कि उनके इन कामों से अलग होने का इजहार और नफरत मकसूद है।
545.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास जैद बिन हारिसा ,जाफर और इब्ने रवाहा के शहीद होने की खबर आई तो आप गमगीन होकर बैठ गये मैं दरवाजे की आड़ से देख रही थी कि एक आदमी आपके पास आया, जिसने जाफर की औरतों के रोने धोने का जिक्र किया, आपने हुक्म दिया कि उन्हें रोने- धोने से मना करो, चूनांचें वह गया और उसने वापस आकर कहा कि वह नहीं मानती तो आपने फिर यही फरमाया कि उन्हें मना करो। चूनांचे वह दोबारा आया और बताया, वह नहीं मानती, आपने फरमाया, उन्हें मना करो, फिर वह तीसरी बार आकर कहने लगा ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! अल्लाह की कसम! वह हम पर गालिब आ गयी और नहीं मानती। आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो ने कहा कि आखिरकार रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः जा! उनके मुंह में खाक झोंक दे। मालूम हुआ कि औरत अन्जान लोगों की तरफ देख सकती है, इस शर्त के साथ कि बुरी नियत और फितने का डर न हो।
546.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत हैं, उन्होंने फरमाया कि अबू तल्हा का एक बेटा मर गया और अबू तल्हा उस वक्त घर पर मौजूद न थे। उनकी बीवी ने बच्चे को ग़ुस्ल और कफ़न देकर उसे घर के एक कोने में रख दिया। जब अबू तल्हा घर आये तो पूछा लड़के का क्या हाल है? उनकी बीवी ने जवाब दिया कि अब उसे आराम है और मुझे उम्मीद है कि उसे सुकून नसीब हुआ है। अबू तल्हा समझे कि वह सच कह रही है। रावी के कहने के मुताबिक अबू तल्हा रात भर अपनी बीवी के पास रहे और सुबह गुस्ल करके बाहर जाने लगे तो बीवी ने उन्हें बताया कि लड़का तो मर चुका है। फिर अबू तल्हा रजि अल्लाह तआला अन्हो ने सुबह की नमाज़ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ अदा की और रात के माजरे की आपको खबर दी। जिस पर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, उम्मीद है कि अल्लाह तुम दोनों को तुम्हारी इस रात में बरकत देगा। एक अन्सारी आदमी का बयान है कि मैंने अबू तल्हा की नस्ल से नौ लड़के देखे जो कुरआन के हाफिज थे। यह हज़रत उम्मे सुलैम के सब्र का नतीजा था कि उस वक्त जो उनके यहां बच्चा पैदा हुआ, उसकी पीठ से नो बच्चे हाफिजे कुरआन पैदा हुये। इनके अलावा चार सब्र और शुक्र करने वाली बेटियां भी अल्लाह तआला ने अता कीं।
547.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है, उन्हों ने फरमाया कि हम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ अबू सैफ के यहां गये, जो इब्राहिम का रजाई बाप था तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इब्राहिम को लेकर चुम्मा दिया और उसके ऊपर अपना मुंह रखा। उसके बाद दोबारा हम अबू सैफ के यहां गये तो इब्राहिम दम तोड़ने की हालत में थे। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दोनों आंखों से आंसू बहने लगे। अब्दुर्रहमान बिन औफ रजि अल्लाह तआला अन्हो ने कहा, ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! आप भी रोते हैं। आपने फरमाया, ऐ इब्ने औफ ! यह तो एक रहमत है, फिर आपने रोते हुये फरमाया, आंखों से आंसू जारी हैं। और दिल गमगीन है, लेकिन हम को जुबान से वही कहना है जिससे हमारा मालिक राजी हो। ऐ इब्राहिम हम तेरी जुदाई से यकीनन दुखी हैं। मतलब यह है कि मुसीबत के वक्त आंखों से आंसू निकल आना और दिल का दुखी होना एक इन्सानी तकाज़ा है जो माफी के काबिल है।
548.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि सअद बिन उबादा बीमार हुए तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अब्दुर्रमान बिन औफ,सअद बिन अबी वक्कास और अब्दुल्लाह बिन मसऊद के साथ उनकी देखभाल के लिए तशरीफ ले गये और जब आप वहां पहुंचे तो उसे अपने घर वालों के बीच घिरा हुआ पाया। आपने पूछा क्या इन्तिकाल हो गया? लोगों ने कहा, नहीं। फिर आप रो पड़े और आपको रोता देखकर दूसरे लोग भी रोने लगे। उसके बाद आपने फरमाया, खबरदार! अल्लाह तआला आंख से आंसू बहाने और दिल में दुखी होने पर अजाब नहीं देता, बल्कि आपने अपनी जुबान की तरफ इशारा करके फरमाया, इसकी वजह से अजाब या रहम करता है और बेशक मय्यत पर उसके रिश्तेदारों के चिल्लाकर रोने से उसे अजाब किया जाता है। जब कोई ऐसी निशानी जाहिर हो, जिसकी वजह से मरीज को जिन्दा रहने की उम्मीद न हो तो ऐसी हालत में अफसोस जाहिर करना और आंसू बहाना जाइज है। वरना मरीज को तसल्ली देना चाहिए।
549.उम्मे अतिय्या रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बैअत लेते वक्त हम लोगों से यह वादा लिया था कि नौहा न करेंगी। मगर इस वादे को सिर्फ पांच औरतों ने पूरा किया यानी उम्मे सुलैम, उम्मे अला, अबू सबरा की बेटी जो मुआज की बीवी थी और दूसरी दो औरतें या यूँ कहा कि अबू सबरा की बेटी, मुआज की बीवी और एक कोई दूसरी औरत है। हज़रत उमर जब किसी को वफात के मौके पर गैर शरई रोता देखते तो उसे पत्थर मारते और उसके मुंह में मिट्टी ठूंसते।
550.आमिर बिन रबीआ रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हैं। कि आपने फरमाया, जब तुममें से कोई जनाज़ा देखे तो चाहे उसके साथ न जाये, मगर खड़ा जरूर हो जाये, यहां तक कि वह जनाज़ा पीछे छोड़ दे या खुद उसके पीछे हो जाये। या पीछे छोड़ने से पहले उसे जमीन पर रख दिया जाये। जनाज़ा देखकर खड़े होने का हुक्म पहले था। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आखिर में इस पर अमल करना रोक दिया था।
551.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उन्होंने मरवान रजि अल्लाह तआला अन्हो का हाथ पकड़ा और वह दोनों एक जनाज़े के साथ थे, जनाजा रखे जाने के पहले बैठ गये। इतने में अबू सईद खुदरी आ गये। उन्होंने मरवान का हाथ पकड़कर कहा, उठ खड़ा हो, यकीनन अबू हुरैरा को मालूम है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हमें इससे मना फरमाया है। इस पर अबू हुरैरा ने फरमाया कि इसने सच कहा है।ज्यादातर इल्म वालों का यह मानना है कि जनाजे के साथ जाने वाले उस वक्त तक न बैठे जब तक उसे जमीन पर न रख दिया जाये। इमाम बुखारी ने इस हदीस पर इस तरह उनवान कायम किया है "जो आदमी जनाजे के साथ हो, उसे चाहिए कि जमीन पर उसके रखे जाने से पहले न बैठे। अगर कोई बैठ जाये तो उसे खड़े होने के लिए कहा जाये।" निसाई में हज़रत अबू हुरैरा और हज़रत अबू सईद से उसकी ताइद में एक हदीस भी मरवी है।
552.जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है। उन्होंने फरमाया कि हमारे सामने से एक जनाज़ा गुजरा तो नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम खड़े हो गए। हमने कहा, ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! यह तो एक यहूदी का जनाज़ी था। आपने फरमाया कि जब तुम जनाज़ा देखो तो खड़े हो जाया करो। जनाज़ा चाहे मुसलमान का हो या काफिर का, उसे देखकर मौत को याद करना चाहिए कि हमें भी एक दिन मरना है।
553.अबू सईद खुदरी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जब जनाज़ा तैयार करके रख दिया जाता है और लोग उसे अपने कन्धों पर उठा लेते हैं, फिर अगर वह नेक होता है तो कहता है, मुझ को जल्दी ले चलो और अगर नेक नहीं होता है तो कहता है, हाय अफसोस! मुझे कहां ले जाते हो? उसकी आवाज इन्सानों के अलावा हर चीज सुनती है, क्योंकि अगर इन्सान सुन ले तो बेहोश हो जाये। इस पर सब इमामों का इत्तिफाक है कि जनाज़ा मर्दों को ही उठाना चाहिए इसके बारे में मुस्नद अबू थाला में एक रिवायत भी है जिसमें खुलासा है कि औरतों को जनाजा नहीं उठाना चाहिए क्योंकि वह कमजोर होती हैं।
554.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हैं कि आपने फरमाया, जनाजे को जल्दी ले चलो क्योंकि अगर वह नेक है तो तुम उसे अच्छाई की तरफ ले जा रहे हो और अगर वह बुरा है तो वह एक बुरी चीज है, जिसको तुम अपनी गर्दन से उतारकर बरी होओगे। जनाज़े को जल्दी ले जाने से मुराद दौड़ना नहीं बल्कि आदत से ज्यादा तेज चलना है। उलमा के नजदीक ऐसा करना मुस्तहब है।
555.इबने उमर रजि से रिवायत है कि उनसे कहा गया, अबू हरैरा कहते हैं कि जो आदमी जनाजे के साथ जाएगा, उस एक कीरात सवाब मिलेगा, इस पर इब्ने उमर ने फरमाया! अबू हुरैरा हमें बहुत हदीस सुनाते हैं। फिर आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो ने भी अबू हुरैरा की तसदीक फरमायी और कहा कि मैने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ऐसा ही फरमाते सुना है। इस पर इब्ने उमर फरमाने लगे फिर तो हमने बहुत से कीरात का नुकसान कर लिया है। बुखारी की दूसरी रिवायत में है कि जो आदमी मय्यत के दफन तक साथ रहा है, उसे दो कीरात के बराबर सवाब मिलता है और यह दो कीरात दो बड़े पहाड़ों की तरह है।
556.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बयान करती हैं कि आपने अपनी वफात की बीमारी में यह फरमाया, अल्लाह तआला यहूद और नसारा पर लानत करे कि उन्होंने अपने पैगम्बरों की कब्रों को सज्दे की जगह बना लिया। आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो फरमाती हैं कि अगर यह डर न होता तो आपकी कब्र मुबारक को बिल्कुल जाहिर कर दिया जाता, मगर मुझे डर है कि उसको भी सज्दागाह न बना लिया जाये। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान है कि मेरी कब्र पर ईद की तरह मेला न लगाना, लेकिन अफसोस आज का नाम निहाद मुसलमान इस फरमाने नबवी की खुलकर मुखालफ्त कर रहा है।
557.समुरह बिन जुनदब रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मैं ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पीछे एक ऐसी औरत की जनाजे की नमाज़ पढ़ी जो जच्चगी के दौरान मर गयी थी, आप उसके बीच में खड़े हुये थे। अगर मर्द का जनाज़ा हो तो उसके सर के बराबर खड़ा होना चाहिए।
558.इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उन्हों ने एक बार जनाज़े की नमाज़ में सूरा फातिहा ऊंची आवाज में पढ़ी और कहा कि मैंने इसलिए ऐसा किया है ताकि तुम लोग जान लो कि इसका पढ़ना सुन्नत है। चूनांचे जनाज़ा भी एक नमाज़ है, इसलिए इसमें सूरा फातिहा पढ़ना जरूरी है। इस हदीस में इसका खुलासा मौजूद है । निसाई की रिवायत में दूसरी कोई सूरत मिलाने का भी जिक्र है । यह भी सराहत है कि फातिहा पहली तकबीर के बाद पढ़ी जाये।
559.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हैं कि आपने फरमाया जब मुर्दा कब्र में रख दिया जाता है और उस के साथी दफ़न से फारिग होने के बाद वापस होते हैं तो वह उनके जूतों की आवाज सुनता है। उस वक्त उसके पास दो फरिश्तें आते हैं। यह उसे बिठा कर पूछते हैं कि तू इस आदमी यानी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बारे में क्या अकीदा रखता था। अगर वह कहता है, मैं गवाही देता था कि वह अल्लाह के बन्दे और उसके रसूल हैं तो उसे कहा जाता है कि तू अपने दोजखी मकाम को देख। उसके बाद उस अल्लाह तआला ने तुझे जन्नत में ठिकाना दिया है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि वह दोनों जगहों को देखता है। लेकिन काफिर या मुनाफिक का यह जवाब होता है कि मैं कुछ नहीं जानता जो दूसरे लोग कहते थे वही मैं भी कह देता था । फिर उससे कहा जाता है कि न तूने अक्ल से काम लिया और न नबियों की पैरवी की। फिर उसके दोनों कानों के बीच लोहे के हथोड़े से एक चोट लगाई जाती है कि वह चीख उठता है। उसकी चीख पुकार को इन्सान के अलावा उसके आस पास की तमाम चीजें सुनती हैं। इससे मालूम हुआ कि जिस कब्र में मय्यत को दफ़्न किया जाता है, सवाल और जवाब भी वहीं होते हैं। फिर राहत और अजाब भी उसी कब्र में है।
560.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि जब मौत के फरिश्ते को मूसा अलैहि सलाम के पास भेजा गया तो वह उनके पास आये तो उन्होंने एक तमाचा मारा। जिससे उसकी एक आख फूट गयी। फरिश्ते ने अपने रब के पास जाकर कहा कि तूने मुझे एक ऐसे बन्दे के पास भेजा है जो मरना नहीं चाहता। अल्लाह तआला ने उसकी आंख ठीक कर दी और फरमाया कि मूसा के पास दोबारा जाकर कहो कि वह अपना हाथ एक बैल की पीठ पर रखें तो जितने बाल उनके हाथ के नीचे आयेंगे। हर बाल के बदले उन्हें एक साल की जिन्दगी दी जायेगी। इस पर मूसा अलैहि सलाम ने कहा ऐ रब! फिर क्या होगा? अल्लाह ने फरमाया फिर मौत आयेगी। मूसा अलैहि सलाम ने कहा तो फिर अभी आ जाये। उन्होंने अल्लाह से दुआ की कि उन्हें एक पत्थर फैंकने की मिकदार के बराबर मुकद्दस जमीन से करीब कर दे। रावी कहता है कि रसूलुल्लाह ने फरमाया, अगर मैं वहा होता तो मूसा की कब्र सुर्ख टीले के पास रास्ते के किनारे पर तुम्हें दिखा देता।
561.जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है। उन्होंने कहा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उहद की लड़ाई के शहीदों में से दो दो शहीदों को एक एक कपड़े में रखकर फरमाते, इनमें से कुरआन का इल्म किसको ज्यादा था? तो जब उनमें से किसी की तरफ इशारा किया जाता तो कब्र में आप उसे पहले रखते और फरमाते कि कयामत के दिन मैं इनके बारे में गवाही दूँगा और आपने इन्हें इसी तरह खून लगे हुए नहलाये दफन करने का हुक्म दिया और इन पर जनाज़े की नमाज़ भी न पढ़ी। शहीद के जनाजे की नमाज तो पढ़ी जा सकती है, जरूरी नहीं। लेकिन इसके लिए ऐलान और इश्तिहार नाजाइज हैं।
562.उकबा बिन आमिर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक रोज मदीना से बाहर तशरीफ लाये और जंगे उहद के शहीदों पर इस तरह नमाज पढ़ी जैसे आप हर मय्यत पर पढ़ते थे। फिर वापस आकर मिम्बर पर खड़े हुये और फरमाया,मैं तुम्हारा पेश खेमा हूँ और तुम्हारा गवाह हूँ। अल्लाह की कसम! मैं इस वक्त अपने हौज को देख रहा हूँ और मुझे रूये जमीन के खजानों की कुंजीयां या जमीन की चाबियां दी गई हैं। अल्लाह की कसम! मुझे तुम्हारे बारे में यह डर नहीं कि तुम मुशरिक बन जाओगे, लेकिन मुझे यह डर है कि तुम दुनिया की तरफ रागिब हो जाओगे। इमाम नौवी ने कहा कि नमाज़ से मुराद यहा दुआ है, यानी जैसी मय्यत के लिए दुआ आप किया करते थे, ऐसे ही दुआ फरमायी।
563.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि हज़रत उमर नबी सत्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ दूसरे कुछ लोगों के साथ में इबने सय्याद के पास गये, यहां तक कि उन्होंने इसे बनी मगाला की गढ़ियों के करीब कुछ लड़कों के साथ खेलता हुआ पाया। इबने सय्याद उस वक्त बालिग होने के करीब था। उसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आने की जानकारी न मिली। यहां तक कि आपने अपने हाथ से फरमाया, क्या तू इस बात की गवाही देता है कि मैं अल्लाह का रसूल हूँ? उसने आपको देखा और कहने लगा, मैं गवाही देता हूँ कि आप अनपढ़ लोगों के रसूल हैं, फिर इबने सय्याद ने नबी उसे मारा। फिर इबने सय्याद से सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछा कि आप इस बात की गवाही देते हैं कि मैं अल्लाह का रसूल हूँ? आप यह बात सुनकर उससे अलग हो गये और फरमाया कि मैं अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाता हूँ। फिर आपने उससे पूछा कि तू क्या देखता है? इबने सय्याद बोला कि मेरे पास सच्ची झूठी दोनों खबरें आती हैं। इस पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, तुझ पर मामला मख्लूत कर दिया गया है, फिर आपने फरमाया, मैंने तेरे लिए एक बात अपने दिल में सोची है, बताऊं वह क्या है? इब्ने सय्याद ने कहा, वह "दुख" है। आपने फरमाया कि चला जा, तू अपनी ताकत से कभी आगे न बढ़ेगा। उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो ने कहा जा, तू अपनी ताकत से कभी आगे न बढ़ेगा ।
564.उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो ने कहा, ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुझे इजाजत दीजिए मैं इसकी गर्दन उड़ा दु। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, अगर यह वही दज्जाल है तो तुम उस पर काबू नहीं पा सकते और अगर वह नहीं तो फिर इसके कत्ल से कोई फायदा नहीं। इबने उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो कहते हैं, उसके बाद फिर एक बार रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उबई बिन काअब रजि अल्लाह तआला अन्हो उस बाग में गयें, जिसमें इब्ने सय्याद था। आप चाहते थे कि इल्ने सय्याद कुछ बातें सुनें। इससे पहले कि वह आपको देखे, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसे इस हालत में देखा कि वह एक चादर ओढ़े कुछ गुनगुना रहा था। बावजूदे यह कि आप पेड़ों की आड़ में चल रहे थे, उसकी मां ने आपको देख लिया और इबने सय्याद को पुकारा, ऐ साफी! यह मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आ गये, जिस पर इब्ने सय्याद उठ बैठा, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, अगर यह औरत उसको रहने देती तो वह अपना हाल बयान करता। इब्ने सय्याद मदीना में एक यहूदी नस्ल का लड़का था। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को उसकी बाज निशानियों से शक हुआ कि शायद आने वाले जमाने में बह दज्जाल का रूप धारेगा। इमाम बुखारी का मतलब यह है कि जवानी के करीब बच्चे पर इस्लाम पेश किया जा सकता है।
565.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि एक यहूदी लड़का नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत किया करता था। जब वह बीमार हो गया तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उसकी हालत को देखने के लिए तशरीफ ले गये और उसके सिरहाने बैठकर फरमाया, तू मुसलमान हो जा, तो उसने अपने बाप की तरफ देखा जो उसके पास बैठा था। उसके बाप ने कहा,अबू कासिम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत करो, चूनांचे वह मुसलमान हो गया, तब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम यह फरमाते हुए बाहर तशरीफ ले आये, अल्लाह का शुक्र है कि उसने उस लड़के को आग से बचा लिया। मालूम हुआ कि मुश्रिक से खिदमत ली जा सकती है और उसकी देखभाल करना भी जाइज है।
566.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, हर बच्चा इस्लाम की फितरत पर पैदा होता है, लेकिन मां-बाप उसे यहूदी या नसरानी या मजूसी बना देते हैं, जिस तरह जानवर सही और सालिम बच्चा जन्म देते हैं। क्या तुम कोई नाक कान कटा देखते हो? फिर अबू हुरैरा यह आयत तिलावत करते "यह वह इस्लाम की फितरत है, जिस पर अल्लाह ने लोगों को पैदा फरमाया है और अल्लाह की फितरत में कोई तब्दीली नहीं हो सकती, यही कायम रहने वाला दीन है।" मतलब यह है कि अगर मां-बाप की तालीम और देखरेख सोसायटी का असर बच्चे की फितरत से छेड़-छाड़ न करे तो बच्चा दीन इस्लाम का मानने वाला और उसके अहकाम का कारबन्द होगा।
567.मुसय्यब बिन हज़्न रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि जब अबू तालिब मरने लगा तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उसके पास तशरीफ लाये, वहां उस वक्त अबू जहल बिन हिशाम और अब्दुल्लाह बिन हिशाम और अब्दुल्लाह बिन अबी उमय्या बिन मुरगीरा भी थे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अबू तालिब से कहा, ऐ चचा! कलमा तौहीद "ला इलाहा इल्लल्लाह" कह दे तो मैं अल्लाह के यहां तुम्हारी गवाही दूंगा। अबू जहल और अब्दुल्लाह बिन अबी उमय्या बोले, ऐ अबू तालिब! क्या तुम अपने बाप अब्दुल मुत्तलिब के तरीके से फिरते हो? रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तो बार बार उसे कलमा -ए-तौहिद की तलकीन करते रहे और वह दोनों भी अपनी बात बराबर दोहराते रहे, यहां तक कि अबू तालिब ने आखिर में कहा कि वह अब्दुल मुक्तलिब के तरीके पर हैं और "ला इलाहा इल्लल्लाह" कहने से इनकार कर दिया। जिस पर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, अब मैं तुम्हारे लिए अल्लाह तआला से उस वक्त तक मगफिरत की दुआ करता रहूंगा, जब तक मुझे उससे मना न कर दिया जाये, इस पर अल्लाह तआला ने यह आयत नाजिल फरमायी कि "नबी के लिए यह जाइज नहीं कि वह मुश्रिक के लिए बख्शिश की दुआ करें, चाहे वह करीबी रिश्तेदार ही क्यों न हो।"अगर मौत की निशानियाँ जाहिर न हो और न ही मौत का यकीन हो तो मौत के वक्त ईमान लाना फायदा दे सकता है, मुमकिन है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अबू तालिब को मरने की हालत से पहले ईमान लाने की दावत दी हो।
568.अली रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि हम एक जनाजे के साथ बकी-ए-गरकद (कब्रिस्तान) में थे कि नबी सल्लल्लाह अलैहि वसल्लम हमारे करीब तशरीफ लाकर बैठ गये और हम लोग भी आपके आस-पास बैठ गये। आपके हाथ में एक छड़ी थी। आपने सर झुका लिया और लकड़ी से नीचे कुरेदने लगे, फिर फरमाया, तममें से कोई ऐसा जानदार नहीं,जिसकी जगह जन्नत या दोजख में न लिखी हो और हर आदमी का नेक बख्त या बद नसीब होना भी लिखा हुआ है। इस पर एक आदभी ने कहा, ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फिर हम इस किताब पर ऐतमाद करके अमल न छोड़ दें, क्योंकि हममें से जो आदमी खुश नसीब होगा, वह खुशनसीबों के अमल की तरफ लौटेगा और जो आदमी बदबख्त होगा वह बदबख्तों के अमल की तरफ लौटेगा। आपने फरमाया कि नेक बख्त को नेक कामों की तौफिक दी जाती है और बदबख्त के लिए बुरे काम आसान कर दीये जाते है। उसके बाद आपने यह आयत तिलावत फरमायी। "फिर जो आदमी सदका देगा और परहेजगारी इख्तियार करेगा और अच्छी बात की तसदीक करेगा , हम उसे अच्छे कामों की तौफिक देंगे।" यह हदीस तकदीर के सबूत के लिए एक अज़ीम दलील की हैसियत रखती है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फरमान का मतलब यह है कि हम चूंकि अल्लाह के बन्दे हैं, लिहाजा बन्दगी और उसके हुक्मों को मानना हमारा काम होना चाहिए। अल्लाह की तकदीर का हमें इल्म नहीं कि उसके सहारे अमल छोड़ दिया जाये। अच्छे और बुरे अमल तो तयशुदा हैं और अंजाम का दारोमदार इन्हीं अमलों पर है।
569.साबित बिन जहाक रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हैं कि आपने फरमाया जो आदमी इस्लाम के अलावा किसी मजहब की जानबूझ कर कसम उठाये तो वह ऐसा ही होगा, जैसा उसने कहा है और जो आदमी तेज हथियार से अपने आपको मार डाले, उसको उसी हथियार से जहन्नम में अजाब दिया जायेगा। इमाम बुखारी का मकसद यह है कि जब खुदकुशी करने वाला जहन्नमी है तो जनाजे की नमाज़ न पढ़ी जाये । लेकिन निसाई की रिवायत में है कि खुदकशी करने वाले की जनाज़े की नमाज़ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नहीं पढ़ी थी अलबत्ता अपने सहाबा को इससे नहीं रोका था। मालूम हुआ कि मर्तबा रखने वाले हजरात ऐसे इन्सान की जनाज़े की नमाज न पढ़े ताकि दूसरों को नसीहत हो। (अल्लाह बेहतर जानने वाला है)
570.जुनदब रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हैं कि आपने फरमाया, एक आदमी को जख्म लग गया था, उसने अपने आपको मार डाला तो अल्लाह तआला ने फरमाया, चूंकि मेरे बन्दे ने मुझ से पहल चाही (पहले अपनी जान ले ली) लिहाजा मैंने उस पर जन्नत को हराम कर दिया है। यानी खुदकशी करने वाले ने सब्र और हिम्मत से काम न लिया, बल्कि अपनी मौत रब के हवाले करने के बजाये जल्दबाजी जाहिर की। हालांकि अल्लाह ने उसकी मौत के वक्त पर उसे आगाह नहीं किया था। लिहाजा उस सजा का हकदार ठहरा जो हदीस में बयान हुई है।
अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है उन्होंने कहा, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो खुद अपना गला घोंट ले वह दोजख में अपना गला घोंटता ही रहेगा और जो आदमी नेज़ा मारकर खुदकुशी कर ले वह दोजख में भी खुद को नेजा मारता रहेगा । अगरचे खुदकुशी करने वाले की सजा यह है कि वह जहन्नम में रहे, लेकिन अल्लाह तआला अहले तौहीद पर रहम और करम फरमायेगा और उस तौहीद की बरकत से उन्हें आखिरकार जहन्नम में निकाल लेगा।
571.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि लोग एक जनाज़ा लेकर गुजरे तो सहाबा ने उसकी तारीफ की। इस पर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि उसके लिए वाजिब हो गयी। उसके बाद दूसरा जनाज़ा लेकर गुजरे तो सहाबा ने उसकी बुराई की तो रसूलुल्लाह ने फरमाया, उसके लिए लाजिम हो गयी, इस पर उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो ने कहा कि क्या वाजिब हो गई? रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि पहले आदमी की तुमने तारीफ की तो उसके लिए जन्नत वाजिब हो गयी और दूसरे की तुमने बुराई की तो उसके लिए जहन्नम वाजिब (लाजिम) हो गयी, क्योंकि तुम लोग जमीन में अल्लाह की तरफ से गवाही देने वाले हो। मुस्तदरक हाकिम में है सहाबा किराम रजि अल्लाह तआला अन्हो ने पहले आदमी के बारे में कहा कि वह अल्लाह और उसके रसूल से मुहब्बत रखता था और अल्लाह के हुक्मों को बजा लाने की कोशिश करता था और दूसरे आदमी के बारे में कहा कि वह अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कीना कपट रखता था और गुनाह में लगा रहता था।
572.उमर बिन खत्ताब रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने कहा, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, जिस मुसलमान के नेक होने की चार आदमी गवाही दें तो अल्लाह उसे जन्नत में दाखिल करेगा, हम लोगों ने कहा और अगर तीन आदमी? तो आपने फरमाया कि तीन आदमी भी, फिर फरमाया कि दो भी फिर हमने एक आदमी की गवाही की बारे में आपसे नहीं पूछा। एक आदमी की गवाही के बारे में इस लिए सवाल नहीं किया कि गवाही का निसाब कम से कम दो आदमी हैं, चूनांचे इमाम बुखारी ने "किताबुश शहादात : 2643'" में इस हदीस से गवाही का निसाब साबित किया है।
573.बराअ बिन आज़िब रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हैं कि आपने फरमाया कि जब मुसलमान को कब्र में बिठाया जाता है तो उसके पास फरिश्ते आते हैं। फिर वह गवाही देता है कि अल्लाह के अलावा कोई माबूद बरहक नहीं और हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं और यही मतलब है अल्लाह के इस कौल का कि "अल्लाह तआला उन लोगों को, जो ईमान लाये हैं, मजबूत बात पर कायम रखता है, दुनियावी जिन्दगी में भी और आखिरत में भी।" कुरआन और हदीस से कब्र के अजाब का सुबूत मिलता है। और अहले सुन्नत का इस पर इजमाअ है और अकल के ऐतबार से भी इसमें कोई शक नहीं है कि अल्लाह तआला जिस्म के तमाम बिखरे हुए हिस्सों में जिन्दगी पैदा करने पर कुदरत रखता है। अगरचे बदन को दरिन्दे खा गये हों, अल्लाह तआला एक लम्हे में उन्हें जमा करने पर कुदरत रखता है। कुछ लोगों ने कब्र के अजाब को इस तौर पर तसलीम किया है कि जमीनी घड़े में नहीं बल्कि बरजखी कब्र में अजाब होगा। यह अकल और नकल के खिलाफ हैं।
574.इबने उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस कुऐ में झांका जिसमें बदर में मरने वाले मुश्रिक मरे पड़े थे और फरमाया कि तुम्हारे मालिक ने जो तुम से सच्चा वादा किया था, वह तुम ने पा लिया। आपसे अर्ज किया गया, क्या आप मुर्दों को पुकारते हैं? आपने फरमाया कि तुम उनसे ज्यादा नहीं सुनते हो, अलबत्ता वह जवाब नहीं दे कि तुम उनसे ज्यादा नहीं सुनते हो, अलबत्ता वह जवाब नहीं दे सकते। इमाम बुखारी ने इस हदीस से कब्र के अजाब का सबूत दिया है, वह इस तरह कि जब कलीबे बदर में पड़े हुए मुर्दों का सुनना साबित हो तो कब्र में उनकी जिन्दगी साबित हुई बसूरते दीगर कब्र का अजाब किस पर होगा।
575.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने कहा कि बदर में मारे गये लोगों के बारे में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सिर्फ यह फरमाया था कि इस वक्त वह जानते हैं कि जो मैं उनसे कहता था, वह ठीक था और बेशक इरशादबारी तआला है, "बेशक आप मुर्दो को नहीं सुना सकते हो।" जम्हूर मुहद्दसीन ने हज़रत आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो के मसले से इत्तेफाक नहीं किया, क्योंकि आयते करीमा में सुनने की नहीं बल्कि सुनाने की नफी है। हर वक्त जब तुम चाहो, मुर्दो को नहीं सुना सकते, मगर जब अल्लाह चाहे, और हज़रत आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो उनके लिए इल्म साबित करती हैं, जब इल्म साबित हो तो सुनने में क्या रुकावट है?
576.असमा बिन्ते अबु बकर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने कहा कि एक बार रसूलुल्लाह सल्लल्लाह अलैहि वसल्लम खुत्बा इरशाद फरमाने के लिए खड़े हुये तो आपने कब्र के फितने का जिक्र फरमाया,जिससे आदमी की आजमाईश की जायेगी तो उसको सुनकर मुसलमानों की चीखें निकल गयी। निसाई की रिवायत में है कि फितना दर्जाल की तरह तुम्हें कब्र में भी सख्त तरीन आजमाईश से दो-चार किया जायेगा ।
577.अबू अय्यूब रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि एक दिन सूरज छिपने के बाद नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बाहर तशरीफ लाये तो आपने एक भयानक आवाज सुनी, उस वक्त आपने फरमाया कि यहूदियों को उनकी कब्रो में अज़ाब दिया जा रहा है। जब यहुदियों के लिए कब्र का अजाब साबित हो तो मुश्रिकों के लिए भी होगा, क्योंकि उनका कुफ्र यहुदियों के कुफ्र से कहीं ज्यादा है।
578.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अक्सर यह दुआ करते थे, ऐ अल्लाह! मैं कब्र के अजाब और जहन्नम के अजाब, जिन्दगी और मौत की खराबी और मसीहे दज्जाल के फितना से तेरी पनाह चाहता हूं।
579.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, तुममें से जब कोई मर जाता है तो हर सुबह व शाम उसे उसका ठिकाना दिखाया जाता है। अगर वह जन्नती है तो जन्नत में और अगर दोजखी है तो जहन्नम में और उससे कहा जाता है कि यही तेरा मकाम है, जब कयामत के दिन अल्लाह तुझे उठायेगा। इस हदीस से कब्र के अजाब का सुबूत मिला। नीज यह भी मालूम हुआ कि जिस्म के खत्म होने से रूह खत्म नहीं होती।
580.बराअ बिन आजिब रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जिगर के टुकड़े इब्राहीम की वफात हुई तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जन्नत में उनके लिए एक दूध पिलाने वाली मुकर्रर कर दी गई है। हज़रत इब्राहीम दूध पीती उम्र में मरे तो अल्लाह तआला अपने पैगम्बर की अजमत के पेशे नजर जन्नत में उसे दूध पिलाने वाली का बन्दोबस्त कर दिया है । इस हदीस से मालूम हुआ कि मुसलमानों की औलाद जन्नत में होगी।
581.इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मुश्रिकों की औलाद के बारे में पूछा गया तो आपने फरमाया,अल्लाह तआला ने जब उन्हें पैदा किया था तो खुब जानता था कि वह कैसे अमल करेंगे? काफिरों की औलाद जो नाबालिग उम्र में मर जाये, उसके अन्जाम के बारे में बहुत इख्तिलाफ है। इमाम बुखारी का रूझान यह मालूम होता है कि वह जन्नती हैं, क्योंकि वह गुनाह के बगैर मासूम मरे हैं। सही बात यह है कि उनके बारे में चुप रहा जाये, गुजरी हुई हदीस से भी इसकी ताईद होती है।
582.समरा बिन जुनदब रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब नमाज़ (फजर) से फारिग होते तो हमारी तरफ मुंह करके फरमाते, तुममें से किसी ने आज रात कोई ख्वाब देखा है तो बयान करे। अगर किसी ने कोई ख्वाब देखा होता तो वह बयान कर देता। फिर जो कुछ अल्लाह चाहता उसकी ताबीर बयान करते। चुनांचे इसी तरह एक दिन आपने हमसे पूछा, क्या तुममें से किसी ने कोई ख्वाब देखा है? हमने अर्ज किया नहीं। आपने फरमाया, मगर मैंने आज रात दो आदमियों को ख्वाब में देखा कि वह मेरे पास आये और मेरा हाथ पकड़कर मुझे एक पाक जमीन पर ले गये, जहां मैं क्या देखता हूँ कि एक आदमी बैठा और दूसरा खड़ा हैं जिसके हाथ में लोहे का आंकड़ा है, जिसे वह बैठे हुए आदमी के मुंह में दाखिल करता है। जो इस तरफ को चीरता हुआ, उसकी गुद्दी तक पहुच जाता है। फिर उसके दुसरे जबड़े में भी ऐसा ही करता है। उस वक्त में पहला जबड़ा ठीक हो जाता है और फिर यह दोबारा ऐसे ही करता है। मैने पूछा, यह क्या बात है? तो उन दोनों ने मुझ से कहा, आगे चलो। हम चले तो एक ऐसे आदमी के पास पहुंचे जो बिलकुल चित लेटा हुआ है । और एक आदमी उसके सरहाने एक पत्थर लिये खड़ा है। वह उस पत्थर से उसका सर फोड़ रहा है। जब पत्थर मारता है तो वह लुड़क कर दूर चला जाता है। और वह उसे जाकर उठा लाता है और जब तक इस लेटे हुए आदमी के पास लौटकर आता है तो उस वक्त तक उसका सर जुड़कर अच्छा हो जाता है और जैसे पहले था, उसी तरह हो जाता है। और फिर उसे दोबारा मारता है। मैंने पूछा यह क्या है? उन दोनों ने कहा, आगे चलिये। चुनांचे हम एक गड्डे की तरफ चले जो तनूर की तरह था। उसका मुंह तंग और पैंदा चौड़ा था। उसमें आग जल रही थी और उसमें नंगे मर्द और औरतें हैं। जब आग भड़कती तो शौलों के साथ उछल पड़ते और निकलने के करीब हो जाता। फिर जब आग धीमी हो जाती तो वह भी धड़ाम से नीचे गिर पड़ते। मैंने कहा यह कौन हैं? उन दोनों ने कहा, आगे चलिये। चूनांचे हम चले और एक खूनी नहर पर पहुंचे। उसमें एक आदमी खड़ा था और उसके किनारे पर दूसरा आदमी था, जिसके सामने बहुत से पत्थर पड़े थे। नहर के आदमी जब बाहर आना चाहता तो किनारे वाला उसके मुह पर पत्थर मारता कि वह फिर अपनी जगह पर लौट जाता। फ़िर ऐसा ही करता रहा। जब भी वह निकलना चाहता तो दूसरा इस जोर से पत्थर मारता कि उसे अपनी जगह पर लौटा देता। मैंने यह पूछा यह क्या बात है? उन दोनों ने आगे चलने के लिए कहा। हम चल दिये। चलते चलते हम एक हरे भरे बाग में पहुंचे। जिसमें एक बड़ा सा पेड़ था। उसकी जड़ के करीब एक बूढ़ा आदमी और कुछ बच्चे बैठे थे। अब अचानक क्या देखता हूँ कि उस पेड़ के पास एक और आदमी है, जिसके सामने आग है और वह उसे सुलगा रहा है। फिर वो दोनों मुझे उस पेड़ पर चढ़ा ले गये और वहां उन्होंने मुझे एक ऐसे मकान में दाखिल किया जिससे बेहतर मकान मैंने कभी नहीं देखा । उसमें कुछ बूढ़े, कुछ जवान, कुछ औरतें और कुछ बच्चे थे । फिर वह दोनों मुझ को वहां से निकाल लाये और पेड़ की एक दूसरी शाख पर चढ़ाया। वहां भी एक मकान था, जिसमें मुझे दाखिल किया। यह मकान पहले से भी ज्यादा अच्छा और शानदार था। उसमें भी कुछ बूढे और जवान आदमी मौजूद थे। तब मैंने उन दोनों से कहा, तुमने मुझे रात भर फिराया। अब मैंने जो कुछ देखा है, उसकी हकीकत बताओ? उन्होंने जवाब दिया अच्छा, वह आदमी जिसे आपने देखा कि उसका जबड़ा चीरा जा रहा था वह झूटा आदमी था और झूठी बातें बयान करता था। जो उससे नकल होकर सारी दुनिया में पहुंच जाती थी इसलिए कयामत तक उसके साथ ऐसा ही मामला होता रहेगा। और वह आदमी जिसे आपने देखा कि उसका सर कुचला जा रहा है, यह वह आदमी है जिसे अल्लाह तआला ने कुरआन का इल्म दिया था, मगर वह कुरआन को छोड़कर रात भर सोता रहता और दिन में भी उस पर अमल नहीं करता था। कयामत के दिन तक उसके सर पर यही अमल होता रहेगा और वह लोग जिन्हें आपने गढ़े में देखा, वह जिना करने वाले हैं और जिसे आपने नहर में देखा वह रिश्वतखोर हैं। वह बूढ़ा इन्सान जो पेड़ की जड़ के करीब बैठा हुआ था वह इब्राहिम थे और छोटे बच्चे जो उनके आप-पास बैठे हुए थे, वह लोगों के बच्चे जो बालिग होने से पहले मर गये और जो आदमी आग तेज कर रहा था, वह मालिक, जहन्नम का दारोगा थे और वह पहला मकान जिसमें आप तशरीफ ले गये थे, आम मुसलमानों का घर है और यह दूसरा शहीदों के लिए है और मैं जिब्राईल और यह मिकाइल हैं। अब आप अपना सर उठायें, मैंने सर उठाया तो अचानक देखता हूँ कि मेरे ऊपर बादल की तरह कोई चीज है, उन्होंने बताया कि यह आपकी आराम करने की जगह है, मैंने कहा, मुझे अपने मकान में जाने दो, उन्होंने कहा, अभी आपकी कुछ उम्र बाकी है। अगर आप इसे पूरा कर चुके होते तो अपनी रिहाईशगाह में जा सकते थे। इस हदीस को इमाम बुखारी अपने मसले की ताईद में लाये हैं कि कुफ्फार और मुश्रिकों की औलाद जन्नती हैं।
583.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि एक आदमी ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि कसल्लम से अर्ज किया कि मेरी वालदा का अचानक इन्तिकाल हो गया है। मुझे यकीन है कि अगर वह बोल सकें तो जरूर सदका व खैरात करें। क्या मैं उनकी तरफ से सदका दूं तो उन्हें कुछ सवाब मिलेगा? आपने फरमाया, हां मिलेगा। इस हदीस से इमाम बुखारी ने यह साबित किया है कि मौमिन के लिए अचानक मौत नुकसान देह नहीं होती, क्योंकि जब आपके सामने अचानक मौत का जिक्र हुआ तो आपने किसी किस्म की नागवारी का इजहार नहीं किया, अलबत्ता आपने इससे पनाह जरूर मांगी है, क्योंकि इसमें वसीयत करने की मुहलत नहीं मिलती।
584.उमर बिन खत्ताब रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वफात पायी तो आप इन छः लोगों से राजी थे, उमर,उस्मान,अली, तल्हा, जुबैर, अब्दुर्रहमान बिन औफ और सअद बिन अबी वक्कास रजि अल्लाह तआला अन्हो के नाम लिये। अशरा मुबश्शरा (दस जन्नती सहाबा ) में से यही हजरात उस वक्त जिन्दा थे। इस रिवायत में सईद बिन जैद रजि अल्लाह तआला अन्हो का जिक्र नहीं है। हालांकि वह भी जिन्दा थे, चूंकि वह आपके रिश्तेदार थे। इसलिए खिलाफत के सिलसिले में उनका नाम नहीं है ।
585.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है। उन्होंने कहा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, मुर्दो को बुरा-भला न कहो, क्योंकि वह जो कुछ कर चुके हैं, उससे वह मिल चुके हैं। मरने के बाद किसी को बुरा-भला कहने का क्या फायदा है। बल्कि उनके घर वालों और रिश्तेदारों को तकलीफ देना है। अलबत्ता हदीस के रावियों पर जिरह उनके मरने के बाद भी जाइज है, क्योंकि इससे दीन की हिफाज़त मकसूद है।
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