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02.ईमान का बयान (Hadith no 08-46)

 

ईमान के लिए तीन चीजों का होना जरूरी है। एक दिल से सच्चा होना, दूसरा जुबान से इकरार, तीसरा जिस्म के आजाओं यानी अंगों से पैरवी और अमल का पाबन्द होना। यहूद को आपकी पहचान तसदीक थी। नीज हिरक्ल और अबू तालिब ने तो इकरार भी किया था, लेकिन इसके बावुजूद मोमिन नहीं हैं। दिल से सच्चा जानना और जुबान से इकरार की पैरवी और अमल के बगैर कोई हैसियत नहीं। लिहाजा तसदीक में कोताही करने वाला मुनाफिक और इकरार में कोताही करने वाला काफिर जबकि अमली कोताही करने वाला फासिक है। अगर इन्कार की वजह से बद अमली का शिकार है तो उसके कुफ़र में कोई शक नहीं, ऐसे हालात में तसदीक इकरार का कोई फायदा नहीं।

 

 

08.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया : “इस्लाम की बुनियाद पांच चीजों पर रखी गई है।" गवाही देना कि अल्लाह के अलावा कोई माबूद हकीकी नही और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं, नमाज कायम करना, जकात अदा करना, हज करना और रमजानुल मुबारक के रोजे रखना।

 

 

09.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हैं, आपने फरमाया: ईमान के साठ से कुछ ज्यादा टहनियाँ हैं और शर्म भी ईमान की एक अहम टहनी है।'' हदीस के आखिर में शर्म को खुसूसियत के साथ बयान किया गया है, क्योंकि इन्सानी अख्लाक में शर्म का बहुत बुलन्द मकाम है, यह वह आदत है जो इन्सान को बहुत से गुनाहों से रोकती है। शर्म सिर्फ लोगों से ही नहीं बल्कि सब से ज्यादा शर्म अल्लाह से होनी चाहिए। इस बिना पर सब से बड़ा बेहया वह बदबख्त इन्सान है जो गुनाह करते वक्त अल्लाह से नहीं शर्माता, यही वजह है कि ईमान और शर्म के बीच बहुत गहरा रिश्ता है।

 

 

10.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हैं, आपने फरमाया : कि मुसलमान जिसकी जुबान और हाथ से दूसरे मुसलमान महफूज रहे और मुहाजिर वह है जो उन चीजों को छोड़ दे, जिनसे अल्लाह ने मना किया है। इस हदीस में सिर्फ जुबान और हाथ से तकलीफ देने का जिक्र है, क्योंकि ज्यादातर इन्सानी तकलीफों का ताल्लुक इन्हीं दो से होता है, वरना मुसलमान की शान तो यह है कि दूसरे लोगो को उससे किसी किस्म की तकलीफ पहुंचे, चूनांचे कुछ रिवायतों में यह ज्यादा भी है कि मोमिन वह है, जिससे दूसरे लोगो के खून महफूज रहें। वाजेह रहे कि इससे मुराद वह तकलीफ देना है जो बिला वजह हो, क्योंकि बशर्ते कुदरत मुजरिमों को सजा देना और शरपसन्द लोगों के फसाद को ताकत के जोर से रोकना तो मुसलमान का असली फर्ज है।अबू मुसा अशअरी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि सहाबा किराम ने अर्ज किया अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! कौनसा मुसलमान बेहतर हैं? आपने फरमाया, “जिसकी जुबान और ताकत से दूसरे मुसलमान महफूज रहें।"

 

 

11.अब्दुल्लाह बिन अम्र रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि एक आदमी ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछा, कि इस्लाम की कौनसी आदत अच्छी है? आपने फरमाया : “तुम मोहताजों को खाना खिलाओ और जानकार और अनजान हर एक मुसलमान को सलाम करो। इस हदीस के मुताबिक खाना खिलाने और सलाम करने को एक बेहतरीन अमल बताया गया हैं, जबकि दूसरी हदीसों में अल्लाह के जिक्र और जिहाद और मां-बाप की फरमां बरदारी को अफजल करार दिया है, इसमें कोई फर्क नहीं है। बल्कि यह फर्क सवाल करने वाले की हालत और जरूरत के लिहाज से है।

 

 

12.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया : “तुम में से कोई आदमी मोमिन नहीं हो सकता, जब तक अपने भाई के लिए वही चाहे जो अपने लिए चाहता है। आदत और अखलाक के बयान में इस आदत को बुनियादी करार दिया गया है। मुसलमानों को चाहिए कि वह मुसलमान भाईयों बल्कि तमाम इन्सानों का खैर-ख्वाह रहे। ऐसे इन्सान की दुनिया और आखिरत बड़े आराम और सुकून से गुजरती है।

 

 

13.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: “मुझे कसम है उस अल्लाह की जिसके हाथ में मेरी जान है, तुम में कोई आदमी मोमिन नहीं हो सकता, जब तक उसको मेरी मुहब्बत अपने बाप और औलाद से ज्यादा हो जाये।रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से तबई मुहब्बत के अलावा ईमानी मुहब्बत की भी जरूरत है, वरना तबई मुहब्बत तो जनाब अबू तालिब को भी थी, लेकिन उसे मोमिन नहीं कहा गया। बाप और औलाद का खास तौर से जिक्र फरमाया, क्योंकि इन्सान इनसे बेहद मुहब्बत करता है, फिर बाप को पहले किया, क्योंकि बाप सब का होता है, जबकि तमाम के लिए औलाद का होना जरूरी नहीं। 

 

 

14.नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: “ईमान की मिठास उसी को नसीब होगी जिसमें तीन बातें होगी, एक यह कि अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मुहब्बत उसको सबसे ज्यादा हो, दूसरी यह कि सिर्फ अल्लाह ही के लिए किसी से दोस्ती रखे, तीसरी यह कि दोबारा काफिर बनना उसे ऐसे ही नापसन्द हो, जैसे आग में झोंके जाना नापसन्द होता है। मालूम हुआ कि मारपीट, जिल्लत और रूसवाई को कुफ्र पर तरजीह देना बाइसे फजीलत है। अगरचे ईमान ऐसी चीज नहीं जिसे जुबान से चखा जा सके, फिर भी इसमें देखी जाने वाली मिठास और लज्जत होती है। यह उस आदमी को महसूस होती है, जो हदीस में मजकूरा मकाम पर पहुंच जाये। बाज़ औकात तो यह मिठास इस हद तक महसूस होती है कि मोमिन ईमान पर अपनी जान कुरबान करने के लिए भी तैयार हो जाता है। ऐसा इन्सान नेकी और इताअत के काम करने में लज़्ज़त और खुशी महसूस करता है।

 

 

15.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया : “ईमान की निशानी अनसार से मुहब्बत रखना और निफाक की निशानी अनसार से कीना (जलन) रखना है।अन्सार, मदीना मुनव्वरा के वह लोग हैं जिन्होंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ठहराया और ऐसे वक्त में आपका साथ दिया, जबकि और कोई कौम आपकी मदद करने के लिए तैयार नहीं थी। अन्सार से आपके मददगार की हैसियत से मुहब्बत करना मुराद है, शख्सी तौर पर किसी से इख्तिलाफ और झगड़ा होना इस से अलग है।

 

 

16.उबादा बिन सामित रजि अल्लाह तआला अन्हो का बयान है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आस पास सहाबा की एक जमाअत थी, तो आपने फरमाया: “तुम सब मुझ से इस बात पर बैअत करो कि अल्लाह के साथ किसी को शरीक ना ठहराओगे, चोरी नहीं करोगे, जिना नहीं करोगे, अपनी औलाद को कल्ल नहीं करोगे, अपने हाथ और पांव के सामने (जाने-अनजाने) किसी पर इल्जाम नहीं लगाओगे और अच्छे काम करोगे, नाफरमानी नहीं करोगे, फिर जो कोई तुममें से यह वादा पूरा करेगा, उसका सवाब अल्लाह के जिम्मे है और जो कोई इन गुनाहों में से कुछ कर बैठे और उसे दुनिया में उसकी सजा मिल जाये तो उसका गुनाह उतर जायेगा और जो कोई इन गुनाहों में से किसी को कर बैठे, फिर अल्लाह ने दुनिया में उसके गुनाह को छुपाया तो वह अल्लाह के हवाले है, अगर चाहे तो (कयामत के दिन) उसे माफ करे या सजा दे।हमने इन सब शर्तों पर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बैअत कर ली। इस हदीस से यह भी मालूम हुआ कि हुदूद (सजायें) गुनाहों का कफारा है यानी हद्दे शरई कायम होने से गुनाह माफ हो जाता हैं। मालूम हुआ कि दीने इस्लाम में बैअत (वादा) लेना एक मसनून अमल है। रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम लोगों से दीने इस्लाम पर कारबन्द रहने, हिजरत करने, मैदाने जिहाद में साबित कदम रहने, बुरी चीजों को छोड़ने, सुन्नत पर अमल करने और बिदअत और खुराफात से दूर रहने की बैअत लेते थे। अलबत्ता बैअते तसव्वुफ (सुफियत की बैअत) की कोई असल नहीं। यह बहुत बाद की पैदावार है।

 

 

17.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब सहाबा-- किराम को हुक्म देते तो उन्हीं कामों का हुक्म देते, जिनको वह आसानी से कर सकते थे। उन्होंने मालूम किया, अल्लाह के रसूल! हमारा हाल आप जैसा पर्दा नहीं है। अल्लाह ने तो आपकी अगली पिछली हर कोताही से दरगुजर फरमाया है, यह सुनकर आप इस कद्र नाराज हुये कि आपके चेहरा मुबारक पर गुस्से का असर जाहिर हुआ, फिर आपने फरमाया: “मैं तुम सब से असर जाहिर हुआ, फिर आपने फरमाया: “मैं तुम सब से ज्यादा परहेजगार और अल्लाह को जानने वाला हूँ।' रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इसलिए नाराज हुये कि सहाबा--किराम नेआसान कामों" को बुलन्द मर्तवे और गुनाहों की बख्शिश के लिए नाकाफी ख्याल किया। उनके गुमान के मुताबिक बुलन्द दर्जे हासिल करने के लिए ऐसे कठिन अमल होने चाहिए, जिनकी अदायगी में तकलीफ उठानी पड़े। इस पर आपने खबरदार किया कि दीन में दखल अन्दाजी की जरूरत नहीं, बल्कि जो और जैसा हुक्म हो, उसी को काफी समझा जाये।अबू सईद खुदरी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जन्नत वाले जन्नत में और जहननम वाले जहननम में चले जायेंगे तो अल्लाह तआला फरमायेगा कि जिस आदमी के दिल में राई के दाने के बराबर ईमान हो, उसे जहन्नम से निकाल लाओ तो ऐसे लोगों को जहन्नम से निकाला जायेगा जो जल कर काले हो चुके होंगे। फिर उन्हें पानी या नहरे हयात में डाला जायेगा। वह सिरे से ऐसे उगेंगे जैसे दाना नहर के किनारे उगता है। क्या तू देखता नहीं, वह कैसे जर्द जर्द लिपटा हुआ निकलता है। इमाम बुखारी ने वुहैब की रिवायत बयान करके उस शक को दूर कर दिया जो इमाम मालिक को हुआ यानीजिन्दगी की नहर" (नहरे हयात) सही है।

 

 

18.अबू सईद खुदरी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: “मैं एक बार सो रहा था, कि ख्वाब की हालत में लोगों को देखा, वह मेरे सामने लाये जाते हैं और वह कुर्ते पहने हुये हैं, कुछ के कुर्ते सीनों तक है और कुछ लोगों के इससे भी कम और उमर बिन खत्ताब रजि अल्लाह तआला अन्हो को मेरे सामने इस हालत में लाया गया कि वह जो कुर्ता पहने हुये हैं, उसे जमीन पर घसीट रहे हैं। सहाबा--किराम ने पूछा अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! आप इस ख्वाब की क्या ताबिर करते हैं? आपने फरमाया, “दीन इस हदीस से मालूम हुआ कि ख्वाब में अपना कुर्ता घसीटते हुये देखना ऊंचे दर्जे की दीनदारी की पहचान है, नीज यह भी साबित हुआ कि ईमान में कमी और ज्यादती मुमकिन है।

 

 

19.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम एक अन्सारी आदमी के पास से गुजरे, जबकि वह अपने भाई को समझा रहा था कि तू इतनी शर्म क्यों करता हैं? रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने उससे फरमाया: “उसे अपने हाल पर छोड़ दो, क्योंकि शर्म तो ईमान का हिस्सा है।''

 

 

20.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः मुझे हुक्म मिला है कि मैं लोगों से जंग जारी रखूं, यहां तक कि वह इस बात की गवाही दें कि अल्लाह के सिवा कोई माबूदे हकीकी नहीं और बेशक मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अल्लाह के रसूल है। पूरे आदाब से नमाज अदा करें और जकात दें, जब वह यह करने लगें तो उन्होंने अपने जान और माल को मुझ से बचा लिया। सिवाये इस्लाम के हक के और उनका हिसाब अल्लाह के हवाले है।काफिरों से जंग लड़ने का मकसद यह होता है कि वह इस्लाम कबूल करके सिर्फ अल्लाह की इबादत करें, अगरचे इस्लाम में टेक्स और मुनासिब शर्तों के साथ सुलह पर भी जंग खत्म हो जाती है मगर जंग बन्दी का यह तरीका इस्लामी जंग का असल मकसद नहीं, चूंकि इसके जरीये असल मकसद के लिए एक अमन से भरा हुआ रास्ता खुल जाता है, लिहाजा इस पर भी जंग रोक दी जाती हैं।

 

 

21.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछा गया, कौनसा अमल अच्छा है? आपने फरमाया: “अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाना।सवाल किया गयाःफिर कौनसा?” आपने फरमाया: “अल्लाह की राह में जिहाद करना।पूछा गया : “फिर कौन सा?” आपने फरमाया: “वह हज जो कुबूल हो।हज्जे मबरूर से मुराद यह हज है जो दिखावे और गुनाहों से पाक हो। इसकी पहचान यह है कि आदमी अपनी जिन्दगी पहले से बेहतर तरीके पर गुजारे।

 

 

22.साअद बिन अबी वक्कास रजि अल्लाह तआला अन्हो का बयान है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने चन्द लोगों को कुछ माल दिया और साअद रजि बैठे हुये थे। आपने एक आदमी को छोड़ दिया, यानी उसे कुछ दिया, हालांकि वह तमाम लोगों में से मुझे ज्यादा पसन्द था। मैंने कहा: अल्लाह के रसूल! आपने फलां आदमी को छोड़ दिया, अल्लाह की कसम! मैं तो उसे मोमिन समझता हूँ। आपने फरमाया: “या मुसलमानमैं थोड़ी देर खामोश रहा, फिर उसके बारे मैं जो जानता था, उसने मुझे बोलने पर मजबूर किया मैंने दोबारा अर्ज किया कि आपने फलां आदमी को क्यों नजर अन्दाज कर दिया? अल्लाह की कसम! मैं तो इसे मोमिन ख्याल करता हूँ। आपने फरमाया: “या मुसलमानफिर मैं थोड़ी देर चुप रहा, फिर उसके बारे में जो मैं जानता था, उसने मजबूर किया तो मैंने तीसरी बार वही अर्ज किया और रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने भी वहीं फरमाया। उसके बाद आप कहने लगे साअद! मैं एक आदमी को कुछ देता हूँ हालांकि दूसरे आदमी को उससे बेहतर ख्याल करता हूँ, इस अन्देशा के पेशे नजर कि कहीं अल्लाह तआला उसे औंधे मुंह दोजख में धकेल दे। मालूम हुआ कि जिसके अन्दरूनी हालात का इल्म हो, उसे मोमिन नहीं कहना चाहिए, क्योंकि अन्दर की बातों पर अल्लाह के अलावा और कोई नहीं जान सकता। अलबत्ता उसके जाहिरी हालात के पेशे नजर उसे मुसलमान कह सकते हैं।

 

 

23.इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: “मैंने दोजख में ज्यादातर औरतों को देखा (क्योंकि) वह कुफ्र करती है , कहा : क्या वह अल्लाह का कुफ्र करती है? आपने फरमाया: “नहीं बल्कि वह अपने शौहर की नाफरमानी करती है और एहसान फरामोश हैं, वह यूँ कि अगर तू सारी उम्र औरत से अच्छा सलूक करे फिर वह (मामूली सी ना पसन्द) बात तुझ में देखे तो कहने लगती है कि मुझे तुझ से कभी आराम नहीं मिला।इमाम बुखारी ने ईमान और उसके समरात बयान करने के बाद उसकी जिद यानी कुफ्र और उसकी किस्मों को बयान करना शुरू किया। कुफ्र की दो किसमें हैं। एक यह कि उसके करने से इन्सान इस्लाम के दायरे से निकल जाता है और दूसरा वह है जिसका करने वाला गुनाहगार तो जरूर होता है, लेकिन इस्लाम से नहीं निकलता। इस मजमून से दूसरी किस्म का कुफ्र मुराद है। यह भी मालूम हुआ कि गुनाहों के करने से ईमान में कमी जाती हैं

 

 

 

25.अबू बकर रजि अल्लाह तआला अन्हो का बयान है कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुना, आप फरमा रहे थे, “जब दो मुसलमान अपनी अपनी तलवारें लेकर आपस में झगड़ पड़ें तो मरने वाला और मारने वाला दोनों जहन्नमी हैंमैंने अर्ज किया कि अल्लाह के रसूल ! मारने वाला (तो जरूर जहन्नमी है) लेकिन मरने वाला क्यों जहननमी होगा? आपने फरमाया : “उसकी नियत भी दूसरे साथी को मारने की थी।मालूम हुआ कि जब दिल का इरादा पुख्ता हो जाये तो उस पर भी पकड़ होगी, जबकि दूसरी रिवायत में है कि अल्लाह तआला ने उम्मत के दिली ख्यालात को माफ कर दिया है, जब तक उनके मुताबिक अमल करें। इन दोनों बातों में फर्क नहीं, क्योंकिं ऐसे ख्यालात पर पकड़ नहीं होगी, जो मजबूत हों, यानी आयें और गुजर जायें। अलबत्ता पुख्ता इरादे पर जरूर पकड़ होगी, अगरचे उसके मुताबिक अमल किया जाये।

 

 

26.अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि अल्लाह तआला अन्हो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हुये फरमाते हैं जब यह आयत उतरीजो लोग ईमान लाये और उन्होंने अपने ईमान को जुल्म के साथ आलूदा नहीं किया।तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सहाबा किराम ने कहा: अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)! हममें से कौन ऐसा है, जिसने जुल्म नहीं किया? तब अल्लाह ने यह आयत उतारीयकीनन शिर्क बहुत बड़ा जुल्म है।'' इस हदीस से मौजूदा जमाने के मुअतजिला का (एक फिरके का नाम) रद्द होता है जो कुरआन समझने के लिए सिर्फ अरबी मायनो को काफी समझते हैं, अगर इनका यह दावा ठीक होता तो सहाबा--किराम कुरआने मजीद के समझने में किसी किस्म की उलझन का शिकार होते, लिहाजा कुरआन को समझने के लिए साहिबे कुरआन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इरशादात और अमलों को सामने रखना निहायत जरूरी है, यही वह बयान है, जिसकी हिफाजत का खुद अल्लाह तआला ने जिम्मा लिया है।

 

 

27.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: “मुनाफिक की तीन निशानियां हैं, जब बात करे तो झूट बोले, जब वादा करे तो वादा खिलाफी करे और जब उसके पास अमानत रखी जाये तो खयानत करे।

 

 

28.अब्दुल्लाह बिन अम्र रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: "चार बातें जिसमें होंगी वह तो खालिस (पक्का) मुनाफिक होगा और जिसमें इनमें से कोई एक भी होगी, उसमें निफाक की एक आदत होगी, यहां तक कि वह उसे छोड़ दे, जब उसके पास अम्मनत रखी जाये तो खयानत करे, जब बात करे तो झूट बोले, जब वादा करे तो दगावाजी करे और जब झगड़े तो बेशदा बकवास करे। निफाक की दो किसमें हैं, एक निफाक तो ईमान अकीदे का होता है, जो कुफ्र की बदतरीन किस्म है, जिसकी निशानदही सिर्फ वहय से मुमकिन है, दूसरा अमली निफाक है, जिसे सीरत और किरदार का निफाक भी कहते हैं। हदीस का मतलब यह है कि जिस आदमी में निफाक की निशानियों में से कोई एक निशानी है तो उसे समझना चाहिए कि मुझ में मुनाफिकाना आदत है और जिसमें यह तमाम निशानियाँ जमां हो, वह सीरत और किरदार में खालिस(पक्का) मुनाफिक है

 

 

29.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: “जो आदमी ईमान का तकाजा समझकर सवाब की नियत से शबे कदर का कयाम करेगा, उसके सारे पिछले गुनाह बख्श दिये जायेंगे।'

 

 

30.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सें बयान करते हैं कि आपने फरमाया : “अल्लाह तआला उस आदमी के लिए जिम्मेदारी लेता है जो उसकी राह में जिहाद के लिए निकले, उसे घर से सिर्फ इस बात ने निकाला कि वह मुझ अल्लाह पर ईमान रखता है और मेरे रसूलों को सच्चा जानता है तो मैं उसे उस सवाब या माले गनीमत के साथ वापिस करूंगा, जो उसने जिहाद में पाया है, या उसे शहीद बनाकर जन्नत मे ही करूंगा। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया अगर मैं अपनी उम्मत पर मुश्किल समझता तो कभी भी छोटे से छोटे लश्कर के पीछे बैठा रहता और मेरी यह तमन्ना है कि अल्लाह के रास्ते में मारा जाऊँ, फिर जिन्दा किया जाऊँ, फिर मारा जाऊँ फिर जिन्दा किया जाऊँ, फिर मारा जाऊँ। फिर जिन्दा किया जाऊँ। 

 

 

 

31.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: “जो आदमी रमजान में ईमानदार होकर सवाब हासिल करने के लिए रात के वक्त नमाज पढ़ेगा तो उसके पिछले गुनाह माफ कर दिये जायेंगे।'' गुनाहों की माफी में बन्दों के हुकूक शामिल नहीं है, क्योंकि इस बात पर उम्मत का इत्तेफाक है कि ऐसे हुकूक हकदारों की रजामन्दी से ही खत्म हो सकते हैं। कयामत के दिन हकदारों की बुराईयाँ लेकर और अपनी नेकियाँ देकर इनकी तलाफी मुमकिन है। मगर यह कि अल्लाह उनको अपनी तरफ से सवाब देकर राजी कर दे।

 

 

32.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: “बेशक दीन इस्लाम बहुत आसान है और जो आदमी दीन में सख्ती करेगा तो दीन उस पर गालिब जायेगा, इसलिए बीच का रास्ता इख्तयार करो और करीब रहो और खुश हो जावो कि तुम्हें ऐसा आसान दीन मिला है। सुबह, दोपहर के बाद और कुछ रात में इबादत करने से मदद हासिल करो। मतलब यह है कि एक मुसलमान को राहत और सुकून के वक्तों में निहायत दिलचस्पी से इबादत का फरीजा अदा करना चाहिए ताकि उसका अमल लगातार कायम रहे, क्योंकि थोड़ा सा अमल डट कर और बराबर करना उस बड़े अमल से कहीं बढ़कर है, जो करके छोड़ दिया जाये।

 

 

33.बरा बिन आजिब रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम जब हिजरत करके मदीना तशरीफ लाये तो पहले अपने ददिहाल या ननिहाल जो अन्सार से थे, उनके यहां उतरे और मदीना में सोलह या सतरह महीने बैतुलमुकददस की तरफ मुंह करके नमाज पढ़ते रहे। फिर भी चाहते थे कि आप का किब्ला काअबा की तरफ हो जाये चूनांचे हो गया और पहली नमाज जो आपने काअबा की तरफ पढ़ी वह असर की नमाज थी और आप के साथ कुछ और लोग भी थे, उनमें से एक आदमी निकला और किसी मस्जिद वालों के पास से उसका गुजर हुआ, वह बैतुलमुकददस की तरफ मुंह किये हुये रकूअ की हालत में थे तो उसने कहा कि मैं अल्लाह को गवाह बनाकर कहता हूँ कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ मक्का की तरफ मुंह करके नमाज पढ़ी है यह सुनते ही वह लोग जिस हालत में थे, उसी हालत में काअबा की तरफ फिर गये और जब आप बैतुलमुकदस की तरफ मुंह करके नमाज पढ़ते थे तो यहूदी और नसरानी इसाई बहुत खुश होते थे, लेकिन जब आपने अपना मुंह काअबा की तरफ फेर लिया तो यह उन्हें बहुत ना-गवार नापसन्द गुजरा। इस हदीस में यह भी है कि किब्ला बदलने से पहले जो लोग मर चुके थे, उनके बारे में हमें मालूम नहीं था कि उन्हें नमाज का सवाब मिलेगा या नहीं? तो अल्लाह तआला ने यह आयत उतारी, ऐसा नहीं है कि अल्लाह तआला तुम्हारा ईमान यानी तुम्हारी नमाजें बेकार कर दे।'' आयते करीमा में नमाज की ताबीर ईमान से की गई है। मालूम हुआ कि नमाज जो एक अमल है यह ईमान का हिस्सा है, और इसमें कमी और बेशी मुमकिन हो सकती है।

 

 

34.अबू सईद खुदरी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुना, आप फरमा रहे थे कि जब कोई बन्दा मुसलमान हो जाता है और इस्लाम पर अच्छी तरह अमल पैरा रहता है तो अल्लाह तआला उसके वह तमाम गुनाह माफ कर देता है, जो उसने इस्लाम कबूल करने से पहले किये थे और उसके बाद फिर मुआवजा शुरू होता है कि एक नेकी का बदला उसके दस गुने से सात सौ गुना तक और बुराई का बदला तो बुराई के बराबर ही दिया जाता है, मगर यह कि अल्लाह तआला उसे माफ फरमा दे। दार कुतनी की एक रिवायत में यह भी है कि अल्लाह तआला उसकी हर नेकी को शुमार करेगा जो उसने इस्लाम से पहले की थी। मालूम हुआ कि काफिर अगर मुसलमान हो जाता है तो कुफ्र के जमाने की नेकियों का भी उसे सवाब मिलेगा।

 

 

35.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक बार उनके पास तशरीफ़ लाये वहां एक औरत बैठी थी। आपने पूछा यह कौन है? हजरता आइशा ने कहा कि यह फलां औरत है और उसकी बहुत ज्यादा नमाज का हाल बयान करने लगीं। आपने फरमाया रूक जा! तुम अपने जिम्मे सिर्फ वही काम रखो जो हमेशा कर सकती हो। अल्लाह की कसम! अल्लाह तआला सवाब देने से नहीं थकता, तुम ही इबादत करने से थक जाओगे। और अल्लाह तआला को सबसे ज्यादा पसन्द फरमां बरदारी का वह काम है, जिसका करने वाला उस पर हमेशगी बरते। दरमियानी चाल के साथ नेक अमल पर हमेशगी बरतनी चाहिए, नीज यह भी मालूम हुआ कि इबादत करते वक़्त बहुत सख्ती उठाना एक नापसन्दीदा काम है। 

 

 

36.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हैं कि आपने फरमाया: “जिसनेला इलाहा इल्लल्लाह'' कहा और उसके दिल में एक जौं के बराबर नेकी यानी ईमान हुआ, वह दोजख से जरूर निकलेगा और जिसनेला इलाहा इल्लल्लाह" कहा और उसके दिल में गेहूं के दाने के बराबर भलाई ईमान हो, वह दोजख से जरूर निकलेगा और जिसनेला इलाहा इल्लल्लाहकहा और उसके दिल में एक जर्रा बराबर ईमान हो,वह भी दोजख से जरूर निकलेगा। सूरज की किरणों में सूई की नोक के बराबर बेशुमार जर्रात उड़ते नजर आते हैं। चार जरें एक राई के दाने के बराबर होते हैं। और सौ जर्रात एक जौ के दाने के बराबर होते हैं, हदीस का यह बयान ईमान की कमी और ज्यादती पर दलालत करता है और यह भी मालूम हुआ कि बाज बदअमल तौहीद वाले जहन्नम में दाखिल होंगे। नीज इस बात का भी पता चला कि बड़ा गुनाह का करने वाला काफिर नहीं होता और ही यह हमेशा के लिए जहन्नम में रहेगा।

 

 

37.उमर बिन खत्ताब रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि एक यहूदी ने उनसे कहा, मोमिनों के अमीर! तुम्हारी किताब (कुरआन) में एक ऐसी आयत है, जिसे तुम पढ़ते रहते हो, अगर वह आयत हम यहूदियों पर नाजिल होती तो हम उस दिन को ईद का दिन ठहराते। हजरत उमर ने कहा, वह कौनसी आयत हैं? यहूदी बोला यह आयतआज मैंने तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन पूरा कर दिया और अपना एहसान भी तुम पर तमाम कर दिया और दीने इस्लाम को तुम्हारे लिए पसन्द किया'' हजरत उमर ने कहा कि हम उस दिन और उस मकाम को जानते हैं, जिसमें यह आयत रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर नाजिल हुई। यह आयत जुमा के दिन उतरी जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अरफात में खड़े थे। आयते करीमा से मालूम हुआ कि इसके नाजिल होने से पहले दीन (ईमान) पूरा नहीं था, बल्कि अधूरा था, लिहाजा इसमें कमी और ज्यादती हो सकती है, इमाम बुखारी फरमाते हैं कि मैं कई शहरों में हजार से ज्यादा इल्म वालों से मिला हूँ। तमाम का यही मानना था कि ईमान कोल और अमल का नाम है और यह कम और ज्यादा होता रहता है। 

 

 

38.तलहा बिन उबैदुल्लाह रजि अल्लाह तआला अन्हो का बयान है कि नज्द वालों में से एक आदमी बिखरे बालों वाला रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया। हम उसकी आवाज की गुनगुनाहट सुन रहे थे, मगर यह ना समझते थे कि क्या कहता है, यहां तक कि वह करीब गया, तब मालूम हुआ कि यह इस्लाम के बारे मे पूछ रहा है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: “दिन रात में पांच नमाजें हैंउसने कहा इनके अलावा भी मुझ पर कोई नमाज फर्ज है? आपने फरमाया:'नहीं मगर यह कि तू अपनी खुशी से पढ़े।फिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया : “और रमजान के रोजे रखनाउसने अर्ज किया : और तो कोई रोजा मुझ पर फर्ज नहीं। आपने फरमाया: नहीं मगर यह कि तू अपनी खुशी से रखे। तलहा कहते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उससे जकात का भी जिक्र किया, उसने कहा: मुझ पर इसके अलावा भी निफ्ली सदका फर्ज हैं? आपने 'फरमाया: “नहीं मगर यह कि तू अपनी खुशी से दे।तलहा ने कहा कि फिर वह आदमी यह कहता हुआ पीठ फेरकर वापस चला गया कि अल्लाह की कसम! मैं इससे ज्यादा करूंगा और कम। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: “अगर यह सच कह रहा है तो कामयाब हो गया।इस हदीस से मालूम हुआ कि वित्र फर्ज नहीं है, बल्कि नमाज तहज्जुद का हिस्सा होने की वजह से नफ्ल है, क्योंकि इस हदीस में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सिर्फ पांच नमाजों को फर्ज फरमाया और बाकी को नफ्ल करार दिया है।

 

 

39.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: “जो कोई ईमानदार होकर सवाब हासिल करने की नियत से किसी मुसलमान के जनाजे के साथ जाये और नमाज दफन से फरागत होने की दर तक उसके साथ रहे तो वह दो कीरात सवाब लेकर वापस आता है। हर कीरात उहुद पहाड़ के बराबर है। और जो आदमी जनाजा पढ़कर दफन से पहले लौट आये तो वह एक कीरात सवाब लेकर लोटता है। आखिर इस लिहाज से एक कीरात उडुद पहाड़ के बराबर होगा, अलबत्ता दुनिया में एक कीरात बारह दिरहम के बराबर होता है। इस हदीस से जनाजे के साथ चलने, नमाज पढ़ने और दफन के बाद वापस आने की अहमीयत का पता चलता है।

 

 

40.अब्दुल्लाह बिन मसउद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: मुसलमान को गाली देना फिस्क और उससे लड़ना कुफ्र है।इमाम बुखारी ने इस हदीस से यह भी साबित किया है कि आपस में गाली देना और लान तान करना एक मुसलमान की शान के खिलाफ है।नीज एक दूसरे की नाहक गर्दने मारने से ईमान खतरे में पड़ सकता है नीज हदीस में जिक्र किये गये कुफ्र से हकीकी कुफ्र मुराद नहीं जो इन्सान को इस्लाम के दायरे से निकाल देता है, बल्कि कुफ्र मुराद है।

 

 

41.उबादा बिन सामित रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक बार कद्र की रात बताने के लिए अपने कमरे से निकले, इतने में दो मुसलमान आपस में झगड़ पड़े। आपने फरमाया : मैं तो इसलिए बाहर निकला था कि तुम्हें कद्र की रात बताऊँ, मगर फलां फलां आदमी झगड़ पड़े इसलिए वह मेरे दिल से उठा ली गयी और शायद यही तुम्हारे हक में फायदेमन्द हो। अब तुम शबे कद्र को रमजान की सत्ताईसवीं, उन्तीसवीं और पच्चीसववीं रात में तलाश करो। इस हदीस से मालूम हुआ कि आपस में लड़ना झगड़ना संगीन जुर्म है क्योंकि इसकी नहूसत से शबे कद्र जैसी अजीम दौलत से हमें महरूम कर दिया गया। शबे कद्र को नहीं बल्कि उसकी ताईन को उठाया गया, इसमें यह हिकमत थी कि इसकी तलाश में लोग ज्यादा से ज्यादा इबादत करें। 

 

 

42.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि एक दिन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम लोगों के सामने तशरीफ फरमा थे कि अचानक एक आदमी आपकी खिदमत में हाजिर हुआ और पूछने लगा कि ईमान कया है? आपने फरमाया: ईमान यह है कि तुम अल्लाह पर, उसके फरिश्तों पर और हश्र के दिन अल्लाह के सामने पेश होने पर, अल्लाह के रसूलों पर ईमान लाओ और कयामत का यकीन करो। उसने फिर सवाल किया कि इस्लाम क्या है? आपने फरमाया: “इस्लाम यह है कि तुम महज अल्लाह की इबादत करो और उसके जगह किसी को शरीक करो, नमाज को ठीक तौर पर अदा करो, फर्ज जकात अदा करो और रमजान के रोजे रखो। फिर उसने पूछा कि एहसान क्या है?आपने फरमाया: एहसान यह है कि तुम अल्लाह की इबादत इस तरह करो, गोया तुम उसे देख रहे हो, अगर तुम उसे नहीं देख रहे हो, वह तो तुम्हें देख रहा है। उसने कहा: कयामत कब आयेगी? आपने फरमाया: जिससे सवाल किया गया है, वह भी सवाल करने वाले से ज्यादा नहीं जानता, अलबत्ता मैं तुम्हें कयामत आने की कुछ निशानियाँ बता देता हूँ। जब नौकरानी अपने आका को जनेगी और जब ऊंटों के अनजान काले कलूटे चरवाहे आसमान छूती इमारते बनाने में एक दूसरे पर बाजी ले जायेंगे तो (कयामत करीब होगी) दरअसल कयामत उन पांच बातों में से है, जिनको अल्लाह के अलावा और कोई नहीं जानता, फिर आपने यह आयत तिलावत फरमायी, "बेशक अल्लाह ही को कयामत का इल्म है..." उसके बाद वह आदमी वापस चला गया तो आपने फरमायाःउसे मेरे पास लाओ, चुनांचे लोगो ने तलाश किया, लेकिन उसका कोई सुराग मिला। तो आपने फरमाया: “यह जिब्राईल थे जो लोगो को उनका दीन सिखाने आये थे।इस हदीस में इशारा है कि कयामत के करीब मामलात नालायक लोगों के हवाले हो जायेंगे। एक दूसरी हदीस में है कि जब नालायक और जलील लोग हुकूमत संभालें तो कयामत का इंतजार करना, अफसोस! कि आज हम इस किस्म के हालात से दोचार हैं।

 

 

43.नोमान बिन बशीर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने कहा कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुना, आप फरमा रहे थे कि हलाल जाहिर है और हराम भी जाहिर और शुबा की चीजें हैं, जिन्हें ज्यादातर लोग नहीं जानते, जो आदमी इन शक और शुबा की चीजों से बच गया, उसने अपने दीन और अपनी इज्जत को बचा लिया और जो कोई इन शक और शुबा वाली चीजों में पड़ गया, उसकी मिसाल उस जानवर चराने वाले की सी है, जो बादशाह की चरागाह के आस पास अपने जानवरों को चराये, करीब है कि चरागाह के अन्दर उसका जानवर घुस जाये। आगाह रहो कि हर बादशाह की एक चरागाह होती है,खबरदार! अल्लाह की चरागाह उसकी जमीन में हराम की हुई चीजें हैं। सुन लो! बदन में एक टुकड़ा गोश्त का है, जब वह ठीक रहता है तो सारा बदन ठीक रहता है और जब वह बिगड़ जाता है तो सारा बदन खराब हो जाता हैं। आगाह रहो, वह टुकड़ा दिल है। इमाम बुखारी ने इस हदीस से यह भी साबित किया है कि शक और शुबा की चीजों से परहेज करना बचना तकवा की निशानी है। शक और शुवा से मुराद वह मुश्किल मामलात हैं कि उन पर यकीनी तौर पर कोई हुक्म लगाया जा सकता हो, अगरचे इल्म वाले किसी हद तक उनसे बेखबर होते हैं फिर भी शकों से खाली नहीं होते।

 

 

44.इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि अब्दुल कैस की जमात के लोग जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आये तो आपने फरमाया कि यह कौन लोग हैं, या कौन से नुमाईन्दे हैं? उन्होंने कहा: हम खानदान रवीया के लोग हैं। आपने फरमाया, तुम आराम की जगह आये हो, जलील होंगे शर्मिन्दा! फिर उन लोगों ने अर्ज किया अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! हम हुरमत वाले महिनों के अलावा दूसरे दिनों में आपके पास नहीं सकते, क्योंकि हमारे और आपके बीच मुजर के काफिरों का कबीला रहता है, लिहाजा आप खुलासा के तौर पर हमें कोई ऐसी बात बता दें कि हम अपने पीछे वालों को उसकी खबर कर दें और हम सब इस (पर अमल करने) से जन्नत में दाखिल हो जायें फिर उन्होंने आप से पीने वाली चीजों के मुताल्लिक भी पूछा तो आपने उन्हें चार बातों का हुक्म दिया और चार बातों से मना किया। आपने उन्हें एक अल्लाह पर ईमान लाने का हुक्म दिया, फिर आपने फरमाया कि तुम जानते हो, सिर्फ एक अल्लाह पर ईमान क्या है? उन्होंने कहा कि अल्लाह और उसके रसूल ही खूब जानते हैं। आपने फरमाया: इस बात की गवाही देना कि अल्लाह के अलावा और कोई इबादत के लायक नहीं और हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उसके रसूल हैं, नमाज ठीक तरीके से अदा करना, जकात देना, रमजान के रोजे रखना और गनीमत के माल से पांचवां हिस्सा अदा करना और शराब बनाने के चार बरतनों यानी बड़े मटकों, कदू से तैयार किये हुए प्यालों, लकड़ी से तराशे हुये लगन और डामर से रंगे हुये रोगनी बर्तनों से उन्हें मना किया। फिर आपने फरमाया : कि इन बातों को याद रखो और अपने पीछे वालों को इनसे खबरदार कर दो। हुरमत के महीनों से मुराद रजबजुलकअदाजिलहिज्जा और मुहर्रम हैं। काफिर इनकी बेहद इज्जत करते थे और इनमें किसी दूसरे पर हाथ चलाने से बचते थे। इस हदीस से मालूम हुआ कि आने वाले मेहमानों को खुशआमदीद कहना इस्लामी अदब है, नीज एक मुसलमान के लिए जरूरी है कि वह ईमान और इल्म को अपने सीने में महफूज करके दूसरों तक पहुंचाये।

 

 

45.अबू मसऊद रजि अल्लाह तआला अन्हो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से रिवायत करते हैं कि आपने फरमाया: जब मर्द अपनी बीवी पर सवाब की नियत से खर्च करता है तो वो भी उसके हक में सदका होता है। मालूम हुआ कि अपने बीवी-बच्चों पर खुश दिली से खर्च करना भी सवाब का जरीया हैं। बशर्ते कि सवाब की नियत हो, इसके बगैर जिम्मेदारी तो अदा हो जायेगी, लेकिन सवाब नहीं मिलेगा

 

 

46.जरीर बिन अब्दुल्लाह रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने कहा कि मैं नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुआ और अर्ज किया कि मैं आपसे इस्लाम पर बैअत करना चाहता हूँ तो आपने मुझसे हर मुसलमान के साथ खैर ख्वाही करने का वादा लिया और नमाज पढ़ने,जकात देने और हर मुसलमान से शिया खैर ख्वाही करने के इकरार पर भी बैअत की। यह हदीस इस्लाम के तमाम दर्जों को शामिल है। इमाम बुखारी इस बाब को किताबुल ईमान के आखिर में लाकर इशारा कर रहे हैं कि मैंने किताब की जमा और तरतीब में लोगों की खैर ख्वाही की है, वह हदीसें बयान की हैं जो बिलकुल सही हैं ताकि अमल करने में आसानी रहे। नीज यह हदीस इतनी ठोस है कि मुहद्दसीन के नजदीक इस्लाम के चौथाई हिस्से पर शामिल है। काफिरों को भी नसीहत की जाये। उन्हें इस्लाम की दावत दी जाये और जब वह मशवरा लें तो उनकी सही रहनुमाई की जाये, अलबत्ता बैअत का सिलसिला सिर्फ इस्लाम वालों के लिए है।

 

 

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