481.इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रात को तहज्जुद पढ़ने के लिए उठते तो यह दुआ पढ़ते थे, ऐ अल्लाह! तू ही तारीफ के लायक है, तू ही आसमान और जमीन और जो इनमें है, इन्हें संभालने वाला है, तेरे ही लिए तारीफ है, तेरे ही लिए जमीन और आसमान और जो कुछ इनमें है, उनकी बादशाहत है। तेरे ही लिए तारीफ है, तू ही आसमान और जमीन और जो चीजें इनमें हैं, उन सब का नूर है। तू ही हर तरह की तारीफ के लायक है, तू ही आसमान और जमीन और जो इनमें है सब का बादशाह है, तेरा वादा भी सच्चा है, तेरी मुलाकात यकीनी और तेरी बात बरहक है, जन्नत और दोजख बरहक और तमाम नबी भी बरहक और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खासकर सच्चे हैं और कयामत बरहक है। ऐ अल्लाह मैं तेरा फरमां बरदार और तुझ पर ईमान लाया हूँ, तुझ पर ही भरोसा रखता हूँ और तेरी ही तरफ लोटता हूँ, तेरी ही मदद से दुश्मनों से झगड़ता हूं और तुझ ही से फैसला चाहता हूँ, तू मेरे अगले पिछले, छिपे और खुले गुनाहों को माफ
करदे, तू ही पहले था और तू ही आखिर में होगा। तेरे अलावा कोई भी इबादत के लायक नहीं। पांचों फर्ज नमाज के बाद तहज्जुद की नमाज़ की बड़ी अहमियत है, जो पिछली रात अदा की जाती है और इसकी आम तौर पर ग्यारह रकअतें हैं, जिनमें आठ रकअतें, दो दो सलाम से अदा की जाती हैं और आखिर में तीन वित्र पढ़े जाते हैं, यही नमाज़ रमजान के महीने में तरावीह के नाम से जानी जाती है, हदीस में गुजरी हुई दुआ को तहज्जुद के लिए उठते ही पढ़ लिया जाये। अल्लाह बेहतर जानता है।
482.इबने उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जिन्दगी में जब कोई ख्वाब देखता तो आपसे से बयान करता था, मुझे भी तमन्ना हुई कि मैं कोई ख्वाब देखूं और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बयान करूं। मैं अभी नौजवान था और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जमाने में मस्जिद ही में सोया करता था। चूनांचे मैंने फरिश्तो का ख्वाब देखा कि जैसे दो फरिश्तों ने मुझे पकड़ा और दोजख की तरफ ले गये, कया देखता हूँ कि वह कुऐं की तरफ पैचदार बनी हुई है, उस पर दो चरखियां हैं और उसमें कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्हें मैं पहचानता हूँ। मैं दोजख से अल्लाह की पनाह मांगने लगा। हजरत इबने उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो कहते हैं कि फिर हमें एक फरिश्ता मिला, जिसने मुझ से कहा कि डरो नहीं, मैंने यह ख्वाब (अपनी बहन) हफ्सा रजि अल्लाह तआला अन्हो से बयान किया, उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम से इसका बयान किया तो आपने फरमाया कि अब्दुल्लाह अच्छा आदमी है। काश वह तहज्जुद पढ़ा करता, उसके बाद अब्दुल्लाह बिन उमर रात को बहुत कम सोया करते थे। इस हदीस से मालूम हुआ कि तहज्जुद की नमाज़ की बेहद फजीलत है और इस पर पाबन्दी करना दोजख से निजात का सबब है।
483.जुन्दुब बिन अब्दुल्लाह रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है एक बार नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बीमार हो गये तो एक या दो रात कि आप तहज्जुद के लिए नहीं उठे। इस हदीस का मतलब यह है कि जब आपने बीमारी की वजह से कुछ दिनों तक तहज्जुद छोड़ दिया तो अबू लहब की बीवी उम्मे जमील कहने लगी कि अब तुझे तेरे शैतान ने छोड़ दिया है तो उस वक़्त सूरा “वज्जुहा” नाजिल हुई।
484.हजरत अली बिन अबू तालिब रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि एक रात रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उनके और अपनी बेटी फातिमा बिनते नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम के पास तशरीफ लाये और फरमाया कि तुम दोनों नमाज़ तहज्जुद क्यों नहीं पढ़ते? मैंने कहा ऐ अल्लाह के रसूल सल्लललाहु अलैहि वसल्लम हमारी सालों तो जानें ही अल्लाह के हाथ में हैं, जब वह हमें उठायेगा तो उठ जायेंगे, जब मैंने यह कहा तो आप वापस हो गये और मुझे कोई जवाब न दिया, फिर मैंने आपको पीठ फेरकर रान पर हाथ मारते हुए देखा और यह फरमाते सुना कि “इन्सान सबसे ज्यादा झगड़ालू है।'' हजरत अली की मजबूरी सुनकर आप खामोश हो गये। अगर यह नमाज़ फर्ज होती तो हजरत अली की मजबूरी कुबूल नहीं हो सकती थी। हाँ, जाते हुये अफसोस जरूर जाहिर कर दिया क्योंकि तकदीर के बहाने एक फजीलत के हासिल करने से फरार का रास्ता इख्तियार करना ठीक न था।
485.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उन्होंने फरमाया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक काम अगरचे वह आप को पसन्द ही होता, इस डर से छोड़ देते थे कि लोग उस पर अमल करेंगे तो वह उन पर फर्ज हो जायेगा। चूनांचे रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने चाश्त की नमाज॒॒ कभी लगातार नहीं पढ़ी, लेकिन मैं पढ़ती हूँ । हजरता आइशा का बयान उनकी मालूमात के मुताबिक है, वरना रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मक्का के फतह के वक़्त चाश्त की नमाज पढ़ी थी और हजरत अबू जर और हजरत अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो को उसके पढने की हिदायत भी की थी।
486.मुगीरा बिन शोअबा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नमाज में इतना खड़े होते कि आपके दोनों पांव या आपके दोनों पिण्डलियों पर वरम आ जाता और जब आपसे इसके बारे में कहा जाता तो फरमाते थे कि क्या मैं अल्लाह का शुक्र अदा करने बन्दा न बनूं? इस हदीस से शुक्रिया के तौर पर नमाज पढ़ने का सबूत मिलता है, नीज मालूम हुआ कि जुबान के शुक्र के अलावा अमल से भी अदा करना चाहिए, क्योंकि जुबान से इकरार करते हुये और उस पर अमल करने को शुक्र कहा जाता है।
487.अब्दुल्लाह बिन अगम्र बिन आस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनसे फरमाया, अल्लाह को सब नमाजों से दाऊद अलैहि सलाम की नमाज बहुत पसन्द है और तमाम रोजों से ज्यादा रोजा भी दाऊद अलैहि सलाम का पसन्द है। वह आधी रात तक सोये रहते, फिर तिहाई रात में इबादत करते। उसके बाद रात के छटे हिस्से में सो जाते, नीज वह एक दिन रोजा रखते ओर एक दिन इफ़्तार करते।इसका मतलब यह है कि अगर रात के बारह घण्टे हों तो पहले छः घण्टे सो लेते फिर चार घण्टे इबादत करते, फिर दो घण्टे आराम फरमाते, गोया कि सहरी का वक्त सोकर गुजार देते। यही उनवान का मकसद है।
488.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,उन्होंने फरमाया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को सब से ज्यादा वह अमल पसन्द होता जो हमेशा होता रहे, आपसे पूछा गया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रात को कब उठते तो उन्होंने फरमाया कि जब मुर्गे की आवाज सुनते तो उठ जाते थे। मुर्गा आम तौर पर आधी रात को बांग देता है, यह उसकी आदत है, जिस पर अल्लाह ने उसे पैदा किया है।
489.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही एक रिवायत में है कि जिस वक्त मुर्ग की आवाज सुनते तो उठकर नमाज पढ़ते । इमाम बुखारी ने पहली हदीस में हजरत दाऊद अलैहि सलाम के रात के जागने को बयान फरमाया, इस हदीस से रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अमल को इसके मुत्ताबिक साबित किया, अगली हदीस से साबित किया गया कि सहरी के वक्त आप सोये होते, लिहाजा आपका और हजरत दाऊद अलैहि सलाम का अमल एक जैसा साबित हुआ। हजरता आइशा से ही एक और रिवायत में है कि उन्होंने फरमाया कि मैंने नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम को आखरी रात में सोये हुए ही देखा है।
490.अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मैंने एक रात नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ तहज्जुद की नमाज पढ़ी तो आप काफी देर खड़े रहे, यहां तक कि मेरी नियत बिगड़ गयी। आपसे पूछा गया कि आपके दिल में क्या है? उन्होंने फरमाया कि मैंने यह इरादा किया था कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को छोड़कर खुद बैठ जाऊं। इससे मालूम हुआ कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रात की नमाज में बहुत लम्बी किरअत करते थे।
491.इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तहज्जुद की नमाज तेरह रकअत पढ़ते थे। इन तेरह रकअतों को इस तरह अदा करते थे कि हर दो रकअतों के बाद सलाम फेर देते, जैसा कि दूसरी रिवायतों मे इसका खुलासा है।
492.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम रात को तेरह रकअत नमाज़ पढ़ते थे, उन्हीं में वित्र और फजर की दो रकअतें सुन्नत भी शामिल होती थीं। नमाज फजर की दो सुननतें मिलाकर तेरह रकअतें हैं, क्योंकि हजरता आइशा की दूसरी रिवायत में है कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसलल्लम रमजान या रमजान के अलावा कभी ग्यारह रकअत से ज्यादा नहीं पढ़ते थे? चूंकि दिन के फराइज भी ग्यारह हैं, इसीलिए रात के वित्र भी ग्यारह थे। इसी तरह रात के नफ़्ल और दिन के फर्ज एक बराबर होते थे।
493.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहुअलैहि वसल्लम किसी महीने में ऐसा इफ्तार करते कि हम ख्याल करते थे कि इस महीने में आप बिलकुल रोजा नहीं रखेंगे और जब रोजे रखते तो इतने लगातार कि हम सोचते अब इसमें बिलकुल इफ़्तार ही नहीं करेंगे और रात को नमाज तो आप ऐसे पढ़ते थे कि हम जब चाहते आपको नमाज़ पढ़ते देख लेते और जब चाहते, सोते देख लेते। इसका मतलब यह है कि रात का वक्त आपके नफ्लों और आराम का वक़्त होता था। वह ऐसा कि जो आदमी आपको जिस हालत में देखना चाहता देख लेता, यह हजरत अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो का अपना देखा हाल है, जो हजरत आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो के बयान के खिलाफ नहीं कि मुर्गे की बांग सुनकर जाग जाते थे, क्योंकि उन्होंने अपनी आंखो देखा हाल बयान किया है।
494.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम, ने फरमाया कि जब आदमी रात के वक्त सो जाता है तो शैतान उसकी गुद्दी पर तीन गिरह लगा देता है, हर गिरह पर यह जादू फूंक देता है कि अभी तो बहुत रात है, सो जाओ। फिर अगर आदमी जाग गया और अल्लाह को याद किया तो एक गिरेह खुल जाती है। फिर अगर उसने वुजू कर लिया तो दूसरी गिरह खुल जाती है। उसके बाद अगर उसने नमाज़ पढ़ी तो तीसरी गिरेह भी खुल जाती हैं और सुबह को खुश मिजाज और दिलशाद उठता है। वरना सुबह को बद दिल और सुस्त उठता है। इन शैतानी गिरोहों को हकीकत में माना जाये और यह गिरह एक शैतानी धागे में होती हैं और वह धागा गुद्दी पर होता है। इमाम अहमद ने अपनी मुसनद में साफ बयान किया है कि शैतान एक ररसी में गिरेह लगाता है।
495.अब्दुल्लाह रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्हों ने फरमाया कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम के सामने एक आदमी का जिक्र किया गया कि वह सुबह तक सोता रहा और नमाज के लिए भी नहीं उठा तो आपने फरमाया कि शैतान ने उसके कान में पेशाब कर दिया है। जब शैतान खाता पीता और निकाह भी करता है तो उसका गाफिल और बेनमाजी के कान में पेशाब कर देना अक्ल से दूर नही।
496.अबू हरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, हमारा बुजुर्ग और बरतर रब हर रात पहले आसमान पर उतरता है और जब आखरी, तिहाई रात बाकी रह जाती है तो आवाज देता है कि कोई है जो दुआ करे, मैं उसे कुबूल करूं, कोई है जो मुझ से मांगे, मैं उसे दूं, कोई है जो मुझसे माफी मांगे तो मैं उसे माफ करूं | अल्लाह तआला का अपने ऊपर वाले अर्श से दुनियावी आसमान पर बगैर तावील और बगैर कैफियत के उतरना बरहक है। जिस तरह उसकी जात का अर्शे अजीम पर बरकरार होना बरहक है, हमारे अस्लाफ का अकीदा है कि इस किस्म की खुबियों को जाहिरी मायने पर माना जाये, मगर यह भी अकीदा रखना चाहिए कि उसकी सिफतें मखलूक की सिफतों की तरह नहीं हैं। अल्लमा इबने कथ्यिम ने इस मौजू पर “नुजूलर्रब इला समाइद्दुनिया” नामी किताब भी लिखी है।
497.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उनसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तहज्जुद की नमाज उन्होंने फरमाया कि आप रात के शुरू में सो जाते और पिछली रात उठ कर नमाज पढ़ते, फिर अपने बिस्तर पर लौट आते, फिर जब अजान देने वाला अजान देता तो उठ खड़े होते। अगर जरूरत होती तो गुस्ल करते, वरना वुजू करके बाहर तशरीफ ले जाते। बाहर तशरीफ ले जाते। इससे मालूम हुआ कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अगर बीवियों से मिलने की जरूरत होती तो उसे तहज्जुद अदा करने के बाद पूरा करते, क्योंकि इबादतों के सिलसिले में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के यही शान के मुताबिक था।
498.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है, उनसे पूछा गया कि रमजान में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तहज्जुद की नमाज़ कैसी होती थी तो उन्होंने फरमाया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रमजान और रमजान के अलावा ग्यारह रकआत से ज्यादा नहीं पढ़ते थे, पहली चार रकआअतें ऐसी लम्बी पढ़ते कि उनकी खूबी के बारे में न पूछो और फिर आप चार रकअतें ऐसी ही पढ़तें कि उनकी खूबी और लम्बाई की हालत मत पूछो। फिर तीन रकअत वित्र पढ़ते थे। हजरता आइशा फरमाती हैं कि मैंने पूछा ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहिं वसल्लम! क्या आप वित्र पढ़ने से पहले सोते रहते हैं? तो आपने फरमाया,मेरी आंखों तो सो जाती हैं मगर मेरा दिल नहीं सोता। जिन रिवायतों में रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम का शर्त के वक्त बीस रकअतें पढ़ना बयान हुआ है, वह सब जईफ दलील पकड़ने के काबिल नहीं नमाज़ तरावीह की तादाद आठ रकअतें और तीन वित्र हैं, जैसा कि इस हदीस में बयान है।
499.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि एक बार नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम मस्जिद में दाखिल हुये तो देखा कि दो खम्मों के बीच एक रस्सी लटक रही है, आपने फरमाया यह रस्सी कैसी है? लोगों ने कहा कि यह रस्सी हजरता जैनब की लटकाई हुई है जब वह नमाज में खड़े खड़े थक जाती हैं तो इससे लटक जाती हैं। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, नहीं ऐसा हरगिज नहीं चाहिए इसे खोल दो। तुममें हर आदमी चुस्त की हालत तक नमाज पढ़े। अगर थक जाये तो बैठ जाये। मालूम हुआ कि इबादत करते वक़्त बीच की चाल इख्तियार करना चाहिए, और इसके बाद ज्यादा सख्ती की मनाही है, क्योंकि ऐसा करना इबादत की रूह के खिलाफ है। मकसद यह है कि इबादत में सख्ती ऐब है, क्योंकि ऐसा करने से दिल में नफरत पैदा हो जाती हैं, जो बुराई के काबिल हैं।
500.अब्दुल्लाह बिन अग्र बिन आस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे फरमाया, अब्दुल्लाह! फलां आदमी की तरह न हो जाना कि वह रात को उठा करता था, फिर उसने रात में कयाम करना छोड़ दिया। इस हदीस का मकसद यह है कि नेकी के काम में सहुलियत और आसानी को खयाल में रखते हुए उसे लगातार करना चाहिए।
501.उबादा बिन सामित रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हैं कि आपने फरमाया जो आदमी रात को उठे और कहे “ला इलाहा इलल्लाहु वहदहू ला शरीका लहु लहुल मुल्कु वलहुल हम्दु वहुवा अला कुल्लि शैइन कदीर, अलहम्दु लिललाहि, वसुब्हान अल्लाहि वला इलाहा इल्लल्लाहु, वल्लाहु अकबर,वला हौला वला कुव्वता इल्ला बिल्ला'' फिर यह दुआ पढ़े,“अल्लाहुम्मगफिरली'' या और कोई दुआ करे तो उसकी दुआ कुबूल होती है और अगर वुजू करके नमाज़ पढ़े तो उसकी नमाज भी कुबूल होती है। जरूरी है कि जो आदमी इस हदीस को पढ़े उसे चाहिए कि अपने अन्दर साफ नियत पैदा करे और इस अमल को गनीमत समझे।
502.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि वह तकरीर करते हुये रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जिक्र करने लगे कि आपने एक बार फरमाया, तुम्हारा भाई अब्दुल्लाह बिन रवाहा कोई बेहूदा बात नहीं कहता। कैसी अच्छी बातें सुनाता है। हम में अल्लाह के रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम हैं जो अल्लाह की किताब की तिलावत करते हैं, जब सुबह होती है तो हम तो अन्धे थे, उसने हमें हिदायत पर लगाया और हमें दिली यकीन है कि वह जो कुछ कहते हैं, वह हकीकत में सच है। रात को उनका पहलू बिस्तर से अलग रहता है, जबकि नींद की वजह से मुश्रिकों पर बिस्तर भारी होते हैं। मालूम हुआ कि तकरीर की मजलिसों में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जिक्र भलाई और बरकत का सबब है। लेकिन बनावटी ईद मीलाद की महफिलों का कोई सुबूत नहीं, यह खैरुल कुरून से बहुत बाद की पैदावार है।
503.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है उन्होंने फरमाया कि मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जमाने में एक ख्वाब देखा, जैसे मेरे हाथ में रेशम का एक टुकड़ा है। मैं जहां जाना चाहता हूँ वह मुझे उड़ा ले जाता है और मैंने यह भी देखा कि जैसे दो आदमी मेरे पास आये बाद में वह पूरी हदीस पहले बयान की जा चुकी है। इस हदीस में है कि हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो ने उसके बाद लगातार तहज्जुद पढ़ना शुरू कर दिया।
504.जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हमें तमाम कामों के लिए इस्तिखारे की तालीम देते, जैसे हमें कुरआन की कोई सूरत सिखलाया करते थे। इरशाद फरमाते कि जब कोई तुममें से किसी काम का इरादा करे तो वह फर्ज के अलावा दो रकअतें पढ़ ले, फिर यूँ कहे ऐ अल्लाह! मैं तुझ से तेरे इल्म की बदौलत भलाई चाहता हूँ और तेरी कुदरत की बदौलत ताकत चाहता हूँ और तुझ से तेरा बहुत बड़ा फजल चाहता हूँ। बेशक तू ही कुदरत रखता है और मैं कुदरत नहीं रखता हूँ और तू जानता है। मैं नहीं जानता तू ही छिपी हुई बातों का जानने वाला है। ऐ अल्लाह अगर तू जानता है कि यह काम मेरे दीन दुनिया में और मेरे काम के आगाज और अन्जाम में बेहतर है तो उसको मेरे लिए मुकद्दर फरमा दे और उसको मेरे लिए आसान कर दे और अगर तू जानता है कि यह काम मेरे लिए दीन दुनिया में और मेरे काम के आगाज में नुकसान देने वाला है तो इसको मुझ से अलग कर दे और मुझे उससे अलग कर दे और जहां कहीं भलाई हो वह मेरे लिए मुकद्दर कर दे और इसके जरीये मुझे खुश कर दे। आपने फरमाया कि फिर अपनी जरूरत का नाम ले और अल्लाह के सामने पेश करे। दरअसल इस्तिखारे की इस दुआ के जरीये बन्दा पहले तो भरोसेमन्द वादा करता है, फिर साबित कदमी और अल्लाह की तकदीर पर राजी रहने की दुआ करता है, अगर साफ दिल से अल्लाह के सामने यह दोनों बातें पेश कर दी जायें तो अल्लाह के फज्ल और करम से बन्दे के मांगे गये काम में जरूर भलाई और बरकत होगी।
505.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,उन्हों ने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसलल्लम किसी नफ़्ल नमाज का इस कद्र खयाल नहीं करते, जितना कि दो सुन्नतों का अहतिमाम करते थे। चूंकि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने फजर की सुन्नतों पर हमेशगी फरमाई है, इसलिए सफर और हजर में इनका छोड़ना सही नहीं है।
506.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है, उन्हों ने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फजर की नमाज से पहले दो रकडतें बहुत हल्की पढ़ते थे, यहां तक कि मैं अपने दिल में कहती कि आपने सूरा फातिहा भी पढ़ी है या नहीं। इस हदीस में हजरत आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो ने फज की सुन्नतों में फातिहा पढ़ने के बारे में शक जाहिर नहीं फरमाया बल्कि मतलब यह है कि बहुत हल्की पढ़ते थे, मुस्लिम की रिवायत में है कि पहली रकअत में “कूल या अय्युहल काफिरून'' और दूसरी में फातिहा पढ़ने के बारे में शक जाहिर नहीं फरमाया बल्कि मतलब यह है कि बहुत हल्की पढ़ते थे, मुस्लिम की रिवायत में है कि पहली रकअत में “कूल या अय्युहल काफिरून'' और दूसरी में “कुलहु वल्ललाहु अहद” पढ़ते थे।
507.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,उन्होंने फरमाया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे तीन बातों की हिदायत फरमाई है और जीते जी मैं इन्हें हरगिज नहीं छोडुंगा एक तो हर महीने में तीन रोजे रखना, दूसरी चाश्त की नमाज पढ़ना,तीसरे वित्र पढ़कर सोना। इस हदीस से मालूम हुआ कि जिस नमाजी को सहर के वक़्त उठने पर यकीन न हो वह नींद से पहले वित्र पढ़ ले और जिसे यकीन हो कि सुबह तहज्जुद के लिए उठेगा, वह फज निकलने से पहले वित्र अदा कर ले, जैसा कि मुस्लिम की रिवायत में इसकी वजाहत मौजूद है।
508.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जुहर से पहले चार रकअत और फजर से पहले दो रकअत सुन्नत को कभी नहीं छोड़ते थे। हजरत इब्ने उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से मरवी हदीस से मालूम होता है कि आप जुहर से पहले दो रकअत पढ़ते थे और इस हदीस से पता चलता है कि आप चार पढ़ते थे। इनमें टकराव नहीं क्योंकि दोनों हजरात ने अपनी अपनी मालूमात से आगाह किया है, मुमकिन है कि घर में चार पढ़ते हों। जैसा कि हजरत आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो का बयान है और मस्जिद में दो रकअतें ही अदा करते हों। जिनको इबने उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो ने देखा है।
509.अब्दुल्लाह मुजनी रजि अल्लाह तआला अन्हो रिवायत करते हैं, उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बयान किया कि आपने फरमाया, मगरिब की नमाज़ से पहले नफ्ल पढ़ो। दो बार फरमाया तीसरी बार यह कहा, जो कोई चाहे, इस डर से कि कहीं लोग उसे जरूरी न समझ ले। मगरिब से पहले दो रकअत पढ़ना बेहतर है, अगरचे जरूरी नहीं फिर भी इनको पढ़ना सवाब है, लेकिन जमाअत खड़ी होने से पहले पढ़ना चाहिए, और फजर की सुननतों की तरह इन्हें भी हल्का फुल्का अदा करना चाहिए।
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