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03.ईल्म का बयान (Hadith no 47-91)

 

47.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि एक बार रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मजलिस में लोगों से कुछ बयान कर रहे थे कि एक देहाती आपके पास आया और कहने लगा, कयामत कब आयेगी? रसूलुल्लाह सल्लल्लाइु अलैहि सलाम वसल्लम उसे कोई जवाब दिये बगैर अपनी बातों में लगे रहे। हाजरीन में से कुछ लोग कहने लगे, आपने देहाती की बात को सुन तो लिया, लेकिन उसे पसन्द नहीं फरमाया और कुछ कहने लगे ऐसा नहीं बल्कि आपने सुना ही नहीं। जब आप अपनी गुफ्तगू खत्म कर चुके तो आपने फरमाया: कयामत के बारे में पूछने वाला कहां हैं? देहाती ने कहा, हाँ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! मैं हाजिर हूँ। आपने फरमाया : जब अमानत जाया कर दी जाये तो कयामत का इन्तजार करो। उसने मालूम किया कि अमानत किस तरह जाया होगी? आपने फरमाया : जब जिम्मेदारी के काम नालायक लोगों के हवाले कर दिये जायें तो कयामत का इन्तजार करना। अगर से मुराद दीनी मामलात हैं, जैसे खिलाफत, फैसला करना और फतवे देना वगैरह। इससे मालूम हुआ कि दीनी जरूरियात के लिए उलमा की तरफ जाना चाहिए और इल्म वालों की जिम्मेदारी है कि वह हक तलाश करने वालों को तसल्ली बख्श जवाब दें।

 

 

48.अब्दुल्लाह बिन अम्र रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उन्होंने फरमाया: एक सफर में नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम हम से पीछे रह गये थे, फिर आप हमें इस हालत में मिले कि हम से नमाज में देर हो गई थी और हम जल्दी जल्दी वुजू कर रहे थे, हम अपने पांव खूब धोने के बजाये उन पर मसह की तरह गीले हाथ फैरने लगे। यह देखकर आपने तेज आवाज से दो या तीन बार फरमाया दोजख में जाने वाली एड़ियों के लिए बर्बादी मालूम हुआ कि जरूरत के वक् तेज आवाज से नसीहत करने में कोई हर्ज नहीं है। मुस्लिम की हदीस से मालूम होता है कि समझाने के वक् ऐसा अन्दाज नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत है

 

 

49.इबने उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उन्होंने कहा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: “पेड़ों में एक पेड़ ऐसा है जिसके पत्ते नहीं झड़ते और वह मुसलमान की तरह है। मुझे बतलायें, वह कौन-सा पेड़ है? इस पर लोगों ने जंगली पेड़ों का खयाल किया। हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर ने कहा मेरे दिल में आया कि वह खजूर का पेड़ है, लेकिन बुजुर्गों से मुझे शर्म आयी, आखिर सहाबा किराम ने कहा, आप ही बता दीजिए, वह कौनसा पेड़ है? आपने फरमाया: “वह खुजूर का पेड़ है। मालूम हुआ! कि दीन समझने और इल्म हासिल करने में शर्म नहीं करनी चाहिए, नीज यह भी मालूम हुआ कि बड़ों का अदब करते हुये उन्हें बात करने का पहले मौका दिया जाये।

 

 

50.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया: एक बार हम मस्जिद में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ बैठे हुये थे कि इतने में एक ऊंट सवार आया और अपने ऊंट को उसने मस्जिद में बिठाकर बांध दिया, फिर पूछने लगा कि तुममें से मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कौन हैं? किसी ने कहा: यह सफेद रंग वाले तकिया लगाये हुये हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं। तब वह आपसे कहने लगा अब्दुल मुत्तलिब के बेटे! इस पर आपने फरमाया: कहो! मैं तुझे जवाब देता हूँ। फिर उस आदमी ने आपसे कहा कि मैं आपसे कुछ मालूम करने वाला हूँ और उसमें सख्ती करूंगा। आप दिल में मुझ पर नाराज ना हों। फिर आपने फरमाया कोई बात नहीं जो चाहे पूछ ! तब उसने कहा: मैं आपको आपके मालिक और आपसे पहले वाले लोगों के मालिक की कसम देकर पूछता हूँ, क्या अल्लाह ताला ने आपको तमाम इन्सानों की तरफ नबी बनाकर भेजा हैं? आपने फरमाया: हाँ अल्लाह तआला गवाह है। फिर कहा: आप को अल्लाह की कसम देता हूँ। क्या अल्लाह तआला ने आपको दिन रात में पांच नमाजें पढ़ने का हुक्म दिया है? आपने फरमाया : हाँ अल्लाह तआला गवाह है। फिर कहा : मैं आपको अल्लाह की कसम देता हूँ क्या अल्लाह तआला ने साल भर में रमजान के रोजे रखने का हुक्म दिया है? आपने फरमाया: हाँ, अल्लाह गवाह है। फिर कहने लगा : मैं आपको अल्लाह की कसम देता हूँ क्या अल्लाह तआला ने आपको हुक्म दिया है कि आप हमारे मालदारों से सदका लेकर हमारे फकीरों पर तकसीम करें? आपने फरमाया, होँ अल्लाह गवाह है। उसके बाद वह आदमी कहने लगा: मैं उस शरीअत पर ईमान लाता हूँ, जो वह लाये हैं। मैं अपनी कौम का नुमाईन्दा बनकर आपकी खिदमत में हाजिर हुआ हूँ, मेरा नाम जिमाम बिन सालबा है और मैं साद बिन अबु बकर नामी कबीले से ताल्लुक रखता हूँ। इस हदीस से खबरे वाहिद (एक आदमी के बयान) पर अमल करने का सबूत मिलता है। नीज अगर दादा की शोहरत ज्यादा हो तो उसकी तरफ निस्बत करने में कोई हर्ज नहीं।

 

 

51.इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपना खत एक आदमी के साथ भेजा और उससे फरमाया कि यह खत बहरैन गर्वनर को पहुंचा दो, फिर बहरैन के हाकिम ने उसको किसरा तक पहुंचा दिया। किसरा ने उसे पढ़कर फाड़ दिया। रावी ने कहा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन पर बद-दुआ की कि अल्लाह करे वह भी टूकड़े-टूकड़े कर दिये जायें। इस हदीस से मुनावला और इल्म वालों की बातों को लिख करके दूसरे मुल्कों में भेजने का सबूत मिलता है, नीज यह भी मालूम हुआ कि गैर मुस्लिम हुकूमत से जंग का ऐलान करने से पहले उसे दीने इस्लाम की दावत दी जाये।

 

 

52.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने एक खत लिखा या लिखने का इरादा फरमाया। जब आपसे कहा गया कि वह लोग बगैर मुहर लगा खत नहीं पढ़ते तो आपने चांदी की एक अंगूठी बनवाई जिस परमुहम्मद रसूलुल्लाह’”’ के अलफाज नक्श थे। हजरत अनस का बयान है कि इसकी खुबसूरती मेरी नजर में बस गयी गोया अब भी आपके हाथ में उसकी सफेदी को देख रहा हूँ। मालूम हुआ कि चांदी की अंगूठी इस्तेमाल करना जाइज है।

 

 

53.अबू वाकिद लैसी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि एक बार रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मस्जिद में लोगों के साथ बैठे हुये थे, इतने में तीन आदमी आये। उनमें से दो तो रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास गये और एक वापस चला गया। रावी कहता है कि वह दोनों कुछ देर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास ठहरे रहे। उनमें से एक ने हलके में गुंजाईश देखी तो बैठ गया और दूसरा सबसे पीछे बैठ गया। तीसरा तो जा ही चुका था। जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तकरीर से फारिग हुये तो फरमाया : “क्या मैं तुम्हें उन तीनों आदमियों का हाल बताऊँ? उनमें से एक ने अल्लाह की तरफ रूजू किया तो अल्लाह ने भी उसे जगह दे दी और दूसरा शरमाया तो अल्लाह ने उससे शर्म की और तीसरे ने पीठ फेरी तो अल्लाह ने भी उससे मुंह मोड़ लिया।इस हदीस में अल्लाह के लिए शर्म का सबूत मिलता है। बाज इल्म वालों ने इसकी तावील की है कि इससे मुराद रहम करना और किसी को अजाब देना है, लेकिन तहकीक करने वाले अस्लाफ ने इस अन्दाज को पसन्द नहीं किया, बल्कि उनके नजदीक अल्लाह की खूबियों को ज्यों का त्यों माना जाये।

 

 

54.अबू बकर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि एक दफा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने ऊंट पर बैठे हुये थे और एक आदमी उसकी नकेल या मुहार थामे हुये था। आपने फरमाया यह कौन सा दिन हैं? लोग इस ख्याल से खामौश रहे कि शायद आप उसके असल नाम के अलावा कोई और नाम बतायेंगे। आपने फरमाया: क्या यह कुरबानी का दिन नहीं हैं? हमने अर्ज किया क्यों नहीं! फिर आपने फरमाया यह कौन सा महीना हैं? हम फिर इस ख्याल से चुप रहे कि शायद आप उसका कोई और नाम रखेंगे। आपने फरमाया, क्या यह जिलहिज्जा का महीना नहीं है? हमने कहा, क्यों नहीं! तब आपने फरमाया: “तुम्हारे खून, तुम्हारे माल और तुम्हारी इज्जतें एक दूसरे पर इस तरह हराम हैं जिस तरह कि तुम्हारे यहां इस शहर और इस महीने में इस दिन की हुरमत है। चाहिए कि जो आदमी यहां हाजिर है, वह गायब को यह खबर पहुंचा दे, इसलिए कि शायद हाजिर ऐसे आदमी को खबर दे जो इस बात को उससे ज्यादा याद रखे।तकरीर की महफिल में हाजिर रहने वाले को चाहिए कि वह इल्म और दीन की बातें गैर मौजूद लोगों तक पहुंचाये।

 

 

55.इबने मसऊद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम हमारे उकता जाने के डर से हमें तकरीर नसीहत करने के लिए वक् और मौका महल का ख्याल रखते थे। मालूम हुआ कि तकरीर करने वालों को तकरीर और नसीहत के वक् मौका और जगह का खयाल रखना चाहिए ताकि लोग उकता जायें और ही उनमें नफरत का जोश पैदा हो।

 

 

56.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: “दीन में आसानी करो, सख्ती करो और लोगों को खुशखबरी सुनाओ, उन्हें डरा डराकर नफरत करने वाला बनाओ। मालूम हुआ कि दीनी मामलात में बहुत ज्यादा सख्ती नही करनी चाहिए।

 

 

57.अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया है, रश्क जाइज नहीं मगर दो आदमियों की आदतों पर एक उस आदमी की आदत पर जिसको अल्लाह ने माल दिया हो, वह उसे हक के रास्ते में नेक कामों पर खर्च करे और दूसरे उस आदमी की आदत पर जिसे अल्लाह ने कुरआन और हदीस का इल्म दे रखा हो और वह उसके मुताबिक फैसला करता हो और लोगों को उसकी तालीम देता हो। रश्क यह है कि किसी में अच्छी खूबी देखकर इन्सान अपने लिए उसकी तमन्ना करे और अगर मकसूद यह हो कि उससे वह नेमत छिन जाये और मुझे हासिल हो जाये तो उसे हसद कहते हैं और यह बुराई के लायक है

 

 

58.महमूद बिन रवी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि मुझे अब तक नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की एक कुल्ली याद है जो आपने एक डोल से पानी लेकर मेरे चेहरे पर की थी, उस वक् मैं पांच बरस का था। मालूम हुआ कि समझदार बच्चे भी इल्म की मजलिस में हाजिर हो सकते हैं और इल्म वाले उनसे खुशी भी जाहिर कर सकते हैं।

 

 

59.अबू मूसा अशअरी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हैं कि आपने फरमाया कि अल्लाह तआला ने जो हिदायत और इल्म मुझे देकर भेजा है, उसकी मिसाल तेज बारिश की सी है। जो जमीन पर बरसे, फिर साफ और उम्दा अच्छी जमीन तो पानी को जज्ब कर लेती है और बहुत सी घास और सब्जा उगाती है, जबकि सख्त जमीन पानी को रोकती है, फिर अल्लाह तआला उससे लोगों को फायदा पहुंचाता है। लोग खुद भी पीते हैं और जानवरों को भी पिलाते हैं और उसके जरीये खेती-बाड़ी भी करते हैं। और कुछ बारिश ऐसे हिस्से पर बरसी जो साफ और चटीला मैदान था, वह ना तो पानी को रोकता है और ना ही सब्जा उगाता है, पस यही मिसाल उस आदमी की है, जिसने अल्लाह के दीन में समझ हासिल की और जो तालीमात देकर अल्लाह तआला ने मुझे भेजा है, उनसे उसे फायदा हुआ। यानी उसने उन्हें खुद सीखा और दूसरों को सिखाया और यहीं उस आदमी की मिसाल है जिसने सर तक ना उठाया और अल्लाह की हिदायत को जो मैं देकर भेजा गया हूँ, कुबूल किया।

 

 

60.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि रसूलुरलाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाकयामत की निशानियों में से है कि इल्म उठ जायेगा और जिहालत फैल जायेगी। शराब बहुत ज्यादा पी जायेगी और जिनाकारी आम हो जायेगी।औरतें ज्यादा और मर्द कम होंगे, यहां तक कि एक मर्द पचास औरतों का सरदार होगा। कयामत के करीब मर्दों के कम और औरतों के ज्यादा होने की वजह यह बयान की जाती है कि ऐसे हालात में लड़ाईयां बहुत होगी। एक हुकूमत दूसरी पर चढ़ाई करेगी, उन लड़ाईयों में मर्द मारे जायेंगे और औरतें ज्यादा बाकी रह जायेगी।

 

 

61.इबने उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि मैंने रसूलुल्लाह अलैहि वसल्लम से सुना, आप फरमा रहे थे कि मैं एक बार सो रहा था, मेरे सामने दूध का प्याला लाया गया। मैंने उसे पी लिया, यहा तक कि सैराबी मेरे नाखूनों से जाहिर होने लगी, फिर मैंने अपना बचा हुआ दूध हजरत उमर बिन खत्ताब को दे दिया। सहाबा किराम ने अर्ज किया अल्लाह के रसूल! आपने इसकी क्या ताबीर की? आपने फरमाया कि इसकी ताबीरइल्महै। मालूम हुआ कि ख्वाब में दूध पीने की ताबीर इल्म का हासिल करना है, नीज अगर दूध की सैराबी को नाखूनों में देखे तो उससे इल्म की सैराबी और फरावानी मुराद ली जा सकती है।

 

 

62.अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने आखरी हज के वक् मिना में उन लोगों के लिए खड़े थे जो आपसे सवाल पूछ रहे थे। एक आदमी आया और कहने लगा, मुझे ख्याल नहीं रहा, मैंने कुरबानी से पहले अपना सर मुंडवा लिया है। आपने फरमाया: अब कुर्बानी कर लो, कोई हर्ज नहीं। फिर एक आदमी आया और अर्ज किया, इल्म होने से मैंने कंकरियां मारने से पहले कुरबानी कर ली। आपने फरमाया : अब रमी कर लो, कोई हर्ज नहीं। हजरत अब्दुल्लाह बिन अम्र कहते हैं कि उस दिन आप से जिस बात के बारे में पूछा गया, जो किसी ने पहले कर ली या बाद में तो आपने फरमाया: अब कर लो कुछ हर्ज नहीं।

 

 

63.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो नबी सल्लल्लाहु अलैहिं वसल्लम से बयान करते हैं कि आपने फरमाया: आने वाले जमाने में इल्म उठा लिया जायेगा, जिहालत और फितने गालिब होंगे और हर्ज ज्यादा होगा।अर्ज किया गया : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! हर्ज क्या चीज हैं? आपने अपने हाथ मुबारक से इस तरह तिरछा इशारा करके फरमाया, जैसे कि आपकी मुराद कत्ल थी।

 

 

64.असमा बिन्ते अबू बकर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उन्होंने कहा कि मैं हजरता आइशा के पास आयी, वह नमाज पढ़ रही थी। मैंने कहा, लोगों का क्या हाल है, यानी वह परेशान क्यों हैं? उन्होंने आसमान की तरफ इशारा किया, यानी देखो सूरज ग्रहण लगा हुआ है, इतने में लोग सूरज ग्रहण की नमाज के लिए खड़े हुये तो हजरता आइशा ने कहा: सुब्हानअल्लाह! मैंने पूछा यह ग्रहण क्या कोई अजाब या कयामत की निशानी है ? उन्होंने सर से इशारा किया कि हाँ, फिर मैं भी नमाज के लिए खड़ी हो गई, यहां तक कि मैं बेहोश होने लगी तो मैंने अपने सर पर पानी डालना शुरू कर दिया जब नमाज खत्म हो चुकी तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अल्लाह तआला की तारीफ बयान की और फरमाया: “जो चीजें अब तक मुझे ना दिखाई गई थी, उनको मैंने अपनी इस जगह से देख लिया है, यहां तक कि जन्नत और दोजख को भी और मेरी तरफ यह वह् भेजी गई कि कब्रों में तुम्हारी आजमाइश होगी, जैसे मसीहे दज्जाल या इसके करीब करीब फितने से आजमाये जाओगे। रावी कहता है, मुझे याद नहीं कि हजरता असमा ने कौनसा लफ्ज कहा था और कहा जायेगा कि तुझे उस आदमी यानी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बारे में क्या अकीदा है? ईमानदार या यकीन रखने वाला कहेगा कि हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं जो हमारे पास खुली निशानियां और हिदायत लेकर आये थे, हमने उनका कहा माना और उनकी पैरवी की, यह मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं, तीन बार ऐसा ही कहेगा, चूनांचे उससे कहा जायेगा, तू मजे से सो जा, बेशक हमने जान लिया कि तू मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ईमान रखता है और मुनाफिक या शक करने वाला कहेगा कि मैं कुछ नहीं जानता, हाँ लोगों को जो कहते सुना मै भी वहीं कहने लगा। इस हदीस से कब्र के अजाब और उसमें फरिश्तों का सवाल करना साबित होता है, नीज जो इन्सान रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की रिसालत पर शक करता है, वह इस्लाम के दायरे से निकल जाता है और यह भी मालूम हुआ कि हल्की बेहोशी पड़ने से वुजू नहीं टूटता

 

 

65.उकबा बिन हारिस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उन्होंने अबू इहाब बिन अजीज की बेटी से निकाह किया। फिर एक औरत आयी और कहने लगी कि मैंने उक्बा और उसकी बीवी को दूध पिलाया है। उकबा ने कहा कि मुझे तो इल्म नहीं है कि तूने मुझे दूध पिलाया है और पहले तुमने इसकी खबर दी, फिर उक्बा सवार होकर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास मदीना मुनव्वरा गये और आपने मसअला पूछा तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: “तू उस औरत से कैसे मिलेगा जब कि ऐसी बात कही गई है, आखिर हजरत उक्बा ने उस औरत को छोड़ दिया और उसने किसी दूसरे आदमी से शादी कर ली। इस हदीस से उन शकों की तफ्सीर होती है, जिनसे बचने को कहा गया है।

 

 

66.अबू मसऊद अन्सारी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि एक आदमी ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाजिर होकर अर्ज किया अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! मेरे ही लिए नमाज जमाअत से पढ़ना मुश्किल हो गया है, क्योंकि फलां आदमी नमाज बहुत लम्बी पढ़ाते हैं। हजरत अबू मसऊद अन्सारी कहते हैं कि मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को नसीहत के वक् उस दिन से ज्यादा कभी गुस्से में नहीं देखा। आपने फरमाया, लोगो! तुम दीन से नफरत दिलाने वाले हो। देखो जो कोई लोगों को नमाज पढ़ाये उसे चाहिए कि हल्की नमाज पढ़ाये, क्योंकि पीछे नमाज पढ़ने वालों में बीमार, कमजोर और जरूरतमन्द भी होते हैं। मालूम हुआ कि मस्जिद के इमामों को अपने पीछे नमाज पढ़ने वालों का ख्याल रखना चाहिए, नीज गुस्सा की हालत में फैसला या फतवा देना, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खुसूसियत है, दूसरों को इसकी इजाजत नहीं। मगर यह कि इन्सान पर गुस्से का असर हो।

 

 

67.जैद बिन खालिद जुहनी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम से गिरी हुई चीज के बारे में पूछा गया तो आपने फरमाया: “उसके बन्धन या बरतन और थैली की पहचान रख और एक साल तक लोगों में उसका ऐलान करता रह,फिर उससे फायदा उठा, इस दौरान अगर उसका मालिक जाये तो उसके हवाले कर दे।फिर उस आदमी ने पूछा कि गुमशुदा ऊंट का क्या हुक्म है? यह सुनकर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस कदर गुस्सा हुये कि आपका चेहरा सुर्ख हो गया और फरमाया कि तुझे ऊंट से क्या गर्ज है? उसकी मश्क और उसका मोजा उसके साथ है, जब पानी पर पहुंचेगा, पानी पी लेगा और पेड़ से चरेगा, उसे छोड़ दे, यहां तक कि उसका मालिक उसको पा ले। फिर उस आदमी ने कहा, अच्छा गुमशुदा बकरी? आपने फरमाया: “वह तुम्हारी या तुम्हारे भाई असल मालिक या भेड़िये की है।

 

 

68.अबू मूसा अशअरी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि एक बार नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से चन्द ऐसी बातें पूछी गयीं जो आपके मिजाज के खिलाफ थीं। जब इस किस्म के सवालात की आपके सामने तकरीर की गई तो आपको गुस्सा गया और फरमाया, अच्छा जो चाहो, मुझ से पूछो। उस पर एक आदमी ने अर्ज किया, मेरा बाप कौन है? आपने फरमाया, तेरा बाप हुजाफा है, फिर दूसरे आदमी ने खड़े होकर कहा, या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरा बाप कौन है? आपने फरमाया, तेरा बाप सालिम हैं, जो शैबा का गुलाम है। फिर जब हजरत उमर ने आपके चेहरे पर गजब के निशान देखे तो कहने लगे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! हम अल्लाह तआला की बारगाह में तौबा करते है। मालूम हुआ कि ज्यादा सवालात के लिए तकलीफ उठाना नापसन्दीदा अमल है।

 

 

69.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब कोई अहम बात फरमाते तो उसे तीन बार दोहराते, यहां तक कि उसे अच्छी तरह समझ लिया जाये और जब किसी कौम के पास तशरीफ ले जाते तो उन्हें तीन बार सलाम भी फरमाते थे। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का खास वक्त में तीन बार सलाम करने का अमल था, जैसे किसी के घर में आने की इजाजत तलब करते वक् ऐसा होता था या एक बार सलाम, इजाजत के लिए, दूसरा जब उनके पास जाते और तीसरा जब उनके पास से वापस होते। आम हालात में तीन बार सलाम करना आपके अमल से साबित नहीं।

 

 

70.अबू मूसा अशअरी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: तीन आदमी ऐसे हैं, जिनको दोगुना सवाब मिलेगा। एक वह आदमी जो अहले किताब में से अपने नबी पर और फिर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ईमान लाये और दूसरे वह गुलाम जो अल्लाह और अपने मालिकों का हक अदा करता रहे और तीसरा वह जिसके पास उसकी लौण्डी हो, जिससे ताल्लुकात कायम करता हो, फिर उसे अच्छी तरह तालीम और अदब सिखा कर आजाद कर दे उसके बाद उससे निकाह कर ले तो उसको दोहरा सवाब मिलेगा।

 

 

71.इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ईद के दिन मर्दों की सफ से औरतों की तरफ निकले और आपके साथ हजरत बिलाल थे। आपको ख्याल हुआ कि शायद औरतों तक मेरी आवाज नहीं पहुंची, इसलिए आपने उनको नसीहत फरमायी और सदका खैरात देने का हुक्म दिया तो कोई औरत अपनी बाली और अंगूठी डालने लगी और हजरत बिलाल उन जेवरात को अपने कपड़े में जमा करने लगे। मालूम हुआ कि सदका खैरात के लिए सिफारिश करना बड़े सवाब का काम है। औरतों को अपनी अंगूठी, छल्ला, हार, गलूबन्द, और बालियां पहनना जाइज है। 

 

 

72.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि मैंने अर्ज किया रसूलुल्लाह! कयामत के दिन आपकी सिफारिश से कौन ज्यादा हिस्सा पायेगा तो आपने फरमाया: अबू हुरैरा! मेरा ख्याल था कि तुमसे पहले कोई मुझ से यह बात नहीं पूछेगा, क्योंकि मैं देखता हूँ कि तुझे हदीस का बहुत हिस्र है। कयामत के दिन मेरी शिफाअत से सबसे ज्यादा खुश किस्मत वह आदमी होगा, जिसने अपने दिल या साफ नियत सेला इलाहाकहा हो। दिल से कलमा--इख्लास कहने का मत्तलब यह है कि अल्लाह के साथ किसी को

शरीक करें, क्योंकि जो आदमी शिर्क करता है, उसका सिर्फ जुबानी दावा है, दिल से उसका इकरार नहीं करता।

 

 

73.अब्दुल्लाह बिन अम्न बिन आस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने कहा, मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वबसल्लम को यह फरमाते हुये सुना कि अल्लाह तआला इल्मे दीन को ऐसे नहीं उठायेगा कि बन्दों के सीनों से निकाल ले, बल्कि अहले इल्म को मौत देकर इल्म को उठायेगा। जब कोई आलिम बाकी नहीं रहेगा तो लोग जाहिलों को सरदार बना लेंगे और उनसे मसायल पूछें जायेंगे। तो वह बगैर इल्म के फतवे देकर खुद भी गुमराह होंगे और दूसरों को भी गुमराह करेंगे। इस से यह भी मालूम हुआ कि दीनी मामलात में फुजूल राय कायम करना और बिना वजह कयास करना मजम्मत के लायक है।

 

 

74.अबू सईद खुदरी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि चन्द औरतों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अर्ज किया कि मर्द आप से फायदा उठाने में हमसे आगे बढ़ गये हैं। इसलिए आप अपनी तरफ से हमारे लिए कोई दिन मुकर्रर फरमां दें आपने उनकी मुलाकात के लिए एक दिन का वादा कर लिया, चूनांचे उस दिन आपने नसीहत फरमायी और शरीअत के अहकाम बताये। आपने उन्हें जिन बातों की तलकीन फरमायी, उनमें एक यह भी थी कि तुममें से जो औरत अपने तीन बच्चे आगे भेज देगी तो वह उसके लिए दोजख की आग से पर्दा बन जायेंगे। एक औरत ने अर्ज किया अगर कोई दो भेजे तो? आपने फरमाया कि दो का भी यही हुक्म है और हजरत अबू हुरैरा की रिवायत में यह ज्यादा है कि वह तीन बच्चे जो गुनाह की उम्न यानी जवानी तक पहुंचे हों  मतलब यह है कि अगर किसी औरत के तीन बच्चे मर जायें और वह सब्र से काम ले तो यह बच्चे कयामत के दिन जहन्नम से ओट बन जायेंगे दूसरी रिवायत में है कि एक बच्चा बल्कि कच्चा बच्चा भी जहननम से रूकावट का सबब है।

 

 

75.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: कयामत के दिन जिसका हिसाब हो, उसे अजाब दिया जायेगा। इस पर हजरता आइशा ने अर्ज किया कि अल्लाह तआला तो फरमाता है, उसका हिसाब आसानी से लिया जायेगा। आपने फरमाया यह हिसाब नहीं है बल्कि इससे मुराद आमाल की पेशी है, लेकिन जिससे हिसाब में जांच पड़ताल की गई वह जरूर तबाह हो जायेगा। मालूम हुआ कि अगर दीनी मसले में किसी को शक हो तो सवाल के जरीये उसका हल तलाश करना चाहिए।

 

 

76.अबू शुरैह रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से फतह मक्का के दिन एक ऐसी बात महफूज की, जिसे मेरे कानों ने सुना, दिल ने उसे याद रखा और मेरी दोनों आंखों ने आपको देखा, जब आपने यह हदीस बयान फरमायी। आपने अल्लाह की बड़ाई बयान करने के बाद फरमाया कि मक्का में लड़ाई और झगड़ा करना अल्लाह ने हराम किया है, लोगों ने हराम नहीं किया, लिहाजा अगर कोई आदमी अल्लाह और आखिरत पर ईमान रखता हो तो उसके लिए जाइज नहीं कि मक्का में मार काट करे या वहां से कोई पेड़ काटे। अगर कोई आदमी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लड़ाई करने से झगड़े को जाइज करार दे तो उससे कह देना कि अल्लाह ने अपने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तो इजाजत दी थी, लेकिन तुम्हें नहीं दी और मुझे भी दिन में कुछ वक् के लिए इजाजत थी और आज इसकी इज्जत फिर वैसी ही हो गई, जैसे कल थी। जो आदमी यहां हाजिर है, उसे चाहिए कि गायब को यह खबर पहुंचा दे।

 

 

77.हज़रत अली रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुना, आप फरमा रहे थेदेखो कि मुझ पर झूट बांधना, क्योंकि जो आदमी मुझ पर झूट बांघेगा वह जरूर दोजख में जायेगा।हजरता सलमा बिन अकवा से रिवायत है, उन्होंने कहा कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह फरमाते हुये सुना है कि जो आदमी मुझ पर वह बात लगाये जो मैंने नहीं कही तो वह अपना ठिकाना आग में बना ले। यह वादा हर तरह के झूट को शामिल है जो लोग तरगीब और तरहीब के बारे में बे-असल हदीसें बयान करते हैं, वह इसी दायरे में आते हैं।

 

 

78.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, कि मेरे नाम मुहम्मद और अहमद पर नाम रखो, मगर मेरी कुन्नियत अबुलकासिम पर रखो और यकीन करो, जिसने मुझे ख्याब में देखा, उसने यकीनन मुझ को देखा है, क्योंकि शैतान मेरी सूरत में नहीं सकता और जो जानबूझ कर मुझ पर झूट बांधे वह अपना ठिकाना जहन्नम में बना ले।

 

 

79.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अल्लाह तआला ने मक्का से कत्ल या हाथी को रोक दिया और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और ईमान वालों को काफिरों पर गालिब कर दिया, खबरदार मक्का मुझ से पहले किसी के लिए हलाल नहीं हुआ और ना मेरे बाद किसी के लिए हलाल होगा, खबरदार! यह मेरे लिए भी दिन में एक घड़ी के लिए हलाल हुआ था। खबरदार! यह इस वक् भी हराम है। यहां के काटे काटे जायें, यहां के पेड़ काटे जायें। ऐलान करने वाले के सिवा वहां की गिरी हुई चीज कोई ना उठाये और जिस का कोई अजीज मारा जाये, उसको दो में से एक का इख्तयार है। दण्ड कबूल कर ले या बदला ले ले, इतने में एक यमनी आदमी आया और उसने अर्ज किया अल्लाह के रसूल सल्लललाहु अलैहि सलाम वसल्लम! यह बातें मुझे लिख दीजिए। आपने फरमाया, अच्छा अबू फुलां को लिख दो। कुरैश के एक आदमी ने अर्ज किया या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! मगर इजखिर (खुशबूदार घास) के काटने की इजाजत दे दीजिये, इसलिए कि हम इसे अपने घरों और कब्रों में इस्तेमाल करते हैं। तो आपने हाँ काट सकते हो।

 

 

80.इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,उन्होंने फरमाया कि जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बहुत बीमार हो गये तो आपने फरमाया कि लिखने का सामान लाओ ताकि मैं तुम्हारे लिए एक तहरीर लिख दूं। जिसके बाद तुम गुमराह नहीं होगे। हजरत उमर ने कहा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर बीमारी का गल्वा है और हमारे पास अल्लाह की किताब मौजूद है, वह हमें काफी है, लोगों ने इख्तिलाफ शुरू कर दिया और शौर मच गया, तब आपने फरमाया: मेरे पास से उठ जाओ, मेरे यहां लड़ाई झगड़े का कया काम है? हजरत उमर का मकसद आपके हुक्म की खिलाफवर्जी करना मकसूद था, बल्कि आपने ऐसा मुहब्बत की खातिर फरमाया, वरना रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इसके बाद चार रोज तक जिन्दा रहे और दूसरे अहकाम नाफिज फरमाते रहे, जबकि तहरीर के बारे में आपने खामोशी इख्तियार फरमायी। मालूम हुआ कि हजरत उमर की राय से आपको इत्तिफाक था याद रहे कि लिखने का सामान लाने का यह हुक्म आपने हजरत अली को दिया था।

 

 

81.उम्मे सलमा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने कहा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक रात जागे तो फरमाया: सुब्हान अल्लाह! आज रात कितने फितने नाजिल किये गये, और कितने खजाने खोले गये। इन कमरों में सोने वालियों को जगाओ क्योंकि दुनिया में बहुत सी कपड़े पहनने वालियां ऐसी हैं जो आखिरत में नंगी होंगी।

 

 

82.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि नबी सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी आखरी उम्र में हमें इशा की नमाज पढ़ाई, जब सलाम के बाद खड़े हो गये तो फरमाया तुम इस रात की अहमियत को जानते हो, आज की रात से सौ बरस बाद कोई आदमी जो अब जमीन पर मौजूद है जिन्दा नहीं रहेगा। इस हदीस से यह भी मालूम होता है कि हजरत खिज़्र अब जिन्दा नहीं हैं, क्योंकि इस हदीस के मुताबिक सौ साल बाद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखने वाला कोई भी जिन्दा नहीं रहा।

 

 

83.अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मैंने एक रात रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बीवी मैमूना बिन्ते हारिस के यहां गुजारी। इस रात रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी इन्हीं के पास थे। आपने इशा मस्जिद में अदा की, फिर अपने घर तशरीफ लाये और चार रकअते पढ़ कर सो गये, फिर जागे और फरमाया, क्या बच्चा सो गया है? या कुछ ऐसा ही फरमाया और फिर नमाज पढ़ने लगे, मैं भी आपके बायीं तरफ खड़ा हो गया, आपने मुझे अपनी दायीं तरफ कर लिया और पांच रकाअतें पढ़ी, उसके बाद दो रकाअत सुन्नते फजर अदा कीं, फिर सो गये, यहां तक कि मैंने आपके खर्राटे भरने की आवाज सुनी, फिर सुबह की नमाज के लिए बाहर तशरीफ ले गये।

यह आपकी खासियत थी कि सोने से आपका वजू नहीं टूटता था, क्योंकि हदीस में है कि रसूलुल्लाह की आंखें सोती हैं, दिल नहीं सोता।

 

 

84.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,उन्होंने फरमाया, लोग कहते हैं अबू हुरैरा ने बहुत हदीसें बयान की हैं, हालांकि अगर किताबुल्लाह में दो आयतें होतीं तो मैं भी हदीस बयान करता,फिर उन्होंने उन आयतों की तिलावत की।जो लोग छुपाते हैं, उन खुली हुई निशानियों और हिदायत की बातों को जो हमने नाजिल कीं अर्रहीम तक बेशक हमारे मुहाजिर भाई बाजार में बेचने खरीदने में मशगूल रहते थे और हमारे अन्सारी भाई माल और खेती-बाड़ी के काम में लगे रहते थे, लेकिन अबू हुरैरा तो अपना पेट भरने के लिए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास मौजूद रहता था और ऐसे मौके पर हाजिर रहता, जहां लोग हाजिर रहते और वह बातें याद कर लेता जो दूसरे लोग नहीं याद कर सकते थे।

 

 

85.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है कि उन्होंने फरमाया, मैंने अर्ज किया कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! मैं आपसे बहुत सी हदीसें सुनता हूँ, लेकिन भूल जाता हूँ। आपने फरमाया: अपनी चादर बिछाओ। चूनाचे मैंने चादर बिछाई तो आपने अपने दोनों हाथों से चुल्लू सा बनाया और चादर में डाल दिया, फिर फरमाया कि इसे अपने ऊपर लपेट लो। मैंने उसे लपेट लिया, उसके बाद मैं कोई चीज भूला। यह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम का करिश्मा था कि हजरत अबू हुरैरा से भूल को खत्म कर दिया गया, जो इन्सान को लाजिम है।

 

 

86.जरीर बिन अब्दुल्लाह रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने आखरी हज के मौके पर उन से फरमाया: लोगों को खामोश कराओ, उसके बाद आपने फरमाया, लोगो! मेरे बाद एक दूसरे की गर्दने मारकर काफिर बन जाना। इससे मुराद कुफरे हकीकी नहीं, बल्कि काफिरों का सा काम मुराद है, वरना मुसलमान को कत्ल करने वाला काफिर नहीं होता, हां! अगर इस कत्ल को हलाल समझता है तो ऐसा इन्सान इस्लाम के दायरे से खारिज है।

 

 

87.उबय्यि-बिन--- रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: मूसा अलैहि सलाम एक दिन बनी इस्राईल को समझाने के लिए खड़े हुये तो उनसे पूछा गया कि लोगों में सबसे बड़ा आलिम कौन हैं? उन्होंने कहा: मैं हूँ, अल्लाह ने उन पर नाराजगी जताई, क्योंकि उन्होंने इल्म को अल्लाह के हवाले किया, फिर अल्लाह ने उन पर वहय भेजी कि मेरे बन्दों में एक बन्दा जहां दो दरिया मिलते हैं, ऐसा है जो तुझ से ज्यादा इल्म रखता है। मूसा अलैहि सलाम ने कहा: अल्लाह मेरी उनसे कैसे मुलाकात होगी? हुक्म हुआ कि एक मछली को थैले में रखों जहां वह गुम हो जाये, वहीं उसका ठिकाना है। फिर मूसा अलैहि सलाम रवाना हुये और उनका नौकर यूशा बिन नून भी साथ था उन दोनों ने एक मछली को थैले में रख लिया। जब एक पत्थर के पास पहुंचे तो दोनों अपने सर उस पर रखकर सो गये, इस दौरान मछली थैले से निकल कर दरिया में चली गई, जिससे मूसा अलैहि सलाम और उनके नौकर को अचम्भा हुआ। फिर दोनों बाकी रात और एक दिन चलते रहे, सुबह को मूसा अलैहि सलाम ने अपने नौकर से कहा कि नाश्ता लाओ हम तो इस सफर से थक गये हैं। मूसा अलैहि सलाम जब तक उस जगह से आगे नहीं निकल गये, जिसका उन्हें हुक्म दिया गया था, उस वक् तक उन्होंने कुछ थकावट महसूस की। उस वक् उनके नौकर ने कहा: क्या आपने देखा कि जब हम पत्थर के पास बैठे थे तो मछली निकल भागी थी और मैं उसका जिक्र करना भूल गया। मूसा अलेहि सलाम ने कहा, हम इसी की तलाश में थे। आखिर वह दोनों खोज लगाते हुये अपने पैरों के निशानों पर वापिस लौटे। जब उस पत्थर के पास पहुंचे तो देखा कि एक आदमी कपड़ा लपेटे हुये या अपने कपड़ों में लिपटा हुआ है। मूसा अलैहिं सलाम ने उसे सलाम किया खिज़्र अलैहि सलाम ने कहा कि तेरे मुल्क में सलाम कहां से आया? मूसा अलैहि सलाम ने जवाब दिया कि मैं यहां का रहने वाला नहीं हूँ बल्कि मैं मूसा हूँ। खिज़्र अलैहि सलाम ने कहा, क्या बनी इस्राईल के मूसा हो? उन्होंने कहा! हाँ! फिर मूसा अलैहि सलाम ने कहा, क्या मैं इस उम्मीद पर तुम्हारे साथ हो जाऊँ कि जो कुछ हिदायत की तुम्हें तालीम दी गई है, वह मुझे भी सिखा दोगे। खिज़र सफदर अलैहि सलाम ने कहा: तुम मेरे साथ रह कर सब्र नहीं कर सकोगे मूसा बात दरअसल यह है कि अल्लाह तआला ने एक किस्म का इल्म मुझे दिया है जो तुम्हारे पास नहीं है और आपको एक किस्म का इल्म दिया जो मेरे पास नहीं है। मूसा अलैहि सलाम ने कहा: इन्शा अल्लाह तुम मुझे सब्र करने वाला पाओगे और मैं किसी काम में आपकी नाफरमानी नहीं करूंगा। फिर वह दोनों समन्दर के किनारे चले। उनके पास कोई कश्ती ना थी। इतने में एक कश्ती गुजरी, उन्होंने कश्ती वाले से कहा कि हमें सवार कर लो। खिज़्र अलैहि सलाम पहचान लिये गये। इसलिए कश्ती वाले ने बगैर किराया लिये बिठा लिया, इतने में एक चिड़िया आयी और कश्ती के किनारे बैठ गई, उसने समन्दर में एक दो चोंच मारीं। खिज़र कहने लगे : मूसा मेरे और तुम्हारे इल्म ने अल्लाह के इल्म से सिर्फ चिड़िया की चोंच की मिकदार हिस्सा लिया है। फिर खिज़्र अलेहि सलाम ने कश्ती के तख्तों में से एक तख्ता उखाड़ डाला। मूसा अलहि सलाम कहने लगे, इन लोगों ने तो हमें बगैर किराये के सवार किया और आपने यह काम किया कि इनकी कश्ती में छेद कर डाला ताकि कश्ती वालों को डूबा दो? खिज़्र अलैहि सलाम ने फरमाया: क्या मैंने कहा था कि तुम मेरे साथ रहकर सब्र नहीं कर सकोगे। मूसा अलैहि सलाम ने जवाब दिया: मेरी भूल चूक पर पकड़ करके मेरे कामों में मुझ पर तंगी ना करो। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि मूसा अलैहि सलाम का पहला एतराज भूल की वजह से था। फिर दोनों कश्ती से उतरकर चले। एक लड़का मिला जो दूसरे लड़कों के साथ खेल रहा था। खिज़र अलैहि सलाम ने उसका सर पकड़कर अलग कर दिया। मूसा अलैहि सलाम ने कहा: आपने एक मासूम जान को नाहक कत्ल कर दिया खिज़्र अलैहि सलाम ने कहा: मैंने आपसे नहीं कहा था कि आपसे मेरे साथ सब्र नहीं हो सकेगा। इबने उऐना कहते हैं कि पहले जवाब के मुकाबिल इसमें ज्यादा ताकीद थी। फिर दोनों चलते चलते एक गांव के पास पहुंचे। वहां के रहने वालों से उन्होंने खाना मांगा। गांव वालों ने उनकी मेहमानी करने से साफ इनकार कर दिया। इसी दौरान दोनों ने एक दीवार देखी जो गिरने के करीब थी, खिज़र अलैहि सलाम ने उसे अपने हाथ से सहारा देकर सीधा कर दिया मूसा अलैहि सलाम ने कहा, अगर तुम चाहते तो इस पर मजदूरी ले लेते, खिज़र अलैहि सलाम बोले, बस यहां से हमारे तुम्हारे बीच जुदाई का वक् पहुंचा है रसूलुल्लाह सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया, अल्लाह तआला मूसा अलैहि सलाम पर रहम फरमाये। हम चाहते थे कि काश मूसा अलैहि सलामसब्र करते तो उनके मजीद हालात हमसे बयान किये जाते। हजरत खिज़्र अलैहि सलाम हजरत मूसा अलैहि सलाम से अफजल थे, लेकिन आपका यह कहना कि मैं सब से ज्यादा इल्म रखता हूँ, अल्लाह तआला को पसन्द आया। उन्हें चाहिए था कि इस बात को अल्लाह के हवाले कर देते। चूनांचे उनका मुकाबला ऐसे इन्सान से कराया गया जो उनसे दर्जे में कहीं कम था, ताकि फिर कभी इस किस्म का दावा ना करें।

 

 

 

88.अबू मूसा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में एक आदमी आया और पूछने लगा अल्लाह के रसूल | कि सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम!अल्लाह की राह में लड़ना किसे कहते हैं? क्योंकि हममें से कोई गुस्सा की वजह से लड़ता है और कोई इज्जत की खातिर जंग करता हैं आपने फरमाया:आदमी इसलिए लड़े कि अल्लाह का बोल-बाला हो तो ऐसी लड़ाई अल्लाह की राह में है। मतलब यह है कि अगर शागिर्द खड़ा हो और उस्ताद बैठे बैठे उसको जवाब दे दे तो इसमें कोई बुराई नहीं, बशर्ते कि खुद पसन्दी और घमण्ड की बिना पर ऐसा करें। इसी तरह खड़े खड़े सवाल करना भी ठीक हैं। और यहां सवाल खड़े खड़े किया गया था।

 

 

89.अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मैं एक बार रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ मदीना के खण्डरों में चल रहा था और आप खुजूर की छड़ी के सहारे चल रहे थे। रास्ते में चन्द यहूदियों पर गुजर हुआ। उन्होंने आपस में कहा कि उनसे रूह के बारे में सवाल करो। उनमें से एक ने कहा कि हम ऐसा सवाल करें कि जिसके जवाब में वह ऐसी बात कहें जो तुम्हे ना-गंवार गुजरे। बाज ने कहा: हम तो जरूर पूछेंगे। आखिर उनमें से एक आदमी खड़ा हुआ और कहने लगा, अबू कासिम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! रूह क्या चीज हैं आप खामोश रहे, मैंने दिल में कहा कि आप पर वहय रही है और खुद खड़ा हो गया, जब वहय की हालत जाती रही तो आपने यह आयत तिलावत की पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! यह लोग आपसे रूह के मुताल्लिक पूछते हैं, कह दो कि रूह मेरे मालिक का हुक्म है। और इसकी हकीकत यह नहीं जान सकते, क्योंकि तुम्हें बहुत कम इल्म दिया गया है।

 

 

 

90.उम्मे सलमा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उम्मे सुलैम रजि अल्लाह तआला अन्हो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आयीं और मालूम किया कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह तआला हक बात बयान करने से नहीं शरमाता, क्या औरत को एहतिलाम (वीर्य पतन) हो तो उसे नहाना चाहिए। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, हाँ! अपने कपड़े पर पानी देखे। उम्मे सलमा रजि अल्लाह तआला अन्हो ने (शर्म से)अपना मुंह छिपा लिया और अर्ज किया अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! क्या औरत को भी एहतिलाम होता है? आपने फरमाया, हाँ, तेरा हाथ खाक आलूद हो, फिर बच्चे की सूरत माँ से क्यों मिलती? अगर किसी को कोई मसला पेश जाये तो उसे जानने वालों से मालूम करना चाहिए, शर्म और हया से काम लिया जाये।

 

 

 

91.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि एक आदमी मस्जिद में खड़ा हुआ और कहने लगा कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! आप हमें एहराम बांधने का किस जगह से हुक्म देते हैं? आपने फरमाया: मदीना वाले जुल-हुलैफा से, शाम के लोग जोहफा से, और नज्द वाले कर्नध मनाजिल से एहराम बांधे इब्ने रजि अल्लाह तआला अन्हो ने कहा: लोग कहते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह भी फरमाया कि यमन वाले -लम-लम से एहराम बांधे लेकिन मुझे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से यह बात याद नहीं है। मालूम हुआ कि मस्जिद में इल्मे दीन पढ़ना, पढ़ाना, फतव देना, मुकदमात का फैसला करना और दीनी बहस करना जाइज है। अगरचे आवाज ऊंची ही क्यों हो जाये, क्योंकि यह सब दीनी काम हैं जो मस्जिद में अन्जाम दिये जा सकते हैं।

 

 

 

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  "मै शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से वो बड़ा ही निहायत रहम और करम करने वाला है अल्लाह के सिवा कोई माबूद नही ओर सभी तारीफ अल्लाह ही के लिए है " उमर बिन खताब रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते है कि "सवाब के तमाम काम नियतो पर टिके है और हर व्यक्ति को उसकी नीयत के मुताबिक इनाम मिलेगा। इसलिए जो कोई दुनिया कमाने या किसी औरत के साथ शादी करने के लिए वतन छोड़ता है, तो उसकी हिज़रत उसी काम के लिए है जिसके लिए उसने हिज़रत की होगी।  वाजेह रहे कि हर अच्छे काम के लिए आपकी नियत भी अच्छी होनी चाइये वरना न सिर्फ सवाब से महरूमी होगी बल्कि अल्लाह के यहा सख्त सजा का डर भी है ओर जो अमाल खालिस दिल से मुताल्लिक है मसलन डर व उम्मीद वगैरा, इनमे नियत की कोई जरूरत नही। नीज़ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ नुजुले वहय का सबब आपका इख्लास ए नियत है। Note:- "वहय" जो आगे कई बार आएगा उसका मतलब है की अल्लाह की तरफ से आने वाले हुकुम। हजरता आएशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि अल-हरिथ बिन हिशम ने अल्लाह के रसूल से पूछा "ऐ अल्लाह के रसूल ! आपको...

19.तहज्जुद नमाज का बयान (Hadith no 481-509)

  481. इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रात को तहज्जुद पढ़ने के लिए उठते तो यह दुआ पढ़ते थे , ऐ अल्लाह ! तू ही तारीफ के लायक है , तू ही आसमान और जमीन और जो इनमें है , इन्हें संभालने वाला है , तेरे ही लिए तारीफ है , तेरे ही लिए जमीन और आसमान और जो कुछ इनमें है , उनकी बादशाहत है। तेरे ही लिए तारीफ है , तू ही आसमान और जमीन और जो चीजें इनमें हैं , उन सब का नूर है। तू ही हर तरह की तारीफ के लायक है , तू ही आसमान और जमीन और जो इनमें है सब का बादशाह है , तेरा वादा भी सच्चा है , तेरी मुलाकात यकीनी और तेरी बात बरहक है , जन्नत और दोजख बरहक और तमाम नबी भी बरहक और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खासकर सच्चे हैं और कयामत बरहक है। ऐ अल्लाह मैं तेरा फरमां बरदार और तुझ पर ईमान लाया हूँ , तुझ पर ही भरोसा रखता हूँ और तेरी ही तरफ लोटता हूँ , तेरी ही मदद से दुश्मनों से झगड़ता हूं और तुझ ही से ...