92.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से एक आदमी ने पूछा कि जो आदमी एहराम बांधे, वह क्या पहने? आपने फरमाया, न कुर्ता, न पगड़ी, न पाजामा, न टोपी और न वह कपड़ा जिसमें वर्स या जाफरान लगी हो और अगर जूती न हो तो मोजे पहन ले और उन्हें ऊपर से काट ले ताकि टखने खुल जायें ।
93.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,कहा: रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: “जिस आदमी का वुजू टूट जाये, उसकी नमाज कुबूल नहीं होती, जब तक वुजू न करे” एक हजरमी हजरे मौत के रहने वाले एक आदमी ने पूछा: “ऐ अबू हुरैरा! बे-वुजू होना क्या है?" उन्होंने कहा: ''फुसा या जुरात यानी वह हवा जो पाखाना की जगह से निकलती हो।” इस हदीस से उस बहाने का भी रद्द होता है जिसकी वजह से यह बात की गई है कि आखरी तशहहुद में हवा निकलने का खतरा हो तो सलाम फेरने के बजाये अगर जानबूझ कर हवा खारिज कर दी जाये तो नमाज सही है, यह बात इसलिए गलत है कि नमाज सलाम से ही पूरी होती है और जोर से हवा निकालना किसी सूरत में भी सलाम का बदल नहीं हो सकता, इस किस्म की बहाने बाजी इस्लाम में नाजाइज और हराम है।
94.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है, उन्होंने कहा कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह फरमाते सुना है कि मेरी उम्मत के लोग कयामत के दिन बुलाये जायेंगे, जबकि वुजू के निशानों की वजह से उनके चेहरे और पांव चमकते होंगे। अब जो कोई तुममें से चमक बढ़ाना चाहे तो उसे बढ़ा लेना चाहिए।
95.अब्दुल्लाह बिन यजीन अनसारी से रिवायत है, उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने एक आदमी का हाल बयान किया, जिसको यह ख्याल हो जाता था कि नमाज में वो कोई चीज हवा का निकलना महसूस कर रहा है, आपने फरमाया: वो नमाज से उस वक्त तक न फिरे जब तक हवा निकलने की आवाज या बू न पाये। मकसद यह है कि नमाजी को जब तक अपने बेवुजू होने का यकीन न हो जाये, नमाज को न छोड़े, इस हदीस से यह बात भी मालूम हुई कि कोई यकीनी मामला सिर्फ शक की वजह से मशकूक नहीं होता और किसी चीज को बिना वजह शक और शुबा की नजर से देखना जाइज नहीं।
96.इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो का बयान है कि एक बार नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सोये, यहां तक खर्रटे भरने लगे, फिर आपने जागकर नमाज पढ़ी और वुजू न किया, कभी रावी ने यूँ कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम करवट लेते, यहां तक कि सांस की आवाज आने लगी, फिर जागकर आपने नमाज पढ़ी। दूसरी हदीस में हजरत इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो का बयान है कि आपने नींद से उठकर पानी से भरे हुये एक पुराने मश्कीजे से हल्का सा वुजू किया, यानी वुजू के हिस्सों पर ज्यादा पानी नहीं डाला, या अपने वुजू के हिस्सों को सिर्फ एक एक बार धोया।
97.उसामा बिन जैद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि एक बार रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अरफात से लौटे, जब घाटी में पहुंचे तो उतर कर पेशाब किया फिर वुजू फरमाया, लेकिन वुजू पूरा न किया, मैंने मालूम किया कि ऐ अल्लाह के रसूल! नमाज का वक्त करीब है। आपने 'फरमाया: नमाज आगे चलकर पढ़ेंगे, फिर आप सवार हुये जब मुजदलफा आये तो उतरे और पूरा वुजू किया, फिर नमाज की तकवीर कही खयी, और जब आपने मगरिब की नमाज अदा की, उसके बाद हर आदमी ने अपना ऊंट अपने मकाम पर बैठाया, फिर इशा की तकबीर हुई और आपने नमाज पढ़ी, और दोनों के बीच निफ्ल वगैरह नहीं पढ़ी। पूरे वुजू से मुराद अपने वुजू के हिस्सों को खूब मलकर धोना है और इस हदीस से मालूम हुआ कि वुजू करते वक्त किसी दूसरे से मदद लेना जाइज है।और हज के दौरान मुजदलफा में मगरिब और इशा को जमा करके पढ़ना चाहिए।
98.इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने वुजू किया और अपना मुंह धोया, इस तरह कि पानी का एक चुल्लू लेकर उससे कुल्ली की और नाक में पानी डाला, फिर एक और चुल्लू पानी लिया, हाथ मिलाकर उससे मुंह धोया, फिर एक चुल्लू पानी से अपना दायां हाथ धोया, फिर एक और चुल्लू पानी लिया और उससे अपना बायां हाथा धोया, फिर अपने सर का मसह किया उसके बाद एक चुल्लू पानी अपने दायें पांव पर डाला और उसे धो लिया, फिर दूसरा चुल्लू पानी लेकर अपना बांया पांव धोया उसके बाद कहने लगे कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इसी तरह करते हुये देखा है। मतलब यह है कि बुजू के लिए दोनों हाथों से चुल्लू भरना जरूरी नहीं, नीज उन रिवायतों के जईफ होने की तरफ इशारा है, जिनमें है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक ही हाथ से अपने चहरे को धोते थे। इससे यह भी मालूम हुआ कि एक चुल्लू लेकर आधे से कुल्ली की जाये और आधे से नाक साफ करे।
99.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्हों ने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब बैतुलखला जाते तो फरमाते, ऐ अल्लाह मैं नापाक चीजों और नापाकियों से तेरी पनाह चाहता हूँ।” इस दुआ का दूसरा तर्जुमा यह है कि “ऐ अल्लाह!" मै खबीस जिन्नातों और जिननातनियों से तेरी पनाह चाहता हूँ" लैटरीन में दाखिल होने और अपना कपड़ा उठाने से पहले पढ़नी चाहिए।
100.इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि एक बार नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पाखाना के लिए गये तो मैंने आपके लिए वुजू कर पानी रख दिया! आपने बाहर निकलकर पूछा कि यह पानी किसने रखा हैं? आपको बता दिया गया तो आपने फरमाया, अल्लाह इसे दीन की समझ अता फरमा।” हजरत इब्ने अब्बास ने यह खिदमत बजा लाकर अकलमन्दी का सबूत दिया था। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनके लिए वैसी ही दुआ फरमायी, और अल्लाह तआला ने उसे कुबूल भी फरमाया और हजरत इन्ने अब्बास हिबरूल उम्मा (उम्मत के आलिम) के लकब से मशहूर हो गये।
101.अबू अय्यूब अन्सारी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्हों ने कहा, रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जब कोई पेशाब और पाखाना के लिए जाये तो किब्ला की तरफ मूंह न करे, न पीठ, बल्कि पूर्व या पश्चिम की तरफ मुंह किया जाये। पाखाना करते वक्त पूर्व या पश्चिम की तरफ मुह करने का खिताब मदीना वालों से है, क्योंकि उनका किब्ला दक्षिण की तरफ था, हिन्द और पाक में रहने वालों के लिए किब्ला पश्चिम की तरफ है, लिहाजा हमारे लिए दक्षिण और उत्तर की तरफ मुंह करने का हुक्म है।
102.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कुछ लोग कहते हैं कि जब तुम पाखाना के लिए बैठो तो न किब्ला की तरफ मुंह करो, न बैतुल मुकदस की तरफ, हालांकि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पाखाना के लिए दो कच्ची ईटो पर बैतुल मुकददस की तरफ मुंह करके बैठे थे। एक रिवायत में है कि आप किब्ला की तरफ पीठ किये हुये बैठे थे। इमाम बुखारी का मानना है कि बैतुलखला में पाखाना के वक्त किब्ला की तरफ मुंह या पीठ करने की इजाजत है, यह पाबन्दी आबादी से बाहर करने वालों के लिए है।
103.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्ललाहु अलैहि सलाम वसल्लम की बीवियाँ रात को पाखाना के लिए मनासे की तरफ जाती थीं, जो एक खुली जगह थी। हजरत उमर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में आकर कहा करते थे कि आप अपनी बीवियों को पर्दे का हुक्म दे दें, लेकिन रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ऐसा न करते थे। एक रात इशा के वक्त हजरता सौदा बिन्ते जमआ पाखाना के लिए बाहर निकली वो लम्बे कद वाली औरत थीं। हजरत उमर ने उन्हें पुकारा : आगाह रहो सौदा। हमने तुम्हें पहचान लिया है। इससे उमर की मर्जी यह थी कि पर्दे का हुक्म उतरे, आखिर अल्लाह तआला ने पर्दे की आयत नाजिल फरमा दी। मालूम हुआ कि जरूरी कामों के लिए औरत का पर्दे के साथ घर से बाहर निकलना जाइज है।
104.कतादा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,उन्होंने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जब तुम में से कोई चीज पीये तो बर्तन में सांस न ले और जब बैतुलखला आये तो दायें हाथ से अपनी शर्मगाह पेशाब की जगह को न छूये और न उससे इस्तिंजा करे।
105.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि एक दिन नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पाखाना के लिए बाहर गये तो मैं भी आपके पीछे हो लिया, आपकी आदत मुबारक थी कि चलते वक्त दायें बायें न देखते थे। जब मैं आपके करीब गया तो आपने फरमाया कि मुझे पत्थर तलाश कर दो, मैं उनसे इस्तिंजा करूंगा या उसी जैसा कोई और लफ्ज फरमाया लेकिन हड्डी और गोबर न लाना। चूनांचे मैं अपने कपड़े के किनारे में कई पत्थर लेकर आया और उन्हें आपके पास रख दिया और खुद एक तरफ हट गया। फिर जब आप पाखाने से फारिग हुये तो पत्थरों से इस्तिंजा फरमाया। हड्डी जिन्नों की खुराक है और गोबर उनके जानवरों का चारा है। इसलिए इन से इस्तिंजा करना मना है।
106.अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक बार पाखाना के लिए तशरीफ ले गए और मुझे तीन पत्थर लाने का हुक्म दिया मुझे दो पत्थर तो मिल गये, लेकिन तलाश करने पर भी तीसरा पत्थर न मिल सका। मैंने गोबर का एक सूखा टुकड़ा उठा लिया और वो आपके पास लाया, आपने दोनों पत्थर ले लिये। गोबर को फैंक दिया और फरमाया, यह गन्दा है। गोबर का टुकड़ा दरअसल गधे की लीद थी, जिसे आपने नापाक करार दिया, फिर आपने तीसरा पत्थर मंगवाया।
107.उस्मान बिन अफ्फान रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उन्होंने एक बार पानी का बर्तन मंगवाया और अपने हाथों पर तीन बार पानी डालकर न धोया, फिर दायें हाथ को बर्तन में डालकर पानी लिया, कुल्ली की, नाक में पानी डाला और उसे साफ किया। फिर अपने मुंह और दोनों हाथों को कुहनियों समेत तीन बार धोया, उसके बाद सर का मसह किया, फिर अपने पांव टखनें समेत तीन बार धोये, फिर कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: जो भी मेरे इस बुजू की तरह वुजू करे और फिर दो रकअत अदा करे और इनके अदा करने के वक्त कोई खयाल दिल में न लाये तो उसके तमाम पिछले गुनाह बख्श दिये जायेंगे। बुखारी की एक रिवायत में है कि इस बख्शिश पर घमण्ड भी नहीं करना चाहिए कि अब दीगर अमलों की क्या जरूरत है?
108.उस्मान बिन अफ्फान रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मैं तुम्हें एक हदीस सुनाऊँ अगर कुरआन में एक आयत न होती तो यह हदीस तुम्हें न सुनाता। मैंने नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम को यह फरमाते हुये सुना है, जो आदमी अच्छी तरह वुजूं करे और नमाज पढ़े तो जितने गुनाह इस नमाज से दूसरी नमाज तक होंगे वो बख्श दिये जायेंगे और वो आयत यह हैः बेशक वो लोग जो हमारी नाजिल की हुई आयातों को छुपाते हैं..... आखिर तक (बकरा 161)
109.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, जब तुममें से कोई वुजू करे तो अपनी नाक में पानी डाले और उसे साफ करे और जो आदमी पत्थर से इस्तिंजा करे तो ताक पत्थरों से करे और तुममें से जब कोई सोकर उठे तो वुजू के पानी में अपने हाथ डालने से पहले उन्हें धो ले क्योंकि तुम में से किसी को खबर नहीं कि रात को उसका हाथ कहां फिरता रहा है। नाक झाड़ने से शैतान भाग जाता है, जो आदमी की नाक पर रात गुजारता है।
110.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि एक बार उन पर किसी ने ऐतराज करते हुये कहा कि मैं देखता हूँ आप हजरे अवसद काला पत्थर और रूकने यमानी के अलावा बैतुल्लाह के किसी कोने को हाथ नहीं लगाते और आप सिब्ती जूते पहनते हो और पीला खिजाब इस्तेमाल करते हो, नीज मक्का में दूसरे लोग तो जुलहिज्जा का चांद देखते ही एहराम बांध लेते हैं। मगर आप आठवीं तारीख तक एहराम नहीं बांधते। हजरत इबने उमर ने जवाब दिया कि बैतुल्लाह के कोनों को छुने की बात तो यह है कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को दोनों यमानी हजरे असवद, रूकने यमानी के अलावा किसी दूसरे रूकन को हाथ लगाते नहीं देखा और सुब्ती जूतियों के बारे में यह है कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम को जूतियाँ पहने देखा, जिन पर बाल न थे और आप उनमें वुजू फरमाते थे। लिहाजा मैं उन जूतों को पहनना पसन्द करता हूँ, रहा जर्द रंग का मामला तो मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह खिजाब लगाते हुये देखा है इसलिए मैं भी इस रंग को पसन्द करता हूँ और एहराम बांधने की बात यह है कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को उस वक्त तक एहराम बांधते नहीं देखा, जब तक आपकी सवारी आपको लेकर न उठती, यानी आठवीं तारीख को। जूतों पर मसह करने की रिवायतें जईफ हैं इसलिए पांव धोने चाहिए। दलील की बुनियाद यह है कि वुजू में असल अंगों का धोना है। नीज अगर मसह किया हो तो ''य-त-वज्जओ फीहा'' के बजाये “य-त-वज्जओ अलैहा'' होना चाहिए था।
111.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्हीं ने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को जूता पहनना, कंघी करना और सफाई करना अलगर्ज हर अच्छे की शुरूआत दायें जानिब से करना अच्छा मालूम होता था। पाखाना में दाखिल होना, मस्जिद से निकलना, नाक साफ करना और इस्तिंजा करना, इस हुक्म से अलग हैं।
112.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने बयान किया कि मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इस हालत में देखा कि असर की नमाज का वक्त हो चुका था, लोगों ने बुजू के लिए पानी तलाश किया, मगर न मिला। आखिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास एक बर्तन में वुजू के लिए पानी लाया गया तो आपने अपना हाथ मुबारक उस बर्तन में रख दिया और लोगों को हुक्म दिया कि इससे वुजू करें। हजरत अनस कहते हैं कि मैंने देखा कि पानी आपकी उंगलियों के नीचे से फूट रहा था, यहां तक कि सब लोगो ने वुजू कर लिया। वुजू करने वालों की तादाद तीन सौ के लगभग थी, इसमें आपका एक बहुत बड़ा करिश्मा (मौअजजा) था।
113.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने जब हज में अपना सर मुण्डवाया तो सबसे पहले हजरत अबू तल्हा ने आपके बाल लिये थे। इससे मालूम हुआ कि आदमी के बाल पाक हैं और उन्हें धोने के लिए इस्तेमाल होने वाला पानी भी पाक रहता है।
114.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जब कुत्ता तुम में से किसी के बर्तन में से पी ले तो चाहिए कि उस बर्तन को सात बार धोयें। नई खोज ने भी इस बात की तसदीक की है कि कुत्ते के थूक में ऐसे जहरीले जरासीम (किटाणु) होते हैं, जिन्हें सिर्फ मिट्टी ही खत्म करती है। इसलिए आपने पानी के साथ मिट्टी से साफ करने का भी हुक्म दिया है।
115.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुबारक जमाने में कुत्ते मस्जिद में आते जाते थे और सहाबा किराम वहां किसी जगह पर पानी नहीं छिड़कते थे। यह इस्लाम की शुरूआती दौर का किस्सा है। उसके बाद मस्जिद की पाकी और इज्जत को बरकरार रखने के लिए दरवाजे लगा दिये गये।
116.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने कहा, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि बन्दा बराबर नमाज में है, जब तक कि मस्जिद में नमाज का इन्तेजार करता रहे, यहां तक कि बेवुजू न हो जाये। इस हदीस के आखिर में है कि किसी अज्मी ने हजरत अबू हुरैरा से हदस होने के बारे में सवाल किया तो आपने फरमाया, हलके या जोर से हवा का खारिज होना हदस है, अगरचे इसके अलावा दीगर चीजों से भी वुजू टूट जाता है लेकिन नमाजी को मस्जिद में बैठे आमतौर पर इस किस्म के हदस से वास्ता पड़ता है। हदीस में यह भी है कि मस्जिद में नमाज का इन्तेजार करने वाले के लिए फरिश्ते रहमत व बख्शिश की दुआ करते रहते हैं।
117.जैद बिन खालिद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मैंने हजरत उसमान से पूछा अगर कोई आदमी अपनी औरत से मिले लेकिन इन्जाल न हो (मनी ना निकले) तो उस पर गुस्ल है या नहीं? उन्होंने जवाब दिया कि वह नमाज के वुजू की तरह वुजू करे और अपनी शर्मगाह को धो डाले, फिर हजरत उसमान ने फरमाया कि मैंने यह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुना है जैद कहते हैं चूनांचे मैंने यह सवाल हजरत अली, तलहा, जुबैर और उबय्यी बिन क-अ-ब से पूछा, उन्होंने भी मुझे यही जवाब दिया। इन्जाल न होने की सूरत में गुस्ल न करने का हुक्म खत्म हो चुका है, क्योंकि आखरी हुक्म यह है कि सवाली औरत के पास जाने से ही गुस्ल वाजिब हो जाता है, चाहे मनी निकले या न निकले चारों इमामों और ज्यादातर आलिमों का यही खयाल है, अलबत्ता इमाम बुखारी का रूजहान यह है कि ऐसी हालत में अहतयातन गुस्ल कर लिया जाये।
118.अबू सईद खुदरी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक अन्सारी आदमी को बुला भेजा, वो इस हालत में हाजिर हुआ कि उसके सर से पानी टपक रहा था। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाया, शायद हमने तुझे जल्दी में डाल दिया है। उसने कहा. “जी हाँ''। तब आपने फरमाया कि डाल दिया है। उसने कहा, “जी हाँ''। तब आपने फरमाया कि जब तू जल्दी में पड़ जाये या तेरी मनी रूक जाये इन्जाल न हो तो वूजू कर लिया कर गुस्ल जरूरी नहीं । ऐसी हालत में गुस्ल जरूरी न होने का हुक्म अब खत्म हो चुका है, जैसा कि हजरता आइशा और हजरत अबू हुरैरा से मरवी हदीसों में इसका खुलासा मौजूद है।
119.इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि वह एक रात अपनी खाला और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बीवी हजरता मैमूना के घर में थे। उन्होंने कहा कि मैं तो बिस्तर की चौड़ाई में लैटा जबकि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उनकी बीवी उसकी लम्बाई में लैटे थे। फिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आराम फरमाया, जब आधी रात हुई या उससे कुछ कम और ज्यादा तो आप उठ गये और बैठकर अपनी आंखें हाथ से मलने लगे फिर सूरा अल इमरान की आखरी दस आयतें पढ़ी, उसके बाद आप एक लटकी हुई एक पुरानी मश्कीजे की तरफ खड़े हुये, उसमें से अच्छी तरह वुजू किया, फिर खड़े होकर नमाज पढ़ने लगे। हजरत इबने अब्बास ने फरमाया, फिर मैं भी उठा और जैसे आपने किया था, मैंने भी किया, फिर आपके पहलू में खड़ा हुआ। आपने अपना दायां हाथ मेरे सर पर रखा और मेरा दायां कान पकड़कर उसे मरोड़ने लगे। उसके बाद आपने तहज्जुद की दो रकअतें पढ़ी, फिर दो रकआतें,फिर दो रकअतें, फिर दो रकअर्तें, फिर दो रकअतें, फिर दो रकअतें कुल बारह रकअतें अदा की। फिर वित्र पढ़ा, उसके बाद लेट गये, यहां तक कि अजान देने वांला आपके पास आया, उस वक्त आप खड़े हुये और हल्की फुल्की दो रकअतें फजर की सुननतें पढ़ीं फिर बाहर तशरीफ ले गये, और फज्र की नमाज पढ़ायी। यह हदीस पहले गुजर चुकी है, लेकिन हर एक तरीके का फायदा दूसरे तरीके से कुछ अलग है। इमाम बुखारी की दलील हजरत इबने अब्बास के अमल से है, क्योंकि आपने कुरआनी आयतें बे-वुजू तिलावत की थीं। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए नींद वुजू तोड़ने वाली नहीं, मुमकिन है कि आप का वुजू करना किसी और वजह से हुआ। ऐसी हालत में रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम के अमल से भी दलील ले सकते हैं।
120.अबू जुहैफा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, थी उन्होनें फरमाया कि एक दिन रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम दोपहर के वक्त हमारे यहां तशरीफ लाये। वुजू का पानी आपके पास लाया गया। आपने वूजू फरमाया, फिर लोग आपके वुजू का बाकी बचा पानी लेने लगे और बदन पर मलने लगे। फिर रसूलुल्लाह सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने जुहर और असर की दो दो रकअतें नमाज पढ़ी और नमाज के दौरान आपके सामने एक बरछी गाड़ दी गयी। इस हदीस में इस्तेमाल किये हुए पानी का हुक्म बयान किया गया है। कुछ लोग इसे दोबारा इस्तेमाल के काबिल नहीं समझते, कत-ए-नजर कि वह पानी जो वुजू के बाद बर्तन में बचा रहे या वह पानी जो बुजू करने वाले के अंगों से टपके। मालूम हुआ कि इस किस्म के पानी को दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। नीज यह मक्का मुर्करमा का वाक्या है। इस हदीस से यह भी मालूम हुआ कि वहां भी इमाम और अकेले नमाज पढ़ने वाले को नमाज के लिए आगे सुतरा रखना जरूरी है।
121.साइब बिन यजीद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मेरी खाला मुझे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास ले गई और मालूम किया कि ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरा भांजा बीमार है तो आपने मेरे सर पर हाथ फैरा और मेरे लिए बरकत की दुआ फरमायी। फिर आपने वुजू फरमाया और मैंने आपके वुजू का बचा हुआ पानी पी लिया। फिर मैं आपकी पीठ के पीछे खड़ा हुआ और नबूवत की मोहर को देखा जो आपके दोनों कन्धों के बीच छपरकट की घुंडी की तरह थी। मालूम हुआ कि बीमार बच्चे किसी बुजुर्ग के पास दुआ के लिए ले जाना तकवा के खिलाफ नहीं। नीज बच्चों से प्यार और उनके लिए खैर और बरकत की दुआ करना सुन्नत नबवी है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दुआ का नतीजा था कि हजरत साइब चौरानवें साल की उम्र में भी तन्दुरूस्त व जवान थे।
122.इबने उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जमाने में मर्द और औरत सब मिलकर एक ही बर्तन से वुजू किया करते थे। मुमकिन है कि मर्द और औरतों का मिलकर वुजू करना पर्दा उतरने से पहले का हो या इससे वह मर्द और औरतें मुराद हों जो एक दूसरे के लिए हराम हो या इससे मुराद मियां-बीवी हो। इस हदीस का यह भी मतलब बयान किया जाता है कि मर्द एक जगह मिलकर वुजू करते और औरतें उनसे अलग एक जगह मिलकर वुजू करतीं।
123.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि जब नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम बीमार हुये और तकलीफ बढ़ गयी तो आपने अपनी बीवियों से इजाजत चाही कि मेरे घर में आप की तीमारदारी की जाये। सब ने आपको इजाजत दे दी तब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दो आदमियों का सहारा लेकर निकले पर आपके दोनों कदम जमीन पर घिसटते जाते थे। हजरत अब्बास और हजरत अली के साथ आप निकले थे। हजरता आइशा का बयान है,जब नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम अपने घर तशरीफ ले आये और आपकी बीमारी और ज्यादा हो गयी तो आपने फरमाया कि मेरे ऊपर ऐसी सात मश्कें बहाओ जिनके मुंह न खोले गये हों ताकि मैं लोगों को कुछ वसीयत करूं। फिर आपको मोमिनों की माँ हफसा रजि अल्लाह तआला अन्हो के लगन (टब) में बिठा दिया गया, उसके बाद हम सब आपके ऊपर पानी बहाने लगे, यहां तक कि आप हमारी तरफ इशारा करने लगे, “बस-बस'' तुम अपना काम पूरा कर चुकी हों फिर आप लोगों के पास तशरीफ ले गये। बुखार की हालत में ठण्डे पानी से नहाना खासकर जब सफरावी बुखार हो, इन्तहाई मुफीद है, जिसको नई खोज ने भी माना है।
124.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है,उन्होंने कहा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब गुस्ल फरमाते तो एक साअ से लेकर पांच मुद तक पानी इस्तेमाल करते और एक मुद पानी से वुजू कर लेते। नई खोज के मुताबिक साअ का वजन 2 किलो 100 ग्राम । वुजू और गुस्ल के लिए लोगों और हालात के पेशे नजर पानी की मिकदार में कमी और ज्यादती हो सकती है। फिर भी इस सिलसिले में फिजूल खर्ची करना जाइज नहीं।
125.उम्र बिन उमय्या जुमरी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखा कि आप बकरी के शाने का गोश्त काट कर खा रहे थे। इतने में आपको नमाज के लिए बुलाया गया, यानी अजान हो गयी तो आपने छूरी रख दी, फिर नमाज पढ़ाई और नया वुजू न किया। मालूम हुआ कि छुरी से गोश्त काटकर खाना सुन्नत है। हदीस में अगरचे सत्तू का जिक्र नहीं चूंकि यह भी गोश्त की तरह आग पर पकाये जाते है। इसलिए दोनों का हुक्म एक ही है कि इनके इस्तेमाल से वुजू नहीं टूटता।
126.अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिं वसल्लम ने एक बार दूध पिया तो कुल्ली की और कहा कि दूध में चिकनाई होती है। मालूम हुआ कि चिकनाई वाली चीज खाकर कुल्ली करना चाहिए ।
127.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जब तुममें से कोई नमाज पढ़ रहा हो, उस दौरान अगर ऊंघ आ जाये तो वह सो जाये ताकि उसकी नींद पूरी हो जाये, क्योंकि ऊंघते हुये अगर कोई नमाज पढ़ेगा तो वह नहीं जानता कि अपने लिए माफी की दुआ कर रहा है, या खुद को बद-दुआ दे रहा है। नींद जाति तौर पर वुजू तोड़ने वाली नहीं, बल्कि बे-वुजू होने का जरीया जरूर है, बशर्ते कि इन्सान की अकल व शउर पर गालिव आ जाये।
128.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, जब कोई तुम में से नमाज के दौरान ऊंघने लगे तो उसे सो लेना चाहिए, ताकि नींद जाती रहे और जो पढ़ रहा है उसको समझने के काबिल हो जाये। ऊंघ यह है कि इन्सान अपने पास वाले की बात तो सुने, लेकिन समझ न सके, ऐसी हालत में नमाजी को चाहिए कि वह सलाम फेरे फिर सो जाये, चूंकि ऐसी हालत में अदा की हुई नमाज को दोहराने का आपने हुक्म नहीं दिया तो मालूम हुआ कि ऊंघने से वुजू नहीं दूटता।
129.इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मदीना या मक्का के किसी बाग से गुजरे तो वहां दो आदमियों की आवाज सुनी, जिनको कब्र में अजाब हो रहा था, उस वक्त आपने फरमाया कि इन दोनों को अजाब हो रहा है, लेकिन यह किसी बड़ी बात पर नहीं दिया जा रहा, फिर फरमाया, कि बड़ी ही है। उनमें से एक तो अपने पेशाब से न बचता था और दूसरा चुगलखोरी करता था। फिर आपने खजूर की एक तर शाख मंगवाई, उसके दो टुकड़े करके हर कब्र पर एक टुकड़ा रख दिया, आपसे मालूम किया गया ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! आपने ऐसा क्यों किया फरमाया : उम्मीद है कि जब तक यह नहीं सूखेगी, इन दोनों पर अजाब कम रहेगा। यह हदीस खुली दलील है कि अजाब जमीनी कब्र में होता है और जिन लोगों को यह कब्र नहीं मिले, उनके लिए वही कब्र है, जहां उनके जर्रात पड़े हैं। कुरआन व हदीस में इसके अलावा किसी बरजखी कब्र का वजूद साबित नहीं होता, जैसा कि बाज फितना फैलाने वाले लोगों का ख्याल है।
130.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है उन्होंने फरमाया कि एक देहाती खड़ा होकर मस्जिद में पेशाब करने लगा तो लोगों ने उसे पकड़ना चाहा। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि उसे छोड़ दो और उसके पेशाब पर पानी से भरा हुआ एक डोल बहा दो, क्योंकि तुम लोग आसानी के लिए पैदा किये गये हो, तुम्हें सख्ती करने के लिए नहीं भेजा गया। दूसरी रिवायत में है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसे अपनी हाजत से फारिंग होने के बाद बुलाया और फरमाया कि मस्जिदें अल्लाह की याद और नमाज के लिए बनाई जाती है, इनमें पेशाब नहीं करना चाहिए। इस तरीके से उस पर बहुत असर हुआ और मुसलमान हो गया।
131.उम्मे कैस बिन्ते मेहसन रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि वह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास अपना छोटा बच्चा लेकर आयी जो अभी खाना नहीं खाता था। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसे अपनी गोद में बिठा लिया तो उसने आपके कपड़े पर पेशाब कर दिया। आपने पानी मंगवाकर उस पर छिड़क दिया, लेकिन उसे धोया नहीं। मालूम हुआ कि लड़के के पेशाब पर पानी छिड़क देना काफी है, अलबत्ता लड़की के पेशाब को धोना जरूरी है।
132.हुजैफा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक कौम के कूड़ करकट के ढ़ेर पर तशरीफ लाये, वहां खड़े खड़े पेशाब किया। फिर पानी मंगवाया। मैं आपके पास पानी लाया और आपने वुजू फरमाया। अगर पेशाब के छीटे बदन पर पड़ने का डर न हो तो खड़े होकर पेशाब करने में कोई हर्ज नहीं है, क्योंकि मनाअ की कोई हदीस नहीं है। नोट : रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आम तौर पर बैठ कर पेशाब करते थे।
133.असमा विन्ते अबू बकर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उन्होंने कहा की एक औरत नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आयी और मालूम किया कि बताइये, हममें से अगर किसी औरत को कपड़े में हैज आ जाये तो कया करे? आपने फरमाया कि उसे खुरच डाले, फिर पानी डालकर रगड़े और साफ करके उसमें नमाज पढ़े। इस हदीस से यह भी मालूम हुआ कि गन्दगी दूर करने के लिए पानी को ही इस्तेमाल किया जाता है, दूसरी बहने वाली चीजें यानी सिरका वगैरह से धोना दुरूस्त नहीं।
134.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि फातमा बिन्ते अबी हुबैश रजि अल्लाह तआला अन्हो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आई और कहने लगीं कि ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मैं ऐसी औरत हूँ कि अक्सर मुस्तहाजा रहती हूँ और कई कई दिनों पाक नहीं होती, क्या नमाज छोड़ दूँ? आपने फरमाया, नमाज मत छोड़ो, यह एक रग का खून है जो हैज नहीं। फिर जब तेरे हैज का वक्त आ जाये तो नमाज छोड़ दो और जब वक्त गुजर जाये तो अपने बदन और कपड़ों से खून धोकर उसके बाद नमाज पढ़ो। अलबत्ता हर नमाज के लिए नया वुजू करती रहो, यहां तक कि फिर हैज का वक्त आ जाये। इस्तिहाजा एक बीमारी है, जिसमें औरत का खून जारी रहता है, बन्द नहीं होता, इस हदीस से यह भी मालूम हुआ कि जिसे हवा या पेशाब के कतरे आने की बीमारी हो, वह भी नमाज के लिए ताजा वुजू करके उसे अदा करता रहे।
135.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,उन्होंने फरमाया कि मैं नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कपड़े से नापाकी के निशानों को धो डालती थी, फिर आप नमाज के लिए बाहर तशरीफ ले जाते, अगरचे आपके कपड़े में पानी के धब्बे बाकी रहते थे। नापाकी के निशान अगर खुश्क हो चुके हों तो उन्हें खुरच देना ही काफी है, धोने की जरूरत नहीं।
136.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने बयान किया कि उक्ल या उरैना के चन्द लोग मदीना मुनव्यरा आये, यहां का हवा पानी उनके मवाफिक न आया। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें हुक्म दिया कि वह जंगल में सदके की ऊंटनियों के पास चले जायें और वहां उनका पेशाब और दूध पीयें। चूनाचे वह चले गये और जब तन्दुरूस्त हो गये तो उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चरवाहे को कत्ल कर डाला और जानवर हौंक कर ले गये। सुबह के वक्त 'रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को जब यह खबर पहुंची तो आपने उनकी तलाश में आदमी रवाना किये। सूरज बुलन्द होने तक सब को गिरफ्तार कर लिया गया चूनांचे आपके हुक्म पर उनके हाथ पांव काटे गये, आंखों में गर्म सलाईयां फेरी गयीं और गर्म पथरीली जगह पर उन्हें डाल दिया गया, वह पानी मांगते लेकिन उन्हें पानी न दिया जाता। इससे मालूम हुआ कि हलाल जानवरों का गोबर और पेशाब गन्दा नहीं है, तभी तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें ऊंटनियों का पेशाब पीने का हुक्म दिया। और उन्होंने जो सलूक चरवाहे के साथ किया था, वही सलूक उनके साथ किया गया।
137.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मस्जिदे नबवी से पहले बकरियों के बाड़ों में नमाज पढ़ लिया करते थे। जाहिर है कि बकरियाँ वहां पेशाब वगैरह करती हैं, इसके बावुजूद आपने वहां नमाज पढ़ी, मालूम हुआ कि उनका पेशाब वगैरह नापाक नहीं अलबत्ता ऊंटों के बाड़ों में नमाज पढ़ाना मना है, क्योंकि उनके मस्ती में आने से नुकसान का डर है।
138.मैमूना रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्ललाहु अलैहि सलाम वसल्लम से एक चूहिया के बारे में पूछा गया जो घी में गिर गयी थी । आपने फरमाया कि उसे निकाल दो और उसके करीब जिस कदर घी हो, उसे फैंक दो फिर अपने बाकी घी को इस्तेमाल कर लो। कुछ रिवायतों में ''जामिद” के अल्फाज हैं,मालूम हुआ कि अगर पिघला हुआ हो तो इस्तेमाल के काबिल नहीं और न ही उसे बेचना जाइज है। शहद वगैरह का भी यही हुक्म है। चूंकि पानी बहने वाला होता है, इसलिए वह भी गन्दा होगा।
139.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अल्लाह की राह में मुसलमान को जो जख्म लगता है, कयामत के दिन वह अपनी असल हालत में होगा, जैसे जख्म लगते वक्त था। खून बह रहा होगा, उसका रंग तो खून जैसा होगा, मगर खुश्बू कस्तूरी की तरह होगी। मुश्क हिरन की नाफ से निकलता है जो दरअसल खून है, मगर जब उसमें खूश्बू पैदा हो गयी तो उसका हुक्म खून का न रहा। इसी तरह पानी में गन्दगी गिरने से अगर उसका कोई गुण बदल जाये तो वो भी पाकी पर नहीं रहेगा, बल्कि नापाक हो जायेगा।
140.अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक बार काबा के पास नमाज पढ़ रहे थे, अबू ज़हल और उसके साथी वहां बैठे हुये थे, वह आपस में कहने लगे, तूममें से कौन जाता है कि फलां कबीला की ऊँटनी की बच्चेदानी कि ले आये, जिसे वह सज्दा की हालत में मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पीठ पर रख दे? चूनाचे एक बदबख्त उठा और उसे उठा लाया, फिर देखता रहा जब नवी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सज्दे में गये तो उसने उसे आपके दोनों कन्धों के बीच पीठ पर रख दिया मैं यह सब कुछ देख तो रहा था, लेकिन कुछ न कर सकता था। काश कि मुझे हिफाजत हासिल होती, फिर वह हंसते-हंसते एक दूसरे पर गिरने लगे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सज्दे ही में ही रहे। अपना सर नहीं उठाया, यहां तक कि फातिमा रजि अल्लाह तआला अन्हो आई और आप की पीठ से उसे उठाकर फेंक दिया। तब आपने अपना सर मुबारक उठाया और तीन बार यूँ बद-दुआ की कि ऐ अल्लाह कुरैश से बदला ले, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का यूँ बद-दुआ करना उन पर बड़ा भारी गुजरा, क्योंकि वह जानते थे कि इस शहर में दुआ कुबूल होती है, फिर आपने नाम-ब-नाम फरमाया या अल्लाह! अबू जहल से बदला ले, उतबा बिन रबीया, शैबा बिन रबीया, वलीद बिन उतबा, उमय्या बिन खलफ और उकबा बिन अबू मुईत की हलाकत को अपने ऊपर लाजिम कर, सातवें आदमी का भी नाम लिया, लेकिन रावी उसको भूल गया, अब्दुल्लाह बिन मसऊद ने फरमाया : कसम है उसकी जिसके हाथ में मेरी जान है, मैंने उन लोगों को देखा जिनका नाम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लिया था, बदर के कुएं में मरे पड़े थे। इमाम बुखारी का यही मजहब है कि नमाज के दौरान गंदगी लगने से नमाज में खलल नहीं आता, अलबत्ता नमाज के शुरू में हर किस्म की पाकी का अहतमाम जरूरी है।
141.सहल बिन सअद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, लोगों ने उनसे सवाल किया कि नबी सललललाहु अलैहि सलाम वसल्लम के उहद की लड़ाई के वक्त जख्म पर कौनसी दवा इस्तेमाल की गई थी। उन्होंने फरमाया कि इसके बारे में मुझ से ज्यादा जानने वाला कोई आदमी नहीं रहा। अली रजि अल्लाह तआला अन्हो ढ़ाल में पानी लाते और फातमा रजि अल्लाह तआला अन्हो आपके चेहरे मुबारक से खून धोती थीं, फिर एक चटाई जलाई गयी और आपके जख्म में उसे भर दिया गया। मालूम हुआ कि खून को रोकने के लिए चटाई की राख बेहतरीन दवा है। नीज दवा करना भरोसे के खिलाफ नहीं।
142.हुजैफा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्हों ने फरमाया कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम जब रात को उठते तो पहले अपने मुंह को मिस्वाक से साफ करते थे।
143.इबने उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, मैंने ख्वाब में अपने आपको मिस्वाक करते देखा, मेरे पास दो आदमी आये, उनमें से एक उम्र में दूसरे से बड़ा था मैंने उनमें से छोटे को मिस्वाक दे दी तो मुझ से कहा गया कि बड़े को दीजिए। तब मैंने वह मिस्वाक बड़े को दे दी। मालूम हुआ कि खाने, पीने और बातचीत करने में बड़ों को पहले मौका दिया जाना चाहिए, अगर तरतीब से बैठे हों तो दार्यी तरफ से शुरू किया जाये, इससे यह भी मालूम हुआ कि दूसरे की मिस्वाक इस्तेमाल की जा सकती है, लेकिन इसे धोकर साफ कर लेना बेहतर है।
144.बरा बिन आजिब रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने कहा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझ से फरमाया, जब तुम अपने बिस्तर पर जाओ तो पहले नमाज की तरह वुजू करो और अपने दायें पहलू पर लेट कर यह दुआ पढ़ो। ऐ अल्लाह तेरे सवाब के शौक में और तेरे अजाब से डरते हुये मैंने अपने आपको तेरे हवाले कर दिया और तुझे ही ठिकाना देने वाला बना लिया। तुझ से भाग कर कहीं पनाह नहीं, मगर तेरे ही पास, ऐ अल्लाह! मैं इस किताब पर ईमान लाया, जो तू ने उतारी और तेरे इस नबी पर यकीन किया, जिसे तूने भेजा। अब अगर तू इस रात मर जाये तो इस्लाम के तरीके पर मरेगा, नीज यह दुआ सब बातों से फारिग होकर पढ़, हजरत बरा रजि अल्लाह तआला अन्हो कहते हैं कि मैंने यह कलेमात आपके सामने दोहराये, जब मैं उस जगह पहुंचा, आमनतु बे किताबेकल्लंजी अंजलता उसके बाद मैंने व रसूले का कह दिया आपने फरमाया, नहीं बल्कि यूँ कहो 'व नबिय्ये कल्लजी अरसलता'। मालूम हुआ कि मसनून दुआयें और मासूरा जिक्रों में जो अलफाज रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मनकूल हैं, उनमें हेर-फेर नहीं करना चाहिए, हदीस में मजकूरा फजीलत उस आदमी को मिलती है जो जागते हुये आखिर में बुजू करता और आखरी गुफ्तगू के तौर पर यह दुआ पढ़ता है, नीज दार्यी तरफ लैटने से ज्यादा गफ्लत नहीं होती और शब खेजी के लिए आंख खुल जाती है, नीज इससे इमाम बुखारी का इशारा है कि यह हदीस किताबुल वुजू का खात्मा है।
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