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06.हैज़(माहवारी) का बयान (Hadith no 160-179)

 

160.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि हम सब मदीना से सिर्फ हज के इरादे से निकले और जब मकामे सरिफ पर पहुंचे तो मुझे हैज गया। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरे पास तशरीफ लाये तो मैं रो रही थी, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, तुम्हारा क्या हाल है? क्या तुम्हे हैज गया हैं? मैंने अर्ज किया जी हाँ! आपने फरमाया कि यह मामला तो अल्लाह तआला ने हजरत आदम अलैहि सलाम की बेटियों पर लिख दिया है। इसलिए हाजियों के सब काम करती रहो,अलबत्ता काबा का तवाफ ना करना। आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो ने फरमाया, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी बीवियों की तरफ से एक गाय की कुरबानी दी। मालूम हुआ कि हैज वाली औरत बैतुल्लाह के चक्कर के अलावा दीगर हज के अरकान अदा करने की पाबन्द है।

 

 

161.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मैं हैज की हालत में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सर मुबारक में कंघी किया करती थी। मालूम हुआ कि हैज वाली औरत घर का काम काज और शौहर की दूसरी तमाम खिदमते अंजाम दे सकती है।

 

 

162.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही एक दूसरी रिवायत में यूँ है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मस्जिद में तशरीफ फरमा होते और अपना सर मुबारक उनके करीब कर देते और वह खुद हैज की हालत में अपने कमरे में रहते हुये उन्हें कंघी कर दिया करती थी।

 

 

163.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है, उन्होने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरी गोद में तकिया लगा लेते थे। जबकि मैं हैज से होती, फिर आप कुरआन मजीद तिलावत फरमाते थे। हैज वाली औरत और नापाक आदमी कुरआन मजीद को हाथ नहीं लगा सकता, अलबत्ता उसकी गोद में तकिया लगाकर कुरआन पढ़ना दूसरी बात है।

 

 

164.उम्मे सलमा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि एक बार मैं नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ एक ही चादर में लेटी हुई थी कि अचानक मुझे हैज गया, मैं आहिस्ता से सरक गयी और अपने हैज के कपड़े पहन लिये तो आपने फरमाया, क्या तुम्हें निफास गया है। मैंने अर्ज किया, जी हाँ! फिर आपने मुझे बुलाया और मैं उसी चादर में आपके साथ लेट गयी।

 

 

165.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,फरमाती हैं कि मैं और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दोनों नापाकी की हालत में एक बर्तन से गुस्ल किया करते, इसी तरह मैं हैज से होती और आप हुक्म देते तो मैं इजार पहन लेती, फिर आप मेरे साथ लेट जाते। नीज आप एतकाफ की हालत में अपना सर मुबारक मेरी तरफ कर देते तो मैं उसको धो देती, जबकि मैं खुद हैज से होती।

 

 

166.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से दूसरी रिवायत में है, फरमाती हैं, हममें से जब किसी औरत को हैज आता और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उससे मिलना चाहते तो उसे हुक्म देते कि अपने हैज की ज्यादती के वक्त इजार पहन ले, फिर उसके साथ लेट जाते। उसके बाद आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो ने फरमाया, तुम में से कौन है, जो अपनी ख्वाहिश पर इस कदर काबू रखता है जिस कदर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी ख्वाहिश पर काबू रखते थे। मालूम हुआ कि जिसका अपने जोश पर कट्रोल हो वह ऐसे मिलने से परहेज करे, कि कहीं हराम काम हो जाये।

 

 

167.अबू सईद खुदरी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है उन्होंने बयान किया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ईदुल अजहा या ईदुल फित्तर में निकले और ईदगाह में औरतों की जमाअत पर गुजरे तो आपने फरमाया, औरतों! खैरात करो, क्योंकि मैंने तुम्हें ज्यादातर दोजखी देखा है। वह बोली, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम क्यों? आपने फरमाया, तुम लानत बहुत करती हो और शौहर की नाशुक्री करती हो। मैंने तुमसे ज्यादा किसी को दीन और अक्ल में कमी रखने के बावजूद पुख्ता राये मर्द की अक्ल को पछाड़ने वाला नहीं पाया। उन्होंने अर्ज किया अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! हमारी अक्ल और दीन में कया नुकसान है? आपने फरमाया: क्या औरत की गवाही शरीअत के मुताबिक मर्द की आधी गवाही के बराबर नहीं? उन्होंने कहा, बेशक है। आपने फरमाया, यही उसकी अक्ल का नुकसान है। फिर आपने फरमाया, क्या यह बात सही नहीं कि जब औरत को हैज आता है तो नमाज पढ़ती है और ना रोजा रखती है। उन्होंने कहा, हाँ! यह तो है। आपने फरमाया, बस यही उसके दीन का नुकसान है।

 

 

168.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ आपकी एक बीवी ने एतेकाफ किया। जबकि उसे इस्तिहाजा (खून) की बीमारी थी वह अकसर खून देखती रहती और आम तौर पर वह अपने नीचे खून की वजह से परात रख लिया करती थीं। जिस आदमी को हर वक्त हवा निकलने की बीमारी हो या जिसके जख्मों से खून बहता रहे, उसका भी यही हुक्म है।

 

 

169.उम्मे अतिय्या रजि अल्लाह तआला अन्होसे रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि हमें किसी भी मरने वाले पर तीन दिन से ज्यादा गम करने की मनाही की जाती थी। मगर शौहर के मरने पर चार महीने दस दिन तक गम का हुक्म था। नीज यह भी हुक्म था कि इस दौरान हम सूरमा लगायें, खुशबू और ही कोई रंगीन कपड़ा पहने। मगर जिस कपडे का धागा बनावट से रंगा हुआ हो, अलबत्ता हैज से पाक होते वक्त यह इजाजत थी कि जब हैज का गुस्ल करे तो थोड़ी सी खुशबू इस्तेमाल कर ले इसके अलावा जनाजों के साथ जाने की भी मनाही कर दी गयी थी। हमारे हिन्द और पाक में ज्यादातर औरतें इस नबी के हुक्म को नजर अन्दाज कर देती हैं। हैज से फरागत के बाद घिनन और नफरत को दूर करने के लिए खुशबू को जरूर इस्तेमाल करना चाहिए।

 

 

170.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से बयान है एक औरत ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि सलामवसल्लम से अपने गुस्ले हैज के बारे में पूछा? आपने उस के सामने गुस्ल की कैफियत बयान की और फरमाया कि कस्तूरी लगा हुआ रूई का एक टुकड़ा लेकर उससे पाकी कर, वह कहने लगी, कैसे पाकी करूँ? आपने फरमाया, सुब्हान अल्लाह! पाकिजगी हासिल कर आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो फरमाती हैं कि मैंने उस औरत को अपनी तरफ खींचा और उसे समझाया कि खून की जगह यानी शर्मगाह पर लगा ले। सही मुस्लिम में है कि औरत को अपने सर पर पानी डालकर खूब मलना चाहिए, ताकि पानी बालों की जड़ों तक पहुंच जाये। फिर अपने तमाम बदन पर पानी बहाये।

 

 

171.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ आपके आखरी हज में एहराम बांधा तो मैं उन लोगों में शामिल थी, जिन्होंने तमत्तो के हज की नियत की थी।और अपने साथ कुरबानी नहीं लाये थे इत्तेफाक से मुझे हैज गया, और अरफा की रात तक पाक ना हुई। तब मैंने अर्ज किया अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! यह तो अरफा की रात गयी और मैंने तो उमरे का एहराम बांधा था अब क्या करूं? रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, तुम अपना सर खोलकर कंघी करो और अपने उमरे के आमाल को खत्म कर दो। चूनांचे मैंने ऐसा ही किया और जब मैं हज से फारिग हो गयी तो आपने महसब की रात मेरे भाई अब्दुर्रहमान को हुक्म दिया तो वह मेरे, उस उमरे के बदले जिसमें मैंने एहराम बांधा था, मुझे तनईम के मकाम से दूसरा उमरा करा लाये।

 

 

172.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है कि हम जुलहिज्जा के चांद के करीब हज को निकले तो रसुलल्लाह सल्लल्लाह अलैहि सलाम ने फरमाया कि जो आदमी उमरे का एहराम बांधना चाहे, वह उमरे का एहराम बांध ले और अगर मैं खुद हदी यानी कुर्बानी का जानवर लाया होता तो उमरे का एहराम बांधता। इस पर कुछ लोगों ने उमरे का एहराम बांधा और कुछ ने हज का। उसके बाद हजरता आइशा ने पूरी हदीस बयान की और अपने हैज का भी जिक्र किया और फरमाया कि आपने मेरे साथ मेरे भाई अब्दुर्रहमान को तनईम के मकाम तक भेजा। वहां से मैंने उमरे का एहराम बांधा और इन सब बातों में कुरबानी लाजिम हुई, रोजा रखना पड़ा और ही सदका देना पड़ा। इस हदीस में हैज के गुस्ल के वक्त अपने बाल खोलने का भी बयान है। जिसे इबारत में कमी की वजह से हजफ कर दिया गया है। क्योंकि इसका बयान पहले हो चुका है।

 

 

173.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत हैं कि एक औरत ने उनसे पूछा कि क्या हमें पाकी के दिनों की नमाजें काफी हैं। हैज की नमाजों की क्या जरूरी नहीं? आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो ने फरमाया : तू हरूरीया यानी खारजी मालूम होती है, हमें नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जमाने में हैज आता तो आप हमें नमाज की कजा का हुक्म नहीं देते थे, या फरमाया कि हम कजा नहीं पढ़ती थी। इस मसले पर इत्तिफाक हैं। अलबत्ता चन्द ख्वारिज का मानना है कि हैज वाली औरत को फरागत के बाद छूटी हुई नमाजों की कजा देना चाहिए। शायद इसी लिए हजरता आइशा ने सवाल करने वाली को हरूरीया कहा है। क्योंकि यह एक ऐसे मकाम की तरफ निसबत है, जहां खारजी इकट्ठे हुये थे।

 

 

174.उम्मे सलमा रजि अल्लाह तआला अन्हो से हैज के बारे में हदीस पहले गुजर चुकी है, जिसमें है कि वह हैज की हालत में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ एक चादर में लेटी होती थीं और उसमें यह भी बयान किया गया हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रोजे की हालत में उनके साथ बोसो यानी चुम्मा लेते थे।

 

 

175.उम्मे अतिय्या रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह फरमाते सुना है कि आजाद औरतें पर्दा नशीन औरतें और हैज वाली औरतें सब ईद के लिए बाहर निकलें और मुसलमानों की अच्छी मजलिसों और दुआ में शामिल हों। मगर हैज वाली औरतें नमाज की जगह से अलग रहें, किसी ने पूछा कि हैज वाली औरतें भी शरीक हों? तो उम्मे अतिय्या रजि अल्लाह तआला अन्हो ने जवाब दिया कि क्या हैज वाली औरतें अरफात और फलां फलां मकामात पर नहीं हाजिर होतीं?

 

 

176.उम्मे अतिय्या रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि हम मटियालापन और जर्दी को कुछ समझते थे। यानी उसे हैज खयाल करते थे। अगर खास दिनों में इस रंग का खून निकले तो उसे हेज ही समझा जायेगा, अगर दूसरे दिनों में देखा जाये तो उसे हैज खयाल किया जाये।

 

 

177.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अर्ज किया अल्लाह रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! आपकी बीवी सफिय्या को हैज गया है, आपने फरमाया, शायद वह हमें रोक रखेगी? क्या उसने तुम्हारे साथ तवाफे इफाजा नहीं किया? उन्होंने कहा तवाफ तो कर चुकी है, आपने फरमाया, तो फिर चलो क्योंकि तवाफे विदा हैज वाली औरत के लिए जरूरी नहीं तवाफे इफाजा जुलहिज्जा की दसवीं तारीख को किया जाता है, यह फर्ज और हज का रूकन है, अलबत्ता तवाफे विदा जो काअबा से रूख्सत होते वक्त किया जाता है, वह हैज वाली औरत के लिए जरूरी नहीं है।

 

 

178.समुरा बिन जुन्दुब रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि एक औरत निफास के दौरान मर गयी तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसकी जनाजे की नमाज़ अदा की और जनाजा पढ़ते वक्त उसकी कमर के सामने खड़े हुए।

 

 

179.मैमूना रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि जब वह हैज से होती और नमाज पढ़ती तो भी नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सज्दागाह के पास लेटी रहती। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी चादर पर नमाज पढ़ते, जब सज्दा करते तो आपका कुछ कपड़ा उनसे छू जाता था। मालूम हुआ कि नमाज के बीच हैज वाली औरत से कपड़ा छू जाने या उसके बिस्तर की तरफ मुंह करके नमाज पढ़ने में कोई हर्ज नहीं।

 

 

 

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