180.इबने उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,वह फरमाते हैं कि जब मुसलमान मदीना मुनव्वरा आये तो नमाज़ के वक्त अन्दाजा करके उसके लिए जमा हुआ करते थे, क्योंकि बाकायदा अजान न दी जाती थी। एक दिन उन्होंने इसके बारे मे मशवरा किया तो किसी ने कहा,ईसाइयों के तरह नाकूस घंटा बना लिया जाये और कुछ लोगों ने कहा कि यहूदियों के बिगुल की तरह नरसंघा बनाओ। मगर हजरत उमर ने फरमाया कि तुम एक आदमी को वयों नहीं मुकर्रर करते, जो नमाज़ के लिए अज़ान दे दिया करे तो रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, ऐ बिलाल उठो और अजान दो। इससे यह भी मालूम हुआ कि अजान खड़े होकर कहना चाहिए। नीज इन्बने माजा की रिवायत में हज़रत बिलाल के बारे में आपने फरमाया कि वह अच्छी और बुलन्द आवाज़ वाले हैं। इसलिए मौअज्जिन (अजान देने वाले) को इन खुबियों वाला होना चाहिए।
181.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि हजरत बिलाल को यह हुक्म दिया गया था कि अजान में जोड़े-जोड़े कलमात कहे और तकबीर में “कद कामतिस्सलात” के अलावा दीगर कलमात ताक (वित्र) कहें। कद कामतिस्सलात को दोबारा इसलिए कहा जाता है कि इकामत का मकसद इन्हीं कलिमात से अदा होता है ।
182.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, जब नमाज के लिए अजान कही जाती है तो शैतान हवा निकालता हुआ पीठ फेरकर भागता है। ताकि अजान की आवाज न सुन सके। और जब अजान पूरी हो जाती है तो वापस आ जाता है। फिर जब नमाज़ के लिए तकबीर कही जाती है तो फिर पीठ फेर कर भाग जाता है। और जब तकबीर खत्म हो जाती है तो फिर सामने आता है ताकि नमाजी और उसके दिल में वसवसा डाले और कहता है, यह बात याद कर, वह बात याद कर। यानी वह बातें जो नमाजी भूल गया था, यहां तक कि नमाजी भूल जाता है कि उसने कितनी नमाज पढ़ी? आज बेशुमार शैताननुमा इन्सान ऐसे हैं जो अजान की आवाज़ सुनकर अपने दुनियावी कारोबार में लगे रहते हैं और नमाज़ के लिए मस्जिद में हाजिर नहीं होते। ऐसे लोगों का किरदार शैतान से कम नहीं है।
183.अबू सईद खुदरी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने कहा, मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुना। आप फरमा रहे थे कि अज़ान देने वाले की आवाज को जो जिनन और इन्सान या और कोई सुनता है, वह उसके लिए कयामत के दिन गवाही देगा। इस हदीस से जोर से अज़ान कहने की फजीलत साबित होती है। चाहे जंगल में ही क्यों न हो। यह ख्याल न किया जाये कि यहां कोई हाजिर होने वाला नहीं। लिहाजा आहिस्ता कह दी जाये।
184.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि हम जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ किसी से जिहाद करते तो हमला न करते यहां तक दिन कि सुबह हो जाये। फिर अगर अजान सुन लेते तो हमले का इरादा छोड़ देते और अगर अज़ान न सुनते तो उन पर हमला करते। अज़ान इस्लाम की एक बहुत बड़ी निशानी है। इसका छोड़ना किसी सूरत में जाइज नहीं। जिस बस्ती से अजान की आवाज़ बुलन्द हो, इस्लाम उस बस्ती के लोगो के जान और माल की गारन्टी देता है। अगर बस्ती वाले अज़ान कहना छोड़ दें तो उनके खिलाफ जिहाद करना ठीक है।
185.अबू सईद खुदरी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूअल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, जब तुम अजान सुनो तो वही कलमात कहो जो अजान देने वाला कह रहा है। मालूम हुआ कि अजान से पहले तस्वीह और तहलील या दरूद और सलाम पढ़ना जाइज नहीं।
186.मुआविया रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उन्होंने अशहदु अन्ना मुहम्मद रसूलुल्लाह तक अजान देने वाले की तरह कहा, मगर जब अजान देने वाले ने “हय्या अल्लस्सलाह” कहा तो उन्होंने “ला हौला वला कुव्वता इल्ला बिल्लाह'' कहा और बताया कि मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इसी तरह कहते सुना है।
187.जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जो आदमी अज़ान सुनते वक्त यह दुआ पढ़े, ऐ अल्लाह! जो इस पूरी पुकार और कायम होने वाली नमाज़ का मालिक है। मुहम्मद सल्लललाहु अलैहि वसल्लम को वसीला और बुजुर्गी अता करके उन्हें मकामे महमूद पर पहुंचा, जिसका तूने उनसे वादा किया है। तो उसे कयामत के दिन मेरी शिफाअत नसीब होगी। कुछ लोगों ने मसनून दुआओं में अपनी तरफ से कुछ अलफाज बढ़ा लिये हैं, ऐसा करना शरीअत में जाईज नहीं है।
188.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, अगर लोगों को मालूम हो जाये कि अज़ान और अव्वल सफ में क्या सवाब है फिर अपने लिए कुरा डालने के अलावा कोई चारा नहीं पायें तो जरूर कुरा अन्दाजी करें और अगर लोगों को इल्म हो कि जुहर की नमाज के लिए जल्दी आने में कितना सवाब है तो जरूर सबकत करें और अगर जान लें कि इशा और फजर जमाअत के साथ अदा करने में क्या सवाब है तो जरूर दोनों की जमाअत में आयेंगे। अगरचे घूटनों के बल चलकर आना पड़े।
189.इबने उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, बिलाल रात को अजान देते हैं। इसलिए तुम रोजा के लिए खाते पीते रहो यहां तक कि इबने उम्मे मकतूम रजि अल्लाह तआला अन्हो अजान दें। रावी हदीस कहते हैं कि इब्ने उम्मे मकतूम रजि अल्लाह तआला अन्हो एक नाबिना (अंधे) आदमी थे। उस वक्त तक अजान न देते, यहां तक कि उनसे कहा जाता सुबह हो गयी, सुबह हो गयी। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की रिसालत के जमाने से ही सहरी की अजान कहने का दस्तूर चला आ रहा है, जो लोग इस अजाने अव्वल की मुखालिफत करते हैं, उनकी राय सही नहीं है। अलबत्ता इसे अज़ान तहज्जुद नहीं खयाल करना चाहिए। क्योंकि इसका मकसद यूँ बयान हुआ कि तहज्जुद पढ़ने वाला घर वापस चला जाये और सोने वाला जागकर नमाज की तैयारी करे और न ही उसे फज की अजान से बहुत पहले कहना चाहिए।
190.हफ्सा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आदत थी कि जब अजान देने वाला सुबह की अज़ान के लिए खड़ा हो जाता और सुबह नुमाया हो जाती तो आप फर्ज नमाज़ खड़ी होने से पहले हल्की सी दो रकअतें पढ़ लिया करते थे। यह फजर की सुन्नतें थी, जिन्हें आप सफर और घर में जरूर अदा करते थे।
191.अब्दुल्ला बिन मसऊद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, वह नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हैं आपने फरमाया तुममें से कोई बिलाल की अज़ान सुनकर सहरी खाना न छोड़े, क्योंकि वह रात को अजान कह देता है। ताकि तहज्जुद पढ़ने वाला आराम के लिए लौट जाये और जो अभी सोया हुआ है, उसे जगा दे। फज्र ऐसे नहीं है और आपने अपनी उंगलियों से इशारा करते हुए पहले उनको ऊपर उठाया, फिर आहिस्ता नीचे की तरफ झुकाया। फिर फरमाया कि फज्र इस तरह होती है। आपने अपनी दोनों गवाही की उंगलियां एक दूसरे के ऊपर रख कर उन्हें दायें-बायें फैला दिया (यानी दोनों गोशों में रोशनी फैल जाये तो सुबह होती है।)
192.अब्दुल्लाह बिन मुगफ्फल मुजनी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तीन बार फरमाया, हर दो अजान के बीच नमाज है। अगर कोई पढ़ना चाहे, एक और रिवायत में है कि आपने फरमाया, हर दो अज़ान के बीच एक नमाज है। हर दो अजान के बीच नमाज है, फिर तीसरी दफा फरमाया अगर कोई पढ़ना चाहे।
193.मालिक बिन हुवैरिस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मैं अपनी कौम के चन्द आदमियों के साथ नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुआ और बीस रातें आपके पास ठहरे। आप इन्तहाई रहमदिल और बड़े मिलनसार थे। जब आपने देखा कि हमारा शौक घर वालों की तरफ है तो इरशाद फरमाया कि अपने घर लौट जाओ, अपने बीवी-बच्चों के साथ रहो, उन्हें दीन की तालिम दो और नमाज पढ़ा करो, अज़ान का वक्त आये तो तुम में कोई अज़ान कह दे और तुममें से जो बड़ा हो, वह इमांमत कराये। इमाम बुखारी का मकसद यह है कि सफर में सुबह की दो अजानें न कही जायें, बल्कि एक अजान ही काफी है।
194.मालिक बिन हुवैरिस रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है कि दो आदमी खुद मालिक और उनके एक दोस्त नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हांजिर हुये। वह सफर करना चाहते थे तो उनसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, जब तुम सफर के लिए निकलो और नमाज का वक्त आ जाये तो अज़ान देना और तकबीर कहना, फिर दोनों में वह इमामत कराये जो (उम्र में) बड़ा हो।
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