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08.नमाज के वक़्तों का बयान (Hadith no 195-235)

 

195.अबू मसऊद अन्सारी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि वह मुगीरा बिन शुअबा के पास गये और एक दिन जब वह इराक में थे, नमाज में कुछ देर हो गई तो अबू मसऊद ने उनसे कहा, मुगीरा! तुमने यह क्या किया? क्या आपको मालूम नहीं कि एक दिन जिब्राईल आये और उन्होंने नमाज़ पढ़ी तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भी साथ पढ़ी। फिर दूसरी नमाज़ का वक्त हुआ तो जिब्राईल के साथ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नमाज़ पढ़ी। फिर तीसरी नमाज़ के वक्त जिब्राईल के साथ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नमाज़ अदा की। फिर (चौथी नमाज़ का वक्त हुआ) तो फिर भी दोनों ने इक्ट्ठे नमाज़ अदा की, फिर (पांचवी नमाज के वक्त) जिब्राईल ने नमाज़ पढ़ी तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने साथ ही नमाज़ अदा की। उसके बाद आपने फरमाया कि मुझे इसका हुक्म दिया गया था।

 

 

196.हुजैफा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि हम हजरत उमर के पास बैठे हुए थे तो उन्होंने पूछा कि तुम में से किसको फितनों के बारे में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान याद है? मैंने कहा, मुझे ठीक उसी तरह याद है, जिस तरह आपने फरमाया, बेशक तुम ही इस किस्म की बात करने के बारे में हिम्मत कर सकते हो। मैंने कहा कि इन्सान का वह फितना जो उसके घरबार, माल औलाद और उसके पड़ौसियों में होता है। उसे तो नमाज रोजा, सदका खैरात, अच्छी बातों का हुक्म और बुरी बातों से रोकना ही मिटा देता है। हजरत उमर ने फरमाया कि मैं इसके बारे में नहीं पूछना चाहता, बल्कि वह फितना जो समन्दर के मौज मारने की तरह होगा, हुजैफा ने कहा, मोमिनों के अमीर! उस फितने से आपको कोई खतरा नहीं है? क्योंकि उसके और आपके बीच एक बन्द दरवाजाहै, यह दरवाजा आड़ किये हुए है। हजरत उमर ने फरमाया, बताओ, वह दरवाजा खोला जायेगा या तोड़ा जायेगा। हुजैफा ने कहा, वह तोड़ा जायेगा। इस पर हजरत उमर कहने लगे तो फिर कभी बन्द ना होगा। जब हुजैफा से पूछा गया कि क्या हजरत उमर दरवाजे को जानते थे? उन्होंने कहा, हां जैसे आने वाले दिन से पहले रात आती है। मैंने उनसे ऐसी हदीस बयान की है जो मुअम्मा नहीं है। हुजैफा से दरवाजे के बारे में पूछा गया तो वह कहने लगे कि यह दरवाजा खुद हजरत उमर थे।हजरत हुजैफा का मतलब यह था कि हजरत उमर को शहीद कर दिया जायेगा। और आपकी शहादत से फितनों का बन्द दरवाजा ऐसा खुलेगा, जो कयामत तक बन्द नहीं होगा। बिलाशुबा ऐसा ही हुआ। आपके रूख्सत होते ही तरह तरह के फितने जाहिर होने लगे।

 

 

196.अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि एक आदमी ने किसी औरत का बोसा ले लिया। फिर वह नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम के पास हाजिर हुआ और आपसे अपना जुर्म बयान किया तो अल्लाह तआला ने ये आयत नाजिल फरमायी, “ पैगम्बर सल्ललाहु अलैहि वसल्लम! दिन के दोनों किनारों और रात गये नमाज कायम करो बेशक नेकियाँ बुराईयों को मिटा देती हैं।'' वह शख्स कहने लगा, अल्लाह के रसूल सल्लललाहु अलैहि वसल्लम! क्या यह मेरे ही लिए है? आपने फरमाया बल्कि मेरी तमाम उम्मत के लिए है। आयत में जिक्र की गई बुराईयों से मुराद छोटे गुनाह हैं। क्योंकि हदीस में है कि एक नमाज़ दूसरी नमाज़ तक गुनाहों को मिटा देती है। जब तक कि वह बड़े गुनाहों से बचा रहे।

 

 

197.अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है। उन्होंने फरमाया कि मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछा, अल्लाह तआला को कौनसा अमल ज्यादा पसन्द है, आपने फरमाया नमाज को उसके वक्त पर अदा किया जाये। इब्ने मसऊद ने पूछा उसके बाद (कौनसा)? आपने फरमाया, मां-बाप की फरमां बरदारी। इबने मसऊद ने पूछा, उसके बाद? आपने फरमाया, अल्लाह की राह में जिहाद करना। इबने मसऊद फरमाते हैं कि आपने मुझ से इसी कद्र बयान फरमाया अगर मैं और पूछता तो ज्यादा बयान फरमाते। कुछ हदीसों में दूसरे कामों को अफजल करार दिया गया है। इसकी यह वजह है कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम हर शख्स की हालत और उसकी ताकत और सलाहियत देखकर उसके लिए जो काम बेहतर होता, बयान फरमाते थे।

 

 

198.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम से सुना। आप फरमाते थे, अगर तुममें से किसी के दरवाजे पर कोई नहर हो जिसमें वह हर रोज पांच बार नहाता हो तो कया तुम कह सकते हो कि फिर भी कुछ मैल कुचैल बाकी रहेगी। सहाबा किराम ने अर्ज किया, ऐसा करना कुछ भी मैल कुचैल नहीं छोड़ेगा। आपने फरमाया कि पांचों नमाजों की यही मिसाल है। अल्लाह तआला इन की वजह से गुनाहों को मिटा देता है। सही मुस्लिम की रिवायत के मुताबिक गुनाहों से मुराद छोटे गुनाह हैं, नमाज़ की वक्त पर अदायगी से इस किस्म का कोई गुनाह बाकी नहीं रहता।

 

 

199.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि वह नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हैं कि आपने फरमाया, सज्दा अच्छी तरह तसलली से करो और तुममें से कोई भी अपने बाजुओं को कुत्ते की तरह बिछाये और जब थूकना चाहे तो अपने आगे और अपनी दायी तरफ थूके, क्योंकि वह अपने रब से बात कर रहा होता है।

 

 

200.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हैं कि आपने फरमाया, जब गर्मी ज्यादा हो तो नमाज (जुहर) ठण्डे वक्त पढ़ा करो। क्योंकि गर्मी की तेजी जहन्नम के जोश मारने से होती है। आग ने अपने रब से शिकायत पर की, “' मेरे रब! मेरे एक हिस्से ने दूसरे को खा लिया तो अल्लाह ने उसे दो बार सांस लेने की इजाजत दी, एक सर्दी में, दूसरी गर्मी में। इस वजह से गर्मी के मौसम में तुम्हें सख्त गर्मी और सर्दी के मौसम में तुम्हें सख्त सर्दी महसूस होती है। ठण्डा करने से मकसूद नमाज़ का जवाल के बाद अदा करना है। यह मतलब नहीं है कि साया के एक मिस्ल होने का इन्तजार किया जाये। क्योंकि उस वक्त तो असर की नमाज़ का वक्त शुरू हो जाता है। नीज जहन्नम की शिकायत को हकीकत में मानना चाहिए। इसकी तावील करना दुरूस्त नहीं, क्योंकि अल्लाह तआला अपनी मखलूक में से जिसे चाहे, बोलने की ताकत से नवाज देता है।

 

 

201.अबू जर गिफारी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है उन्होंने फरमाया कि हम नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम के साथ एक सफर में थे। अजान देने वाले ने जुहर की अजान देना चाही तो नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, वक्त को जरा ठण्डा हो जाने दो। फिर उसने अजान देने का इरादा किया तो आपने फिर फरमाया, वक्त को जरा ठण्डा हो जाने दो। यहां तक कि हमने टीलों का साया देखा। इमाम बुखारी ने इस हदीस पर यूँ उनवान कायम किया है, सफर के दौरान जुहर को ठण्डे वक्त में अदा करना इससे मुराद आखिर वक्त अदा करना नहीं है।

 

 

202.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि एक बार रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सूरज ढ़लने पर बाहर तशरीफ लाये, जुहर की नमाज पढ़ कर मिम्बर पर खड़े हुये तो कयामत का जिक्र करते हुए फरमाया, उसमें बड़े बड़े किस्से होंगे। फिर आपने फरमाया, जो शख्स कुछ पूछना चाहता है, पूछ ले। जब तक मैं इस मकाम में हूँ, मुझ से जो बात पूछोगे, बताऊंगा। लोग कसरत से रोने लगे। लेकिन आप बार बार यही फरमाते, मुझ से पूछो तो अब्दुल्लाह बिन हुजाफा सहमी खड़े हो गये, उन्होंने पूछा मेरा बाप कौन है? आपने फरमाया, तुम्हारा बाप हुजाफा है। फिर आपने फरमाया, मुझ से पूछो आखिरकार हजरत उमर (अदब से) दो जानों बैठकर अर्ज करने लगे कि हम अल्लाह के रब होने, इस्लाम के दीन होने और हजरत मुहम्मद सल्लललाहु अलैहि वसल्लम के नबी होने पर राजी हैं। इस पर आप खामोश हो गये। फिर फरमाया, अभी दीवार के इस कोने में मेरे सामने जन्नत और दोजख को पेश किया गया तो मैंने जन्नत की तरह उमदा और दोजख की तरह बुरी कोई चीज नहीं देखी। इस हदीस का कुछ हिस्सा किताबुल इल्म में अबू मूसा की रिवायत में बयान हो चुका है। लेकिन अलफाज की ज्यादती और कुछ तब्दीली की वजह से यहां दोबारा जिक्र किया गया है। हजरत अब्दुल्लाह बिन हुजाफा को लोग किसी और का बेटा कहते थे, लिहाजा उन्होंने सही हकीकत मालूम करना चाही। रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम के जवाब से वह बहुत खुश हुये।

 

 

203.अबू बरजा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्हों ने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फजर की नमाज ऐसे वक्त पढ़ते कि आदमी अपने करीब वाले को पहचान लेता अंदर आप जुहर उस वक्त पढ़ते जब सूरज ढ़ल जाता और असर ऐसे वक्त पढ़ते कि उसके बाद हम से कोई मदीना के आखरी किनारे पर अपने घर में वापिस जाता। लेकिन सूरज की धूप अभी तेज होती। अबू बरजा ने मगरिब के बारे में जो फरमाया, वह रावी भूल गया और तिहाई रात तक इशा का नमाज पढ़ते और इशा की देरी में आपको कोई परवाह होती फिर अबू बरजा रजि अल्लाह तआला अन्हो ने (दोबारा) कहा, आधी रात गुजरने पर पढ़ते थे।

 

 

204.इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मदीना मुनव्वरा में जुहर और असर की आठ रकअतें और मगरिब, इशा की सात रकअतें एक साथ) पढ़ी। दीगर सही रिवायतों में सफर, डर और बारिश वगैरह के होने का बयान मौजूद है। मुमकिन है कि किसी काम में लगे होने की वजह से नमाजों को जमा किया हो। मेरा अपना रूझान इस तरफ है कि तकरीर और इरशाद में लगे रहने की वजह से आपने ऐसा किया, जैसा कि मुस्लिम की रिवायत में इसका इशारा मिलता है। इमाम बुखारी और नवाब सिद्दीक हसन खान का रूझान जमा सूरी की तरफ है।

 

 

205.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो की वही हदीस जो नमाजों के बारे पहले गुजर चुकी है, इस रिवायत में इशा के जिक्र के बाद यह इजाफा है कि आप इशा से पहले सोने और उसके बाद बातें करने को नापसन्द ख्याल करते थे। इशा की नमाज के बाद दुनियावी बातों को रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने नापसन्द फरमाया है। अलबत्ता दीनी बातें की जा सकती हैं।

 

 

206.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है। उन्होंने फरमाया कि हम रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम के साथ असर की नमाज पढ़ लेते, फिर कोई शख्स कबीला अग्र बिन औफ तक जाता तो उन्हें असर की नमाज पढ़ता हुआ पाता। इन रिवायतों से यही मालूम होता है कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम के मुबारक जमाने में असर की नमाज अव्वल वक्त एक मिस्ल साया होने पर अदा की जाती थी।

 

 

207.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम असर की नमाज उस वक्त पढ़ते थे,जब सूरज बुलन्द और तेज होता और अगर कोई अवाली तक जाता तो उनके पास ऐसे वक्त पहुंच जाता कि सूरज अभी बुलन्द होता था और अवाली की कूछ जगहें मदीना से कम और ज्यादा चार मील पर आबाद थी।

 

 

208.इबने उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, जिस शख्स से असर की नमाज छूट गयी, गोया उसका सब घर-बार माल और दौलत लूट गयी। यह अजाब बगेर जानबूझ कर असर की नमाज़ छूट जाने के बारे में है

 

 

209.बुरैदा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उन्होंने एक अबर वाले दिन में फरमाया कि असर की नमाज़ जल्दी पढ़ लो। क्योंकि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया है कि जिसने असर की नमाज छोड़ दी, तो यकीनन उसके नेक अमल बेकार हो गये। आमाल के बेकार होने का मतलब यह है कि अमलों के सवाब से महरूम रहेगा, यह सख्त धमकी इसलिए है कि असर की नमाज का खासतौर पर ख्याल रखा जाये।

 

 

210.जरीर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि हम नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम के पास थे कि आपने एक रात चांद की तरफ देखकर फरमाया, बेशक तुम अपने रब को इस तरह देखोगे, जैसे इस चांद को देख रहे हो। उसे देखने में तुम्हें कोई दिक्कत होगी। लिहाजा अगर तुम (पाबन्दी) कर सकते हो कि सूरज निकलने और डूबने से पहले की नमाजों पर (पाबन्दी करो और शैतान से) कमजोर हो जाओ तो बेहतर है। फिर आपने यह तिलावत फरमाईसूरज निकलने और उसके डूबने से पहले अपने रब की हम्द और बड़ाई के साथ उसकी तस्वींह करते रहो।

 

 

211.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, कुछ फरिश्ते रात को और कुछ दिन को तुम्हारे पास लगातार आते हैं और यह तमाम फजर और असर की नमाज़ में जमा हो जाते हैं। फिर जो फरिश्ते रात को तुम्हारे पास आते हैं, जब वह आसमान पर जाते हैं तो उनसे उनका रब पूछता है, हालांकि वह खुद अपने बन्दों को खूब जानता है कि तुमने मेरे बन्दों को किस हाल में छोड़ा है? वह जवाब देते हैं कि हमने उन्हें नमाज़ पढ़ते छोड़ा और जब हम उनके पास पहुंचे थे तो भी वह नमाज पढ़ रहे थे।

 

 

212.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है, उन्होंने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, जब तुममें से कोई सूरज डूबने से पहले असर की एक रकअत पढ़ ले तो, उसे चाहिए कि अपनी नमाज़ पूरी कर ले और जो कोई सूरज निकलने से पहले फजर की एक रकअत पढ़ ले तो उसे भी चाहिए कि अपनी नमाज पूरी कर ले। इस पर तमाम इमामों का इत्तिफाक है। लेकिन कुछ लोगों ने कहा है कि असर की नमाज़ तो सही है लेकिन फजर की नमाज़ सही होगी उनकी यह बात सही हदीस के खिलाफ है।

 

 

213.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह फरमाते सुना कि तुम्हारा (दीन और दुनिया में) रहना पहली उम्मतों के ऐतबार से ऐसा है, जैसे असर की नमाज से सूरज डूबने तक, तौरात वालों को तौरात दी गई। उन्होंने उस पर आधे दिन तक काम किया और थक गये तो उन्हें एक एक कीरात दिया गया। फिर इन्जील वालों को इन्जील दी गई जो असर की नमाज तक काम करके थक गये। तो उन्हें भी एक एक कीरात दिया गया। उसके बाद हमें कुरआन दिया गया तो हमने सूरज डूबने तक काम किया, इस पर हमें दो दो कीरात दिये गये। पस उन दोनों किताब वालों ने कहा, हमारे रब तूने मुसलमानों को दो-दो कीरात दिये और हमें एक एक कीरात दिया। हालांकि हमने इनसे ज्यादा काम किया है। अल्लाह तआला ने फरमाया, क्या मैंने मजदूरी देने में तुम पर कोई ज्यादती की है? उन्होंने अर्ज कियानहींतो अल्लाह ने फरमाया, फिर यह मेरा फज्ल है, जिसे चाहता हूँ देता हूँ। कुछ वक्तों में किसी काम के एक हिस्से पर पूरी मजदूरी मिल जाती है। इसी तरह अगर कोई फजर या असर की नमाज की एक रकअत पा ले, उसे अल्लाह बरवक्त पूरी नमाज़ अदा करने का सवाब देता है।

 

 

214.राफे बिन खदीज रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि हम नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम के साथ मगरीब की नमाज़ पढ़ते थे और जब हममें से कोई वापस जाता (और तीर फैकता) तो वह तीर के गिरने की जगह को देख लेता। इससे मालूम हुआ कि सूरज डूबने के बाद नमाज़ की अदायगी में देर नहीं करनी चाहिए। दूसरी हदीसों से यह भी साबित होता है कि सहाबा--किराम मगरिब की अजान के बाद दो रकअत भी पढ़ते थे और फरागत के बाद तीर अन्दाजी करते। उस वक्त इतना उजाला रहता कि अपने तीर गिरने की जगह को देख लेते।

 

 

215.जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जुहर की नमाज ठीक दोपहर को पढ़ते थे और असर की ऐसे वक्त जब सूरज साफ और तेज होता और मगरिब की जब सूरज डूब जाता और इशा की कभी किसी वक्त और कभी किसी वक्त। जब आप देखते कि लोग जमा हो गये, तो जल्द पढ़ लेते और अगर लोग देर से जमा होते तो देर से पढ़ते और सुबह की नमाज़ आप या सहाबा--किराम अन्धेरे में पढ़ते

 

 

216.अब्दुल्ला रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, ऐसा हो कि मगरिब की नमाज के नाम के लिए देहाती लोगों का मुहावरा तुम्हारी जुबानों पर चढ़ जाये रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि देहाती मगरिब को इशा कहते थे। देहाती लोग मगरिब की नमाज को इशा और इशा की नमाज को अत्मा (अंधेरे) से याद करते। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि 'वसल्लम ने हिदायत फरमाई कि इन्हें मगरिब और इशा के नाम से ही पुकारा जाये। अगरचे बाज मौकों पर इशा की नमाज को अंधेरे की नमाज भी कहा गया है, इसलिए इसे जाइज होने का दर्जा तो दिया जा सकता है, मगर बेहतर यह है कि इसे इशा ही के लफ्ज से याद किया जाये। क्योंकि कुरआन मजीद में इसके लिए यही नाम इस्तेमाल हुआ है।

 

 

217.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उन्होंने फरमाया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एकरात इशा की नमाज में देर कर दी। यह वाक्या इस्लाम के फैलने से पहले का है आप अभी घर से तशरीफ नहीं लाये थे कि उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो ने आकर अर्ज किया कि औरतें और बच्चे सो रहे हैं। तब आप बाहर तशरीफ लाये और फरमाया, जमीन वालों में तुम्हारे अलावा कोई भी इस नमाज़ का इन्तिजार करने वाला नहीं है। मालूम हुआ कि इशा की नमाज में देर करना एक पसन्दीदा अमल है। खुद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तिहाई रात गुजरने पर इशा पढ़ने की ख्वाहिश जाहिर की।

 

 

218.अबू मूसा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मैं और मेरे साथी जो कश्ती में मेरे साथ थे, बुत्हा की वादी में ठहरे हुये थे, जबकि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम मदीना मुनव्वरा में ठहरे हुए थे। तो उनसे एक गिरोह बारी बारी हर रात इशा की नमाज़ के वक्त नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाजिर होता था। इत्तेफाक से एक बारहम सब यानी मैं और मेरे साथी नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम के पास गये। चूंकि आप किसी काम में लगे हुए थे। इसलिए ईशा की नमाज में आपने देर की। यहां तक कि आधी रात गुजर गयी। उसके बाद नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बाहर तशरीफ लाये और लोगों को नमाज़ पढ़ायी। नमाज से फारिग होने के बाद मौजूद लोगों से फरमाया कि इज्जत और सुकून के साथ बैठे रहो और खुश हो जाओ क्योंकि अल्लाह तआला का तुम पर एहसान है कि तुम्हारे सिवा कोई आदमी इस वक्त नमाज़ नहीं पढ़ता या इस तरह फरमाया कि तुम्हारे अलावा इस वक्त किसी ने नमाज नहीं पढ़ी। मालूम नहीं, इन दोनों जुम्लों में से कौनसा जुम्ला आपने इरशाद फरमाया। अबू मूसा फरमाते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से यह बात सुनकर हम खुशी खुशी वापिस लौट आये।

 

 

219.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से जो हदीस पहले बयान हुई है कि एक बार रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने इशा की नमाज में इस कदर देर कर दी कि उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो ने आकर आपसे अर्ज किया (औरतें और बच्चे सो रहे हैं) यहां इस रिवायत में इस कदर इजाफा है कि आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो ने फरमाया, सहाबा--किराम सुर्खी गायब होने के बाद रात की पहली तिहाई तक (किसी वक्त भी) इस नमाज को पढ़ लेते थे। इब्ने अब्बास से एक रिवायत है कि फिर अल्लाह के नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम निकले जैसे मैं उस वक्त आपक तरफ देख रहा हूँ कि आपके सर से पानी टपक रहा है। जबकि आप अपना हाथ सर पर रखे हुए हैं। आपने फरमाया, अगर मैं अपनी उम्मत पर भारी समझता तो हुक्म देता कि इशा की नमाज़ इस तरह (इस वक्त) पढ़ा करें | इस हदीस का उनवान से इस तरह ताल्लुक है कि सहाबा किराम देर की वजह से नमाज़ से पहले सो गये थे। ऐसे हालात में इशा की नमाज से पहले सोना जाईज हे। शर्त यह है कि इशा की नमाज जमाअत के साथ अदा की जा सके।

 

 

220.अबू मूसा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, जो शख्स दो ठण्डी नमाजें वक्त पर पढ़ेगा वह जन्नत में दाखिल होगा। मुस्लिम की रिवायत में खुलासा है कि फजर और असर की नमाज मुराद है और यह दोनों ठण्डे वक्त में अदा की जाती हैं

 

 

221.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उनसे हजरत जैद बिन साबित ने हदीस बयान की कि सहाबा--किराम ने एक बार नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ सहरी खाई, फिर नमाज़ के लिए खड़े हो गये, मैंने उनसे पूछा कि (सहरी और नमाज) इन दोनों कामों में कितना वक्त था, उसने जवाब दिया कि पचास या साठ आयतों की तिलावत के बराबर। इस हदीस से यह भी साबित हुआ कि सहरी देर से खाना सुन्नत है। जो लोग रात ही में खाकर सो जाते हैं, वह सुन्नत के खिलाफ करते हैं।

 

 

222.सहल बिन सअद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मैं अपने घर वालों के साथ बैठ कर सहरी खाता, फिर मुझे जल्दी पड़ जाती कि मैं फ़जर की नमाज़ रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम के साथ अदा करूं इससे मालूम हुआ कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फजर की नमाज सुबह सवेरे ही पढ़ लिया करते थे। जिन्दगी भर आपका यही अमल रहा।

 

 

 

223.इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मेरे सामने चन्द अच्छे लोगों का बयान किया, जिसमें सबसे ज्यादा पसन्दीदा और ऐतबार के लायक हजरत उमर थे कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सुबह की नमाज के बाद सूरज की रोशनी से पहले और असर के बाद सूरज डूबने से पहले नमाज पढ़ने से मना फरमाया। साबित हुआ कि जिन वकक्तों में नमाज़ पढ़ने से मना किया गया है, उनमें नमाज पढ़ना ठीक नहीं, अलबत्ता फरजों की कजा और सबवी नमाज़ पढ़ी जा सकती है। मसलन मस्जिद में दाखिल होने की दो रकआतें, चांद और सूरज ग्रहण की नमाज़ और जनाजे की नमाज वगैरह।

 

 

224.इबने उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, सूरज निकलने और सूरज डूबने के वक्त अपनी नमाजें अदा करने की कोशिश किया करो।

 

 

225.इबने उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही एक रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, जब सूरज का किनारा है निकलने लगे तो नमाज़ छोड़ दो। यहां तक कि सूरज बुलन्द हो जाये और जब सूरज का किनारा डूबने लगे तो नमाज़ छोड़ दो यहां तक कि सूरज पूरा छिप जाये।

 

 

226.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो की हदीस है कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने दो किस्म की खरीद और फरोख्त और दो तरह के लिबास से मना फरमाया। यह हदीस पहले गुजर चुकी है। मगर इस रिवायत में उन्होंने कुछ इजाफा किया है कि दो नमाजों से भी मना किया है। फ़जर नमाज के बाद हर किस्म की नमाज़ से यहां तक कि सूरज अच्छी तरह निकल आये और असर की नमाज के बाद भी। यहां तक कि सूरज डूब जाये। दिन और रात में कुछ वक्त ऐसे हैं जिनमें नमाज़ अदा करना सही नहीं है। फजर की नमाज के बाद सूरज निकलने तक, असर की नमाज के बाद सूरज डूबने तक, सूरज निकलने और सूरज डूबते वक्त नीज दोपहर के वक्त जब सूरज आसमान के ठीक बीच में होता है, हां अगर फजर नमाज़ कजा हो गई हो तो उसका पढ़ लेना जाइज है। इसी तरह फजर की सुनतें अगर नमाज से पहले ना पढ़ी जा सकें तो उन्हें भी एअत के बाद पढ़ सकता है। जो लोग जमाअत होते हुये फजर की सुनतें पढ़ते रहते हैं,वह हदीस की खिलाफवर्जी करते हैं अलबत्ता मक्का मुकर्रमा इन तमाम मकरूहा वक्तों से अलग है।

 

 

227.मुआविया रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि तुम ऐसी नमाज पढ़ते हो, हम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ रहे हैं, लेकिन हमने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को वह नमाज़ पढ़ते नहीं देखा, बल्कि आपने तो उसकी मनाही फरमाई है। यानी असर के बाद दो रकअतें।

 

 

228.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि कसम है उस अल्लाह की जो रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम को दुनिया से ले गये। आपने असर के बाद दो रकाते तर्क नहीं फरमायीं, यहां तक कि आप अल्लाह से जा मिले और आपको वफात से पहले खड़े होकर नमाज़ पढ़ने में मुश्किल आती तो फिर ज्यादातर नमाज़ बैठकर अदा फरमाते थे। चूनांचे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम असर के बाद दो रकआतें हमेशा पढ़ा करते थे। लेकिन मस्जिद में नहीं पढ़ते थे। कहीं आपकी उम्मत पर गिरा हों। क्योंकि आपको अपनी उम्मत के हक में आसानी पसन्द थी। इस से यह भी मालूम हुआ कि असर के बाद सुन्नतों की कजा और फिर उसकी हमेशगी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खासियतों में दाखिल है।

 

 

229.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने दो रकाअतें असर के बाद छिपी और जाहिर दोनों हालतों में कभी नहीं छोड़ी। यानी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तन्हाई और सबके सामने इन सुन्नतों को अदा करते थे।

 

 

230.अबू कतादा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,उन्होंने फरमाया कि हम एक रात नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम के साथ सफर कर रहे थे। कुछ लोगों ने कहा, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम काश हम सब लोगों के साथ आखिर रात आराम फरमायें। आपने फरमाया, मुझे डर है कि नमाज़ के वक्त भी तुम सोये हुए रह जाओ। हजरत बिलाल बोले, मैं सब को जगा दूंगा। चूनाचे सब लोग लेट गये और हजरत बिलाल अपनी पीठ अपनी ऊँटनी से लगाकर बैठ गये। मगर जब उनकी आंखों पर नींद का गल्बा हुआ तो सो गये। फिर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ऐसे वक्त जागे कि सूरज का किनारा निकल चुका था। आपने फरमाया, बिलाल तुम्हारी बात कहां गयी? वह बोले, आज जैसी नींद मुझे कभी नहीं आयी। इस पर आपने फरमाया, अल्लाह तआला ने जब चाहा, तुम्हारी रूहों को कब्ज कर लिया और जब चाहा वापस कर दिया। बिलाल ! उठो और लोगों में नमाज के लिए अजान दो। उस के बाद आपने वुजू किया, जब सूरज बुलन्द होकर रोशन हो गया तो आप खड़े हुए और नमाज़ पढ़ाई। इससे मालूम हुआ कि जिस नमाज़ से आदमी सो जाये या भूल जाये, फिर जागने पर या याद आने पर उसे पढ़ ले तो नमाज़ कजा नहीं बल्कि अदा होगी। क्योंकि सही अहादीस में इसका वक्त वहीं बताया गया है जब वह जागे उसी वक्त पढ़ ले।

 

 

 

231.जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि हजरत उमर खन्दक के दिन आपकी कयामगाह में उस वक्त आये, जब सूरज डूब चुका था, और कुफ्फार कुरैश को बुरा भला कहने लगे। अर्ज किया, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सूरज डूब गया और असर की नमाज मेरे लिए पढ़ना मुमकिन रहा। आपने फ़रमाया, खुदा की कसम असर की नमाज मैं भी नहीं पढ़ सका। फिर हमने वादी बुत्हान का रूख किया। आपने नमाज के लिए वुजू फरमाया और हम सब ने भी वुजू किया। फिर आपने सूरज डूबने के बाद असर की नमाज अदा की, उसके बाद मगरिब की नमाज पढ़ाई। इसमें अगरचे जमाअत के साथ अदा करने का बयान नहीं फिर भी आपकी आदत यही थी कि लोगों के साथ जमाअत से नमाज पढ़ते, बल्कि कुछ रिवायतों में है कि आपने सहाबा--किराम के साथ नमाज़ अदा की। नीज यह भी मालूम हुआ कि छूटी हुई नमाजों को तरतीब से अदा करना चाहिए।

 

 

232.अनस बिन मालिक रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, वह नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हैं कि आपने फरमाया, जो शख्स नमाज़ भूल जाये तो याद आते ही उसे पढ़ ले। उसका यही कफ्फारा है, अल्लाह का फरमान है। नमाज़ को याद आने पर कायम कीजिए। इस हदीस से उन लोगों का रद्द मकसूद है जो कहते हैं कि छुटी हुई नमाज़ दो बार पढ़ी जाये। एक जब याद आये, फिर दूसरे दिन उसके वक्त पर भी अदा करें।

 

 

233.अनस बिन मालिक रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है, उन्होंने कहा, रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जब तक तुम नमाज़ के इन्तजार में हो, जैसे नमाज में ही हो। इमाम बुखारी ने इस हदीस पर यूँ उनवान- कायम किया है, इशा की नमाज के बाद इल्मी और भलाई की बाते की जा सकती है। क्योंकि इस हदीस में यह अलफाज भी है कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने इशा की नमाज के बाद लोगों को खुतबा दिया और नसीहत फरमायी।

 

 

234.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही मरवी एक और हदीस जो इखत्ताम सदी से मुताल्लिक है, पहले गुजर चुकी है, इस बाब में हजरत इबने उमर से भी रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, आज जो लोग जमीन पर है, उनमें कोई बाकी नहीं रहेगा, इससे आपका मतलब था कि (सौ बरस तक) यह सदी खत्म हो जायेगी। चुनांचे ऐसा ही हुआ। आपके इस फरमान के बाद कोई सहाबी जिन्दा रहा। आखरी सहाबी हजरत अबू तुफैल हैं जो 110 हिजरी को फौत हो गये।

 

 

235.अब्दुर्रहमान बिन अबू बकर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि सुफ्फा वाले नादार लोग थे और नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने इनके मुताल्लिक फरमाया था कि जिसके पास दो आदमियों का खाना हो, वह सुफ्फा वालों में से तीसरा आदमी ले जाये और अगर चार का हो तो पांचवां या छठा उनसे ले जाये चुनांचे हजरत अबू बकर सिद्दीक अपने साथ तीन आदमी ले गये और खुद नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम अपने साथ दस आदमी ले गये। हजरत अब्दुर्रहमान ने कहा कि घर में उस वक्त मैं और मेरे मां बाप थे। रावी कहता है कि मुझे याद नहीं कि अब्दुर्रहमान ने यह कहा या नहीं, कि मैं, मेरी बीवी और एक नौकर भी था जो मेरे और मेरे बाप के घर साझे में काम करते थे। खैर हजरत अबू बकर ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के घर रात का खाना खा लिया और थोड़ी देर के लिए वहां ठहर गये। फिर इशा की नमाज़ पढ ली गई और लौटकर फिर थोड़ी देर ठहरे। यहां तक कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने शाम का खाना दिया, उसके बाद काफी रात के बाद अपने घर आये तो उनकी बीवी ने कहा, तुम अपने मेहमानों को छोड़कर कहां अटक गये थे? वह है बोले क्या तुमने उन्हें खाना नहीं खिलाया? उन्होंने बताया कि आपके आने तक मेहमानों ने खाना खाने से इनकार कर दिया था। खाना पेश किया गया, लेकिन वह माने। अब्दुर्रहमान कहते हैं कि मैं तो मारे डर के कहीं जाकर छुप गया। हजरत अबू बकर ने कहा, लईम! बहुत सख्त सुस्त कहा और खूब कोसा। फिर मेहमानों से कहा, खाओ, तुम्हें खुशगवार हो और कहा अल्लाह की कसम! मैं हरगिज खाऊँगा। अब्दुर्रहमान कहते हैं कि अल्लाह की कसम! हम जब लुकमा लेते तो नीचे से ज्यादा बढ़ जाता यहां तक कि सब मेहमान सैर हो गये और जिस कदर खाना पहले था। उससे कहीं ज्यादा बच गया। अबू बकर ने खाना देखा वह वैसे ही बल्कि उससे ज्यादा था तो हजरत अबू बकर ने अपनी बीवी से कहा, कबीला बनू फिरास की बहन! यह क्या माजरा हैं? उन्होंने अर्ज किया, मेरी आंखों की ठण्डक! यह खाना इस वक्त पहले से तीन गुना है। बल्कि उससे भी ज्यादा। फिर उसमें से हजरत अबू बकर ने खाया और कहा, उनकी यह कसम शैतान ही की तरफ से थी। एक लुकमा उससे ज्यादा खाया और बाकी बचा खाना नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास उठाकर ले गये कि वह सुबह तक आपके पास पड़ा रहा। अब्दुर्रहमान कहते हैं हमारे और एक गिरोह के बीच कुछ अहद था, जिसकी मुद्दद गुजर चुकी थी तो हमने बारह आदमी अलग अलग कर दिये। उनमें से हर एक के साथ कुछ आदमी थे यह तो अल्लाह ही जानता है कि हर शख्स के साथ कितने कितने आदमी थे। उन सब ने उसमें से खाया।अब्दुर्रहमान ने कुछ ऐसा ही कहा। यह हजरत अबू बकर की करामत थी। वलियों की करामत बरहक हैं, मगर अहले बिदअत ने इस आड़ में जो फरेब खड़ा किया है, वह घड़ा हुआ और लायानी है। इमाम बुखारी का मकसूद यह है कि इशा के बाद अपने बीवी बच्चों से किसी मकसद के तहत गुफ्तगू की जा सकती है।

 

 

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