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09.नमाज का बयान (Hadith no 236-378)

 

236.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हों से रिवायत है, उन्होंने कहा अबू ज़र बयान करते थे कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, जब मैं मक्का में था तो एक रात मेरे घर की छत फटी। जिब्राईल उतरे। उन्होंने पहले मेरे सीने को फाड़ करके उसे जमजम के पानी से धोया, फिर ईमान और हिकमत से भरी हुई सोने की एक तश्त (प्लेट) लाये और उसे मेरे सीने में डाल दिया। बाद में सीना बन्द कर दिया, फिर उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे आसमान की तरफ ले चढ़े। जब मैं दुनियावी आसमान पर पहुंचा तो जिब्राईल ने आसमान के दरोगा से कहा, दरवाजा खोलो, उसने कहा कौन हो? बोले मैं जिब्राईल हूँ। फिर उसने पूछा यह तुम्हारे साथ कौन हैं? जिब्राईल ने कहा, मेरे साथ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं, उसने फिर पूछा कि उन्हें दावत दी गई है? जिब्राईल ने कहा, हां! उसने जब दरवाजा खोल दिया तो हम दुनियावी आसमान पर चढ़े, वहां हमने एक ऐसे आदमी को बैठे देखा जिसकी दायें तरफ बहुत भीड़ और बायें तरफ भी बहुत भीड़ थी। जब वो अपनी दायें तरफ देखता तो हंसता और जब बायीं तरफ देखता तो रो देता। उसने (मुझे देखकर) फरमाया कि नेक पैगम्बर अच्छे बेटे तुम्हारा आना मुबारक हो! मैंने जिब्राईल से पूछा, यह कौन हैं? उन्होंने जवाब दिया कि यह आदम अलैहि सलाम हैं और उनके दायें बायें बहुत भीड़ उनकी औलाद की रहें हैं। दायें तरफ वाली जन्नती और बायें तरफ वाली दोजखी हैं। इसलिए दायें तरफ नजर करके हंस देते हैं और बायें तरफ देखकर रो देते हैं। फिर जिब्राईल मुझे लेकर दूसरे आसमान की तरफ चढ़े और उसके दरोगा से कहा, दरवाजा खोलो। हज़रत अनस फरमाया कि अबू जर के बयान के मुताबिक रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आसमानों में आदम, इदरीस, मूसा, ईसा और इब्राहिम अलैहि सलाम से मुलाकात की, लेकिन उनकी डर सी जगहों को बयान नहीं किया। सिर्फ इतना कहा कि पहले आसमान पर आदम अलैहि सलाम और छठे आसमान पर इब्राहिम अलैहि सलाम को पाया। हजरत अनस ने फरमाया कि जब जिब्राईल अलैहि सलाम नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को लेकर इदरीस अलैहि सलाम के पास से गुज़रे तो उन्होंने फरमाया कि नेक पैगम्बर और अच्छे भाई खुशामदीद! मैंने पूछा, यह कौन हैं? जिब्राईल ने जवाब दिया, यह इदरीस अलैहि सलाम हैं। फिर मैं मूसा अलैहि सलाम के पास से गुज़रा तो उन्होंने भी यही कहा। फिर मैं ईसा अलैहि सलाम के पास से गुज़रा फिर मैं इब्राहिम अलैहि सलाम के पास से गुजरा तो उन्होंने भी कहा, नेक नबी और अच्छे बेटे तुम्हारा आना मुबारक हो! हजरत इब्ने अब्बास और अबू हब्बा अनसारी का बयान है कि सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, फिर ऊपर ले जाया गया। यहां तक कि मैं एक ऐसी ऊंची हमवार (प्लेन) जगह पर पहुंचा जहां मैं (फरिश्तों के) कलमों की आवाजे सुन रहा था अनस रजि अल्लाह तआला अन्हों का बयान है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, फिर अल्लाह तआला ने मेरी उम्मत पर पचास नमाजें फर्ज की हैं। यह हुक्म लेकर वापिस आया। जब मूसा अलैहि सलाम के पास से गुज़रा तो उन्होंने पूछा कि अल्लाह तआला ने आपकी उम्मत पर क्या फर्ज किया है? मैंने कहा (रात और दिन में) पचास नमाजें फर्ज की हैं। (इस पर) मूसा अलैहि सलाम ने कहा, अपने रब की तरफ लौट जाओ, क्योंकि आपकी उम्मत इन नमाजों का बोझ नहीं उठा सकेगी। चूनांचे मैं वापस गया तो अल्लाह तआला ने कुछ नमाजें माफ कर दी। मैं फिर मूसा अलैहि सलाम के पास आया और कहा, अल्लाह तआला ने कुछ नमाजें माफ कर दी हैं। उन्होंने कहा कि अपने रब के पास दोबारा जाओ। आपकी उम्मत इनको भी नहीं अदा कर सकती। मैं लौटा तो अल्लाह ने कुछ और नमाजें माफ कर दीं। मैं फिर मूसा अलैहि सलाम के पास आया और कहा, अल्लाह तआला ने कुछ नमाजें माफ कर दी हैं। उन्होंने कहा कि अपने रब के पास दोबारा जाओ। आपकी उम्मत इनको भी नहीं अदा कर सकती। मैं लौटा तो अल्लाह ने कुछ और नमाजें माफ कर दीं। मैं फिर मूसा अलैहि सलाम के पास आया तो उन्होंने कहा कि फिर अपने रब के पास वापस जाओ। क्योंकि आपकी उम्मत इन नमाजों का भी बोझ नहीं उठा सकेगी। मैं फिर लौटा (और ऐसा कई बार हुवा) आखिरकार अल्लाह तआला ने फरमाया कि वो नमाजें पांच हैं और दरहकीकत (सवाब के लिहाज से) पचास हैं। मेरे यहां फैसला बदलने का दस्तूर नहीं हैं। फिर मूसा अलैहि सलाम के पास लौटकर आया तो उन्होंने कहा अपने रब के पास (और कम करने के लिए) लौट जाओ। मैंने कहा, अब मुझे अपने मालिक से शर्म आती है। फिर मुझे जिब्रराइल लेकर रवाना हो गये। यहां तक कि सिदरतुल मुन्तहा तक पहुंचा दिया, जिसे कई तरह के रंगों ने ढौँप रखा था। जिनकी हकीकत का मुझे इल्म नहीं। फिर मैं जन्नत में दाखिल किया गया, वहां क्या देखता हूँ कि उसमें मोतियों की (जगमगाती) लड़ियां हैं और उसकी मिट्टी कस्तूरी है। उम्मत के बरगुजीदा लोगो का इस पर इत्तेफाक है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मेराज जागने की हालत में बदन और रूह दोनों के साथ हुई और इस मौके पर नमाजें फर्ज हुयीं। नीज नौ बार अपने रब के पास आने जाने से पचास नमाजों में से पांच रह गई। चूनांचे कूरआनी कानून के मुताबिक एक नेकी का सवाब दस गुना है, इसलिए पांच नमाजें अदा करने से पचास ही का सवाब लिखा जाता है।

 

 

237.आइशा सिद्दीका रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि अल्लाह तआला ने जब नमाज फर्ज की थी तो घर और सफर में (हर नमाज की) दो दो रकअतें फर्ज की थी। फिर सफर की नमाज अपनी असली हालत में कायम रखी गई और घर की नमाज को बढ़ाया गया। इससे मालूम हुआ कि सफर के बीच नमाज़ कम करना का है, इसे रूख्सत ही महमूल करना सही नहीं।

 

 

238.उमर बिन अबू सलमा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक बार एक ही कपड़े में नमाज पढ़ी, लेकिन उसके दोनों किनारों को उल्टकर (अपने कन्धों पर) डाल लिया था। इमाम बुखारी इस हदीस को अगले बाव में लाये हैं। नीज मुखालिफत, इलतेहाफ, तौशीह और इश्तेमाल इन तमाम का एक ही माना है कि कपड़े का वह किनारा जो दायें कन्धे पर है, उसे बार्यी बगल से और जो बायें कन्धे पर है, उसे दार्यी बगल से निकालकर दोनों किनारों को सीने पर बांध लिया जाये। इसका फायदा यह है कि रूकू और सज्दे के वक्त कपड़ा जिस्म से नहीं गिरेगा। नीज रूकू के वक्त नमाज़ी की नजर शर्मगाह पड़े।

 

 

239.उम्मे हानी की इस रिवायत में यह इज़ाफा है कि उन्होंने फरमाया,रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक ही कपड़ा अपने चारों तरफ लपेटकर आठ रकअत नमाज़ पढ़ी, जब आप (नमाज़ से) फारिग हुये तो मैंने अर्ज किया अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! मेरी माँ के बेटे अली मुरतजा एक आदमी हुवैरा के फलां बेटे को कत्ल करने का इरादा रखते हैं हालांकि मैंने उसे पनाह दी हुई है तो आपने फरमाया, उम्मे हानी ! जिसे तुमने पनाह दी, उसे हमने भी पनाह दी। उम्मे हानी फरमाती हैं कि यह चाश्त की नमाज का वक्त था।

 

 

240.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि एक साथी ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से एक कपड़े में नमाज़ पढ़ने का हुक्म पूछा तो आपने फरमाया, क्या तुम में से हर एक के पास दो कपड़े होते हैं? आपने फरमाया, तुममें से कोई एक कपड़े में नमाज पढ़े, जबकि उसके कन्धे पर कोई चीज हो, यानी कंधे नंगे हो। यह उस सूरत में है, जब कपड़ा इस कद लम्बा चौड़ा हो कि सतर ढ़ांपने के बाद उससे कन्धे भी ढ़ांप लिये जायें, इसके खिलाफ अगर कपड़ा इतना तंग हो कि कन्धों को छुपाने के बाद सतर खुलने का डर हो तो ऐसी हालत में सतरपोशी के बाद कन्धों को खुला रखते हुये नमाज़ पढ़ लेना सबके नजदीक जायज है।

 

 

241.जाबिर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मैं नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ एक सफर में था। रात को किसी काम के लिए (आप के पास) आया तो देखा कि आप नमाज़ पढ़ रहे हैं। (उस वक्त) मेरे ऊपर एक ही कपड़ा था। मैंने उसे अपने बदन पर लपेटा और आपके पहलू में खड़े होकर नमाज़ पढ़ने लगा। जब आप फारिंग हुए तो फरमाया, जाबिर! रात के वक्त कैसे आये? मैंने अपनी जरूरत बताई, जब मैं अपने काम से फ़ारिग हुआ तो आपने फरमाया,' यह कपड़ा लपेटना कैसा था, जो मैंने देखा है। मैंने अर्ज किया मेरे पास एक ही कपड़ा था। आपने फरमाया, अगर लम्बा-चौड़ा हो तो उसे लपेट ले और अगर तंग हो तो सिर्फ तहबन्द बना ले। मुस्लिम की रिवायत में है कि कपड़ा बहुत ज्यादा तंग था और हज़रत जाबिर उसे पहनकर इसलिए आगे को झुके हुए थे कि कहीं सतर खुल जाये। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जब उन्हें इस हालत में देखा तो फरमाया कि किनारों को उलटकर पहनना उस वक्त है जब कपड़ा लम्बा-चौड़ा हो तो, तंग होने की सूरत में उसे तहबन्द (लूंगी) के तौर पर पहनना काफी है।

 

 

242.सहल बिन सअद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि लोग नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ अपनी चादरें बच्चों की तरह गर्दनों पर बांधे नमाज पढ़ते थे और औरतों को हिदायत की जाती कि जब तक मर्द सीधे होकर बैठ जायें जब तक अपने सर सज्दे से उठाये। यह अहतमाम इसलिए किया जाता है कि औरतों की नजर मर्दों के सतर पर पड़े।

 

 

243.मुगीरा बिन शोबा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मैं एक बार नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ किसी सफर में था। आपने फरमाया, मुगीरा ! पानी का बर्तन उठा लो, मैंने उठा लिया तो फिर आप चले गये, यहां तक कि मेरी नजरों से गायब हो गये। आपने अपनी हाजत को पूरा किया। उस वक्त आप शामी जुब्बा पहने हुये थे। आपने उसकी आस्तीन से हाथ निकालना चाहा चूंकि वह तंग था, इसलिए आपने अपना हाथ उसके नीचे से निकाला। फिर मैंने आपके अंगों पर पानी डाला। आपने नमाज के लिए वुजू फरमाया और अपने मोजों पर मसह किया, फिर नमाज पढ़ी। शाम में उन दिनों कुफ्फार की हुकूमत थी, मकसद यह है कि काफिरों के तैयार किये हुए कपड़ों में नमाज़ पढ़ना ठीक है। बशर्ते कि इस बात का यकीन हो कि वह गन्दगी लगे हुए नहीं हो। 

 

 

244.जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि बसल्लम कुरैश के साथ काबा की तामीर के लिए पत्थर उठाते थे। आप सिर्फ तहबन्द बांधे हुए थे। आपके चचा हजरत अब्बास ने कहा मेरे भतीजे! तुम अपना तहबन्द उतार कर उसे अपने कन्धों पर पत्थर से बचावों के लिए रख लो (ताकि तुम्हें आसानी रहे।) हजरत जाबिरकहते हैं कि आपने अपना तहबन्द उतारकर अपने कन्धो पर रख लिया तो आप उसी वक्त बेहोश होकर गिर पड़े। उसके बाद आप कभी नंगे नहीं देखे गये। दूसरी रिवायत में है कि फिर एक फरिश्ता उतरा, उसने दोबारा आपके तहबन्द बांध दिया। इससे यह भी मालूम हुआ कि आप नबी होने से पहले भी बुरे कामों और बेशर्मी की बातों से महफूज थे। जब आम हालत में नंगा होना दुरस्त नहीं है तो नमाज़ नंगे कैसे पढ़ी जा सकती हैं?

 

 

245.अबू सईद खुदरी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होनें फरमाया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इश्तिमाले सम्मा से मना फरमाया और गोठ मारकर एक कपड़े मे बैठने से भी रोका, जबकि उसकी शर्मगाह पर कुछ हो।  इश्तिमाले सम्मा यह है कि कपड़ा इस तरह लपेटा जाये कि हाथ वगैरह बन्द हो जायें और गोठ मारकर बैठना यह है कि दोनों सुरीन जमीन पर रखकर अपनी पिण्डलियां खड़ी करके बैठना यह इसलिए मना है कि उसमें सतर खुलने का डर है।

 

 

246.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है उन्होंने कहा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दो तरह के खरीदने और बेचने से मना फरमाया। एक छूने से और दूसरी हद जो महज फैंकने से पुख्ता हो जाये। 

 

 

247.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है, उन्होंने कहा कि मुझे अबू बकर सिद्दीक रजि अल्लाह तआला अन्हो ने हज में कुरबानी के दिन ऐलान करने वालों के साथ भेजा ताकि हम मिना में यह ऐलान करें कि इस साल के बाद कोई मुश्रिक हज करे और कोई आदमी नंगे होकर काबे का चक्कर लगाये। फिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हजरत अली को यह हुक्म देकर भेजा कि वह सूरा--बराअत का ऐलान कर दें (जिसमें मुश्रिकों से ताल्लुक रखने का ऐलान हैंहजरत अबू हुरैरा का बयान है कि अली रजि अल्लाह तआला अन्हो ने कुर्बानी के दिन हमारे साथ मिना के लोगों में यह ऐलान किया कि आज के बाद तो कोई मुश्रिक हज करे और ही कोई नंगे होकर बैतुल्लाह का तवाफ करे। जब तवाफ के दौरान शर्मगाह ढ़ांपना जरूरी है तो नमाज़ में और ज्यादा जरूरी होगा।

 

 

248.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि जब रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने खैबर का रूख किया तो हमने फजर की नमाज खैबर के नजदीक अव्वल वक्त अदा की, फिर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और हजरत अबू तलहा सवार हुये। मैं हजरत अबू तलहा के पीछे सवार था, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खैबर की गलियों में अपनी सवारी को एड लगाई (दोड़ते वक्त) मेरा घुटना नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की रान मुबारक से छू जाता था। फिर आपने अपनी रान से चादर हटा दी, यहां तक कि मुझे रान मुबारक की सफेदी नजर आने लगी और जब आप बस्ती के अन्दर दाखिल हो गये तो आपने तीन बार यह कलेमात फरमाये। 'अल्लाहु अकबर खैबर वीरान हुआ।' तो जब हम किसी कौम के आंगन में पड़ाव करते हैं तो उन लोगों की सुबह बड़ी भयानक होती है। जो इससे पहले खबरदार किये गये हों। बस्ती के लोग अपने काम-काज के लिए निकले तो कहने लगे, यह मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उनका लश्कर पहुंचा। हमने खैबर को तलवार के जोर से जीता। फिर कैदी जमा किये गये तो हजरत दहिया आये और अर्ज किया इन कैदियों में से एक लौण्डी अता फरमाये। आपने फरमाया, जाओ कोई लौण्डी ले लो। उन्होंने सफिय्या बिन्ते हुयी को ले लिया। फिर एक आदमी नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाजिर होकर, अर्ज करने लगा, बनू कुरैजा और बनू नजीर के कबीले की सरदार सफिय्या बिन्ते हुयी को हजरत दहिया दे दी है। हालांकि आपके अलावा कोई उसके मुनासिब नहीं है। आपने फरमाया, अच्छा दहिया बुलाओ। चूनांचे वह सफिय्या समेत आपकी खिदमत में हाजिर हुये। नबी सल्लल्लाहु अलैहिं वसल्लम ने जब सफिय्या देखा तो दहिया से फरमाया, तुम इसके अलावा कैदियों में से कोई और लौण्डी ले लो। हजरत अनस कहते हैं कि फिर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सफिय्या आजाद कर दिया और उसकी आजादी को ही महर का हक करार देकर उससे निकाह कर लिया। जब रवाना हुये तो उम्मे सुलैम, सफिय्या को आपके लिए आरास्ता कर के रात को आपके पास भेजा और सुबह को नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दुल्हे की हैसियत से फरमाया, जिसके पास जो कुछ है, वह यहां ले आये और आपने चमड़े का एक दस्तरखान बिछा दिया तो कोई खजूरें लाया और कोई घी लाया, हदीस के रावी कहते हैं कि मेरा ख्याल है कि हजरत अनस ने सत्तू का भी जिक्र किया। फिर उन्होंने मलीदा तैयार किया और यही रसूलुल्लाह के वलीमे की दावत थी। इमाम बुखारी का मानना है कि रान सतर नहीं है, जैसा कि हदीस से मालूम होता है। फिर भी एहतियात इसी में हैं कि उसे छिपाया जाये।

 

 

249.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,उन्होंने फरमाया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सुबह की नमाज़ पढ़ते तो आपके साथ कुछ मुसलमान औरतें अपनी चादरों में लिपटी हुई हाजिर होती थी। बाद में अपने घरों को ऐसे लौट जाती कि अन्धेरे की वजह से उन्हें कोई पहचान सकता था। इससे मालूम हुआ कि अगर औरत एक ही कपड़े में तमाम बदन छिपा ले तो नमाज़ दुरूस्त है।

 

 

250.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक बार नक्श की हुई चादर में नमाज़ पढ़ी। आपकी नजर उसके नकशों पर पड़ी तो आपने नमाज़ से फारिंग होकर फरमाया, मेरी इस चादर को अबू जहम के पास वापस ले जाओ और उससे अम्बजानी (सादा चादर) ले आओ। क्योंकि इस (नक्श की हुई चादर) ने मुझे अपनी नमाज़ से गाफिल कर दिया था। मालूम हुआ कि जो चीजें भी खुशू में खलल अन्दाज हों, नमाज़ी को उनसे परहेज करना चाहिए, नक्श की हुई जाय-नमाज का भी यही हुक्म है।

 

 

251.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उन्होंने फरमाया किहजरता आइशा के पास एक पर्दा था, जिसे उन्होंने घर के एक कोने में डाल रखा था। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने (उसे देखकर) फरमाया, हमारे सामने से अपना यह पर्दा हटा दो, क्योंकि इसकी तस्वीरें बराबर मेरी नमाज में सामने आती रहती हैं, अगरचे हदीस में सूली का जिक्र नहीं, मगर यह तस्वीर के हुक्म में दाखिल है। जब ऐसे कपड़े का लटकाना मना है। तो पहनना तो और ज्यादा मना होगा। शायद इमाम बुखारी ने उस हदीस की तरफ इशारा किया है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम घर में कोई चीज छोड़ते जिस पर सलीब बनी होती थी, उसे तोड़ डालते थे।

 

 

252.उकया बिन आमिर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में एक रेशमी कोट तोहफे के तौर पर लाया गया, आपने उसे पहनकर नमाज़ पढ़ी, मगर जब नमाज़ से फारिग हुये तो उसे सख्ती से उतर फैंका। गोया आपको वह सख्त नागवार गुजरा। नीज आपने फरमाया कि अल्लाह से डरने वाले लोगों के लिए यह मुनासिव नहीं है। मुस्लिम की रिवायत में है कि मुझे हज़रत जिब्राईल ने यह रेशमी कोट पहनने से रोक दिया था। मुमकीन है कि आपने उसे रेशमी लिबास के हराम होने से पहले पहना हो।

 

 

253.अबू जुहैफा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को चमड़े के एक लाल खेमे में देखा और मैंने (यह भी खुद अपनी आखों से) देखा कि जब हजरत बिलाल वुजू से बचा हुआ पानी लाते तो लोग उसे हाथों-हाथ लेने लगते। जिसको उसमें से कुछ मिल जाता वह उसे अपने चेहरे पर मल लेता और जिसे कुछ मिलता वह अपने पास वाले के हाथ से तरी ले लेता। फिर मैंने हजरत बिलाल को देखा कि उन्होंने एक छोटा नेजा उठाकर गाड़ दिया और आप एक लाल जोड़ा पहने हुये, दामन उठाये आये और छोटे नेजे की ओर रूक करके लोगों को दो रकअत नमाज पढ़ाई। मैंने देखा कि लोग और जानवर नेजे के आगे से गुजर रहे थे। इमाम इबने कययीम ने लिखा है कि आपका यह जोड़ा लाल था, बल्कि उसमें काली धारियां थी। इससे मर्दों को सुर्ख लिबास पहनने का सबूत मिलता है। अगर औरतों और काफिरों से मुशाबिहत और शोहरत की ख्वाहिश हो

 

 

254.सहल बिन सअद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उनसे पूछा गया कि मिम्बर किस चीज का था? वह बोले कि आप लोगों में उसके मुताअल्लिक जानने वाला मुझसे ज्यादा कोई नहीं है। वह मकामे गाबा के झांऊ से बना था, जिसे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि बसल्लम के लिए फलां औरत के फलाँ गुलाम ने तैयार किया था। जब वह तैयार हो चुका और (मस्जिद में) रखा गया तो रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम उस पर खड़े हुये और किब्ला की तरफ खड़े होकर तकबीर कही। और लोग भी आपके पीछे खड़े हुए और आपने किरअत फरमाई और रूकू किया और लोगों ने भी आपके पीछे रूकू किया। फिर आपने अपना सर उठाया और पीछे हट कर जमीन पर सज्दा किया। (दोनों सज्दे अदा करने के बाद) फिर मिम्बर पर लौट आये, किरअत की और रूकू फरमाया, फिर आपने (रूकू) से सर उठाया और पीछे हटे, यहां तक कि जमीन पर सज्दा किया, नबी के मिम्बर का यही किस्सा है। मालूम हुआ कि इमाम मुकतदियों से ऊची जगह पर खड़ा हो सकता है

 

 

255.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उनकी दादी मुलैका ने रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम को खाने के लिए दावत दी जो उन्होंने आपके लिए तैयार किया था। आपने उससे कुछ खाया, फिर फरमाने लगे कि खड़े हो जाओ। मैं तुम्हें नमाज पढ़ाऊंगा। मैंने एक चटाई को उठाया जो ज्यादा इस्तेमाल की वजह से फिर काली हो गई थी। मैंने उसे पानी से घोया, फिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस पर खड़े हो गये। मैंने और एक यतीम लड़के ने आपके पीछे सफ कर ली और बुढ़िया (दादी) हमारे पीछे खड़ी हुई तो रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने हमें दो रकअत नमाज़ पढ़ाई। नमाज पढ़ने के बाद आप वापस तशरीफ ले गये। मालूम हुआ कि जमाअत के दौरान औरत अकेली खड़ी हो सकती है, जबकि मर्दों के लिए ऐसा करना किसी सूरत में जाइज नहीं।

 

 

256.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि मैं नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने लेटी हुयी थी और मेरे दोनों पांव आपकी तरफ होते जब आप सज्दा करते तो मुझे दबा देते थे और मैं अपना पांव समेट लेती और जब आप खड़े हो जाते तो फिर उन्हें फैला देती थी। हजरता आइशा फरमाती हैं कि उन दिनों घरों में चिराग नहीं होते थे। इमाम बुखारी ने उन लोगों का रद किया है जो मिट्टी के सिवा दीगर चीजों पर सज्दा जाइज नहीं समझते। नीज यह भी मालूम हुआ कि औरतों को हाथ लगाने से वुजू नहीं टूटता।

 

 

257.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने घर के बिस्तर पर नमाज पढ़ते और वह खुद आपके और किब्ले के बीच जनाजे की तरह लेटी होती थी। इस हदीस से वजाहत हो गई कि आपने बिस्तर पर नमाज़ पढ़ी थी। क्योंकि पहली हदीस में उसकी सराहत थी। अगरचे हजरता आइशा के आगे लेटने में इशारा मौजूद है कि आप सोने वाले बिस्तर पर नमाज़ पढ़ रहे थे। नीज यह भी मालूम हुआ कि सोये हुऐ आदमी की तरफ नमाज पढ़ना बुरा नहीं है।

 

 

258.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि हम नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ नमाज़ पढ़ा करते थे तो हममें से कोई सख्त गर्मी की वजह से सज्दा की जगह अपने कपड़े का किनारा बिछा देता था। मालूम हुआ कि नमाज़ के दौरान कम अमल से नमाज़ खराब नही होती

 

 

259.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है, उनसे पूछा गया क्या नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जूतों समेत नमाज़ पढ़ लेते? उन्होंने ने जवाब दिया हां! मालूम हुआ कि जूतों समेत नमाज़ पढ़ने में कोई हर्ज नहीं हे। बशर्ते कि वह गंदे हो। याद रहे कि इस किस्म के जूते जमीन पर रगड़ने से पाक हो जाते हैं, चाहे गंदगी किसी किस्म की हो।

 

 

260.जरीर बिन अब्दुल्लाह रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उन्होंने एक बार पेशाब किया, फिर वुजू किया तो अपने मोजों पर मसह किया। उसके बाद खड़े होकर (मोजों समेत) नमाज़ अदा की। उनसे इसकी बाबत पूछा गया तो उन्होंने फरमाया कि मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ऐसा करते देखा है। लोगों को यह हदीस बहुत पसन्द थी, क्योंकि जरीर बिन अब्दुल्लाह आखिर में इस्लाम लाये थे। हज़रत जरीर के अमल से बजाहत हो गई की सूरा--माइदा में बुजू के वक्त पांव धोने का जो जिक्र है, उससे मोजों पर मसह करने का अमल खत्म नहीं हुआ, बल्कि यह हुक्म आखिर वक्त तक बाकी रहा।

 

 

261.अब्दुल्लाह बिन मालिक बिन बुहैना रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम जब नमाज पढ़ते तो अपनी दोनों बगलों के बीच फासला रखते। यहा तक कि आपकी बगलों की सफेदी दिखाई देने लगती। औरतों के लिए भी इसी अन्दाज से सज्दा करने का हुक्म है, जिन रिवायतों में औरतों के लिए अपना जिस्म समेटने का जिक्र है, वह सही नहीं है

 

 

262.अनस बिन मालिक रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो हमारी नमाज की तरह नमाज़ पढ़े और हमारे किब्ले की तरफ मुंह करे और हमारा कुर्बान किया हुआ जानवर खाये तो वह ऐसा मुसलमान है, जिसे अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पनाह हासिल है। नमाज़ के दौरान किब्ले की तरफ मुंह करना जरूरी है। अलबत्ता मजबूरी या डर की हालत में इसकी फरजियत खत्म हो जाती है। इसी तरह निफ्ली नमाज़ में भी इसके मुताअल्लिक कुछ छूट है, जबकि सवारी पर अदा की जा रही हो।

 

 

263.इबने उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उनसे एक आदमी के बारे में सवाल किया गया, जिसने अल्लाह के घर का तवाफ (चक्कर) किया और सफा और मरवा के बीच दौड़ा नहीं तो क्या वह अपनी बीवी के पास सकता है? उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक बार (मदीना से) तशरीफ लाये तो सात बार बैतुल्लाह का तवाफ किया और मकामे इब्राहीम के पीछे दो रकअत नमाज पढ़ी। फिर आपने सफा और मरवाह के बीच दौड़ लगाई यकीनन रसूलुल्लाह (की जिन्दगी) में तुम्हारे लिए बेहतरीन नमूना है।

 

 

264.इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कअबा में दाखिल हुए तो आपने उसके सब कोनों में दुआ फरमाई। बाहर निकलने तक कोई नमाज़ नहीं पढ़ी, जब आप कअबा से बाहर तशरीफ लाये तो उसके सामने दो रकअत पढ़कर फरमाया, यही किब्ला है। सही बात यह है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बैतुल्लाह के अन्दर नमाज़ अदा की थी, जैसा कि हज़रत बिलाल का बयान है।

 

 

265.जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजि अल्लाह तआला अन्हो रिवायत है, कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी सवारी पर निफ्ल पढ़ते रहते, वह जिधर मुँह करती,आपको ले जाती। लेकिन जब फर्ज नमाज़ पढ़ने का इरादा फरमाते तो उतरकर किब्ले की तरफ मुंह करते और नमाज़ पढ़ते। एक रिवायत में है कि ऊँटनी पर निफ्ल नमाज़ करते वक्त आप क़िबले की तरफ मुह करके नमाज शुरू किया करते थे

 

 

266.अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नमाज़ पढ़ी इब्राहीम यह हदीस अल्कमा से और वह इबने मसऊद से बयान करते हैं कि मुझे मालूम नहीं कि आपने नमाज में कुछ इजाफा कर दिया था या कमी। जब आपने सलाम फेरा तो अर्ज किया गया, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम क्या नमाज में कोई नया हुक्म गया हैं? आपने फरमाया कि बताओ, असल बात क्या हैं? लोगों ने अर्ज किया कि आपने इतनी इतनी रकआतें पढ़ी हैं। यह सुनकर आपने अपने दोनों पांव समेटे और किब्ला रूख होकर दो सज्दे किये। फिर सलाम फेरा और हमारी तरफ मुंह करके फरमाया, अगर नमाज में कोई नया हुक्म आता तो मैं तुम्हें जरूर बताता, लेकिन मैं भी तुम्हारी तरह एक इन्सान हूं, जिस तरह तुम भूल जाते हो, मैं भी भूल जाता हूं। इसलिए जब कभी मैं भूल का शिकार हो जाऊँ तो मुझे याद दिला दिया करो और तुम में से जो कोई अपनी नमाज़ में शक करे तो उसे अपने पक्के यकीन पर अमल करना चाहिए और इस पर अपनी नमाज पूरी करक॑ सलाम फेर दे। उसके बाद दो सज्दे करे। दूसरी रिवायत में है कि आपने जुहर की चार रकअतों की बजाये पांच रकअत पढ़ ली थी पक्के यकीन पर अमल करने का मतलब यह है कि तीन या चार के शक में तीन पर बुनियाद कायम करके नमाज़ पूरी करे, यह भी साबित हुआ कि नबियों से भूल चूक हो सकती है। दूसरी हदीस का ताल्लुक इस तरह है कि आपने नमाज़ से फारिंग होने के बाद मुंह किब्ले से फेर लिया था और बताने पर नये सिरे से किब्ले की तरफ मुंह करके नमाज़ पूरी की।

 

267.उमर बिन खत्ताब रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि मुझे अपने रब से तीन बातों में हमखयाली नसीब हुई है। एक बार मैंने कहा, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! काश कि मकामे इब्राहीम हमारा मुसल्ला होता तो यह आयत नाजिल हुई "मक़ामे इब्राहिम को नमाज की जगह बना लो।" और पर्दे की आयत भी इसी तरह नाजिल हुई कि मैंने अर्ज किया अल्लाह रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! काश आप अपनी औरतों को पर्दे का हुक्म दे दें, क्योंकि उनसे हर नेक और बुरा बात करता है। तो पर्दे की आयत नाजिल हुई और (एक बार ऐसा हुवा कि) रसूलुल्लाह सल्लाहु अलैहि सलाम वसल्लम की बीवियों ने आपसी मोहब्बत की वजह से आपके खिलाफ इत्तिफाक कर लिया तो मैंने उनसे कहा कि दूर नहीं अगर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तुम्हें तलाक दे दें तो उस पर अल्लाह तुमसे बेहतर बीवियां तुम्हारे बदले में अता फरमा दे। फिर यहीं आयत (जो सूरा तहरीम में है) नाजिल हुई। उनवान के दूसरे हिस्से को खत्म कर देना ठीक है, क्योंकि इस हदीस से इसका कोई ताल्लुक नहीं है।

 

 

268.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूल सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने एक बार किब्ला की तरफ कुछ थूक देखा तो बहुत बुरा लगा, यहां तक कि उसका असर आपके चेहरे मुबारक पर देखा गया, आप खुद खड़े हुए और अपने हाथ मुबारक से साफ करके फरमाया कि तुम में से जब कोई अपनी नमाज़ में खड़ा होता है तो जैसे वह अपने रब से मुनाजात (दुआ) करता है और उसका रब उसके और किब्ले के बीच होता है, लिहाजा तुममें से कोई भी (नमाज़ की हालत में) अपने किब्ले की तरफ थूके बल्कि बायीं तरफ या अपने कदम के नीचे (थूक सकता हैं) फिर आपने अपनी चादर के एक किनारे में थूका और इसे उलट पलट किया, फिर आपने फरमाया कि या इस तरह कर ले। मुसनद इमाम अहमद की रिवायत में सामने थूकने की वजह यों बयान की गई है कि अल्लाह की रहमत उसके सामने होती है। इससे उन लोगों का रद्द होता है जो कहते हैं कि अल्लाह हर जगह हाजिर नाजिर है। क्योंकि अगर ऐसा होता तो बायीं तरफ और पाव तक थूकना भी मना होता। तमाम अहले सुन्नत का इत्तेफाक है कि अल्लाह तआला अर्श--मोअला पर मुस्तवी है

 

 

269.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है नबी सल्लल्लाहु अलैहिं वसल्लम ने फरमाया, मस्जिद में थूकना गुनाह है और फिर उसकी सजा उसे दफन करना है। अगर मस्जिद के आंगन में मिट्टी वगैरह हो तो उसे दिया जाये, अगर ऐसा ना हो तो उसे कपड़े या पत्थर से साफ करके बाहर फैंक दिया जाये। 

 

 

270.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, तुम मेरा मुंह इस तरह समझते हो, अल्लाह की कसम! मुझ पर तुम्हारा खुशू (नमाज का डर) छिपा हुआ और तुम्हारा रूकू और मैं तुम्हें अपनी पीठ के पीछे से भी देखता हूँ यह आपका मोजजा (करिश्मा) था कि आपको पीछे से भी उसी तरह नजर आता था, जैसे कोई सामने से देखता है।

 

 

271.इबने उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि एक बार रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तैयार शुदा घोड़ों के (मुकाबले के लिए) फासला मकामे हफिया से सनिअतुल वदाअ तक और गैर तैयार शुदा घोड़ों की दौड़ सनिअतुल वदाअ से मस्जिद बनी जुरैक तक मुकर्रर की और अब्दुल्लाह बिन कुकर उन लोगों में शामिल थे, जिन्होंने घूड़ दौड़ में हिस्सा लिया। मालूम हुआ कि मस्जिद फलां कहने में कोई हर्ज नहीं, क्योंकि ऐसा कहने से किसी की जाति जायदाद मुराद नहीं, बल्कि मस्जिद की पहचान मुराद होती हैं।

 

 

272.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम के पास बहरीन से कुछ माल लाया गया तो आपने फरमाया कि उसे मस्जिद में ढ़ेर कर दो। यह माल काफी तादाद में था। लेकिन आप जब नमाज के लिए मस्जिद में तशरीफ लाये तो आपने उसकी तरफ ध्यान भी नहीं दिया। जब नमाज़ से फारिग हुए तो आकर उसके पास बैठ गये। फिर जिसको देखा, उसे देते चले गये, इतने में अब्बास आपके पास आये और कहा, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुझे भी दीजिए। क्योंकि मैंने (बदर की लड़ाई में) अपना और अकील का जुर्माना दिया था। आपने फरमाया, उठा लो। उन्होंने अपने कपड़े में दोनों हाथ से इतना माल भर लिया कि उठा सके, कहने लगे, इनमे से किसी को कह दीजिए कि यह माल उठाने में मेरी मदद करे आपने फरमाया, नहीं। उन्होंने कहा फिर आप ही इसे उठाकर मेरे ऊपर रख दें। आपने फरमाया, नहीं! इस पर हज़रत अब्बास ने उसमें से कुछ कम किया और फिर उठाने लगे, लेकिन अब भी उठा सके तो अर्ज किया किसी को कह दें कि मुझे उठवा दे। आपने फरमाया, नहीं, उन्होंने कहा, फिर आप खुद उठा कर मेरे ऊपर रख दें। आपने फरमाया, नहीं। तब अब्बास उसमें से कुछ और कमी की। बाद में इसे उठाकर अपने कन्धों पर रख लिया और चल दिये आप  उनकी हिरस और लालच पर ताज्जुब करके उनको बराबर देखते रहें यहां तक कि वह मेरी आंखों से गायब हो गये। अलगर्ज आप वहां से उस वक्त उठे कि एक दिरहम (सिक्का) भी बाकी रहा। मस्जिद में गुच्छे लटकाने का इस हदीस में जिक्र नहीं, दूसरी 'रिवायत में उसका बयान मौजूद है।

 

 

273.महमूद बिन रबीअ अन्सारी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि इतबान बिन मालिक नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास हाजिर हुये और अर्ज किया अल्लाह के रसूल 'सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! मेरी आंखों की रोशनी खराब हो गई है और मैं अपनी कौम को नमाज॒ पढ़ाता हूँ, लेकिन बारिश की वजह से जब वह नाला बहने लगता है, जो मेरे और उनके बीच है तो मैं नमाज़ पढ़ाने के लिए मस्जिद में नहीं सकता। इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप मेरे यहां तशरीफ लायें और मेरे घर में किसी जगह नमाज़ पढ़ें। ताकि मैं उस जगह को नमाज़ की जगह बना लूं। रावी कहता है कि उनसे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, मैं इन्शा अल्लाह जल्दी ही ऐसा करूंगा। इतबान कहते हैं कि आप और हजरत अबू बकर मेरे घर तशरीफ लाये और आपने अन्दर आने की इजाजत मांगी तो मेरे इजाजत देने पर आप घर में दाखिल हुये और बैठने से पहले फरमाया, तुम अपने घर में किस जगह नमाज़ पढ़ना चाहते हो। ताकि मैं वहां नमाज़ पढूँ। मैंने घर के एक कोने की जगह बतायी तो आपने वहां खड़े होकर तकबीरे तहरीमा कहीं (नमाज शुरू की) हम भी सफ बनाकर आपके पीछे खड़े हो गये। तो आपने दो रकअत नमाज़ पढ़ी और उसके बाद सलाम फैर दिया, फिर हमने आपके लिए कुछ हलीम तैयार करके आपको रोक लिया। उसके बाद मोहल्ले वालों में से कई आदमी घर में आकर जमा हो गये। उनमें से एक आदमी कहने लगा कि मालिक बिन दुखैशिन या दुखशुन कहां हैं? किसी ने कहा, वह तो मुनाफिक है। अल्लाह और उसके रसूल से मुहब्बत नहीं रखता। तब आपने फरमाया, ऐसा मत कहों। क्या  तुझे मालूम नहीं कि वह खालिस अल्लाह की रजामन्दी के लिएला इलाहा इल्लल्लाहकहता है। वह आदमी बोला अल्लाह और उसके रसूल ही खूब जानते हैं। जाहिर में तो हम उसका रूख और उसकी खैर ख्वाही मुनाफिकों के हक में देखे हैं। इस पर आपने फरमाया कि अल्लाह तआला ने उस आदमी पर आग को हराम कर दिया है जोला इलाहा इल्लल्लाहकह दे। बशर्ते कि उससे अल्लाह की रजामन्दी ही मकसूद हो।

 

 

274.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि हजरता उम्मे हबीबा और उम्मे सलमा ने हब्शा में एक गिरजाघर देखा था, जिसमें तसवीरें लगी थी। जब उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से उसका जिक्र किया तो आपने फरमाया, उन लोगों की आदत थी कि उनमें अगर कोई नैक मर्द मरता तो उसकी कब्र पर मस्जिद और तस्वीर बना देते। कयामत के दिन यह लोग अल्लाह के नजदीक बदतरीन (बहुत बुरी) मख्लूक हैं। आजकल तो लोग कब्रो को सज्दा करते हैं और खुलकर उनका तवाफ करते है जो खुला शिर्क है। इस हदीस से मालूम हुआ कि बुजुर्गों की कब्रों पर मस्जिद बनाना यहूदियों और ईसाइयों की आदत है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इसे हराम करार दिया है। नीज आपने तस्वीर बनाने को हराम फरमाकर बुतपरस्ती की जड़ काट दी है।

 

 

275.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब हिजरत करके मदीना तशरीफ लाये तो अम्र बिन औफ नामी कबीले में पड़ाव किया जो मदीना के ऊंचे मकाम पर आबाद था। आपने उन लोगों में चौदह रात ठहरे,फिर बनू नज्जार को आपने बुलाया तो वह तलवारें लटकाये हुये आये। (अनस कहते हैं) गोया मैं आपको देख रहा हूँ कि आप अपनी ऊँटनी पर सवार हैं। हजरत अबू बकर सिद्दीक पीछे और बनू नज्जार के लोग आपके आस पास हैं। यहां तक कि आपने हजरत अबू अय्यूब अन्सारी के घर के सामने अपना पालान डाल दिया। आप इस बात को पसन्द करते थे कि जिस जगह नमाज का वक्त हो जाये, वहीं पढ़ लें। यहां तक कि आप बकरियों के बाड़े में भी नमाज़ पढ़ लेते थे। फिर आपने मस्जिद बनाने का हुक्म दिया और बनू नज्जार के लोगों को बुलाकर फरमाया, बनू नज्जार! तुम अपना यह बाग हमारे हाथ बेच डालो। उन्होंने अर्ज किया, ऐसा नहीं हो सकता अल्लाह की कसम! हम तो इसकी कीमत अल्लाह से ही लेंगे। हजरत अनस कहते हैं कि मैं तुम्हें बताऊँ कि उस बाग में क्या था। वहां मुश्रिकों की क़ब्रे,पुराने खण्डरात और कुछ खजूर के पेड़ थे आप के हुक्म से मुश्रिकों की क़ब्रे उखाड़ दी गई, खण्डरात बराबर कर दिये गये और खजूर के पेड़ काट कर उनकी लकड़ियों को मस्जिद के सामने गाड़ दिया गया। (उस वक्त किब्ला बैतुल मुकदस (फिलिस्तीन) था) और उसकी बन्दिश पत्थरों से की गई। चुनांचे सहाबा--किराम  शेर पढ़ते हुए पत्थर लाने लगे। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी उनके साथ यह फरमाते थे। अल्लाह जिन्दगी तो बस आखिरत की जिन्दगी है, पस तू अन्सार और मुहाजरीन को माफ कर दे।

 

 

276.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि वह खुद अपने ऊंट की तरफ मुह करके नमाज पढ़ते और फरमाते कि मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ऐसा करते देखा है। हक यह है कि ऊंटों की जगह पर नमाज़ पढ़ना हराम है और इस मनाही पर बहुत सी हदीसे मौजूद हैं। इस हदीस का मकसद यह है कि जब ऊंट सामने बैठा हो और उससे किसी किस्म का खतरा हो और जहां मनाही आई है, वहां यह मकसूद है कि ऊंट खड़े हों और उनकी तरफ से लात मारने का खतरा हो, इसलिए कोई टकराव नहीं है।

 

 

277.हजरता आइशा और इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,कि जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर आखरी वक्त आया तो एक चादर अपने ऊपर डालने लगे फिर ज्यों ही घबराहट होती तो उसे चेहरे से हटा देते। इसी हालत में आपने फरमाया, यहूदियों और ईसाइयों पर अल्लाह की लानत हो। उन्होंने अपने अस्बियाओं (नबीयों) की कब्रों को इबादत की जगह बना लिया। जैसे आप उनके कामों से उम्मत को खबरदार करते थे। मुस्लिम की रिवायत में है कि यहूदियों और इसाईयों ने नबीयों और बुजुर्गों की कब्रों को सज्दागाह बना के बातचीत के अन्दाज से आपने अपनी उम्मत को आगाह किया है कि कहीं मेरी कब्र के साथ ऐसा सलूक करें, लेकिन नाम के मुसलमानों पर अफसोस है कि वह उसकी खिलाफवर्जी करते हैं। अल्लाह तआला सऊदी अरब की हुकूमत को अच्छा बदला दे कि वह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की कब्र मुबारक पर लोगों को शरीअत के अलावा दूसरे कामों से बाज रखती है।

 

 

278.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि अरब के किसी कबीले के पास एक काली कलूटी बान्दी थी, जिसे उन्होंने आजाद कर दिया। मगर वह उनके साथ ही रहा करती थी। उसका बयान है कि उस कबीले की एक लड़की एक बार बाहर निकली। उस पर लाल फीतों का एक कमरबन्द था, जिसे उसने उतारकर रख दिया या वह खुद--खुद गिर गया। एक चील उधर से गुजरी तो उसने उसे गोश्त खयाल किया और झपट कर ले गई। वह कहती है कि पूरे कबीले ने कमरबन्द को तलाश किया, मगर कहीं से मिला। उन्होंने मुझ पर चोरी का इल्जाम लगा दिया और मेरी तलाशी लेने लगे। यहां तक कि उन्होंने मेरी शर्मगाह को भी छोड़ा। वह कहती है कि अल्लाह की कसम! मैं उनके पास खड़ी ही थी कि इतने में वही चील आयी, उसने वह कमरबन्द फैंक दिया तो वह उनके बीच गिरा। मैंने कहा कि तुम इसकी चोरी का इल्जाम मुझ पर लगाते थे, हालांकि मैं इससे बरी थी। अब अपना कमरबन्द संभाल लो, हजरता आइशा फरमाती हैं कि फिर वह लौण्डी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिं वसल्लम की खिदमत में चली आई और मुसलमान हो गई। उसका खेमा या झोंपड़ा मस्जिद में था। हजरता आइशा फरमाती हैं कि यह मेरे पास आकर बातें किया करती थी और जब भी मेरे पास बैठती तो यह शेअर जरूरी पढ़ती।कमरबन्द का दिन अल्लाह तआला की अजीब कुदरतों से है। उसने मुझे कुफ़र के मुल्क से नीजात दी।मैंने उससे कहा, कया बात है? जब तुम मेरे पास बैठती हो तो यह शेअर जरूर कहती हो। तब उसने मुझे अपनी दास्तान बयान की। इसमें दारूलकुफ्र से हिजरत करने की फजीलत का बयान है। नीज मजलूम इन्सान की दुआ जरूर कुबूल होती है। चाहे वह काफिर ही क्यों हो। 

 

 

279.सहल बिन सअद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हजरता फातिमा के घर लशरीफ लाये तो हजरत अली को घर में पाकर उनसे पूछा तुम्हारे चचाजाद कहां गये? उन्होंने अर्ज किया कि हमारे बीच कुछ झगड़ा हो गया था। वह मुझ पर नाराज होकर कहीं बाहर चले गये हैं, यहां नहीं सोये। तब आपने एक आदमी से फरमाया, देखो वह कहां हैं? वह देखकर आया और कहने लगा वह मस्जिद में सो रहे हैं। यह सुनकर आप मस्जिद में तशरीफ ले गये, जहां हजरत अली लेटे हुए थे। उनके एक पहलू से चादर गिरने की वजह से वहां मिट्टी लग गई थी आपने उनके जिस्म से मिट्टी साफ करते हुये फरमाने लगे, अबू तुराब उठो! अबू तुराब उठो। हज़रत अली, हजरता फात्तिमा के चचाजाद नहीं थे, बल्कि अरब के मुहावरे के मुताबिक बाप के अजीज (दोस्त) को चचाजाद कहा गया है। मस्जिद में मर्द को सोना गलत नही है।

 

 

280.अबू कतादा सुलमी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, जब तुममें से कोई मस्जिद में दाखिल हो तो बैठने से पहले दो रकअत नमाज़ जरूर पढ़े। अगर दो रकअत पढ़े बगैर बैठ जाये तो इससे तहिय्यतुल मस्जिद खत्म नहीं हो जायेगी बल्कि उठकर उन्हें अदा करना होगा।

 

 

281.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने बताया कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम के जमाने में मस्जिद नबवी कच्ची इंटों से बनी हुई थी। छत पर खुजूर की डालियां थीं और खम्भे भी खुजूर की लकड़ी के थे। हजरत अबू बकर सिद्दीक उसमें कोई इजाफा किया। हजरत उमर ने उसमें इजाफा जरूर किया लेकिन इमारत उसी तरह की रखी, जैसी रसूलुल्लाह सल्लॉल्लाहु अलैहि सलाम वसल्लम के जमाने में थी। यानी कच्ची ईटें, डालियां और खम्भे, उसी खुजूर की लकड़ी के बनाये गये। फिर हजरत उसमान  ने इसमें तब्दीली करके बहुत इजाफा किया। यानी इसकी दीवारें तराशे हुए पत्थरों और चूने से बनवायीं। खम्भे भी तराशे हुए पत्थरों के बनाये और इसकी छत सागवान से तैयार की।

 

 

282.अबू सईद खुदरी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि वह एक दिन हदीस बयान करते हुये मस्जिदे नबवी का जिक्र करने लगे कि हम एक एक ईट उठाते जबकि अम्मार बिन यासिर दो दो ईटें उठाते थे। नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने अम्मार को देखा तो उनके जिस्म से मिट्टी झाड़ते हुये फरमाने लगे, अम्मार को एक बागी जमाअत शहीद करेगी। यह उनको जन्नत की तरफ बुलायेंगे और वह इसे दोजख की दावत देगी। अबू सईद खुदरी ने कहा कि अम्मार अकसर कहा करते थे, मैं फितनों से अल्लाह की पनाह मांगता हूँ।

 

 

283.उसमान बिन अफ्फान रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि जब उन्होंने तराशे हुए पत्थर और चूने से मस्जिद बनवायी तो लोग इसके बारे में बातें करने लगे। तब उन्होंने फरमाया कि मैंने तो नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम को यह फरमाते हुए सुना कि जो आदमी मस्जिद बनाये और उससे सिर्फ अल्लाह की रजामन्दी मकसूद हो तो अल्लाह उसके लिए उसी जैसा घर जन्नत में बना देगा। अललामा इबने जौजी ने लिखा है कि जो आदमी मस्जिद बनवाकर उस पर अपना नाम लिखवा देता है वह मुखलिस नहीं बल्कि दिखावे का आदी है।

 

 

284.अबू मूसा अशअरी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, जो आदमी हमारी मस्जिदों या बाजारों से तीर लिये हुए गुजरे तो चाहिए कि वह उनके पल (नोकें) थामें रखे। ताकि अपने हाथ से किसी मुसलमान को जख्मी कर दे।

 

 

285.हस्सान बिन साबित रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि वह हजरत अबू हुरैरा से गवाही मांग रहे थे कि तुम्हें अल्लाह की कसम! बताओ क्या तुमने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह फरमाते नहीं सुना कि अल्लाह तू हस्सान  की जिब्राईल से मदद फरमा। अबू हुरैरा बोले किहांयानी सुना है। कुछ रिवायत से मालूम होता है कि मस्जिद में शेर पढ़ना मना है तो इससे मुराद गन्दे और बेहूदा किस्म के अशआर है।

 

 

286.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि मैंने एक दिन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपने कमरे के दरवाजे पर खड़े देखा और हब्शा के कुछ लोग मस्जिद में खेल रहे थे और आपने अपनी चादर से मुझे छिपा रहे थे और मै उनका खेल देख रही थी। एक और रिवायत में है कि वह अपने हथियारों से खेल रहे थे। मालूम हुआ कि अगर नुकसान का डर हो तो हथियार मस्जिद में ले जाना जाईज है।

 

 

287.कअब बिन मालिक रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उन्होंने मस्जिद में अब्दुल्लाह बिन अबी हदरद से अपना कर्ज मांगा। इस पर दोनों की आवाजें ऊंची हो गयी। यहां तक कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम भी बाहर तशरीफ लाये और कमरे का पर्दा उठाकर आवाज दी। कअब ! उन्होंने अर्ज किया हाजिर हूँ, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! आपने फरमाया, तुम अपने कर्ज में कुछ कमी कर दो, और इशारा फरमाया आधा कर दो। कअब ने कहा अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आपका हुक्म सर आंखों पर, तब आपने हदरद से फरमाया, उठो इसका कर्ज अदा कर दो। मालूम हुआ कि जरूरत के मुताबिक मस्जिद में ऊंची आवाज से बात करना जाईज है। अलबत्ता बिलावजह मस्जिद में आवाज बुलन्द करने की मनाही है। 

 

 

288.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि एक काला मर्द या औरत मस्जिद में झाड़ू दिया करती थी तो वह मर गई तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लोगों से उसके बारे में पूछा, उन्होंने कहा, '“वह तो मर गई”, आपने फरमाया, "भला तूमने मुझे खबर क्यों दी, अच्छा अब मुझे उसकी कब्र बताओ।'' फिर उसकी कब्र पर तशरीफ ले गये और वहां जनाजे की नमाज अदा की। बैहकी की रिवायत में है कि यह उम्मे मेहजन नामी औरत थी जो मस्जिद से चीथड़े और तिनके वगैरह चुना करती थी। नीज मालूम हुआ कि कब्र पर नमाज़ जनाजा अदा की जा सकती है। 

 

 

289.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया जब ब्याज के बारे में सूरा बकरा की आयतें नाजिल हुई तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मस्जिद में तशरीफ लाये और लोगों को वह आयातें पढ़कर सुनाई। फिर फरमाया कि शराब को खरीदना और बेचना भी हराम है। इस बाब का मकसद यह है कि मनाही की गर्ज से बुरे कामों और बुरी बातों का जिक्र किया जा सकता है।

 

 

290.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि गुजरी हुई रात अचानक एक सरकश जिन मुझसे टकरा गया या ऐसी ही कोई और बात कही, ताकि मेरी नमाज़ में खलल डाले। मगर अल्लाह ने मुझे उस पर काबू दिया। मैंने चाहा कि उसे मस्जिद में किसी खम्भे से बांध दूं ताकि सुबह के वक्त तुम भी उसको देख लो। फिर मुझे अपने भाई सुलेमान अलैहि सलाम की यह दुआ याद आई, “ मेरे रब! मुझे माफ कर और मुझे ऐसी हुकूमत अता कर जो मेरे बाद किसी और के लायक हो।" रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहिं वसल्लम ने उस सरकश जिनन को बाद में कैद करने का इरादा फरमाया। इमाम बुखारी ने कर्जदार को इसी पर कयास किया है। 

 

291.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि खन्दक की जंग के मौके पर साद बिन मआज को तीर लगा तो नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने उनके लिए मस्जिद में एक खैमा लगा दिया ताकि नजदीक से उनकी देखभाल कर लिया करें और मस्जिद में बनू गिफार का खैमा भी था, अचानक उनकी तरफ से खून बहकर आने लगा तो! लोग उससे डर गये, कहने लगे, खेमे वालों! यह कया है जो तुम्हारी तरफ से हमारे पास रहा है, देखा तो हजरत सअद के जख्म से खून बह रहा था। आखिर वह इसी जख्म से अल्लाह को प्यारे हो गये।

 

 

292.उम्मे सलमा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अपनी बीमारी की शिकायत की तो आपने फरमाया कि तू लोगों के पीछे पीछे सवारी पर बैठकर तवाफ कर ले। चूनांचे मैंने सवार होकर तवाफ किया और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कआबे के पहलू में खड़े नमाज में सूरा वत्तूर तिलावत फरमा रहे थे। मालूम हुआ कि मस्जिद में हलाल जानवर लाया जा सकता है। बशर्ते कि मस्जिद के गन्दा होने का डर हो।

 

 

293.अबू सईद खुदरी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने एक दिन खुत्बा देते हुये फरमाया कि बेशक अल्लाह तआला ने अपने एक बन्दे को इख्तियार दिया है कि दुनिया में रहे या जो अल्लाह के पास है, उसे इख्तियार करे तो उसने उस चीज को इखि्तियार किया जो अल्लाह के पास है। यह सुनकर अबू बकर सिद्दीक रोने लगे। मैंने अपने दिल में कहा, यह बूढ़ा किस लिए रोता हैं? बात तो सिर्फ यह है कि अल्लाह ने अपने बन्दे को दुनिया या आखिरत दोनों में से जिसे चाहे, पसन्द करने का इख़्तियार दिया है। पस उसने आखिरत को पसन्द किया है। (तो इसमें रोने की क्या बात है मगर बाद में यह राज खुला कि) बन्दे से मुराद खुद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम थे। और अबू बकर सिद्दीक हम सब से ज्यादा समझने वाले थे। फिर आपने  फरमाया, अबू बकर सिद्दीक  तुम मत रोओ। मैं लोगों में से किसी के माल और दोस्ती का इतना बोझल नहीं, जितना अबू बकर सिद्दीक का हूं। अगर में अपनी उम्मत से किसी को दोस्त बनाता तो अबू बकर सिद्दीक को बनाता। लेकिन इस्लामी भाईचारगी जरूर है। देखो ! मस्जिद में अबू बकर सिद्दीक के दरवाजे के सिवा सब के दरवाजे बन्द कर दिये जायें। इस हदीस में आपकी खिलाफत की तरफ इशारा था कि खिलाफत के जमाने में नमाज़ पढ़ाने के लिए आने जाने में आसानी रहेगी

 

 

294.इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम अपनी आखरी बीमारी में एक पट्टी से अपने सर को बांधे हुए बाहर तशरीफ लाये और मिम्बर पर बैठे। अल्लाह की हम्दो सना (बड़ाई) के बाद फरमाया, अपनी जान और माल को मुझ पर अबू बकर सिद्दीक से ज्यादा और कोई खर्च करने वाला नहीं और मैं लोगों में से अगर किसी को दिली दोस्त बनाता तो यकीनन अबू बकर सिद्दीक को बनाता। लेकिन इस्लामी दोस्ती सब से बढ़कर है, देखो! मेरी तरफ से हर वह खिड़की जो इस मस्जिद में खुलती है, बन्द कर दो, सिर्फ अबू बकर सिद्दीक की खिड़की को रहने दो।

 

 

295.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मक्का तशरीफ लाये तो आपने उसमान बिन तल्हा को बुलाया। उन्होंने बैतुल्लाह का दरवाजा खोल दिया फिर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, बिलाल, उसामा और उसमान बिन तल्हा गये। उसके बाद दरवाजा बन्द कर दिया गया। आप वहां थोड़ी देर रहे, फिर सब बाहर निकले, खुद इबने उमर ने कहा, मैं जल्द उठा और हजरत बिलाल से जाकर पूछा तो बताया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कअबा के अन्दर नमाज़ पढ़ी। मैंने पूछा किस मकाम पर तो उन्होंने कहा, दोनों खम्भों के बीच में इबने उमर कहते हैं कि मैं यह बात पूछने से रह गया कि आपने कितनी रकअते पढ़ी।

 

 

296.इबने उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है, कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम एक बार मिम्बर पर तशरीफ फरमा थे कि एक आदमी ने आपसे पूछा: रात की नमाज़ के बारे में आपका क्या हुक्म है? आपने फरमाया, दो दो रकअतें अदा की जाये। अगर किसी को सुबह हो जाने का डर हो तो एक रकअत और पढ़े। वह पिछली सारी नमाजों को वितर ताक कर देगी। इबने उमर फरमाया करते थे कि रात की नमाज़ के आखिर में वितर पढ़ा करो, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इसका हुक्म फरमाया है। इस हदीस से वितर की एक रकअत पढ़ने का सबूत मिलता है।

 

 

297.अब्दुल्लाह बिन जैद अनसारी से रिवायत है कि उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मस्जिद में चित लेटे और पांव पर पांव रखे हुये देखा है। अगर इस तरह लेटने से सतर खुलने का डर हो तो फिर इसकी मनाही है, जैसा कि दूसरी हदीसों में है।अगर पांव को पांव पर रखा जाये तो सतर खुलने का डर नहीं। हां पांव को घुटने पर रखने से सतर खुलने का डर है

 

 

298.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हैं कि आपने फरमाया, जमाअत के साथ नमाज घर और बाजार की नमाज़ से पच्चीस दर्जे ज्यादा फजीलत रखती है। इसलिए कि जब कोई आदमी अच्छी तरह वुजू करे और मस्जिद में नमाज़ ही के इरादे से आये तो मस्जिद में पहुंचने तक जो कदम भी उठाता है, उस पर अल्लाह एक दर्जा बुलन्द करता है और उसका एक गुनाह मिटा देता है। और जब जब वह मस्जिद में पहुंच जाता है तो नमाज के लिए वहां रहे तो उसे नमाज़ का सवाब मिलता रहता है। और जब॑ तक वह अपने उस मुकाम में रहे, जहां नमाज पढ़ता है, फरिश्ते उसके लिए यूँ दुआ करते हैं, अल्लाह इसे माफ कर दे, अल्लाह इस पर रहम फरमा। यह उस वक्त तक जारी रहती है, जब तक वह बे-वुजू हो।

 

 

299..अबू मूसा रजि अल्लाह तआला अन्हो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हैं कि आपने फरमाया, एक मुसलमान दूसरे मुसलमान के लिए इमारत की तरह है कि उसके एक हिस्से से दूसरे हिस्से को ताकत मिलती है। और आपने अपनी उंगलियों को एक दूसरे में दाखिल फरमाया। कुछ हदीसों में ऐसा करने की मनाही है। इमाम बुखारी के नजदीक उनके सही होने में इखि्तिलाफ है या उन हदीसों में नमाज के बीच ऐसा करने पर महमूल है। आपने जरूरत के तहत मिसाल के लिए ऐसा किया।

 

 

300.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हमें जवाल के बाद की नमाजों में से कोई नमाज़ पढ़ाई और आपने दो रकअत पढ़ाकर सलाम फेर दिया। इसके बाद मस्जिद में गाड़ी हुई एक लकड़ी की तरफ गये। उस पर आपने टेक लगा लिया। गोया आप नाराज थे और अपना दायां हाथ बायें हाथ पर रख लिया और अपनी उंगलियों को एक दूसरे में दाखिल फरमाया और अपना दायां गाल बायीं हथेली की पीठ पर रख लिया। जल्दबाज तो मस्जिद के दरवाजों से निकल गये और मस्जिद में हाजिर लोगों ने कहना शुरू कर दिया, क्या नमाज़ कम कर दी गई? उस वक्त लोगों में हज़रत अबू बकर सिद्दीक और उमर फारूक रजि अल्लाह तआला अन्हो भी मौजूद थे। मगर इन दोनों ने आपसे गुफ्तगू करने से डर महसूस किया। एक आदमी जिसके हाथ कुछ लम्बे थे और उसे जुलयदैन भी कहा जाता था, कहने लगा अल्लाह के रसूल सल्लललाहु अलैहि सलाम वसल्लम! क्या आप भूल गये हैं या नमाज़ कम कर दी गयी है। आपने फरमाया, मैं भूला हूं और ही नमाज़ कम की गई है। फिर आपने फरमाया, कया जुलयदैन सही कहता है? लोगों ने अर्ज किया, “जी हांयह सुनकर आप आगे बढ़े और जितनी नमाज रह गयी थी, उसे अदा किया। फिर सलाम फेरा। उसके बाद आपने तकबीर कही और सज्दा--सहू (भूल का सज्दा) किया जो आम सज्दे की तरह या उससे कुछ लम्बा था। फिर आपने सर उठाया और अल्लाहु अकबर कह कर दूसरा सज्दा किया जो अपने आम सज्दों की तरह या उससे कुछ लम्बा था। फिर सर उठाकर अल्लाह अकबर कहा और सलाम फेर दिया।

 

 

301.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो वह मक्का और मदीना के रास्ते में अलग-अलग जगहों पर नमाज़ पढ़ा करते थे और कहा करते थे कि मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इन जगहों पर नमाज़ पढ़ते देखा है।

 

 

302.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है, कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम जब उमरे के लिए जाते, इसी तरह जब आप अपने आखरी हज में हज के लिए तशरीफ ले गये तो जुलहुलैफा में उस बबूल के पेड़ के नीचे पड़ाव करते जहां अब मस्जिद जुलहुलैफा है और जब आप जिहाद, हज या उमरे से (मदीना) वापस आते और उस रास्ते से गुजरते तो अकीक की वादी के नीचले हिस्से में उतरते; जब वहां से ऊपर चढ़ते तो अपनी ऊंटनी को बत्हा के मकाम में बिठाते जो वादी के मश्रिकी (पूर्वी) किनारे पर है और आखिर रात में वहीं आराम फरमाते, यहां तक कि सुबह हो जाती, यह जगह उस मस्जिद के पास नहीं जो पत्थरों पर बनी है और ही उस टीले पर है, जिस पर मस्जिद है, बल्कि इस जगह एक गहरा नाला था। अब्दुल्लाह बिन उमर इसके पास नमाज पढ़ा करते थे। उसके अन्दर कुछ (रेत के) टीले थे। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वही नमाज पढ़ते थे (रावी कहता हैं) लेकिन अब नाले की रो (पानी के बहाव) ने वहां कंकरियां बिछा दी हैं और उस मकाम को छिपा दिया है, जहां अब्दुल्लाह बिन उमर नमाज़ पढ़ा करते थे। हज़रत इबने उमर इन जगहों पर बरकत और पैरवी के लिए नमाज पढ़ते थे, वैसे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हर बात, हर काम और हर नक्शे कदम हमारे लिए खैर और बरकत का सबब है। मगर नबियों की बरकतों के नाम से जो कमी और ज्यादती की जाती है, वह भी हद दर्जा बुराई के लायक है। जैसा कि बाज लोग आप के पेशाब और पाखाना को भी पाक कहते हैं। नीज इन हदीसों में जिन मस्जिदों का जिक्र है, उनमें से अकसर लापता हो चुकी हैं। उसके वह पेड़ और निशानात भी खत्म हो चुके हैं,सिर्फ मस्जिद जुलहुलैफा की पहचान हो सकती है।बाकी रहे नाम अल्लाह का!"

 

 

303.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से यह भी रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वहां भी नमाज़ पढ़ी जहां अब छोटी सी मस्जिद है, उस मस्जिद के करीब जो रोहाअ की बुलन्दी पर मौजूद है, अब्दुल्लाह बिन उमर उस मुकाम की पहचान बतलाते थे, जहां नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नमाज़ अदा की थी, और कहते थे कि जब तू मस्जिद में नमाज़ पढ़े तो वह जगह तेरे दायें हाथ की तरफ पड़ती है और यह छोटी मस्जिद मक्का को जाते हुये रास्ते के दायें किनारे पर मौजूद है। इसके और बड़ी मस्जिद के बीच मुश्किल से पत्थर फैंकने की ही दूरी है। छोटी सी पहाड़ी के पास भी नमाज़ पढ़ा करते थे जो रोहाअ के खात्मे पर है। इस पहाड़ी का सिलसिला रास्ते के आखरी किनारे पर जाकर खत्म हो जाता है। मक्का को जाते हुये उस मस्जिद के करीब जो उसके और रोहाअ के आखरी हिस्से के बीच है, वहां एक और मस्जिद बन गई है। अब्दुल्लाह बिन उमर उस मस्जिद मे नमाज़ नहीं पढ़ा करते थे, बल्कि उसे अपनी बायीं तरफ और पीछे छोड़ देते और उसके आगे खुद पहाड़ी के पास नमाज पढ़ते थे अब्दुल्लाह बिन उमर सूरज ढ़लने के बाद रोहाअ से चलते, फिर जुहर की नमाज़ उस मकाम पर पहुंचकर अदा करते थे और जब मक्का से (मदीना) आते तो सुबह होने से कुछ वक्त पहले या सहरी के आखरी वक्त वहां पड़ाव करते और फजर की नमाज़ अदा करते।

 

 

304.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो ने फरमाया है कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम उन बड़े पेड़ों के पास उतरे जो रास्ते के बायीं तरफ हरशै पहाड़ी के पास एक वादी में हैं। यह वादी हरशै के किनारे से मिल गयी है। वादी और रास्ते के बीच एक तीर फैंकने का फासला है। अब्दुल्लाह बिन उमर उस बड़े पेड़ के पास नमाज़ पढ़ते जो वहां तमाम पेड़ों से बड़ा और रास्ते के ज्यादा करीब था। यह भी फरमाया करते थे कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस वादी में पड़ाव करते जो मर-रज जहरान के निचले हिस्से में मकामे सफवात से उतरते वक्त मदीना की तरफ है। आप इस वादी के निचले हिस्से में पड़ाव करते जो मक्का जाते हुए रास्ते के बायीं तरफ मौजूद है। आप जहां उतरते, उसमें और आम रास्ते के बीच एक पत्थर फँँकने का फासला होता। यह भी बयान किया कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम मकामे तुवा में उतरा करते और रात यहीं गुजारा करते थे। सुबह होती तो नमाज़ फजर यहीं पढ़ कर मक्का मुकर्रमा को रवाना होते,यहां आपके नमाज़ पढ़ने की जगह एक बड़े टीले पर थी। यह वह जगह नहीं, जहां आज मस्जिद बनी हुई है बल्कि उसके निचले हिस्से में वह बड़े टीले पर मौजूद थी। यह भी बयान करते हैं कि आपने उस पहाड़ के दोनों दरों का रूख किया जो उसके और तवील नामी पहाड़ के बीच काबा की तरफ है। आप उस मस्जिद को जो टीले के किनारे पर अब वहां तामीर हुई है, अपनी बायें तरफ कर लेते। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नमाज पढ़ने की जगह उससे नीचे काले टीले पर थी (अगर तू टीले से कम और ज्यादा दस हाथ छोड़कर वहां नमाज पढ़े तो तेरा रूख सीधा पहाड़ की दोनों घाटियों की तरफ होगा, यानी वह पहाड़ी जो तेरे और बैतुल्लाह के बीच मौजूद है।)

 

 

305.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब ईद के दिन (नमाज़ के लिए) निकलते तो बरछे के बारे में हमें हुक्म देते। तब वह आपके सामने गाड़ दिया जाता। आप उसकी तरफ (मुंह करके) नमाज़ पढ़ाते और लोग आपके पीछे खड़े होते ,सफर के दौरान भी आप ऐसा ही करते, चूनांचे (मुसलमानों के खलीफा ने इस वजह से बरछी साथ रखने की आदत अपना ली है।) हज़रत इब्ने उमर अफसोस जाहिर करते हैं कि इन सरदारों ने बरछी बरदार तो रख लिये हैं, लेकिन नमाज़ को नजर अन्दाज कर दिया, जो इस्लाम की बहुत बड़ी निशानी है। सुत्तरा वो चीज है जो इमाम नमाज मे वक्त अपने सामने रखता है। अगर इसके आगे से कोई आदमी गुजर जाये तो नमाज खत्म नहीं होती।

 

 

306.अबू हुजैफा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बत्हा की वादी में लोगों को नमाज़ पढ़ाई और आपके सामने नेजा गाड़ दिया गया। आपने (सफर की वजह से) जुहर की दो रकअतें अदा कीं। इसी तरह असर की भी दो रकअतें पढ़ीं। आपके सामने से औरतें और गधे गुजर रहे थे। आपके सामने गुजरने का मतलब यह है कि गाड़े गये सुतरे सुत्तरा के आगे औरतें वगैरह गुजरती थी, जैसा कि दूसरी रिवायतों में इसकी वजाहत है।

 

307.सहल रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नमाज की जगह और सामने की दीवार के बीच इस कद फासला था कि एक बकरी गुजर सकती थी। मालूम हुआ कि नमाजी को सुतरे के करीब खड़ा होना चाहिए। एक रिवायत में नमाजी और सुतरा के बीच फासला तीन हाथ बताया गया है।

 

 

308.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम जब पाखाना के लिए निकलते तो मैं और एक लड़का आपके साथ जाते। हमारे पास नोकदार लकड़ी या डण्डा या नेजा होता और पानी का लोटा भी साथ ले जाते। जब आप अपनी हाजत से फारिग होते तो हम लोटा आपको दे देते।

 

 

309.सलमा बिन अकवाअ रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि वह हमेशा उस खम्मे को सामने करके नमाज़ पढ़ते, जहां कुरआन शरीफ रखा रहता था। उनसे पूछा गया कि अबू मुस्लिम! तुम इस खम्मे के करीब ही नमाज़ पढ़ने की कोशिश क्यों करते हो? उन्होंने कहा मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखा है। वह कोशिश से इस खम्मे को सामने करके नमाज़ पढ़ा करते थे। यह हज़रत उसमान के दौर की बात है। जबकि कुरआन मजीद सन्दूक में महफूज करके एक खम्मे के पास रखा जाता था और इस खम्मे को उस्तवान--मस्हफ कहते थे उसको उस्वा-नतुल मुहाजरीन भी कहते थे क्योंकि मुहाजरीन यहां जमा होते थे।

 

 

310.इबने उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम के कअबा में दाखिल होने की रिवायत है कि जिस वक्त हजरत बिलाल बैतुल्लाह से बाहर आये तो मैंने उनसे पूछा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बैतुल्लाह के अन्दर क्या किया है? उन्होंने बताया कि आपने एक खम्मे को तो अपनी दायीं तरफ और एक को बायीं तरफ और तीन खम्मों को अपने पीछे कर लिया। (फिर आपने नमाज पढ़ी) उस वक्त कअबा की इमारत छः खम्भों पर थी। एक रिवायत है कि आपने दो खम्भों को अपनी दार्यी तरफ किया था। कुछ रिवायतों में है कि खम्भों के बीच नमाज़ पढ़ना मना है। यह उस वक्त है, जब जमाअत हो रही हो क्योंकि ऐसा करने से सफबन्दी में खलल आता है।

 

 

311.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी सवारी को चौड़ाई में बिठा देते। फिर उसकी तरफ मुंह करके नमाज़ पढ़ते थे। नाफे से पूछा गया कि जब सवारियां चरने के लिए चली जातीं तो उस वक्त क्या करते थे। तो उन्होंने कहा कि आप उस पालान को सामने कर लेते और उसके आखरी या पिछले हिस्से की तरफ मुंह करके नमाज पढ़ते और इब्ने उमर का भी यही अमल था।

 

 

312.आइशा सिद्दीका रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि तुम लोगों ने तो हमें गधों के बरावर कर दिया। हालांकि मैंने अपने आपको देखा कि चारपाई पर लेटी होती नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ लाते और चारपाई को (अपने और किब्ला के) बीच कर लेते। फिर नमाज पढ़ लेते थे। मुझे आपके सामने होना बुरा मालूम होता। इसलिए पैरों की तरफ से खिसक कर लिहाफ से बाहर हो जाती। हजरता आइशा लोगों की इस बात पर नाराज होती कि औरत नमाजी के आगे से गुजर जाये तो नमाज़ टूट जाती है। जैसा कि कुत्ते और गधे के गुजरने से टूट जाती है। 

 

 

313.अबू सईद खुदरी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि वह जुमे के दिन किसी चीज को लोगों से सुतरा बना कर नमाज पढ़ रहे थे कि अबू मुईत के बेटों में से एक नौजवान ने उनके आगे से गुजरने की कोशिश की, अबू सईद ने उसके सीने पर धक्का देकर उसे रोकना चाहा। नौजवान ने चारों तरफ नजर दौड़ाई, लेकिन आगे से गुजरने के अलावा उसे कोई रास्ता मिला। वह फिर उस  तरफ से निकलने के लिए लौटा तो अबू सईद खुदरी ने पहले से ज्यादा जोरदार धक्का दिया। उसने इस पर अबू सईद खुदरी को बुरा-भला कहा। | उसके बाद वह मरवान के पास पहुंच गया और अबू सईद से जो वाकिया पेश आया था, उसकी शिकायत की। अबु सईद भी उसके पीछे मरवान के पास पहुंच गये। मरवान ने कहा, जनाब अबू सईद खुदरी तुम्हारा और तुम्हारे भतीजे का क्या मामला है? अबू सईद ने फरमाया मैंने नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम को यह फरमाते सुना है कि तुम में से कोई अगर किसी चीज को लोगों से सुतरा बनाकर नमाज़ पढ़े, फिर कोई उसके सामने से गुजरने की कोशिश करे तो उसे रोके। अगर वह रूके तो उससे लड़े, क्योंकि वह शैतान है। लड़ने से मुराद हथियार से कत्ल करना नहीं, बल्कि गुजरने वाले को सख्ती से रोकना है।

 

 

314.अबू जुहैम रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, अगर नमाजी के सामने गुजरने वाला यह जानता हो कि उस पर किस कद्र गुनाह है तो आगे से गुजरने के बजाये वहां चालिस.... तक खड़े रहने को पसन्द करता। हदीस के रावी कहते हैं, मुझे मालूम नहीं कि चालीस दिन कहे या महीनें या साल।  एक रिवायत में चालीस साल की सराहत है, बल्कि सही इन्ने हिब्बान में सौ साल आया है। मालूम हुआ कि नमाजी के आगे से गुजरना हराम और बहुत बड़ा गुनाह है।

 

 

315.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम नमाज़ पढ़ते रहते और मैं (आपके सामने) बिस्तर पर चौड़ाई के बल सोई रहती और जब आप वित्र पढ़ना चाहते तो मुझे जगा लेते। मैं भी वित्र पढ़ लेती।

 

 

316.अबू कतादा अन्सारी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उमामा को उठाये हुये नमाज़ पढ़ लेते थे। जो आपकी लख्ते जिगर जैनब रजि अल्लाह तआला अन्हो और अबुल आस की बेटी थी। जब सज्दा करते तो उसे उतार देते और जब खड़े होते तो उसे उठा लेते। मालूम हुआ कि नमाज़ के दौरान बच्चे को उठाने से नमाज़ खत्म नहीं होती। नीज इस कद्र अमल कलील नमाज के मनाफी नहीं है।

 

 

317.अब्दुल्लाह  बिन मसऊद रजि अल्लाह तआला अन्हो से मरवी है। यह हदीस पहले गुजर चुकी है, जिसमें नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का कुरैश के लिए बद दुआ का जिक्र है। जिस दिन उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर नमाज़ की हालत में (ऊंटनी की) औझरी (बच्चादानी) डाल दी तो (फातिमा रजि अल्लाह तआला अन्हो ने उसे आप से हटाया था) इस रिवायत के आखिर में यह भी जिक्र है। फिर उनको घसीटकर बदर के कुएं में डाला गया। उसके बाद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, कुऐं वालों पर लानत की गई है। इससे मालूम हुआ कि औरत नमाजी के बदन से गन्दगी वगैरह दूर कर सकती है और ऐसा करने से नमाज़ में कोई रूकावट नहीं आती।

 

 

318.इबने उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सफर की हालत में सर्दी या बारिश की रात अजान देने वाले को हुक्म फरमाते कि अज़ान दो और उसके बाद आवाज दे दो कि अपने अपने ठिकानों में नमाज पढ़ लो। यह हुक्म सफर की हालत में, सर्दी या बरसात की रातों के लिए है, ऐसे हालात में जमाअत का अहतेमाम किया जा सकता है।

 

 

319.अबू कतादा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,कि हम नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम के साथ नमाज़ पढ़ रहे थे, इतने में आपने कुछ लोगों का शौर सुना। जब आप नमाज से फारिग हुए तो फरमाया कि तुम्हारा क्या हाल है? उन्होंने अर्ज किया कि हमने नमाज़ में शामिल होने के लिए बहुत जल्दी की तो आपने फरमाया, आईन्दा ऐसा मत करना, बल्कि जब नमाज़ के लिए आओ तो वकार और सुकून का खयाल रखो और जिस कद्र नमाज़ मिले, पढ़ लो और जो रह जाये, उसे (बाद में) पूरा कर लो।

 

 

320.अबू कतादा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है, कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, जब नमाज़ की तकबीर कही जाये तो तुम उस वक्त तक खड़े हो, जब तक मुझे आता देख लो। मालूम हुआ कि जब इमाम मस्जिद में हो तो फिर इमाम के आने से पहले नमाजी खड़ें हों, बल्कि उसे देखने के बाद नमाज के लिए उठें।

 

 

321.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि एक बार नमाज़ की तकबीर हो गई और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मस्जिद के एक कोने में किसी से धीरे धीरे बातें कर रहे थे और आप नमाज के लिए नहीं खड़े हुये, यहां तक कि कुछ लोगों को नींद आने लगी। सोने से मुराद ऊंघ है, जैसा कि इब्ने हिब्बान की रिवायत में है। हज़रत इमाम बुखारी का मकसद शरीअत की आसानी को बयान करना है। आज जबकि मसरूफियाते जिन्दगी (व्यस्त जिन्दगी) हद से बढ़ चुकी है, इसलिए इमाम को मुकतदियों का खयाल रखना जरूरी है। लेकिन नबी के तरीके को नजर अन्दाज किया जाये।

 

 

322.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलअल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया, कसम है उस जात की जिसके हाथ में मेरी जान है। मैंने इरादा कर लिया था कि लकड़ियां जमा करने का हुक्म दूँ। फिर नमाज़ के लिए अज़ान का हुक्म दूँ, फिर किसी आदमी को हुक्म दूँ कि वह लोगों का इमाम बने और खुद मैं उन लोगों के पास जाऊँ जो जमाअत में हाजिर नहीं होते फिर उन्हें उनके घरों समेत जला दूँ। कसम है उस जात की जिसके हाथ में मेरी जान है। अगर उनमें किसी को यह मालूम हो जाये कि वह मस्जिद में मोटी हड्डी या दो उम्दा गोश्त वाली हडिडयां पायेगा तो इशा की नमाज में जरूर हाजिर होगा।

 

 

323.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, जमाअत के साथ नमाज अकेले आदमी की नमाज से सत्ताईस दर्जे ज्यादा फजीलत रखती है। जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने वालों के इख्लास और तकवे में कमी और ज्यादती की वजह से सवाब में भी कमी और ज्यादती होती है। यही वजह है कि अगली रिवायत में पच्चीस दर्जों का जिक्र है। 

 

 

324.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह फरमाते हुये सुना है कि जमाअत के साथ नमाज़ अकेले की नमाज से सवाब में पच्चीस दर्जे ज्यादा है और रात दिन के फरिश्ते फजर की नमाज में जमा होते हैं। फिर अबू हुरैरा ने कहा, अगर चाहो तो यह आयत पढ़ लो। फजर में कुरआन की तिलावत पर फरिश्ते हाजिर होते हैं। 

 

 

325.अबू मूसा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, सबसे ज्यादा नमाज का सवाब उस आदमी को मिलता है जो मस्जिद तक दूर से चलकर आता है। फिर दर्जा-बदर्जा वह जो सब से ज्यादा दूरी तय करके आता है। और जो आदमी इन्तिजार करे कि इमाम के साथ नमाज़ पढ़े, उसका सवाब उस आदमी से ज्यादा है जो जल्दी से पहले ही नमाज़ पढ़कर सो जाता है। इस हदीस का उनवान से ताल्लुक इस तरह है कि जैसे दूर से आने वाले को तकलीफ की वजह से ज्यादा सवाब मिलता है, सो ऐसे ही फजर की नमाज आमतौर पर दुश्वार गुजरती है। जिसकी वजह से ज्यादा सवाब की हकदार है।

 

 

326.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, एक आदमी रास्ते में जा रहा था, कि उसने कांटों भरी टहनी देखी तो उसे हटा दिया। अल्लाह तआला को उसका यह काम पसन्द आया उसे बख्श दिया। फिर फरमाया कि शहीद पांच किस्म के लोग हैं। तारन की बीमारी में मरने वाले, पेट की तकलीफ से मरने वाले, डूबकर मरने वाले, दब कर मरने वाले और अल्लाह की राह में जिहाद करते हुए शहीद होने वाले। इसी हदीस के कुछ हिस्सों में है कि लोगों को अगर मालूम हो जाये कि जुहर की नमाज के लिए जल्दी आने का कितना सवाब है तो जरूर पहल करें। 

 

 

327.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि बनू सलमा ने मकान बदल करके नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के करीब रहने का इरादा किया तो आपने इसे नापसन्द फरमाया कि मदीना को वीरान कर दें। चूनांचे आपने तरगीब देते हुए फरमाया कि तुम अपने कदमों के बदले सवाब के तलबगार क्यों नहीं हो?

 

 

328.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, फजर और इशा की नमाज से ज्यादा और कोई नमाज मुनाफिकों पर भारी नहीं है। अगर वह जान लें कि इन दोनों में क्या सवाब है? तो इनके लिए आयें, अगरचे घूटनों के बल चलकर आना पड़े।'' मालूम हुआ कि इशा और फजर की जमाअत दीगर नमाजों की जमाअत से ज्यादा फजीलत रखती है।

 

 

329.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, सात किस्म के लोगों को अल्लाह तआला अपने साये में जगह देगा, जिस रोज उसके साये के अलावा और कोई साया होगा। इन्साफ करने वाला बादशाह, वह नौजवान जो अपने रब की इबादत में परवान चढ़े, वह आदमी जिसका दिल मस्जिदों में लटका रहता हो, वह दो आदमी जो अल्लाह के लिए दोस्ती करें, इक्टठें हो तो अल्लाह के लिए और अलग हों तो अल्लाह के लिए, वह आदमी जिसे कोई खुबसूरत और मर्तबे वाली औरत बुराई की दावत दे और वह आदमी जो इस कद्र छुपे तौर पर सदका दे कि उसके बायें हाथ को भी पता हो कि दायां हाथ क्या खर्च करता है। सातवां वह आदमी जो तन्हाई में अल्लाह को याद करे तो अपने आप आंखों से आंसू निकल पड़े याद रहे कि यह फजीलत सिर्फ सात किस्म के लोगों के लिए खास नहीं, बल्कि अल्लाह की रहमत का यह आलम है कि दूसरी हदीसों में इस किस्म के लोगों की तादाद तकरीबन सत्तर तक पहुंचती है जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुख्तलिफ हालतों और जगहों के पेशे नजर बयान की है।

 

 

330.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि वह नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हैं कि आपने फरमाया, जो आदमी सुबह और शाम मस्जिद में बार बार जाये तो अल्लाह तआला जन्नत से उसकी इतनी बार मेहमानी करेगा, जितनी बार वह मस्जिद में गया होगा।

 

 

331.अब्दुल्लाह बिन मालिक बिन बुहैना रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक आदमी को दो रकअत नमाज पढ़ते देखा, जबकि नमाज की तकबीर हो चुकी थी। जब रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम नमाज से फारिग हुए तो लोगों ने उस आदमी को घेर लिया तो तब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस आदमी से फरमाया, क्या सुबह की चार रकअतें हैं? कया सुबह की चार रकअतें हैं? यह उनवान बजाये खुद एक हदीस है, जिसे इमाम मुस्लिम ने बयान किया है। कुछ रिवायतों में है कि जब नमाज़ खड़ी जो जाये तो फजर की सुन्नतें भी पढ़ें हमारे यहां कुछ हजरात इस हदीस की खुले तौर पर खिलाफवर्जी करते हैं और नमाज़ खड़ी होने के बाद भी सुन्नतें पढ़ते रहते हैं। 

 

 

332.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी वफात के मर्ज में मुब्तला हुये और नमाज़ के वक्त अज़ान हुई तो आपने फरमाया, अबू बकर से कहो कि वह लोगों को नमाज़ पढ़ायें। उस वक्त आपसे कहा गया कि अबू बकर बड़े नरम दिल इन्सान हैं, जब वह आपकी जगह खड़े होंगे तो गम की शिद्दत से लोगों को नमाज पढ़ा सकेंगे। आपने दोबारा वही हुक्म दिया तो फिर वही अर्ज किया, आपने तीसरी बार वही कहा और फरमाया, तुम तो यूसुफ अलैहि सलाम की हमनशीन औरतें मालूम होती हो। अबू बकर से कहो, वह लोगों को नमाज़ पढ़ायें। चूनौँचे अबू बकर नमाज पढ़ाने चले गये, बाद में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने मर्ज से कुछ कमी महसूस फरमायी तो आप दो आदमीयों के बीच सहारा लेकर निकले। गोया मैं अब भी आपके दोनों पैरों की तरफ देख रही हूँ कि बीमारी की कमजोरी की वजह से जमीन पर घसीटते जाते थे। अबू बकर ने आपको देखकर पीछे हटना चाहा तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इशारा फरमाया कि अपनी जगह पर रहो। फिर आप अबू बकर के पहलूं में बैठ गये। फिर आपने नमाज शुरू की तो अबू बकर ने आपकी पैरवी की। जबकि बाकी लोगों ने अबू बकर की पैरवी में नमाज़ पढ़ी, एक रिवायत है कि आप अबू बकर की बायी तरफ बैठ गये, जबकि अबू बकर ने खड़े होकर नमाज़ अदा की। मकसद यह है कि जब तक मरीज किसी किसी तरह मस्जिद में पहुंच सकता है तो उसे मस्जिद में जमाअत के लिए आना चाहिए। चाहे दूसरे आदमी का सहारा ही क्यों लेना पड़े। नीज हजरत अबू बकर की खिलाफत की सच्चाई पर इस से ज्यादा खुली दलील और क्या हो सकती है।

 

 

333.इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उन्होंने बारिश और कीचड़ के दिन लोगों के सामने खुतबा दिया और अजान देने वाले को हुक्म दिया कि जब वह हय्या अलस्सलाह पर पहुंचे तो यूँ कह दे, अपने अपने घरों पर नमाज़ पढ़ लें, लोग एक दूसरे की तरफ देखने लगे। गोया उन्होंने इसे बुरा समझा। इबने अब्बास ने फरमाया ऐसा मालूम होता है कि तुमने इसे बुरा ख्याल किया है, हालांकि यह काम उस आदमी ने किया जो मुझसे कहीं बेहतर है यानी नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम। चूंकि अज़ान से मस्जिद में आना जरूरी हो जाता है इसलिए मैंने अच्छा समझा कि तुम्हें तकलीफ में डाल दूं

 

 

334.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,कि एक अन्सारी आदमी ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अर्ज किया कि मैं आपके साथ नमाज नहीं पढ़ सकता क्योंकि वह मोटा आदमी था। फिर उसने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए खाना तैयार किया और आपको अपने घर आने की दावत दी और आपके लिए चटाई बिछाई, चटाई के एक किनारे को धोया, उस पर आपने दो रकअत अदा कीं तो जारूद की औलाद में से एक आदमी ने हजरत अनस से पूछा, क्या नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम चाश्त (अजजुहा) की नमाज पढ़ा करते थे? जवाब दिया कि मैंने इस रोज के अलावा कभी आपको यह नमाज पढ़ते नहीं देखा है। मालूम हुआ कि माजूर अगर जुम्मे की नमाज में शामिल हो सके तो उन्हें घर में नमाज़ पढ़ने की इजाजत है, यानी मुनासिब वजह की बिना पर जमाअत से पीछे रह जाना जाइज नही है।

 

 

335अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जब खाना सामने रख दिया जाये तो मगरिब की नमाज से पहले खाना खाओ और अपना खाना छोड़ कर नमाज़ के लिए जल्दी करो। मकसद यह है कि भूख के वक्त अगर खाना तैयार हो तो पहले उससे फारिग हो जाना चाहिए ताकि नमाज पूरे सुकून से अदा की जाये, इससे यह भी मालूम हुआ कि नमाज़ में तकवे की

अहमियत अव्वल वक्त से ज्यादा है। 

 

 

336.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उनसे सवाल किया गया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम घर में क्या करते थे, उन्होंने जवाब दिया कि अपने घर वालों की के खिदमत में लगे रहते और जब नमाज़ का वक्त जाता तो आप नमाज़ के लिए तशरीफ ले जाते। इमाम बुखारी का मकसद यह है कि खाने के अलावा दीगर दुनियावी कामों की इतनी हैसियत नहीं है कि उनके पेशे नजर नमाज को टाल दिया जाये

 

 

337.मालिक बिन हुवैरिस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने एक बार फरमाया कि मैं तुम्हारे सामने नमाज पढ़ता हूँ हालांकि मेरी नियत नमाज़ पढ़ने की नहीं है। मेरा मकसद सिर्फ यह है कि वह तरीका सिखा दूं जिस तरीके से नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम नमाज़ पढ़ा करते थे। इससे मालूम हुआ कि तालीम की नियत से नमाज पढ़ना जाइज है और ऐसा करना रियाकारी या इबादत में शिर्क नहीं है।

 

 

338.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि हजरत अबू बकर को कह दो कि वह लोगों को नमाज पढ़ायें, पहले गुजर चुकी है। वह इस रिवायत में फरमाती हैं कि मैंने अर्ज किया, अबू बकर आपकी जगह खड़े होकर गम की वजह से रोने लगेंगे,इस वजह से लोगों को उनकी आवाज़ नहीं सुनाई देगी। लिहाजा आप हजरत उमर को हुक्म दें कि वह लोगों को नमाज पढ़ाये। हजरता आइशा फरमाती हैं कि मैंने हजरता हफ्सा से कहा, तुम भी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कहो कि अबू बकर आपकी जगह खड़े होंगे तो रोने के सबब लोगों को आवाज़ सुना सकेंगे। इस लिए आप हजरत उमर को हुक्म दें कि वह लोगों को नमाज पढ़ायें। चूनांचे ये आपसे अर्ज किया तो आपने फरमाया, खामोश रहो, यकीनन तुम यूसुफ अलैहि सलाम की हमनशीन औरतों की तरह हो। अबू बकर को कहो कि वह लोगों को नमाज पढ़ायें। इस पर हफ्सा ने आइशा से कहा, मैंने कभी तुमसे कोई फायदा पाया। इस बाब से इमाम बुखारी का मकसद यह है कि इमामत के लिए इल्म फज्ल वाले को चुना जाये। दीन से नावाकिफ (अनजान) इस ओहदे के लायक नहीं, चाहे कारी ही क्यों हो। 

 

 

339.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि हजरत अबू बकर सिद्दीक नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम की मौत के मर्ज में लोगों को नमाज़ पढ़ाते थे। पीर के दिन जब लोगों ने नमाज के लिए सफ बन्दी की तो नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने हुजरे का पर्दा उठाया और खड़े होकर हम लोगों की तरफ देखने लगे। उस वक्त आप का चेहरा हुस्न जमाल और सफाई में गोया कुरआन का वरक था। फिर खुशी के साथ मुस्कुराये तो हम लोगों को ऐसी खुशी हुई कि खतरा हो गया, कहीं हम आपको देखने में मशगूल हो जायें (नमाज से तवज्जो हट जाये।) उसके बाद अबू बकर अपने उल्टे पांव पीछे लौटने लगे ताकि सफ में शामिल हो जायें। वह समझे कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम नमाज के लिए तशरीफ ला रहे हैं। लेकिन आपने हमारी तरफ इशारा फरमाया कि अपनी नमाज पूरी कर लो। यह फरमाकर आपने पर्दा डाल दिया और उसी दिन आपने वफात पायी। इस हदीस से वाजेह तौर पर साबित होता है कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम की वफात तक हजरत अबू बकर सिद्दीक नमाज़ पढ़ाने के लिए आपके खलीफा रहे। 

 

 

340.सहल बिन सअद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु वसल्लम अग्र बिन औफ के कबीले में सुलह कराने के लिए तशरीफ ले गये। जब नमाज़ का वक्त गया तो अज़ान देने वाले ने अबू बकर के पास आकर कहा, अगर तुम नमाज़ पढ़ाओ तो मैं तकबीर कह दूं। उन्होंने फरमाया, “हा पस अबू बकर नमाज़ पढ़ाने लगे। इतने में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ लाये और लोग नमाज में थे, आप सफों में से गुजर कर पहली सफ में पहुंचे। इस पर लोग तालियां बजाने लगे, लेकिन अबू बकर अपनी नमाज में इधर-उधर देखते थे। जब लोगों ने लगातार तालियाँ बजायीं तो अबू बकर मुतवज्जो हुये और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखा। आपने उन्हें इशारा किया कि तुम अपनी जगह पर ठहरे रहो। इस पर अबू बकर ने अपने दोनों हाथ उठाकर अल्लाह का शुक्र अदा किया कि रसूलुल्लाह ने उन्हें इमामत की इज्जत बख्शी। फिर वह पीछे हट गये और सफ में शामिल हो गये और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आगे बढ़ गये और नमाज़ पढ़ाई। फिर आपने फारिग होकर फरमाया, अबू बकर जब मैंने तुम्हें हुक्म दिया था तो तुम क्यों खड़े रहे, तो अबू बकर ने अर्ज किया कि अबू कहाफा के बेटे की क्या मजाल कि वह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आगे नमाज पढ़ाये? फिर आपने फरमाया, क्या वजह है, मैंने तुम्हें बहुत ज्यादा तालियाँ बजाते देखा? देखो जब नमाज में किसी को कोई बात पेश आये तो उसे सुबहानल्लाह कहना चाहिए, क्योंकि जब वह सुबहानल्लाह कहेगा तो उसकी तरफ तवज्जो दी जायेगी और यह ताली बजाना तो सिर्फ औरतों के लिए है। मालूम हुआ कि अगर किसी मजबूरी के पेशे नजर मुकर्ररा इमाम के अलावा किसी दूसरे को इमाम बना लिया जाये, फिर नमाज के शुरू में मुकर्ररा इमाम पहुंचे तो उसे इख्तियार है, खुद इमाम बन जाये या मुकतदी रहकर नमाज मुकम्मल कर ले। दोनों सूरतों में नमाज़ दुरस्त है।

 

 

341.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि जब नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम बीमार हुए तो आपने पूछा, क्या लोग नमाज पढ़ चुके हैं? हमने अर्ज किया नहीं अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! वह आपके इन्तिजार में हैं। फिर आपने फरमाया कि मेरे लिए एक लगन में पानी रख दो। हजरता आइशा फ़रमाती हैं, हमने ऐसा ही किया तो आपने गुस्ल फरमाया। फिर उठने लगे तो बेहोश हो गये। उसके बाद जब होश आया तो आपने फरमाया, क्या लोग नमाज़ पढ़ चुके हैं? हमने अर्ज किया नहीं अल्लाह के रसूल सल्लललाहु अलैहि वसल्लम! वह तो आपके इन्तिजार में हैं। आपने फरमाया कि मेरे लिए लगन में पानी रख दो। फिर खड़ा होना चाहा मगर बेहोश हो गये। उसके बाद होश आया तो फरमाया कि क्या लोग नमाज़ पढ़ चुके हैं ? हमने कहा नहीं, अल्लाह के रसूल सल्लललाहु अलैहि वसल्लम वह आपके इन्तिजार में हैं! और लोग मस्जिद में इशा की नमाज के लिए बैठे हुए जब नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम का इन्तजार कर रहे थे तो आखिर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हजरत अबू बकर के पास एक आदमी भेजा और हुक्म दिया कि वह नमाज पढाये। चूनांचे कासिद ने उनकें पास जाकर कहा, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वस्रल्लम ने आपको हुक्म दिया है कि आप लोगों को नमाज पढायें अबू बकर बडे नरम दिल इन्सान थे। उन्होंने हज़रत उमर से कहा कि तुम नमाज पढाओ। हजरत उमर ने जबाब दिया कि आप ही इस ओहदे के ज्यादा हक़दार हैं। उसके बाद हजरत अबु बकर बीमारी के दिनों में नमाज़ पढाते रहे। बाकी हदीस पहले गुजर चूकी है। 

 

 

342.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत करदा हदीस जिसमें नबी सल्लल्लाहु अलेहि वसल्लम का बीमारी की वजह से घर में नमाज पढाने का जिक्र है, पहले गुजर चुकीं है। इस रिवायत में सिर्फ इतना इजाफा है कि आपने फरमाया, जब इमाम बैठ कर नमाज़ पढे तो तुम सब भी बैठकर नमाज़ पढे। यह वाक्या जिलहिज्जा के महीने सन् 5 हिजरी मदीना मुनव्वरा में पेश आया था। जब आप घोडे से गिरकर जख्मी हुये थे। जिन्दगी के दो आखरी दिनों में जब आप बीमार थे तो आपने बैठकर इमामत कराई और लोग आपके पीछे खडे थे। इसलिए मुकतदियो का ऐसे हालात में बैठकर नमाज़ अदा करना जरूरी नही

 

 

343.बरा बिन आजिब रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम "समि अल्लाहुलिमन हमिदा" कहते तो हम में से कोई आदमी अपनी कमर उस वक्त तक झुकाता, जब तक नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम सज्दे में चले जाते। फिर हम लोग उसके बाद सज्दे में जाते। मालूम हुआ कि नमाज के बीच इमाम को देखना जाइज है ताकि नमाज़ के कामों में उसकी पैरवी की जा सके।

 

 

344.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि वह नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हैं कि आपने फरमाया, क्या तुममें से जो आदमी अपना सर इमाम से पहले उठाता है, उसको इस बात का डर नहीं कि अल्लाह तआला उसके सर को गधे के सर जैसा बना दे। या अल्लाह तआला उसकी सूरत गधे जैसी बना दे। इबने हिब्बान की रिवायत में है कि उसके सर को कुत्ते के सर जैसा बना दिया जाये। लिहाजा इमाम से पहले नहीं करना चाहिए। 

 

 

345.अनस बिन मालिक रजि अल्लाह तआला अन्हो नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हैं कि आपने फरमाया की अपने हाकिम की सुनो और इताअत करो, अगरचे कोई काला कलूटा हब्शी ही तुम पर हाकिम बना दिया जाये, जिसका सर मुनकके जैसा हो।

 

 

346.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, जो लोग तुम्हें नमाज़ पढ़ाते हैं, अगर ठीक पढ़ायेंगे तो तुम्हें और उन्हें सवाब मिलेगा और अगर गलती करेंगे तो तुम्हारे लिए सवाब है, मगर उनके लिए गुनाह है। ऐसे हालात में मुकतदियों की नमाज में कोई खलल नहीं होगा, जबकि उन्होंने तमाम शर्तों और रूकनों को पूरा किया हो।

 

 

347.इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत पहले गुजर चुकी है, जिसमें उन्होंने अपनी खाला मैमूना के घर रात रहने का जिक्र किया है। इस रिवायत में इतना इजाफा है कि फिर आप सो गये, यहां तक कि सांस की आवाज़ आने लगी और जब आप सोते तो सांस की आवाज़ जरूर आती थी। उसके बाद अजान देने वाला आपके पास आया तो आप बाहर तशरीफ ले गये और नमाज़ पढ़ी और नया वुजू नहीं फरमाया। इस हदीस में हज़रत इबने अब्बास फरमाते हैं कि मै आपकी बायीं तरफ खड़ा हुआ तो मुझे आपने दायी तरफ कर लिया।

 

 

348.जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कोई जरूरतमन्द नमाज़ तोड़कर अकेला नमाज़ पढ़ ले तो जाइज है रिवायत है कि मुआज बिन जबल नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ इशा की नमाज पढ़ते ,उसके बाद वापस लौट कर अपनी कौम की इमामत कराते, एक दिन उन्होंने नमाज में सूरा बकरा पढ़ी तो एक आदमी नमाज़ तोड़कर चल दिया तो हजरत मुआज को उससे रंज पैदा हुआ। जब यह खबर नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम को पहुंची तो आपने मुआज से तीन दफा फरमाया- फत्तान, फत्तान, फत्तान (फितना फैलाने वाले) या यह फरमाया,फातिन, फातिन, फातिन (फितना करने वाले) फिर आपने उन्हें हुक्म दिया कि औसते मुफस्सल की दो सूरतें पढ़ा करो। सूरा हुजुरात से आखिर कुरआन तक तमाम सूरतें मुफस्सल कहलाती हैं। फिरअम्मा यतसाअलून'' तक तिवालवज्जुहा"तक औसत औरवननास'' तक किसार के नाम से पहचानी जाती है। आमतौर परसूरा बूरूज'' तक तिवालसुरे बय्यिना" तक औसतें और "वन्नासतक किसार का नाम दिया जाता है। इससे यह भी मालूम हुआ कि नफ्ल पढ़ने वाले इमाम के पीछे फर्ज अदा किये जा सकते हैं।

 

 

349.अबू मसऊद रजि अल्लाह तआला अन्हो कहते हैं कि एक आदमी ने अर्ज किया अल्लाह के रसूल सल्लललाहु अलैहि वसल्लम! अल्लाह की कसम! मैं सुबह की नमाज में सिर्फ फलां आदमी की वजह से पीछे रह जाता हूं, क्योंकि वह नमाज़ को बहुत लम्बा करता है। पस मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को कभी नसीहत में इस दिन से ज्यादा गजबनाक नहीं देखा। उसके बाद आपने फरमाया, तुममें से कुछ लोग नफरत दिलाने वाले हैं। तुममें से जो आदमी लोगों को नमाज पढ़ाये तो उसे चाहिए कि हल्की पढ़ाया करे, क्योंकि मुकतदियों में कमजोर बूढ़े और जरूरतमन्द भी होते हैं। हजरत अनस से रिवायत है कि उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हल्की नमाज़ पढ़ते और उसको पूरा पूरा अदा करते थे। यानी आपकी नमाज़ किरअत के ऐतबार से हल्की होती, लेकिन रूकू और सज्दे पूरे तौर से अदा करते। मस्जिद के इमामों को भी ऐसी बातों का खयाल रखना चाहिए।

 

 

350.अबू कतादा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि वह नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हैं कि आपने फरमाया, मैं नमाज़ देर तक पढ़ने के इरादे से खड़ा होता हूँ लेकिन किसी बच्चे के रोने की आवाज सुनकर मैं अपनी नमाज को हल्का कर देता हूँ। क्योंकि उसकी मां को तकलीफ में डालना बुरा समझाता हूँ। इस हदीस से बच्चों को मस्जिद में लाने का जवाज साबित नहीं होता, क्योंकि मुमकिन है कि मस्जिद के करीब घर से बच्चे के रोने की आवाज सुनते हों।

 

 

351.नोमान बिन बशीर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, तुम अपनी सफों को बराबर रखों, नहीं तो अल्लाह तआला तुम्हारे मुंह उलट देगा। अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, सफों को दुरस्त करो और मिलकर खड़े हो जाओ। मैं तुम्हें अपनी पीठ के पीछे से भी देखता रहता हूँ। सफो को बराबर रखने से मुराद यह है कि नमाजी आगे पीछे हों और बीच में खाली जगह हो। सफों का दुरस्त करना जरूरी है। क्योंकि यह नमाज़ का हिस्सा है। इस हदीस की शुरूआत यूँ है कि जब तकबीर कही गई तो आपने अपना चेहरा मुबारक हमारी तरफ करके फरमाया हमारे यहां सफ बन्दी का एहतिमाम नहीं होता, हालांकि खुद रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम और खुलफाये राशेदीन का यह मामूल था कि जब तक सफें ठीक हो जायें, नमाज शुरू करते। दौरे फारूकी में इस बेहतर काम के लिए लोग चुने हुये थे। मगर आजकल सबसे ज्यादा छूटी हुई यही चीज है। हालांकि यह कोई इख्तिलाफी मसला नहीं।

 

 

352.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तहज्जुद (तरावीह) की नमाज अपने हुजरे में पढ़ा करते थे। चूँकि कमरे की दीवारें छोटी थी। इसलिए लोगों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शख्सियत को देख लिया और कुछ लोग नमाज की इक्तदा करने के लिए आपके साथ खड़े हो गये। फिर सुबह को उन्होंने दूसरों से इसका जिक्र किया। फिर दूसरी रात नमाज़ के लिए खड़े हुये तो कुछ लोग आपकी इक्तदा में इस रात भी खड़े हो गये। यह सूरते हाल दो या तीन रातों तक रही। उसके बाद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम घर बैठ गये और नमाज के लिए तशरीफ लाये। उसके बाद सुबह के वक्त लोगों ने इसका जिक्र किया तो आपने फरमाया, मुझे इस बात का डर हुआ कि कहीं इसके एहतिमाम से रात की नमाज तुम पर फर्ज कर दी जाये। इमाम और मुक्तदी के बीच कोई रास्ता या दीवार हायल हो तो इक्तदा जाइज है। बशर्ते कि इमाम की तकबीर खुद सुने या कोई दूसरा सुना दे। 

 

 

353.जैद बिन साबित रजि अल्लाह तआला अन्हो से भी यह हदीस मरवी है, अलबत्ता यह इजाफा है कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, तुमने जो किया है, मैंने देखा और समझ लिया कि तुम्हें इबादत का शौक है लोगो! तुम अपने घरों में नमाज पढ़ो, क्योंकि आदमी की बेहतर नमाज वही है जो उसके घर में अदा हो। मगर फर्ज नमाज़ जिसे मस्जिद में पढ़ना जरूरी है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नफ्ली इबादत घर में अदा करने को बेहतर करार दिया है। क्योंकि आदमी रियाकारी और दिखावे से महफूज रहता है। नीज ऐसा करने से घर भी बरकत वाला हो जाता है। अल्लाह की रहमत नाजिल होती है और घर से शैतान भी भाग जाता है।

 

 

354.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम जब नमाज़ शुरू करते और जब रकूअ के लिए अल्लाहु अकबर कहते तो अपने दोनों हाथ कन्धों के बराबर उठाते। और जब रूकू से सर उठाते तब भी इसी तरह दोनों हाथ उठाते और "समिअल्लाहु लिमन हमिदा रब्बना वलकलहम्द" कहते। मगर सज्दों में यह अमल करते थे। तकबीरे तहरीमा के वक्त रूकू में जाते और सर उठाते वक्त और तीसरी रकअत के लिए उठते वक्त दोनों हाथों को कन्धों या कानों तक उठाना, रफा यदैन कहा जाता है और इसका मकसद इमाम शाफई के कौल के मुताबिक अल्लाह की बड़ाई को जाहिर करना और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत की पैरवी करना है, तकबीरे तहरीमा के वक्त रफा यदैन पर तमाम उम्मत का इजमा है और बाकी तीनों जगहों में रफा यदैन करने पर भी अहले कूफा के अलावा तमाम उम्मत के उलमा का इत्तिफाक है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उम्र भर इस सुन्नत पर अमल किया और यह ऐसी लगातार की जाने वाली सुन्नत है जिसे अशरा मुबश्शरा (वो दस सहाबा जिनको आप ने दुनिया में जन्नती खुशखबरी सुनाई) के अलावा दीगर सहाबा किराम भी बयान करते हैं। और इस पर अमल करते दिखाई देते हैं। लिहाजा इस हदीस की बिना पर तमाम मुसलमानों के लिए जरूरी है कि वह रूकू जाते और उससे सर उठाते वक्त अल्लाह की अजमत का इजहार करते हुए रफा यदैन करें। इमाम बुखारी ने इस सुन्नत को साबित करने के लिए एक मुस्तकिल रिसाला भी लिखा है।

 

 

355.सहल बिन सअद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि लोगों को यह हुक्म दिया जाता था कि नमाज़ में आदमी अपना दायां हाथ, बायें हाथ की कलाई पर रखे ।सही इबने खुजैमा की रिवायत के मुताबिक दोनों हाथ सीने पर बांधे जायें। दायें हाथ को बायें हाथ की कलाई पर रखा जाये या दायें हाथ को बायें हाथ की हथेली पर रखा जाये। कलाई पर कलाई रखकर कूहनी को पकड़ना साबित नहीं है। नाफ के नीचे हाथ बांधने की एक भी हदीस सही नहीं है। सीने पर हाथ बांधना आजजी की निशानी, नमाज में बुरे कामों से रूकावट, दिल की हिफाजत और डर के ज्यादा मुनासिब है।

 

 

356.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम,अबू बकर सिद्दीक रजि अल्लाह तआला अन्हो और उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो नमाज में किराअतअल्हम्दु लिल्लाहि रब्बिल -लमीनसे शुरू फरमाते थे। इसका मतलब यह नहीं है किबिस्मिल्लाहिरहमानिर्रहीमको बिलकुल छोड़ दिया जाये, बल्कि इसे पढ़ना चाहिए, क्योंकिबिस्मिल्लाह'' तो सूरा फातिहा का हिस्सा है। रिवायत का मतलब यह है कि “'बिस्मिल्लाहको जोर से नहीं पढ़ा करते थे। जैसा कि दूसरी रिवायतों में इसका बयान है। अलबत्ता इसके जोर से पढ़ने में इख्तिलाफ है। दोनों की दलीलों से मालूम होता है कि इसमें गुंजाईश है और दोनों तरह पढ़ा जा सकता है।

 

 

357.अबू हुरेरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तकबीरे तहरीमा और किरअत के बीच कुछ खामोशी फरमाते थे तो मैंने अर्ज किया अल्लाह के रसूल सल्लललाहु अलैहि वसल्लम! मेरे मां-बाप आप पर कुरबान हों, आप तकबीर और किरअत के बीच खामोशी में क्या पढा करते हैं? आपने फरमाया, मैं कहता हूँ, या अल्लाह मुझ से मेरे गुनाह इतने दूर कर दे, जितना तूने पूर्व और पश्चिम के बीच फर्क रखा है। और अल्लाह मुझे गुनाहों से ऐसा पाक कर दें जैसे सफेद कपड़ा मैल-कुचैल से पाक हो जाता है, या अल्लाह! मेरे गुनाह पानी बर्फ और ओलों से धो दे। इसको दुआये इस्तिफताह कहते हैं और इसके अलफाज कई तरह से आये हैं। मगर मजकूरा दुआ सही तरीन है। अगर मासूरा दुआयें भी पढ़ी जा सकती है। वाजेह रहे कि इस दुआ को आहिस्ता पढ़ना चाहिए। नीज मालूम हुआ कि खामोशी और आहिस्ता किरअत में मुनाफात नहीं है।

 

 

358.असमा रजि अल्लाह तआला अन्हो से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, जन्नत मेरे इतने करीब हो चुकी थी कि अगर मैं हिम्मत करता तो उसके गुच्छों में से कोई गुच्छा तुम्हारे पास ले आता और दोजख भी मेरे इतने करीब हो गई कि मैं कहने लगा मालिक! क्या मैं भी उन कहर लोगों के साथ रखा जाऊँगा? इतने में एक औरत देखी। रावी का गुमान है कि आपने फरमाया, उस औरत को एक बिल्ली मार रही थी। मैंने पूछा, इस औरत का क्या हाल है? फरिश्तों ने कहा, इसने बिल्ली को बांध रखा था, यहां तक कि वह भूख से मर गई, क्योंकि तो वह खुद खिलाती थी और खुला छोड़ती थी कि वह खुद जमीन के कीड़ों से अपना पेट भर ले। मालूम हुआ कि हैवानों को तकलीफ देना भी नाजाइज है और कयामत के दिन ऐसा करने पर पकड़ होगी।

 

 

359.खब्बाब रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उनसे पूछा गया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जुहर और असर में कुछ पढ़ते थे? तो उन्होंने कहा, हां! फिर पूछा गया कि तुम्हें कैसे पता चलता था? हजरत खब्बाब ने कहा, कि आप की दाढ़ी के हिलने से मालूम होता था। इमाम को चाहिए कि वह अपनी नजर को सज्दागाह पर रखे। मुकतदी के लिए भी यही हुक्म है। अलबत्ता किसी जरूरत के पेशे नजर इमाम की तरफ नजर उठा सकता है। मगर अकेला नमाज पढ़ता हैं तो उसका हुक्म भी इमाम जैसा है। अलबत्ता इधर उधर देखना किसी सूरत में जाइज नहीं है।

 

 

360.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि लोगों को क्या हुआ, वह नमाज में अपनी नजरें आसमान की तरफ उठाते हैं। फिर आपने उसके बारे में बड़ी सख्ती से इरशाद फरमाया कि लोगों को इससे बाज आना चाहिए या फिर उनकी आंखों की रोशनी को छीन लिया जाएगा।

 

 

361.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछा, नमाज़ में इधर उधर देखना कैसा है? तो आपने फरमाया, यह ऐसी तवज्जुह है जो शैतान बन्दे की नमाज में करता है। इल्तिफात तीन तरह का होता है। जरूरत के बगैर दायें-बायें मुंह करना लेकिन सीना किब्ला रूख रहे, यह काम मकरूह या हराम है। गोशा आंख के किनारे से देखना, यह खिलाफे औला है बवक्त जरूरत ऐसा करना जाइज है। दायें-बायें इस तरह देखना कि सीना भी किब्ला रूख से हट जाये, ऐसा करने से नमाज़ बातिल हो जाती है।

 

 

362.जाबिर बिन समुरह रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि कूफा वालों ने हजरत उमर से सअद बिन अबी वक्कास की शिकायत की। हजरत उमर ने सअद को हटा कर अम्मार बिन यासिर को उनका हाकिम बनाया, अलगर्ज उन लोगों ने साद की बहुत शिकायतें कीं, यह भी कह दिया कि वह अच्छी तरह नमाज नहीं पढ़ते। इस पर हजरत उमर ने उन्हें बुलवाया और कहा, ! अबू इसहाक! यह लोग कहते हैं कि तुम नमाज अच्छी तरह नहीं पढ़ते हों? उन्होंने कहा, अल्लाह की कसम! मैं इन्हें रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वाली नमाज पढ़ाता था। इसमें जर्रा भर कोताही नहीं करता। इशा की नमाज़ पढ़ाता तो पहली दो रकअतों में ज्यादा देर लगाता और आखरी दो रकअतें हल्की करता था। हजरत उमर ने फरमाया, अबू इसहाक! तुम्हारे बारे में हमारा यही गुमान है। फिर हजरत उमर ने एक आदमी या कुछ आदमियों को सअद के साथ कूफा रवाना किया ताकि वह कूफा वालों से सअद के बारे में तहकीक करे उन्होंने वहाँ कोई मस्जिद छोड़ी जहां सअद का हाल पूछा हो। जब लोगों ने उनकी तारीफ की, फिर वह अबस कबीले की मस्जिद में गये तो वहां एक आदमी खड़ा हुआ, जिसकी कुन्नियत अबू सादा और उसे उसामा बिन कतादा कहा जाता था, वह बोला जब तुमने हमें कसम दिलाई तो सुनो! सअद जिहाद में लश्कर के साथ खुद जाते थे और ही माले गनीमत बराबर तकसीम करते थे और मुकदमात में इन्साफ से काम लेते थे। सअद ने यह सुनकर कहा, अल्लाह की कसम! मैं तुझे तीन बद-दुआयें देता हूँ। अल्लाह अगर तेरा यह बन्दा झूटा है तो सिर्फ लोगों को दिखाने या सुनाने के लिए खड़ा हुआ है तो इसकी उम्र लम्बी कर दे, फकीरी बढ़ा दे और आफतों में फसा दे। चूनांचे ऐसा ही हुआ। उसके बाद जब उसका हाल पूछा जाता तो कहता कि मैं एक मुसीबत में घिरा हुआ, लम्बी उम्र वाला बूढ़ा हूँ। मुझे सअद की बद-दुआ लग गई है। हजरत जाबिर से बयान करने वाला रावी कहता है कि मैंने भी उसे देखा था, बुढ़ापे की हालत में उसके दोनों अबरू आंखों पर गिनने के बावजूद वह रास्ते में चलती छोकरियों को छेड़ता और उनसे छेड़ छाड़ करता फिरता था। हज़रत सअद बिन अबी वक्कास, फारूकी खिलाफत में कूफा के गर्वनर थे और इमामत भी करते थे। कूफा वालों की तरफ से शिकायत पहुंचने पर उन्होंने हजरत उमर के पास वजाहत फरमायी कि मैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ही की तरह इन्हें नमाज़ पढ़ाता हूँ, यानी पहली दो रकअतों में किरअत लम्बी करता हूँ और दूसरी दो रकअतें हल्की करता हूँ। यहीं से इमाम के लिए चार रकअतों में किरअत करने का सबूत मिलता है।

 

 

363.उबादा बिन सामित रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, जिस आदमी ने सूरा फातिहा नहीं पढ़ी, उसकी नमाज़ ही नहीं हुई। इस हदीस के पेशे नजर जम्हूर उल्मा का यह मानना है कि मुकतदी के लिए सूरा फातिहा पढ़ना जरूरी है। कुछ इल्म वालों का ख्याल है कि मुकतदी के लिए ईमाम की किरअत ही काफी है। उसे फातिहा पढ़ना जरूरी नहीं। हालांकि मुकतदी को इमाम की वह किरअत काफी होती है जो फातिहा के अलावा होती है, क्योंकि इस हदीस के पेशे नजर फातिहा के बगैर नमाज़ नहीं होती। कुछ रिवायतों में खुलासा है कि आपने सुबह की नमाज़ के बाद सहाबा किराम से पूछा कि शायद तुम इमाम के पीछे कुछ पढ़ते हो। उन्होंने कहा, जी हां! तो आपने फरमाया कि सूरा फातेहा के अलावा कुछ और पढ़ा करो।

 

 

364.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है नबी सल्ललाहु अलैहि वसल्लम मस्जिद में तशरीफ लाये, इतने में एक आदमी आया और उसने नमाज़ पढ़ी फिर आपको सलाम किया। आपने सलाम का जवाब देने के बाद फरमाया, जाओ नमाज पढ़ो, तुम ने नमाज़ नहीं पढ़ी। फिर इस तरह तीन बार हुआ। आखिरकार उसने कहा,कसम है उस अल्लाह की जिसने आपको हक़ के साथ भेजा है मै इससे अच्छी नमाज नहीं पढ़ सकता, लिहाजा आप मुझे बता दीजिए। आपने फरमाया अच्छा जब तुम नमाज़ के लिए खड़े हो तो तकबीर कहो, फिर कुरआन से जो तुम्हें याद हो, पढ़ो! उसके बाद सुकून से रूकू करो,फिर सर उठाओ। और सीधे खड़े हो जाओ, फिर सज्दा करो और सज्दे में सुकून से रहो, फिर सर उठाकर सुकून से बैठ जाओ और अपनी पूरी नमाज़ इसी तरह पूरी किया करो। अबू दाउद की रिवायत में है कितकबीरे तहरीमा कहने के बाद सूरा फातिहा पढ़ना'' इस हदीस पर इमाम इबने हिब्बान ने इस तरह उनवान कायम किया है कि नमाजी के लिए हर रकअत में फातिहा पढ़ना जरूरी है। इस हदीस से दो सज्दों के बीच बैठना और रूकू और सज्दे सुकून से अदा करना भी साबित होता है। नीज यह भी मालूम हुआ कि दूसरे सज्दे के बाद थोड़ी देर बैठकर के उठना जरूरी है, जिसको जलस--इस्तिराहत कहते हैं।

 

 

365.अबू कतादा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम नमाज़े जुहर की पहली दो रकअतों में सूरा फातिहा और दो सूरतें पढ़ते थे। पहली रकअत को लम्बा करते थे और दूसरी रकअत को छोटा करते और कभी कभी कोई आयत सुना भी देते थे, असर की नमाज में भी सूरा फातिहा और दूसरी दो सूरतें तिलावत फरमाते और पहली रकअत को दूसरी रकअत से कुछ लम्बा करते। इस तरह सुबह की नमाज में भी पहली रकअत लम्बी होती और दूसरी हल्की करते थे। इस हदीस से यह भी मालूम हुआ कि आहिस्ता पढ़ी जाने वाली जुहर,असर की नमाज़ों में अगर इमाम कभी किसी आयत को ऊँची आवाज़ से पढ़ दे तो जाइज है।

 

 

366.इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उनकी मां उम्मे फजल ने उन्हें सूरावल मुरसलाते उरफापढ़ते सुना तो कहने लगीं मेरे बेटे! तूने यह सूरत पढ़कर मुझे याद दिलाया कि यही वह आखरी सूरत है जो मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुनी थी। आप यह सूरत मगरिब की नमाज में पढ़ रहे थे।

 

 

367.जैद बिन साबित रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मैंने नबी सल्ललाहु अलैहि वसल्लम को मगरिब की नमाज में दो बड़ी सूरतों में से ज्यादा बड़ी सूरत पढ़ते हुये सुना है। मगरिब की नमाज़ का वक्त चूंकि थोड़ा होता है, इसलिए आम तौर पर छोटी छोटी सूरतें पढ़ी जाती है। इस हदीस से मालूम होता है कि कभी कभार कोई बड़ी सूरत भी पढ़ देनी चाहिए। यह भी सुन्नत है।

 

 

368.जुबैर बिन मुतइम रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मगरिब की नमाज में सूरा तूर पढ़ते सुना है।

 

 

369.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,कि मैंने एक बार सल्ललाहु अलैहि वसल्लम के पीछें इशा की नमाज अदा की तो आपने सूरा इजस्समाउन शक्कत पढ़ी और सज्दा किया। लिहाजा मैं हमेशा इस सूरत में सज़्दा करता रहूंगा, यहां तक कि आपसे मिल जाऊँ।

 

 

370.बरा बिन आजिब रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम एक बार सफर में थे तो आपने इशा की नमाज की एक रकअत में सूरा “'वत्तीने वज्जैतून" तिलावत फरमाई, एक रिवायत में है कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से ज्यादा अच्छी आवाज में पढ़ने वाला किसी को नहीं देखा।

 

 

371.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,उन्होंने फरमाया कि हर नमाज़ में किरअत करना चाहिए, फिर जिन नमाजों में रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने हमें जोर से सुनाया, उनमें तुम्हें जोर से सुनाते हैं और जिनमें आपने पढ़कर नहीं सुनाया, उनमें हम भी तुम्हें नहीं सुनाते है और अगर तू सूरा फातिहा से ज्यादा किरअत करे तो भी काफी है और अगर ज्यादा पढ़ ले तो अच्छा है। इससे मालूम हुआ कि नमाज़ में फातिहा का पढ़ना जरूरी है, क्योंकि इसके बगैर नमाज़ नहीं होती। यह भी मालूम हुआ कि फातिहा के साथ दूसरी सूरत मिलाना बेतहर है, जरूरी नहीं।

 

 

372.इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने कुछ सहाबा के साथ उकाज के बाजार का इरादा करके चले। इन दिनों शैतान को आसमानी खबरें लेने से रोक दिया गया था और उन पर शोले बरसाये जा रहे थे तो शैतान अपनी कौम की तरफ लौट आये। कौम ने पूछा, क्या हाल है? शैतानों ने कहा, हमारे और आसमानी खबरों के बीच रूकावट खड़ी कर दी गई है और अब हम पर शोले बरसाये जा रहे हैं। कौम ने कहा, तुम्हारे और आसमानी खबरों के बीच किसी ऐसी चीज ने पर्दा कर दिया है जो अभी जाहिर हुई है। इसलिए जमीन में पूर्व और पश्चिम तक चल फिर कर देखो कि वह क्या है? जिसने तुम्हारे और आसमानी खबरों के बीच पर्दा डाल दिया है। तो वह उसकी तलाश में निकले, उनमें वह जिननात जो तिहामा की तरफ निकले थे, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास पहुंचे। आप नख्ला के मकाम में थे और उकाज की मण्डी की तरफ जाने की नियत रखते थे। उस वक्त आप अपने सहाबा किराम को फजर की नमाज पढ़ा रहे थे। जब उन जिन्नों ने कान लगाकर कुरआन सुना तो कहने लगे, अल्लाह की कसम! यही वह कुरआन है, जिसने तुम्हारे और आसमानी खबरों के बीच पर्दा डाल दिया है, इसी मकाम से वह अपनी कौम की तरफ लौट गये और कहने लगे, 'भाईयो! हमने अजीब कुरआन सुना है जो हिदायत का रास्ता बताता है, हम उस पर ईमान ले आये हैं। अब हम हरगिज अपने अल्लाह के साथ किसी को शरीक नहीं बनायेंगे।' तब अल्लाह तआला ने अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर यह सूरत नाजिल फरमायी, “कुल ऊहिया इलय्या'' और आपको जिन्नों की बातें वहयी के जरीया बताई गई।

 

 

373.इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को जिस नमाज़ में जोर से पढ़ने का हुक्म हुआ, आपने जोर से पढ़ा और जिसमें हल्के पढ़ने का हुक्म हुआ, हल्के पढ़ा और तुम्हारा रब भूलने वाला नहीं और बेशक तुम्हारे लिए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पैरवी करना ही अच्छा है। कुरआन मजीद में नमाज़ के बीच कुरआन आहिस्ता या जोर से पढ़ने का खुलासा नहीं है। इससे मालूम हुआ कि कुरआन के अलावा भी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर वहय आती थी। लिहाजा उन हजरात को गौर करना चाहिए जो दीनी अहकाम में सिर्फ कुरआन पर भरोसा करते हैं और हदीस उनके यकीन के लायक नहीं है।

 

 

374.अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उनके पास एक आदमी आकर कहने लगा, मैंने रात को मुफस्सल की तमाम सूरतें एक रकअत में पढ़ डालीं। अब्दुल्लाह बिन मसऊद ने कहा, तूने इस कद्र तेजी से पढ़ी, जैसे नज्में पढ़ी जाती हैं, बेशक मैं उन जोड़ा-जोड़ा सूरतों को जानता हूँ, जिन्हें नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मिलाकर पढ़ा करते थे। फिर आपने मुफस्सल की बीस सूरतें बयान कीं। यानी हर रकअत में पढ़ी जाने वाली दो दो सूरतें। उलमा ने कुरआनी सूरतों को चार हिस्सों में तकसीम किया है।

1. तिवाल : जो सूरतें सौ से ज्यादा आयतों पर शामिल है।

2. मिऐन : जो सूरतें सौ या उससे कम आयतों पर शामिल हैं।

3. मसानी : जो सौ से बहुत कम आयतों पर शामिल है।

4. मुफस्सल : सूरे हुजुरात से आखिर कुरआन तक।

याद रहे कि हज़रत अब्दुल्ला बिन मसऊद ने जिन जोड़ा-जोड़ा सूरतों की निशानदही की है, उनमें से कुछ मौजूदा तरतीब कुरआन से मुख्तलिफ हैं।

 

 

375.अबू कतादा रजि अल्लाह तआला अन्हो रिवायत करते हैं कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम जुहर की पहली दो रकअतों में सूरा फातिहा और दों सूरतें पढ़ते थे और पिछली दो रकअतों में सिर्फ सूरा फातिहा पढ़ते थे और कभी कभी कोई आयत हमें सुना भी देते थे और आप पहली रकअत को दूसरी रकअत से लम्बा करते, इस तरह असर और सुबह की नमाज़ में भी यही अमल था।

 

 

376.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, जब इमाम आमीन कहें तो तुम भी आमीने कहो, क्योंकि जिसकी आमीन फरिश्तों की आमीन से मिल जायेगी, उसके पिछले गुनाह माफ कर दिये जायेंगे। हजरत अबू हुरैरा  से ही रिवायत है कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, जब तुममें से कोई आमीन कहता है तो आसमान पर फरिश्ते भी आमीन कहते हैं। अगर इन दोनों की आमीन एक दूसरे से मिल जाये तो इस नमाजी के पिछले सारे गुनाह माफ हो जाते हैं। मुकतदी इमाम की आमीन सुनकर आमीन कहेंगे। इससे मुकतदियों के लिए जोर से आमीन कहना साबित हुआ। एक रिवायत में है कि आमीन कहने पर हसद करना यहूद का तरीका है।

 

 

377.अबू बकर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, वह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास उस वक्त पहुंचे जब आप रूकू में थे। सफ में शामिल होने से पहले उन्होंने रूकू कर लिया। फिर नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम से यह बयान किया तो आपने फरमाया, अल्लाह तआला तुम्हारा शौक और ज्यादा करे लेकिन आईन्दा ऐसा मत करना।

 

 

378.इमरान बिन हुसैन रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने अली रजि अल्लाह तआला अन्हो के साथ बसरा में नमाज़ अदा की, फरमाने लगे, उन्होंने हमें वह नमाज़ याद दिला दी जो हम रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ पढ़ा करते थे। फिर उन्होंने कहा कि आप तकबीर कहते थे, जब सर उठाते और सर झुकाते। कुछ लोग रूकू और सज्दे के वक्तअल्लाहु अकबरकहना जरूरी खयाल नहीं करते थे। इमाम बुखारी इस मसले की तरदीद के लिए यह हदीस लाये हैं।

 

 

 

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