379.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उन्होंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह फरमाते सुना कि हम बाद में आये हैं। लेकिन कयामत के दिन सब से आगे होंगे। अगलों को हमसे पहले किताब दी गयी है। फिर यही जुम्मे का दिन उनके लिए भी चुना गया था। मगर उन्होंने इख्तिलाफ किया और हमको अल्लाह तआला ने इसकी हिदायत कर दी। इस बिना पर सब लोग हमारे पीछे हो गये। यहूद कल (सनीचर) के दिन और नसारा परसौं (इतवार के दिन) इबादत करेंगे। जुम्मे की फरज़ियत की ताकीद मुस्लिम की एक रिवायत से भी होती है, जिसके अलफाज हैं “हम पर जुमा फर्ज करार दिया गया।"
380.अबू सईद खुदरी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि मैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इस फरमान पर गवाह हूँ कि जुम्मे के दिन हर बालिग आदमी पर गुस्ल करना फर्ज है और यह कि वह मिस्वाक करे और अगर खुशबू नसीब हो तो उसे भी इस्तेमाल करे। जुम्मे के दिन गुस्ल करना जरूरी है। अगरचे इमाम बुखारी का रूझान इसकी सुन्नत होने की तरफ है। अल्लाह बेहतर जानने वाला है।
381.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेहि वसल्लम ने फरमाया जो शख्स जुम्मे के दिन नापाकी के गुस्ल की तरह एहतिमाम से गुस्ल करके फिर नमाज़ के लिए जाये तो ऐसा है, जैसा कि एक ऊँट सदका किया, जो दूसरी घड़ी में जाये तो उसने गोया गाय की कुरबानी दी जो तीसरी घड़ी में जाये तो गोया उसने सींगदार मैंढ़ा सदका किया,जो चौथी घड़ी में चले तो उसने गोया एक मुर्गी सदका दी और जो पांचवी घड़ी में जाये तो उसने गोया एक अण्डा अल्लाह की राह में सदका किया। फिर जब इमाम खुतबा पढ़ने के लिए आता है तो फरिश्ते खुतबा सुनने के लिए मस्जिद में हाजिर हो जाते हैं। जुम्मे के दिन जल्दी आने की फजीलत आम लोगों के लिए है। इमाम को चाहिए कि वह खुतबे के वक्त मस्जिद में आये, जैसा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के खलीफाओं का अमल था।
382.सलमान फारसी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने कहा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसलल्लम ने फरमाया, जो आदमी जुम्मे के दिन गुस्ल करे और जिस कदर मुमकिन हो, सफाई करके तेल लगाये या अपने घर की खुशबू लगाकर जुम्मे की नमाज के लिए निकले और ऐसे आदमियों के बीच जुदाई न करे जो मस्जिद में बैठे हों फिर जितनी नमाज़ उसकी किस्मत में हो, अदा करे और जब इमाम खुतबा देने लगे तो चुप रहे तो उसके वह गुनाह जो इस जुमा से दूसरे जुमा के बीच हुये हों, सब माफ कर दिये जायेंगे।
383.इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उनसे पूछा गया कि लोग कहते हैं, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया है कि जुम्मे के दिन गुस्ल करो और अपने सरों को धोओ। अगरचे तुम नापाक न हो। फिर खुशबू इस्तेमाल करो। हजरत इब्ने अब्बास ने जवाब दिया कि गुस्ल में तो शक नहीं, लेकिन खुशबू के बारे में मुझे मालूम नहीं। तेल और खुशबू के बारे में हजरत सलमान फारसी की हदीस ऊपर जिक्र हुई है। शायद हजरत इबने अब्बास को उसका इल्म न हो सका।
384.हजरत उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उन्होंने मस्जिद के दरवाजे के पास एक रेशमी जोड़ा बिकते देखा तो अर्ज किया ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! अगर आप इसे खरीद ले तो जुम्मे और कासिदों के आने के वक्त पहन लिया करें। इस पर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, इसे तो वह आदमी पहनेगा जिसका आखिरत में कोई हिस्सा न हो। बाद में कहीं से इस तरह के रेशमी जोड़े रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आ गये, जिनमें एक जोड़ा आपने हजरत उमर को भी दिया,उन्होंने अर्ज किया, ऐ अल्लाह के रसूल रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! आपने मुझे यह दिया, हालांकि आप खुद ही इस लिबास के बारे में कुछ फरमा चुके है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, मैंने तुम्हें यह इसलिए नहीं दिया है कि इसे खुद पहनों, चूनांचे हजरत उमर ने वह जोड़ा अपने मुश्रिक भाई को पहना दिया जो मक्का मुकर्रमा में रहता था। हदीस के शुरूआत से इस तरह मुताबेकत है कि हज़रत उमर ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में जुम्मे के दिन अच्छे कपड़े पहनने की दरख्वास्त की। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसलल्लम ने इसलिए रेशमी जोड़े को नापसन्द किया कि उसका इस्तेमाल मर्दों के लिए जाईज न था।
385.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने कहा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसलल्लम ने फरमाया कि अगर मैं अपनी उम्मत पर भारी न समझता तो उन्हें हर नमाज के लिए मिस्वाक करने का हुक्म जरूर देता। जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसललम ने हर नमाज़ के लिए मिस्वाक की ताकीद फरमायी है तो जुम्मे की नमाज के लिए भी इसकी ताकीद साबित हुई।
386.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसलल्लम जुम्मे के दिन फजर की नमाज में अलिफ-लाम-मीम तनजिलु (सज्दा) और हल अता अलल इन्सान पढ़ा करते थे।
387.इबने हजरत उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,उन्होंने कहा कि मैंने रसूलुल्लाह सलल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह फरमाते सुना, तुम सब लोग निगेहबान देखभाल करने वाले हो और तुम्हें अपनी रिआया के बारे में पूछा जायेगा, इमाम भी निगेहबान है, उससे अपनी रिआया की पूछ होगी, मर्द अपने घर का निगेहबान है, उससे उसकी रिआया के बारे में सवाल होगा। औरत अपने शौहर के घर की निगेहबान है, उससे उसकी रिआया के बारे में पूछा जायेगा। नौकर अपने मालिक के माल का जिम्मेदार है, उससे उसकी रइय्यत के बारे में पूछा जायेगा। अलगर्ज तुम सब निगेहबान हो और तुम्हें अपनी रइय्यत के बारे में पूछा जायेगा। इमाम बुखारी ने इस बाब में उन लोगों का रद्द किया है जो जुमा के लिए शहर और हाकिम वगैरह की शर्ते लगाते हैं। इस किस्म की शर्ते बिला दलील हैं, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जमाने में मस्जिदे नबवी के बाद पहला जुमा अब्दुल कस कबीला नामी मस्जिद में अदा किया गया जो जुवासी गांव में थी और वह गांव बहरीन के इलाके में आबाद था।
388.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो की रिवायत,जिसमें यह जिक्र था कि हम जमाने के ऐतबार से बाद वाले हैं लेकिन कयामत के दिन सबसे आगे होंगे,पहले गुजर चुकी है। इस रिवायत में इतना इजाफा है कि हर मुसलमान के लिए हफ्ते में एक दिन गुस्ल करना जरूरी है। उस रोज उसे अपना बदन और सर धोना चाहिए । इससे भी मालूम हुआ कि जुम्मे के दिन नहाना जरूरी है।
389.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, वह फरमाती हैं कि लोग अपने घरों और देहातों से जुम्मे की नमाज के लिए बारी बारी आते थे, चूंकि वह धूल मिट्टी में चलकर आते,इसलिए उनके बदन से धूल और पसीना की वजह से बदबू आने लगती, चूनांचे उनमें से एक आदमी रसूलुल्लाह सललल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया, चूंकि आप उस वक्त्त मेरे घर में थे, तब नबी सलल्लल्लाहु अलैहि वसललम ने फरमाया, काश कि तुम लोग इस मुबारक दिन में नहा-धो लिया करो। अवाली मदीने के ऊंचे हिस्से में तीन चार मील पर आबाद देहाती आबादी को कहते हैं। मालूम हुआ कि इतनी दूरी पर रहने वालों को शहर की मस्जिदों में जुम्मे के लिए हाजिर होना जरूरी नहीं। अगर जरूरी होता तो बारी बारी आने के बजाये सब के सब हाजिर होते |
390.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि लोग खुद अपने खिदमतगार थे और जब जुम्मे के लिए आते तो उसी हालत में चले आते, तब उनसे कहा गया कि काश तुम लोग गुस्ल किया करते। इस हदीस से इमाम बुखारी यह साबित करते हैं कि जुमा सूरज ढलने के बाद पढ़ना चाहिए। क्योंकि लफ्जे रवाह इस्तेमाल हुआ जो सूरज ढलने के बाद के वक्त पर बोला जाता था,आने वाली हदीस में इसका खुलासा मौजूद है।
391.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सलल्लल्लाहु अलैहि वसलल्लम सूरज ढलते ही जुम्मे की नमाज अदा कर लेते थे।
392.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है कि जब ज्यादा सर्दी होती तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसललम जुम्मे की नमाज़ जल्दी पढ़ते और अगर गर्मी ज्यादा होती तो जुम्मे की नमाज़ कुछ ठण्डक होने पर पढ़ते थे।
393.अबू अब्स रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,वह जुम्मे की नमाज़ को जाते वक्त कहने लगे, मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसलल्लम को यह फरमाते सुना है कि जिस आदमी के दोनों पांव अल्लाह की राह में धूल मिट्टी से सने, तो अल्लाह तआला ने उसे दोजख की आग पर हराम कर दिया है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सहाबी ने जुम्मे के लिए निकलने को जिहाद की तरह करार दिया और जिहाद में आराम और सुकून से शिरकत की जाती है, इसलिए जुम्मे का भी यही हुक्म है।
394.इबने हजरत उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने कहा, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मना फरमाया है कि कोई आदमी अपने भाई को उसकी जगह से उठाकर खुद वहां बैठ जाये। पूछा गया, क्या यह हुक्म जुम्मे के लिए खास है? आपने फरमाया कि नहीं, बल्कि जुम्मे और गैर-जुम्मे दोनों के लिए यही हुक्म है। जुम्मे के अदबों में से यह भी एक अदब है कि आदमी निहायत सुकून के साथ जहां जगह मिले, बैठ जाये,धक्का-मुक्की करते हुए गर्दनें फलांग कर आगे बढ़ना शरीयत के खिलाफ है।
395.साइब बिन यजीद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अबू बकर सिद्दीक और हजरत उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो के जमाने में जुम्मे के दिन पहली अजान उस वक्त होती जब इमाम मिम्बर पर बैठ जाता, लेकिन उसमान रजि अल्लाह तआला अन्हो की खिलाफत के दौर में जब लोग ज्यादा हो गये तो उन्होंने जौरा नामी-एक मकाम पर तीसरी अजान को ज्यादा किया। असल जुम्मे की अजान तो वही है जो इमाम के मिम्बर पर आने के वक्त दी जाती है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अबू बकर और हजरत उमर के जमाने में सिर्फ एक अजान थी। हजरत उसमान रजि अल्लाह तआला अन्हो ने एक खास जरूरत की बिना पर एक और अजान का एहतिमाम कर दिया। हजरत उसमान की तरह जरूरत के वक्त मस्जिद के बाहर अगर मुनासिब जगह पर इसका एहतिमाम किया जाये तो जाइज है। मगर जहा जरूरत न हो, वहां सुन्नत के मुताबिक सिर्फ खुतबे ही के वक्त तेज आवाज से एक ही अजान देना चाहिए।
396.साइब बिन यजीद रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है कि नबी सललल्लाहु अलैहि वसलल्लम के जमाने में जुमा के दिन सिर्फ एक ही अजान दी जाती | वह भी उस वक्त, जब इमाम मिम्बर पर बैठ जाता था। आप के जमाने में कई अजान देने वाले थे जो अपनी अपनी बारी पर अजान दिया करते थे, लेकिन जुमा की अजान एक खास मोअज्ज़िन हज़रत बिलाल रजि अल्लाह तआला अन्हो ही दिया करते थे।
397.मुआविया बिन अबू सुफियान रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि वह जुम्मे के दिन मिम्बर पर तशरीफ फरमा थे तो मोअज़्जिन ने अजान कही, जब मोअज्जिन ने अल्लाहु अकबर कहा तो मुआविया रजि, ने भी अल्लाहु अकबर कहा। जब मोअज्ज़िन ने अश्हदु अलला इलाहा इल्लल्लाह, कहा तो मुआविया रजि अल्लाह तआला अन्हो ने कहा, मैं भी गवाही देता हूँ। फिर मोअज्ज़िन ने “अशहदु अन्ना मुहम्मदर्रसूलुल्लाह”, कहा तो मुआविया रजि अल्लाह तआला अन्हो ने कहा, मैं भी गवाही देता हूँ। फिर जब अजान हो गयी तो मुआविया रजि अल्लाह तआला अन्हो ने कहा, ऐ लोगो! मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से इसी मकाम पर सुना कि जब मोअज्जिन ने अज़ान दी तो आप भी वही फरमाते थे जो तुमने मुझे कहते हुये सुना। इमाम बुखारी इस हदीस से उन लोगों की तरदीद करते हैं जो खुतबे से पहले मिम्बर पर बैठने को मना करते और यह भी मालूम हुआ कि खुतबा शुरू करने से पहले गुफ्तगू करना जाइज है।
398.सहल बिन सअद रजि अल्लाह तआला अन्हो की रिवायत जो मिम्बर के बारे में थी, पहले गुजर चुकी है, जिसमें रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम का मिम्बर पर नमाज पढ़ने, फिर उत्टे पांव नीचे उतरने का जिक्र है, उसमें इतना ज्यादा है कि आपने फारिग होने के बाद लोगों की तरफ मुंह करके फरमाया, ऐ लोगों! मैंने इसलिए ऐसा किया ताकि तुम मेरी इकतदा करके मेरी नमाज का तरीका सीख लो। मालूम हुआ कि मुकतदियों को नमाज़ की अमलन तरबियत देना चाहिए। नीज दीगर कोई आदत के खिलाफ काम करे तो उसकी वजाहत कर देनी चाहिए। तबरानी की रिवायत में है कि आपने उस पर लोगों को खुतबा दिया, फिर वहीं नमाज़ अदा की। इस हदीस से यह भी मालूम हुआ कि आदत के खिलाफ काम करने के बाद उसकी हिकमत बयान कर देना चाहिए।
399.जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि एक खुजूर का तना मस्जिद मेंथा, जिस पर टेक लगाकर नबी सलल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खड़े होते थे और जब आपके लिए मिम्बर रखा गया तो उस तने से हमने दस माह की हामिला ऊंटनियों के रोने जैसी आवाज सुनी। आखिर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मिम्बर से उतरे और उस तने पर अपना हाथ रखा। निसाई की रिवायत में है कि जुदाई की वजह से लरजने लगा और इस तरह रोने लगा, जिस तरह गुमशुदा बच्चे वाली ऊटनी रोती है।
400.इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि एक दिन नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मिम्बर पर तशरीफ लाये और वह आखरी मजलिस थी, जिसमें आप शरीक हुये। आप अपने कन्धों पर बड़ी चादर डाले हुए सर पर चिकनी पट्टी बांधे हुये थे। आपने फरमाया, लोगों! मेरे करीब आ जाओ। चूनांचे लोग आपके करीब जमा हो गये तो फरमाया 'अम्मा बाद”। सुनो दीगर लोग तो बढ़ते जायेंगे, मगर कबीला अन्सार कम होता जायेगा। लिहाजा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्मत में से जो आदमी किसी भी शक्ल में हुकूमत करे, जिसकी वजह से दूसरे को नफा या नुकसान पहुंचाने का इख्तियार रखता हो, उसे चाहिए कि अन्सार के खूबकारों की नेकी कबूल करे और खताकारों की खताओं को माफ करे। इसमें कोई शक नहीं कि मदीना के अन्सार ने इस्लाम की तारीख में एक सुनहरा बाब रकम किया है, वह मुस्लिम उम्मत के ऊपर बड़ा एहसान करने वाले हैं, इसलिए उनकी इज्जत हर मुसलमान का मजहबी फर्ज है।
401.हजरत उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,उन्होंने कहा नबी सलल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खड़े होकर खुतबा दिया करते थे और बीच में कुछ देर बैठ जाते थे, जैसा कि तुम अब करते हो। | अगर बैठकर जुम्मे का खुतबा देना जाइज होता तो दोनों खुतबों के बीच बैठने की क्या हकीकत रह जाती है? “व-त-रकू-क-काइमा”' के मफहूम का भी यही तकाजा है कि जुम्मे का खुतबा खड़े होकर दिया जाये।
402.अम्र बिन तगलिब रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत्त है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसलल्लम के पास कुछ माल या गुलाम लाये गये, जिनको आपने बांट दिया, लेकिन कुछ लोगों को दिया और कुछ को न दिया। फिर आप को खबर मिली कि जिनको आपने नहीं दिया, वह नाखुश हैं। आपने अल्लाह की तारीफ और सना के बाद फरमाया, अल्लाह की कसम! मैं किसी को देता हूँ और किसी को नहीं देता, लेकिन जिसको छोड़ देता हूँ वह मेरे नजदीक उस आदमी से ज्यादा अजीज होता है, जिसको देता हूँ। नीज कुछ लोगों को इसलिए देता हूँ कि उनमें बे-सब्री और बोखलाहट देखता हूँ और कुछ को उनकी भलाई के सबब छोड़ देता हूँ, जो अल्लाह ने उनके दिलों में पैदा की है। उन्हीं लोगों में से अम्र बिन तगलिब भी थे, उनका बयान है कि अल्लाह की कसम! मैं यह नहीं चाहता कि रसूलुल्लाह सलल्लल्लाहु अलैहि वसललम के इस बात के बदले मुझे लाल ऊट मिलें। इमाम बुखारी यह बताना चाहते हैं कि खुतबे में अम्मा बाद कहना सुन्नत है। हजरत दाउद अलैहि के बारे में कुरआन में है कि उन्हें फसले खिताब से नवाजा गया था। इसका भी तकाजा है कि अल्लाह तआला की तारीफ व बड़ाई को अपने असल खिताब से अम्मा बाद के जरीये अलग किया जाये। नीज इस हदीस से आपके अच्छे अख्लाक का भी पता चलता है कि आपको न तो किसी की नाराजगी गवारा थी और न ही आप किसी का दिल तोड़ते थे और यह भी मालूम हुआ कि सहाबा ए-किराम को आपसे दिली मुहब्बत थी।
403.अबू हुमैद साइदी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सललल्लाहु अलैहि वसललम एक रात नमाज़ के बाद खड़े हो गये, अल्लाह तआला की ऐसी तारीफ और पाकी बयान की जो उसके लायक है और फिर फरमाया, “अम्मा बाद”। यह एक लम्बी हदीस का टुकड़ा है, जिसे इमाम बुखारी ने कई जगहों पर बयान किया है। हुआ यूँ कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेहि वसलल्लम ने एक सहाबी को जकात की वसूली के लिए भेजा। जब वह वापस आया तो कुछ चीजों के बारे में कहने लगा कि यह मुझे तोहफे के रूप में मिली हैं। तो उस वक्त आपने इशा के बाद खुतबा इरशाद फरमाया कि सरकारी सफर में तुम्हें जाति तोहफे लेने का कोई हक नहीं, जो भी पाओसब बैतुल माल सरकारी खजाने का है।
404.जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि जुम्मे के दिन एक आदमी उस वक्त आया जब नबी सललल्लाहु अलैहि वसललम खुतबा इरशाद फरमा रहे थे। आपने पूछा, ऐ आदमी क्या तूने नमाज़ पढ़ ली? उसने अर्ज किया नहीं, आपने फरमाया तो फिर खड़ा हो और नमाज़ अदा कर।मुस्लिम की रिवायत में है कि आपने उस आदमी को हल्की-फुल्की दो रकअतें पढ़ने का हुक्म दिया। मालूम हुआ कि खुतबे के बीच तहसय्यतुल मस्जिद के नफ्ल पढ़ने चाहिए। नीज किसी जरूरत की वजह से इमाम खुतबे के बीच बातचीत कर सकता है।
405.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि नबी सललल्लाहु अलैहि वसललम के जमाने में एक बार लोग भूखमरी में मुब्तला हुये,नबी सल्लल्णाहु अलैहि वसल्लम जुम्मे के दिन खुतबा इरशाद फरमा रहे थे, कि एक देहाती ने खड़े होकर कहा, ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! माल बर्बाद हो गया और बच्चे भूखे मरने लगे। आप हमारे लिए दुआ फरमायें। तो आपने दुआ के लिए अपने दोनों हाथ उठाये और उस वक्त आसमान पर बादल का एक टुकड़ा भी न था। मगर उस जात की कसम! जिसके हाथ में मेरी जान है। आप अपने हाथों को नीचे भी न कर पाये थे कि पहाड़ों जैसा बादल घिर आया और आप मिम्बर से भी न उतरे थे कि मैंने आप की दाढ़ी मुबारक पर बारिश को टपकते देखा। उस दिन खूब बारिश हुई और दूसरे, तीसरे दिन फिर चौथे दिन भी, यहां तक कि दूसरे जुम्मे तक यह सिलसिला जारी रहा। उसके बाद वही देहाती या कोई दूसरा आदमी खड़ा हुआ और कहने लगा, ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! मकान गिर गये और माल डूब गया। इसलिए आप अल्लाह से हमारे लिए दुआ फरमायें तो आपने अपने दोनों हाथ उठाकर फरमाया, ऐ अल्लाह हमारे आसपास बारिश बरसा, मगर हम पर न बरसा। फिर आप उस वक्त बादल के जिस टुकड़े की तरफ इशारा फरमाते, वह हट जाता आखिरकार मदीना तालाब की तरह हो गया और कनात की वादी महीना भर खूब बहती रही और जिस त्तरफ से भी कोई आदमी आता वह ज्यादा बारीश का बयान करता था। मालूम हुआ कि खुतबे की हालत में इमाम से किसी अवामी जरूरत के लिए दुआ की दरख्वास्त की जा सकती है और इमाम खुत्बे के बीच ही ऐसी दरख्वास्त पर तवज्जो कर सकता है।
406.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरनाया कि जुम्मे के दिन जब इमाम खुतबा दे रहा हो, अगर तूने अपने साथी से कहा कि खामोश हो जा तो बेशक तूने खुद एक गलत हरकत की है। किसी इन्सान को खुतबे के बीच मूजी नुकसान पहुंचाने वाले जानवर से खबरदार करना अंधे की रहनुमाई करना इस मनाही में शामिल नहीं फिर भी बेहतर है कि ऐसी हालत में भी मुमकिन हद तक इशारे से काम लेना चाहिए।
407.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जुम्मे के दिन खुतबे के बीच फरमाया कि इसमें एक घड़ी ऐसी है कि अगर ठीक उस घड़ी में मुसलमान बन्दा खड़े होकर नमाज पढ़े और अल्लाह तआला से कोई चीज मांगे तों अल्लाह तआला उसको वह चीज जरूर देता है और आपने अपने हाथ से इशारा करके बताया कि वह घडी थोड़ी देर के लिए आती है। कुछ रिवायतों में इस घड़ी के वक्त को बताया गया है कि वह इमाम के मिम्बर पर बैठने से लेकर नमाज से फारिग होने तक है।
408.जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि हम एक बार नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसललम के साथ नमाज के इन्तिजार में खुतबा सुनने में मसरूफ थे कि कुछ ऊट अनाज से लदे हुए आये। लोगों ने उनकी तरफ ऐसा ध्यान दिया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास सिर्फ बारह आदमी रह गये। इस पर यह आयत नाजिल हुई और जब लोग किसी सौदागरी या तमाशे को देखते हैं। तो उधर दौड़ पड़ते हैं और तुम्हें खड़ा छोड़ जाते हैं। इमाम बुखारी ने इस हदीस से यह साबित किया है कि कुछ लोग जुम्मे के सही होने के लिए मौजूद लोगों की तादाद के बारे में जो शर्ते बयान करते हैं, वह सही नहीं है। सिर्फ उतनी तादाद का होना जरूरी है, जिसे जमात कहा जा सके, अगर इमाम अकेला रह जाये तो ऐसी सूरत में जुमा नहीं होगा।
409.इबने हजरत उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जुहर से पहले दो रकअते और उसके बाद भी दो रकअतें पढ़ा करते थे और मगरिब के बाद अपने घर में दो रकअतें और इशा के बाद भी दो रकअतें पढ़ते थे, लेकिन जुम्मे के बाद कुछ न पढ़ते थे। अलबत्ता जब घर वापस आते तो फिर दो रकअतें अदा करते थे। जुमा से पहले नफ्लों के पढ़ने की हद ब्रन्दी नहीं है। अलबत्ता जुम्मे के बाद अगर मस्जिद में अदा करें तो गुफ्तगू या जगह बदलकर चार रकअत पढ़ें और अगर घर में अदा करें तो दो रकअत पढ़ें। अल्लाह बेहतर जानने वाला है।
Comments
Post a Comment