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11.डर की नमाज (Hadith no 410-412)

 

410.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मैं एक बार रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ जिहाद के लिए गया, जब हम दुश्मन के सामने खड़े हुये तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हमें नमाज पढ़ाने के लिए खड़े हुये। एक गिरोह आपके साथ खड़ा हुआ और दूसरा गिरोह दुश्मन के मुकाबले में डटा रहा। फिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने हमराही गिरोह के साथ एक रूकू और दो सज्दे किये। उसके बाद यह लोग उस गिरोह की जगह चले गये, जिसने नमाज नहीं पढ़ी थी। जब वह आये तो आपने उनके साथ भी एक रूकू और दो सज्दे अदा किये और सलाम फेर दिया। फिर उनमें से हर आदमी खड़ा हुआ और अपने अपने पूरे किये, एक एक रूकू और दो सज्दे। अलग अलग हदीसों से पता चलता है कि डर की नमाज़ को अदा करने के सत्रह तरीके हैं। लेकिन इमाम इब्ने कथ्यिम ने तमाम हदीसों का जाइजा लेने के बाद लिखा है कि बुनियादी तौर पर इसकी अदायगी के छः तरीके हैं। हालात और जरूरत के मुताबिक जो तरीका ठीक हो, उसे इखितियार कर लिया जाये, जम्हूर उलमा ने इसकी मशरूइयत पर इत्तिफाक किया है।

 

 

411.अब्दुल्ला बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो ही की एक रिवायत में इस कदर इजाफा है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अगर दुश्मन इससे ज्यादा हों तो पैदल और सवार जिस तरह भी मुमकिन हों, नमाज पढ़ें लड़ाई की तेजी के वक्त एक रकअत भी अदा की जा सकती है, बल्कि इशारों से अदा करना भी जाइज है।

 

 

412.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने कहा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब अहज़ाब की जंग से वापस हुये तो हमसे फरमाया कि हर आदमी बनू कुरैजा के कबीले में पहुंचकर नमाज पढ़े। कुछ लोगों को असर का वक्त रास्ते में ही गया तो उन्होंने कहा, जब तक हम वहां पहुंचेगे, नमाज़ पढ़ेंगे। लेकिन कुछ कहने लगे, हम अभी नमाज पढ़ते हैं। क्योंकि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम का यह मकसद नहीं था। फिर उन्होंने नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम से इस बात का बयान किया तो आपने किसी पर नाराजगी जाहिर की। कुछ सहाबा--किराम ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाह अलैहि वसल्लम के फरमान का यह मतलब लिया कि रास्ते में किसी जगह पर पड़ाव किये बगैर हम जल्दी पहुंचे, उन्होंने नमाज़ कजा की और उसे सवारी पर ही अदा कर लिया, जबकि दूसरे सहाबा ने आपके फरमान को जाहिर पर माना कि अगर हुक्म के मानने में नमाज देर से भी अदा होती तो हम गुनहगार नहीं होंगे | चूनांचे दोनों गिरोहों की नियत ठीक थी। इसलिए कोई भी बुराई के लायक नहीं ठहरा।

 

 

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