413.इबने उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि एक आदमी ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से रात की नमाज के बारे में पूछा तो आपने फरमाया कि रात की नमा दो दो रकअतें हैं और अगर तुममें से किसी को सुबह होने का डर हो तो वह एक रकअत और पढ़ ले, वह उसकी नमाज को वित्र बना देगी। वित्र की नमाज मुस्तकिल एक नमाज़ है जो इशा के बाद फजर तक रात के किसी हिस्से में पढ़ी जा सकती है, इसे तहज्जुद, कयाम-उल-लैल और तरावीह भी कहा जाता है। इसकी कम से कम एक रकअत और ज्यादा से ज्यादा तेरह रकअत हैं । ज्यादातर इमामों के नजदीक वित्र की नमाज़ सुन्नत है, जिस पर जोर दिया गया है। इस हदीस से दो बातें साबित होती हैं। एक यह कि रात की नमाज दो दो रकअत करके पढ़ना चाहिए, दूसरी यह कि वित्र की एक रकअत पढ़ना भी साबित है।
414.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तहज्जुद की नमाज ग्यारह रकअतें पढ़ा करते थे, रात के वक़्त आप की यही नमाज़ थी। इस नमाज़ में सज्दा इस कदर लम्बा करते कि आपके सर उठाने से पहले तुम में से कोई पचास आयतें तिलावत कर लेता है और फजर की नमाज से पहले दो रकअते सुन्नत भी पढ़ा करते, फिर अपनी दाई करवट लेट जाते, यहां तक कि अजान देने वाला आपके पास नमाज़ की खबर के लिए जाता तो उठ जाते। दूसरी रिवायत में है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रमजान या रमजान के अलावा कभी ग्यारह रकअत से ज्यादा नहीं पढ़ा करते थे, अलबत्ता बाज वक्तों में तेरह रकअतें पढ़ना भी साबित है। जैसा कि इब्ने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो ने बयान फरमाया है,नीज सुबह की सुन्नतें अदा करके दाई तरफ लेटना भी सुन्नत है। क्योंकि आप अच्छे कामों में दार्ई तरफ को पसन्द फरमाते थे।
415.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि रात के हर हिस्से में रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने वित्र की नमाज़ अदा की है, मगर आखिर में आपकी वित्र की नमाज आखिर रात में होती थी। रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने अलग अलग हालतों के मुताबिक अलग अलग वक्तों में वित्र अदा किये हैं, शायद तकलीफ और मर्ज में पहली रात में, सफर की हालत में बीच रात में,और आम अमल आखिर रात में पढ़ने का था। अलबत्ता उम्मत की आसानी के लिए इशा के बाद जब भी मुमकिन हो, वित्र अदा करना जाइज है।
416.इबने उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने कहा कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया ऐ लोगों! तुम रात की आखरी नमाज़ वित्र को बनाओ। इस रिवायत से पता चलता है कि वित्र की नमाज को सबसे आखिर में पढ़ना चाहिए इसके बरखिलाफ वित्र के बाद दो रकअत बैठकर अदा करना नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सही हदीसों से साबित नहीं। जैसा कि इस बात पर कुछ लोगों का अमल है। लिहाजा हमें चाहिए कि हम रात की सबसे आखिरी नमाज वित्र को बनायें ।
417.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है, उन्होंने फरमाया रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ऊंट पर सवार होकर वित्र पढ़ लिया करते थे। इस हदीस से मालूम हुआ कि वित्र की नमाज़ वाजिब नहीं है,अगर ऐसा होता तो इसे सवारी पर अदा न किया जाता।
418.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उनसे पूछा गया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फज की नमाज में कुनूत पढ़ी है? उन्होंने जवाब दिया,हां। फिर पूछा क्या रूकू से पहले आपने कुनूत पढ़ी थी? उन्होंने कहा, रूकू के बाद थोड़े दिनों के लिए। इस हदीस में वित्र के कुनूत का जिक्र नहीं, बल्कि कुनूते नाजिला का जिक्र है। शायद इमाम बुखारी ने यह कयास किया हो कि जब फर्ज नमाज में कुनूत पढ़ना जाइज हो तो वित्र में और ज्यादा जाइज होगा। कुनूते कब पढ़ा जाये, इसके बारे में निसाई में वजाहत है कि वितरों में कुनूत रूकू से पहले है और मुस्लिम की रिवायत के मुताबिक कुनूते नाजिला रूकू के बाद है। अगर कुनूते वित्र में दीगर दुआयें भी शामिल कर ली जायें तो उसे भी रूकू के बाद पढ़ना चाहिए। वरना कुनूत वित्र रूकू से पहले है।
419.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है, उनसे कुनूत के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि बेशक कुनूत पढ़ी जाये । फिर पूछा गया कि रूकू से पहले या रूकू के बाद? उन्होंने कहा, रूकू से पहले, फिर जब उनसे कहा गया कि फलां आदमी तो आपसे नकल करता है कि आपने रूकू के बाद फरमाया है। अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो बोले वह गलत कहता है। रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने सिर्फ एक महीना रूकू के बाद कुनूत पढ़ी है और मेरा खयाल है कि आपने मुश्रिकों की तरफ तकरीबन सत्तर आदमी खयाल है कि आपने मुश्रिकों की तरफ तकरीबन सत्तर आदमी भेजे। जिन्हें कारी कहा जाता था, यह मुश्रिक उन मुश्रिकों के अलावा थे, जिनके और रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम के बीच सुलहनामें का वादा हुआ था। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दुआ-ए-कुनूत पढ़ी और एक माह तक उनके लिए बद-दुआ करते रहे। इन्हीं से एक रिवायत में यह है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक माह तक दुआ-ए-कुनूत पढ़ी और कबीला रेअल और जृकवान के लिए बद-दुआ फरमाते रहे। जंगी हालतों के मुताबिक हर नमाज में दुआ-ए-कुनूत की जा सकती है। नीज मालूम हुआ कि जुल्म करने वाले लोगों पर नमाज में बद-दुआ करने से नमाज में कोई फर्क नहीं आता।
420.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से हीं यह रिवायत भी है, उन्होंने फरमाया कि कुनूत मगरिब और फज़ की नमाज में पढ़ी जाती थी। मगरिब की नमाज चूंकि दिन के वित्र हैं और इसमें कुनूत करना साबित है तो रात के वितरों में कुनूत और ज्यादा की जा सकती है। इसके अलावा वित्रों में कुनूत करने का बयान हदीसों में भी मौजूद है।
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