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13.बारिश मांगने का बयान (Hadith no 421-434)

 

421.अब्दुल्लाह बिन जैद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम बारिश की नमाज के लिए बाहर तशरीफ ले गये और वहां आपने अपनी चादर को पलट लिया। उन्हीं से एक रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि वहां आपने दो रकअत नमाज अदा की। बारिश मांगने के तीन तरीके हैं एक आम तरीके से बारिश की दुआ की जाये। दूसरा नफ्ल और फर्ज नमाज़ के बाद नीज खुत्बे में दुआ की जाये। तीसरा बाहर मैदान में दो रकअत अदा की जाये और खुत्बा दिया जाये, फिर दुआ की जाये। चादर को यूँ पलटा जाये कि नीचे का कोना पकड़कर उसे उल्टा किया जाये, फिर उसे दार्यी तरफ से घूमाकर बायीं तरफ डाल लिया जाये, इसमें इशारा है कि अल्लाह अपने फज्ल से ऐसे ही भूखमरी की हालत को बदल देगा।

 

 

422.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो की वह हदीस पहले गुजर चुकी है,जिसमें कमजोर मुसलमानों के लिए दुआ और कबीले मुजर पर बद-दुआ का जिक्र है। यहा आखिर में इजाफा है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि कबीला गिफार को अल्लाह तआला मगफिरत से नवाजे और कबीले असलम को अल्लाह सलामत रखे। यह हदीस इमाम बुखारी इसतिसका में इसलिए लायें हैं कि जैसे मुसलमानों के लिए बारिश की दुआ करना मसनून है, उसी तरह काफिरों पर कहत की बद-दुआ करना जाइज है। लेकिन ऐसे काफिरों के लिए जिनसे आपसी सुलह हो, बददुआ करना जाइज नहीं

 

 

423.अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने जब लोगों की इस्लाम से सरताबी देखी तो बद-दुआ की, अल्लाह! उनको सात बरस तक के लिए तंग हालत में शामिल कर दे, जैसे यूसुफ अलैहि सलाम के जमाने में सात बरस अकाल पड़ा था। चूनांचे अकाल ने उनको ऐसा दबोचा कि हर चीज नापैद हो गई। यहां तक कि लोगों ने चमड़ा, मुरदार और सड़े-गले जानवर खाने शुरू कर दिये और उनमें से अगर कोई आसमान की तरफ देखता तो भूख की वजह से उसे धूंआ सा दिखाई देता। आखिर अबू सुफियान रजि अल्लाह तआला अन्हो ने आपकी खिदमत में आकर अर्ज किया मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आप अल्लाह की इताअत और सिला रहमी का दावा करते हैं, मगर यह, आपकी कौम मरी जाती है, आप उनके लिए अल्लाह से दुआ फरमायें। इस पर अल्लाह तआला ने फरमाया, नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! उस दिन का इन्तजार करो जब आसमान से एक साफ धूंआ जाहिर होगा। इस फरमाने इलाही तक, जब हम उन्हें सख्त तरह से पकड़ेंगे। हजरत अब्दुल्लाह बिन मसऊद कहते हैं कि अलबतशा यानी सख्त पकड़ बदर के दिन हुई तो कुरआन शरीफ में जिस धूयें, पकड़ और कैद का जिक्र है, इस तरह आयत अल-रूम सब पूरी हो चुकी हैं। यह हिजरत से पहले का वाक्या है, अकाल की शिद्दत का यह आलम था कि अकालशुदा इलाके वीराने का नक्शा पेश करते थे। आखिरकार रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने हजरत अबू सुफियान की दरख्वास्त पर दुआ फरमायी और अकाल खत्म हुआ।

 

 

424.अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मुझे अकसर शायर अबू तालिब का कौल याद जाता जब मैं नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का चेहरे अनवर को इसतिसका की दुआ करते हुये देखता हूँ। आप मिम्बर से उतर पाते थे कि तमाम परनाले जोर से बहने लगते। वह शेअर अबू तालिब का यह है, “वह गोरे मुखड़े वाला जिसके रोये जैबा के वास्ते से अबरे रहमत की दुआयें मांगी जाती हैं, वह यतीमों का सहारा, बेवाओं और मिसकिनों का सरपरस्त (रखवाला) है।रूये जैबा के वास्ते से मुराद आपका दुआ करना है। यह शेअर अबू तालिब के उस कसीदे से है जो एक सौ दस शेअरों पर शामिल है, जिसे अबू तालिब ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शान में पढ़ा था

 

 

425.उमर बिन खत्ताब रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है। उनकी यह आदत थी कि लोग भुखमरी में शामिल होते तो हजरत अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब से इसतिसका की दुआ की अपील करते और कहते, अल्लाह! पहले हम नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम से इसतिसका की दुआ की अपील करते थे तो तू बारिश बरसाता था। अब हम तेरे नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम के चचा जान के जरीये बारिश की दुआ करते हैं तो अब भी रहम फरमाकर बारिश बरसा दे। रावी कहता है कि फिर बारिश बरसने लगती | मालूम हुआ कि जिन्दा बुजुर्ग से बारिश के लिए दुआ करना एक अच्छा काम है। यह भी मालूम हुआ कि हमारे बुजुर्ग, मुर्दो को वसीला बनाकर दुआयें नहीं करते थे, क्योंकि यह गैर शरई वसीला कुरआन और हदीस के खिलाफ है।

 

 

426.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो की हदीस उस आदमी के बारे में जो मस्जिद में आता था,जबकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खुत्बा इरशाद फरमा रहे थे और उसने आपसे बारिश के लिए दुआ की अपील की थी, कई बार गुजर चुकी है। इस रिवायत में इतना इजाफा है कि हमने छः दिन तक सूरज को देखा, फिर अगले जुमे को एक आदमी उसी दरवाजे से मस्जिद में दाखिल हुआ, जबकि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस वक्त खड़े होकर खुत्बा दे रहे थे। उसने आपके सामने आकर अर्ज किया कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! माल बर्बाद हो गया और रास्ते बन्द हो गये हैं। इसलिए आप अल्लाह से दुआ करें कि अब बारिश रोक ले। अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो कहते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दोनों हाथ उठाकर फरमाया, अल्लाह! हमारे इुर्द-गिर्द बारिश बरसा, हम पर बरसा | टीलों, पहाड़ियों, मैदानों, वादियों और पेड़ों के उगने की जगहों पर बारिश बरसा। रावी कहता है कि फौरन बारिश बन्द हो गई और हम धूप में चलने, फिरने लगे। इमाम साहब इस हदीस से यह साबित करना चाहते हैं कि इसतिसका की दुआ के लिए बाहर मैदान में जाना जरूरी नहीं, बल्कि जुमे के दिन मस्जिद के अन्दर खुत्बे के बीच अपनी चादर पलटे बगैर भी दुआ की जा सकती है।

 

 

427.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है,उन्हों ने फरमाया रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खुत्बे के बीच अपने दोनों हाथों को उठाकर यूँ दुआ की, अल्लाह! हम पर बारिश बरसा, अल्लाह! हम पर बारिश बरसा, अल्लाह हम पर बारिश बरसा। सही इबने खुजैमा में है कि आपने इस कदर हाथ उठाये कि बगलों की सफेदी नजर आने लगी। निसाई में है कि लोगों ने भी हाथ उठाये। लोगों के हाथ उठाने काजिक्र बुखारी में भी मौजूद है।

 

 

428.अब्दुल्लाह बिन जैद रजि अल्लाह तआला अन्हो से मरवी रिवायत में इतना इजाफा है कि आपने लोगों की तरफ पीठ करके किब्ले की तरफ मुंह कर लिया और दुआ फरमाने लगे, फिर अपनी चादर को उलट लिया। उसके बाद तेज आवाज से किरअत करके हमें दो रकअतें पढ़ायीं। इस हदीस से मालूम हुआ कि इसतिसका की नमाज़ में खुत्बा नमाज से पहले ही है, क्योंकि चादर का पलटना खुत्बे में होता है, जो नमाज़ से पहले है। अबू दाउद की रिवायत में इस की सराहत भी है। लेकिन नमाज़ के बाद खुत्बा को बयान करने वाले रावियों की तादाद ज्यादा है। फिर ईद और कुसूफ पर कयास भी तकाजा करता है कि खुत्बा नमाज़ के बाद है।

 

 

429.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,उन्हों ने फरमाया कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम बारिश मांगने की दुआ के अलावा किसी और दुआ में अपने दोनों हाथ ऊंचे उठाते थे। आप अपने हाथ इतने ऊंचे उठाते थे कि आपकी दोनों बगलों की सफैदी नजर आने लगती इस हदीस में सिर्फ मुबालगे की हद तक हाथ उठाने की नफी है। क्योंकि बेशुमार जगहों पर रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम का दुआ के वक्त हाथ उठाना साबित है। जैसा कि इमाम बुखारी ने किताबुद-दावात में बयान किया है। नीज बारिश मांगने की दुआ में हाथ उठाने की सूरत भी आम दुआ से अलग है, इसमें हाथों की हथेलियां जमीन की तरफ हों और हथेलियों की पीठ आसमान की तरफ होनी चाहिए।

 

430.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्होसे रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब बारिश बरसती देखते तो फरमाते, अल्लाह फायदेमन्द पानी बरसा

 

431.अनस रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि जब तेज आंधी चलती तो नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम के चेहरे पर डर के निशान दिखाई देते थे। आंधी के बाद अक्सर बारिश होती है। इस मुनासिबत से इमाम बुखारी ने इस हदीस को यहां बयान किया है, चूंकि कौमे आद पर आंधी का अजाब आया था, इसलिए आंधी के वक्त अल्लाह के अजाब का तसव्वुर फरमाकर घबरा जाते और घुटनों के बल गिर कर दुआ करते।

 

 

432.अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया,यानी पूर्वी हवा से मेरी मदद की गई है और कौमे आद को पश्चिमी हवा से बर्बाद किया गया है। बादे सबा को कुबूल भी कहते हैं जो हक कुबूल करने के लिए मदद और ताईद का जरिया भी साबित होती है और खन्दक के वक्त इसका करिश्मा जाहिर हुआ जबकि बारह हजार काफिरों ने मदीने को घेर लिया था। अल्लाह तआला ने ऐसी हवा भेजी जिससे काफिर परेशान होकर भाग निकले।

 

 

433.इबने उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, अल्लाह हमारे शाम और यमन में बरकत दे, लोगों ने कहा हमारे लिए भी बरकत की दुआ फरमायें तो आपने दोबारा कहा, अल्लाह! शाम और यमन को बरकत वाला कर बना दे, लोगों ने फिर कहा और हमारे नज्द में तो आपने फरमाया, वहां जलजले और फितने होंगे और शैतान का गिरोह भी वहीं होगा। रसूलुल्लाह सल्लल्लाह अलैहि वसल्लम ने फितनों की जमीन की पहचान बतलाते वक़्त पूर्व की तरफ इशारा फरमाया, इससे मालूम होता है कि उससे मुराद इराकी नज्द है, जो फितनों की जगह है इस इलाके से मुसलमानों के अन्दर गिरोहबन्दी और इख्तिलाफात लगातार शुरू हुआ जो आज तक बाकी है। इससे मुराद नज्दे हिजाज़ नहीं, जैसा कि बिदअती कहते हैं। क्योंकि इस इलाके से एक ऐसी तहरीक उठी, जिसने खुलफा--राशिदीन की याद को ताजा कर दिया, वहां से शैख मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब ने सिर्फ इस्लाम की दावत की शुरूआत की, जिसके नतीजे में वहां नज्दी हुकूमत कायम हुई। इस सऊदिया की हुकूमत ने इस्लाम की बुलन्दी और मक्का मदीने के लिए ऐसे कारनामें अनजाम दिये हैं जो इस्लामी दुनिया में हमेशा याद किये जायेंगे

 

 

434.इबने उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने कहा रसूलुल्लाह सल्लललाहु

अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि गैब की चाबियां पांच हैं, जिन्हें अल्लाह के अलावा कोई नहीं जानता। एक यह कि कोई नहीं जानता कल क्या होगा? कोई नहीं जानता कि मां के पेट में क्या है? कोई नहीं जानता कि वह कल क्या करेगा? कोई नहीं जानता कि वह कहां मरेगा? और पांचवी यह कि कोई नहीं जानता कि बारिश कब बरसेगी? इमाम बुखारी ने इस हदीस से यह साबित किया है कि बारिश होने का सही इल्म सिर्फ अल्लाह तआला को है। उसके अलावा कोई नहीं जानता कि फलां दिन या फलां वक्त यकीनी तौर पर बारिश हो जायेगी। मौसम विभाग भी अपनी बनाई हुई चीजों से पहले ही अनुमान लगाता है जो गलत हो जाता है।

 

 

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