435.अबू बकर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि हम रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम के पास बैठे हुये थे कि सूरज ग्रहण हुआ। आप अपनी चादर घसीटते हुए उठे और मस्जिद में दाखिल हुये। हम भी मस्जिद में आये तो आपने हमें दो रकअत नमाज पढ़ायी, यहां तक कि सूरज रोशन हो गया। फिर आपने फरमाया कि सूरज और चाँद किसी के मरने से ग्रहण नहीं होते। जब तुम ग्रहण देखो तो नमाज पढ़ो और दुआ करो, यहां तक कि अंधेरा जाता रहे,एक और रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अल्लाह तआला सूरज और चाँद दोनों को ग्रहण करके अपने बन्दों को डराता है और डर दिलाता है।
436.ग्रहण की हदीस कई बार रिवायत की गई है। चूनांचे मुगीरा बिना शोबा रजि अल्लाह तआला अन्हो से एक रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जिन्दगी के जमाने में सूरज ग्रहण उस दिन हुआ, जिस रोज आपके चहीते लड़के इब्राहीम की वफात हुई थी। लोगों ने खयाल किया कि इब्राहीम की वफात की वजह से सूरज ग्रहण हुआ है। इस पर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि चाँद और सूरज किसी के मरने और पैदा होने से ग्रहण नहीं होते। जब तुम ग्रहण देखो तो नमाज पढ़ो और अल्लाह से दुआ करो। यह सूरज और चाँद इस जमीन से कई गुना बड़े हैं। ग्रहण के जरीये इतने बड़े आसमान में तसर्सफ का मकसूद यह है कि गाफिल लोगों को कयामत का नजारा दिखाकर जगाया जाये । नीज अल्लाह की कुदरत भी जाहिर होती है कि अल्लाह तआला अगर बेगुनाह मखलूक को बे-नूर कर सकता है तो गुनाहों में डूबे हुए इन्सानो की पकड़ भी की जा सकती है।
437.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से एक रिवायत में है, कि एक बार रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जमाने में सूरज ग्रहण हुआ तो आपने लोगों को नमाज पढ़ाई और उस दिन बहुत लम्बा कयाम फरमाया, फिर रूकू किया तो वह भी बहुत लम्बा किया। रूकू के बाद कयाम फरमाया तो बहुत लम्बा कयाम किया। मगर पहले कयाम से कुछ कम था। फिर आपने लम्बा रूकू फरमाया जो पहले रूकू से कम था। फिर सज्दा भी बहुत लम्बा किया और दूसरी रकअत में भी ऐसा ही किया जैसा कि पहली रकअत में किया था। फिर जब नमाज से फारिग हुये तो सूरज साफ हो चुका था। उसके बाद आपने लोगों को खुत्बा सुनाया और अल्लाह की तारीफ के बाद फरमाया यह चाँद और सूरज अल्लाह की निशानियों में से दो निशानियां हैं। यह दोनों किसी के मरने-जीने से ग्रहण नहीं होते। जिस वक्त तुम ऐसा देखो तो अल्लाह से दुआ करो, तकबीर कहो, नमाज़ पढो और सदका खैरात करो। फिर आपने फरमाया, ऐ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्मत! अल्लाह से ज्यादा कोई गैरतमन्द नहीं है कि उसका गुलाम या उसकी लौण्डी बदकारी करे। ऐ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की उम्मत! अल्लाह की कसम अगर तुम उस बात को जान लो जो मैं जानता हूँ तो तुम्हें बहुत कम हंसी आये और बहुत ज्यादा रोओ। ग्रहण की नमाज़ की यह खासियत है कि इसकी हर दो रकअत में दो दो रूकू और दो दो कयाम हैं। अगचरे कुछ रिवायतों में तीन तीन रूकू और कुछ में चार चार और पांच पांच रूकू हर रकअत में आये हैं। मगर हर रकअत में दो,दो रूकू तमाम दूसरी रिवायतों से ज्यादा ही है। तरजीह की जरूरत नहीं क्योंकि यह नमाज़ कई बार पढ़ी गई, हालात के मुताबिक जो तरीका मुनासिब हो, उसे अपनाया जा सकता है। लेकिन इमाम शाफई, इमाम अहमद और इमाम बुखारी का रूझान तरजीह की तरफ है।
438.इबने उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जमाने में जब सूरज ग्रहण हुआ तो यूं ऐलान किया गया, नमाज के लिए जमा हो जाओ। ग्रहण की नमाज के लिए अगरचे अजान नहीं दी जाती फिर भी इसके बारे में आम तरीके से ऐलान कराने में कोई हर्ज नहीं है। ताकि यह नमाज़ खास एहतेमाम के साथ जमाअत के साथ अदा की जाये।
439.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि एक यहूदी औरत उनसे कुछ मांगने आयी। बातचीत के दौरान उसने हजरता आइशा से कहा कि अल्लाह तुम्हें कब्र के अजाब से बचाये। हजरता आइशा ने रसूलुल्लाह सल्लललाहु अलैहि वसल्लम से पूछा, कया लोगों को कब्रों में अजाब होगा? तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कब्र के अजाब से पनाह मांगते हुए फरमाया, हां! फिर हजरता आइशा ने ग्रहण की हदीस का जिक्र किया, जिसके आखिर में है कि फिर आपने लोगों को हुक्म दिया कि वह कब्र के अजाब से पनाह मांगे। ग्रहण के वक्त कब्र के अजाब से इस मुनासिबत की बिना पर डराया जाता है कि जैसे ग्रहण के वक्त दुनिया में अंधेरा हो जाता है, ऐसे ही गुनाहगार की कब्र में अजाब के वक्त अंधेरा छा जाता है। यह भी मालूम हुआ कि कब्र का अजाब हक है और इस पर ईमान लाना जरूरी है।
440.इबने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उन्होंने सूरज ग्रहण का लम्बा वाक्या बयान करने के बाद कहा कि लोगों ने अर्ज किया ऐ अल्लाह के रसूल सल्लललाहु अलैहि वसल्लम! हमने आपको देखा कि आपने अपनी जगह खड़े खड़े कोई चीज हाथ में ली, फिर हमने आपको पीछे हटते हुये देखा। इस पर आपने फरमाया कि मैंने जन्नत देखी थी। और एक अंगूर के गुच्छे की तरफ हाथ बढ़ाया था। अगर मैं वह ले आता तो तुम रहती दनिया तक उसे खाते रहते। उसके दुनिया तक उसे खाते रहते। उसके बाद मुझे जहन्नम दिखाई गई, मैंने आज तक उससे ज्यादा डरावना नजारा नहीं देखा। पूरे दोजख में ज्यादातर औरतों की तादाद देखी। लोगों ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इसकी क्या वजह है? आपने फरमाया कि इसकी वजह उनकी नाशुक्री है। कहा गया, क्या अल्लाह की नाशुक्री करती हैं? फरमाया, नहीं बल्कि वह अपने शौहर की नाशुक्री करती हैं और एहसान नहीं मानती। अगर तुम किसी औरत के साथ उम्र भर एहसान करो और फिर इत्तिफाक से तुम्हारी तरफ से कोई बुरी बात देखे तो फौरन कह देगी कि मैंने तुझ से कभी कोई भलाई देखी ही नहीं । मालूम हुआ कि ग्रहण के वक़्त नमाज़ का जमाअत के साथ एहतेमाम करना चाहिए और अगर मुकर्रर इमाम न हो तो कोई भी इल्म वाला इस काम को अंजाम दे सकता है।
441.असमा बिन्ते अबू बकर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसलल्लम ने सूरज ग्रहण के वक़्त गुलाम आजाद करने का हुक्म फरमाया था। जिस इन्सान में गुलाम आजाद करने की हिम्मत न हो, उसे चाहिए कि इस आम हदीस पर अमल करे, जिसमें है कि आग से बचो। अगरचे खुजूर का एक टुकड़ा ही सदका करना पड़े, बहरहाल ऐसे वक्त सदका और खैरात करना एक पसन्दीदा काम है।
442.अबू मूसा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि एक बार सूरज ग्रहण हुआ तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम डर कर खड़े हो गये। आप घबराये कि कहीं कयामत न हो, फिर मस्जिद में तशरीफ लाये और इतने लम्बे कयाम, रूकू और सज्दों के साथ आपने नमाज़ पढ़ाई कि इतनी लम्बी नमाज पढ़ाते मैंने आपको कभी नहीं देखा था। फिर आपने फरमाया कि यह निशानियां हैं जो अल्लाह तआला अपने बन्दों को डराने के लिए भेजता है। नीज यह किसी के मरने जीने की वजह से नहीं होती। इसलिए जब तुम ऐसा देखो तो अल्लाह का जिक्र करो और दुआयें और भी खूब करो | कयामत आने की मिसाल रावी की तरफ से है। गोया रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ऐसे डरते जैसे कोई कयामत के आ जाने से डरता है, वरना आप जानते थे कि मेरी मौजूदगी में कयामत नहीं आयेगी। फिर भी ऐसी हालत में माफी मांगनी चाहिए, क्योंकि मुसीबतों के टालने के लिए यह सबसे अच्छा नुस्खा है।
443.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, कि नबी सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने कुसूफ की नमाज में ऊंची आवाज में किरअत फरमायी और जब किरअत से फारिग हुये तो अल्लाहु अकबर कहकर रूकू फरमाया और जब रूकू से सर उठाया तो कहा,“समिअल्लाहु लिमन हमिदा रब्बना व-लकल हम्द''। फिर दोबारा किरअत शुरू की। आपने कुसूफ की नमाज में ही ऐसा किया। अलगर्ज इस नमाज की दो रकअतों में चार रूकू और चार सज्दे फरमाये। कुछ ने यह मसला इखि्तियार किया कि तेज आवाज से किरअत चाँद ग्रहण के वक्त थी, हालांकि एक रिवायत में है कि तेज आवाज से किरअत का एहतेमाम सूरज ग्रहण के वक्त हुआ था। फिर भी ग्रहण के वक्त ऊंची आवाज में किरअत करनी चाहिए।
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