477.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हैं कि आपने फरमाया तीन मस्जिदों के अलावा किसी और मस्जिद की तरफ सफर न किया जाये, मस्जिदे हराम, मस्जिदे नबवी और मस्जिदे अकसा। सफर के लिए सामान तैयार करना और जियारत के लिए घर से निकलना यह सिर्फ इन्हीं तीन जगहों के साथ खास है। नीज बुजुर्गों के मजारों पर इस नियत से जाना कि वह खुश होकर हमारी हाजत रवाई करेंगे या उसका बसीला बनेंगे और इस किस्म के दूसरे बातिल वहम इस हदीस के तहत सिरे नाजाइज और हराम हैं।
478.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से ही रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया मेरी इस मस्जिद में एक नमाज़ मस्जिद हराम के अलावा दूसरी मस्जिदों की हजार नमाजों से बेहतर है। मेरी मरिजद से मुराद मस्जिदे नबवी है । हजरत इमाम बुखारी का मकसूद यह है कि मस्जिदे नबवी की जियारत के लिए सफर का सामान बांधना चाहिए और जो वहां जायेगा, जरूरी तौर पर उसे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और हजरत अबू बकर और हजरत उमर पर दरूदे और सलाम की सआदतें हासिल होगी।
479.इबने उमर रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि वह चाश्त की नमाज़ इन दो दिनों के अलावा किसी और दिन न पढ़ते, एक जब मक्का मुकर्रमा आते तो जरूर पढ़ते क्योंकि वह मक्का में चाश्त ही के वक्त आते थे। तवाफ करते फिर मकामे इब्राहिम के पीछे दो रकअत नमाज़ पढ़ते और दूसरे जिस दिन काया जाते उस दिन भी चाश्त की नमाज पढ़ते थे, वह हर हफ्ते मस्जिदे कुबा जाते, जब मस्जिद में दाखिल होते तो नमाज पढ़े बगैर वहां से निकलने को बुरा खयाल करते। उनका बयान है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कभी पैदल जाया करते और यह भी कहा करते थे कि मैं इस तरह करता हूँ जैसा कि मैंने अपने दोस्तों को करते देखा है और मैं किसी को मना नहीं करता कि रात या दिन में जब चाहे नमाज़ पढ़े, हां कभी सूरज निकलते या डूबते वक्त नमाज़ न पढ़े । मालूम हुआ कि कुछ अच्छे कामों की अदायगी के लिए किसी दिन को खास करना और फिर उस पर हमेशगी करना जाइज है।
480.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हैं कि आपने फरमाया, मेरे घर और मिम्बर के बीच जगह जन्नत के बागों में से एक बाग है और मेरा मिम्बर (कयामत के दिन) मेरे हौज पर होगा। यह फरज़ीलत किसी और जमीन के टुकड़े को हासिल नहीं, हकीकत में यह हिस्सा जन्नत ही का है और आखिरत की दुनिया में उसे जन्नत ही का हिस्सा बना दिया जायेगा, चूंकि आप अपने घर में ही दफन हैं, इसलिए इमाम बुखारी ने इस हदीस पर "कब्र और मिम्बर के बीच हिरसे की फजीलत" का उनवान कायम किया है।
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