510.अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि हम नबी सल्लल्लाहु अलेहि वसल्लम को सलाम किया करते थे, हालांकि आप नमाज़ में होते और आप हमें जवाब भी दिया करते थे, लेकिन नजाशी के पास से लौटकर आने के बाद हमने आपको नमाज़ में सलाम किया तो आपने जवाब न दिया और फारिग होने के बाद फरमाया कि नमाज में मस्रूफीयत हुआ करती है। नमाज में अल्लाह से दुआ का तकाजा है कि अल्लाह की याद में जिस्म और दिल के साथ डूब जाये, ऐसे आलम में लोगों से बात और उनके सलाम का जवाब कैसे दिया जा सकता है?
511.जैद बिन अरकम रजि अल्लाह तआला अन्हो से एक रिवायत में है, उन्होंने फरमाया कि हम नमाज़ में एक दूसरे से बात किया करते थे, यहां तक कि यह आयत नाजिल हुई "नमाजों की हिफाजत करो और (खासकर) बीच वाली नमाज़ की और अल्लाह के सामने अदब से खड़े रहो" फिर हमें नमाज़ में चुप रहने का हुक्म दिया गया । मालूम हुआ कि नमाज़ के बीच हर तरह की दुनियावी बात करना मना है, चूनांचे सही मुस्लिम में है कि हमें इस आयत के जरीये बात करने से रोक दिया गया।
512.मुकीब रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस शख्स से जो सज्दे की जगह मिट्टी बराबर कर रहा था, यह फरमाया कि अगर तुम यह करना ही चाहते हो तो एक बार से ज्यादा न करो। एक रिवायत में इसकी वजह यूँ बयान की गई है कि नमाज़ के वक्त अल्लाह की रहमत नमाजी के सामने होती है, इसलिए ध्यान हटाकर कंकरियों को बार बार बराबर करना गोया अल्लाह की रहमत से मुंह फेरना है।
513.अबू बरजाह असलमी रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उन्होंने किसी जगह में सवारी की लगाम हाथ में लेकर नमाज़ पढ़ी, सवारी लड़ने लगी तो आप उस के पीछे हो लिये, जब उनसे उसके बारे में पूछा गया तो कहने लगे कि मैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ छः, सात या आठ बार जिहाद में रहा हूँ और मैं ने आपकी आसानी और सहूलियत पसन्दी देखी है। इसलिए मुझे यह बात कि मैं अपनी सवारी के साथ रहूं इस बात से ज्यादा पसन्द है कि मैं उसे छोड़ देता और वह अपने अरतबल घोड़े बांधने की जगह में चली जाती फिर मुझे तकलीफ होती! मालूम हुआ कि किसी खास जरूरत की बिना पर इन्सान अपनी तारीफ खुद कर सकता है, लेकिन घमण्ड का मकसद न हो।
514.आइशा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि उन्होंने सूरज ग्रहण की हदीस बयान की जो पहले गुजर चुकी है। उस रिवायत के मुताबिक रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि मैंने नमाज़ में कोई काम करने का बयान हिस्सा दूसरे को तोड़े जा रहा था। उसके बाद आपने फरमाया कि मैंने जहन्नम में अम्र बिन लुहई को देखा और यह वह आदमी है जिसने बुतों के नाम पर जानवरों को आजाद करने की रस्म डाली थी। इस हदीस में है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ज़न्नत का गुच्छा लेने के लिए नमाज ही में आगे बढ़े और जहन्नम का भयानक नजारा देखकर कुझ पीछे हटे। इससे मालूम हुआ कि जरूरत के वक्त नमाज़ में थोड़ा सा चलना और मामूली सा काम करना, इससे नमाज यातिल नहीं होती।
515.जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मुझे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने किसी काम के लिए भेजा, चूनांचे मैं गया और वह काम करके नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुआ, मैंने आपको सलाम किया, मगर आपने जवाब न दिया, जिससे मेरा दिल इतना रंजीदा हुआ कि अल्लाह ही खूब जानता है, मैंने अपने दिल में कहा कि शायद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुझ से इसलिए नाराज हैं कि मैं वेर से लौटा हूं । चूनांचे मैंने फिर सलाम किया तो आपने जवाब न दिया, अब तो मेरे दिल में पहले से भी ज्यादा गम हुआ। मैंने फिर सलाम किया तो आपने सलाम का जवाब दे कर फरमाया, चूकि मै नमाज़ पढ़ रहा था, इसलिए मैं तुझे सलाम का जवाब न दे सका। उस वक्त आप सवारी पर थे, जिसका रूख किब्ले की तरफ न था। इसलिए मैं तमीज न कर सका कि आप नमाज़ में हैं या नहीं। मुस्लिम में इतनी वजाहत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सलाम का जवाब हाथ के इशारे से दिया था, जिसे हजरत जाबिर रजि अल्लाह तआला अन्हो न समझ सके, इसलिए वह परेशान और फ्रिकमन्द हो गये।
516.अबू हुरैरा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है,उन्होंने कहा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि यसल्लम ने कमर पर हाथ रखकर नमाज़ पढ़ने से मना फरमाया है। इस हुक्म की कुछ वजहें हैं, क्योंकि ऐसा करना घमण्ड करने वालों की निशानी है, यहूदी अकसर ऐसा करते थे, नीज इब्लीस को ऐसी हालत में आसमान से उतारा गया और जहन्नम वाले आराम के वक्त ऐसा करेंगे। इसलिए नमाज़ में ऐसा करना मना है।
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