517.अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक बार जुहर की पांच रकअतें पढ़ीं । कहा गया कि नमाज में कुछ बढ़ा दिया गया है? आपने फरमाया वह क्या? कहा गया कि आपने पांच रकअते पढ़ी हैं तो आपने सलाम फेरने के बाद दो सज्दे सहू किये। इमाम बुखारी का मकसद यह है कि अगर नमाज़ में कमी हो जाये तो सलाम से पहले सज्दे सहू किये जायें और अगर कुछ बढ़त हो जाये तो सलाम के बाद सज्दे सहू किये जाये,लेकिन इस सिलसिले में इमाम अहमद का मसलक ज्यादा बेहतर मालूग होता है कि हर हदीस को उस की जगह में इसतेमाल किया जाये और जिस भूल की सूरत में कोई हदीस नहीं आये, वहां सलाम से पहले सज्दा सहू किया जाये।
518.उम्मे सलमा रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से शुना है कि आप असर के बाद नमाज़ पढ़ने से मना करते थे,फिर मैंने आपको नमाज़ पढ़ते हुये देखा, उस वक्त मेरे पास अन्सारी औरतें बैठी थीं। मैंने एक लड़की को आपकी खिदगत में भेजा और उससे कहा, आपके पहलू में खड़े होकर कहना कि उम्मे सलमा रजि. मालूम करती हैं ऐ अल्लाह के रसूल अल्लाह सल्लल्लाह अलैहि वसल्लम! मैंने आपको इन दो रकअतों से मना फरगाते सुना है, जबकि मैं अब आपको देखती हूँ कि आप दो रकअतें पढ़ रहे हैं । अगर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने हाथ से तेरी तरफ इशारा करें तो पीछे हट जाना। उस लड़की ने ऐसा ही किया। आपने अपने हाथ से जब इशारा फरमाया तो वह पीछे हट गयी। फिर आपने नमाज़ से फारिग होकर फरमाया, ऐ अबू उमय्या की बेटी! तूने असर के बाद दो रकअतें पढ़ने के बारे में पूछा तो बात दरअसल यह है कि कबीला अब्दुल कैस के कुछ लोग मेरे पास आ गये थे, जिन्होंने जुहर के बाद दो रकअतों में मुझे देर करा दी तो यह वही दो रकअतें हैं यह नफ़्ल नहीं है ।इससे मालूम हुआ कि नमाज़ में किसी की बात सुनने और समझने से नमाज़ में कोई खराबी नहीं आती।
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